यह एक ऎसा पौधा है जो लगभग पुरे संसार मे पाया जाता है । संसार मे जितने भी धर्म ग्रन्थ है लगभग सभी मे इसका सम्मानपुर्वक उल्लेख है । हमारे विष्णु पुराण मे, महाभारत मे वेदों मे इसका धृत कुमारी के नाम से उल्लेख है । हमारे आर्युवेद मे इसे जडी बूटियों का महाराजा कहा जाता है ।
हम यदि अपने बुजुर्गों से बात करे तो हमें मालुम होगा कि वे इसे काफ़ी इस्तेमाल करते थे । कोइ इसके लड्डू खाता था तो कोइ इसका हल्वा बनाकर खाता था । हमारे यहां विषेश कर राजस्थान मे इसकी सब्जी आज भी बनाकर खाई जाती है । दुनियां के सभी देशों के पास इसका काफ़ी पुराना इतिहास है ।मिश्र मे ममी के इसका लेप लगाकर ही लम्बे समय तक सुरक्षित रखते थे । क्लयोपेट्रा जो दुनियां की सबसे सुन्दर महिला थी इसी का लेप लगाती थी । सिकन्दर ने एक लडाई केवल इसी के लिये लडी थी ।
महात्मा गांधी इसका अपने लम्बे उपवासों मे उपयोग करते थे । १८३५ से वैग्यानिक इसके उपर निरन्तर अनुसन्धान कर रहे है । अमेरिका के एक विख्यात अनुसंधान केन्द्र डा. लाईनस पोलिंग इंस्टीट्युट ने इस पौधे मे पर २६ साल रिसर्च किया । उन्होने इस पर रिसर्च इसलिए किया क्योंकि इस पौधे मे एक गुण यह भी है कि इसमे हर जगह अलग- अलग रोगो से लडने की क्षमता है । जो पौधे यू.पी. बिहार मे होते है उसमे जोडों का दर्द ठीक करने की ताकत होती है ,जो पौधे राजस्थान मे होते है उनमे दमे के रोग को जड से काटने की ताकत होती है । जो पौधा रुस मे होता है उसमे त्वचा के रोग
ठीक करने की ताकत होती है । उन्होने पुरी दुनियां मे ३०० प्रकार के पौधे ढूंढे । उनमे से २८५ पौधे ऎसे थे जिनमे ०- १५% दवाओं के गुण थे ११ पौधे ऎसे थे जिनमे जहर था । ४% पौधे ऎसे थे जिनमे ९०% से १००% दवाओं के गुण थे । इसमे एक ऎसा पौधा भी था जिसने १००% गुण थे । उसका वैग्यानिक नाम बारबडेसिस मिलर है । उस पौधे को यदि हम ३ साल तक बिना रासयनिक खाद व किटनाशक तथा पोल्युशन के उगाये तो इसमे दो गुण अपने आप आ जाते है ।
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