वर्तमान समय में कैंसर एक ऐसा महामारी का रूप ले लिया है, रोगी के लिए इसका नाम ही एक ऐसा प्रेतात्मा की तरह होता है की जबतक मौत की आगोश में न सुला दे तबतक चैन नहीं लेता | अपना देश हो या विदेश चारो तरफ यह रोग अपना शिकार बनता फिर रहा है |
क्या गरीब, क्या अमीर उनके लिए सब एक सामान है ? पैसे वाले तो कुछ दिन तक अपनी जिन्दगी की गाडी को धक्का दे देते है परन्तु गरीब वो इतने सारे पैसे कहाँ से लाये ? क्या करे? जिनके पास दो वक्त की रोटी न हो. न जाने उन्हें अपनी और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है ?
परन्तु एक खुसखबरी है ऐसे मरीजों के लिए जो चिकित्सक के पास मोटी फ़ीस नहीं भर सकते, अस्पतालों में अनाप सनाप जाँच नहीं करा सकते ? अपने घर में बैठे ही वो अपना रहन सहन,कैंसररोधी आहार विहार , फलों सब्जियों के माध्यम से उपचार कर सकते है |
अब आप सोच रहे होंगे क्या पागलों जैसी बाते कर रहा है ? जहाँ बड़े बड़े अस्पताल में भी इलाज संभव नहीं हो पाता, वहां क्या आहार विहार और फलों सब्जियों से इलाज हो पाना संभव है ? जी हाँ ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ ? दरअसल इसके पीछे मेरे पास कुछ ठोस व प्रमाणिकता है, जो मैं आपलोगों के साथ बांटना चाह रहा हूँ |
विश्वविख्यात जर्मन जीव रसायन विशेषग्य व चिकित्सक डॉ० योहाना बुड्विज (जन्म ३० सितम्बर १९०८, मृत्यु १९ मई २००३) जो भौतिक विज्ञानं, जीवरसायन विज्ञानं, औषधि विज्ञानं में मास्टर डिग्री हासिल की व प्राकृतिक विज्ञानं में पीएचडी की थी | वे यूरोप के विख्यात वसा और तेल विशेषग्य थी | उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध किये | उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए ७ बार चयनित हुआ | वे आजीवन शाकाहारी रहीं | जीवन के अंतिम दिनों में भी वे सुन्दर , स्वस्थ व अपनी आयु से काफी युवा दिखती थी |
उन्होंने संतृप्त व असंतृप्त वसा का परिक्षण किया | शरीर के लिए आवश्यक वसा ओमेगा-३ व ओमेगा-६ पर शोध किया की फिर यह भी पाता लगाया की किस प्रकार ओमेगा-३ हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाते है तथा स्वस्थ शरीर को ओमेगा-३ व ओमेगा-६ बराबर मात्रा में मिलना चाहिए | उन्होंने पूर्ण व आंशिक हाईड्रोजिनेटेड ( वनस्पति घी ), ट्रांस-फैट व रिफाइंड तेलों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का पाता लगाया |
डॉ० ओटो वारबर्ग को कैंसर पर उनकी शोध के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर को मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया पर बाधित होना है | यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ओक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व ही संभव नहीं है | परन्तु वारबर्ग यह नहीं पता कर पाए कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाय |
डॉ० योहन ने वर्षो तक शोध करके पता लगाया इलेक्ट्रोन युक्त अत्यंत असंतृप्त ओमेगा-३ वसा से भरपूर अलसी,जिसे अंग्रेजी में Linseed या Flaxseed कहते है, का तेल खोशिकाओं में नई उर्जा भरता है, कोशिकाओं की स्वस्थ भितियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ओक्सिजन को खींचता है | सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी का तेल के साथ मिलाने पर तेल को पानी में घुलनशील बनाता है और तेल को सीधा कोशिकाओं को भरपूर ओक्सिजन पहुँचती है व कैंसर खत्म होने लगता है |
1952 में डॉ० योहाना ने ठंढी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण तथा कैंसररोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर उपचार का तरीका विकसित किया | इस तरह से डॉ० योहाना ने 1952 से 2002 तक लाखों रोगियों का उपचार करती रही | इस उपचार से सभी प्रकार के कैंसर रोगी कुछ महीनो में ठीक हो जाते थे |
वे ऐसे कई रोगीओं को ठीक किया जिन्हें अस्पताल से यह कह कर छुट्टी दे दी जाती थी की अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है और उनके पास अब चंद घंटे या चंद दिन ही बचे है | कैंसर के आलावा इस उपचार से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, आर्थराईटिस,ह्रदय घात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियाँ भी ठीक हो जाती है | उनके उपचार से 90 प्रतिशत तक सफलता मिलती थी |
कैंसर रोगी के आहार-विहार और अलसी व पनीर का सेवन विधि के बारे में हम अगले अंश में चर्चा करेंगे | किस तरह से आप अपने जीवन में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ सकते है ? और उनपर विजय पान लगभग तय है | बस इंतज़ार कीजिये अगले अंश की |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
2 comments
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Nice Info. Sugar Treatment In Hindi
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