सरबजीत की साँसों की डोर टूट गई, उसकी धड़कन बंद हो गई ! छे दिन से पूरा हिंदुस्तान जो दुआ मांग रहा था दुआ अधूरी रह गई ! आधी रात के बाद जब देश गहरी नींद में था तभी पाकिस्तान से एक मनहूस खबर आई, खबर सरबजीत की मौत की ! लाहौर के जिन्ना हॉस्पिटल के डॉक्टरों के मुताबिक रात डेढ बजे दिल का दौरा पड़ने से सरबजीत की मौत हो गई ! जाहिर है मौत को कोई तो नाम देना था सो दे दिया दिल का दौरा और ये खुद पाकिस्तान भी जानता है की सरबजीत मरा नहीं बल्कि पाकिस्तान ने ही उन्हें मार डाला वो भी बेहद जालिमाना तरीके से ! पिछले ही हफ्ते 26 अप्रैल को लाहौर के कोर्ट में सरबजीत पर कैदियों ने पत्थडों और धारदार हथियार से हमला कर दिया ! हमले के बाद सरबजीत जिन्ना अस्पताल में कौमा में थे ! हालत पहले दिन से ही नाजुक थी वेंटिलेटर पर उधार की साँसे लेकर पाकिस्तान उन्हें जिन्दा रखा हुआ था ताकि अपनी शर्मिंदगी छुपा सके !
और इक नया गम आया,इक नया जख्म आया, इक नया मातम आया,अब एक बार फिर हम सब उस गम को झेलेंगे, उस जख्म को सहेंगे और उस मातम को मनाएंगे, यानि गम देना पाकिस्तान की आदत सी पर गई है,और उसे सहने की हमारी सिद्धत सी बन गई है ! पता नहीं चलता गुस्सा पडोसी से करूँ या शिकायत अपनों से !
नफरत की बुनियाद पर खिची गई सरहद की लकीर के उस पार,आज भी तेरे कारखाने नफरत ही बनाते!
वाह रे पाकिस्तान मोहब्बत और हकीकत की चादर चढाने हिंदुस्तान आते हो, और पाकिस्तान जाकर बदले में कफ़न बांटते हो ! और वाह रे हमारे नेता और हुक्मरान कमबख्त मौत से पहले किसी के लिए इतनी मोहब्बत नहीं उपजती , सब अब सरबजीत-सरबजीत कर रहे है, संसद से सड़क तक श्रधांजलि दे रहे है तो संसद के बाहर कैमरे पर उसे शहीदों के दर्जे से नवाजा जा रहा है ! ये सब पक्के खिलाड़ी है , सबको पता है माहोल गर्म है, मौका है और दस्तूर भी ऐसे में अपनी अपनी रोटी सेक ले और पला झार ले !
अरे उन्हें चैन की सांस भी लेने नहीं दिया बल्कि उधार की सांसो के साथ छीन ली पाकिस्तान ने ! ये मौत सिर्फ सरबजीत की नहीं , ना ही एक आम हिंदुस्तानी की है बल्कि ये मौत एक कायर देश और कमजोर सरकार की है ! सरबजीत की मौत एक पाकिस्तानी सियासी मज़बूरी थी और सियासत से कोई इस तरह मजबूर हो सकता है इसका अंदाजा नहीं था !
अरे उसे मारना ही था तो उसके नाम का फांसी का फंदा पहना देता, कम से कम तुम्हारे मुल्क की कानून और अदालत की इज्जत तो बच जाती पर वाह रे पाकिस्तान सजा अदालत सुनाती है और जरदारी हिंदुस्तान के साथ सियासत-सियासत खेलते है , मोह्बात-मोहब्बत का खेल खेलते है और सरबजीत की मौत कैदियों के हाथों दिलवा देते है वो भी पथड़ मारकर , आखिर कब उबरेगी पाकिस्तान इस जंगली कबीलाई सोच और कानून से ,पर पाकिस्तान से सिर्फ शिकायत क्यों ?
वो तो पराया है,पडोसी है, हमारा अपना घर कहाँ दुरुस्त है ,हमारा घर का मुखिया भी कौन से ताकतवर है जो उनपर भरोसा करे, अरे जिस सख्स और सरदार के पास सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों की ताकत है वो इतना कमजोर कैसे हो सकत है ? ऐसे में भले ही थप्पड़ नहीं जरा जरा सकता पर बिना थप्पड़ जरे ही इस थप्पड़ की गूंज दुनिया को दहला सकता है पर क्या करे सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों को लीड करने वाला ही जब अपना मुह नहीं खोलेगा तो कौन डरेगा हमसे ?जरा सोचिये अगर सरबजीत के मसले पर पहले दिन से ही हम दहाड़े होते तो पाकिस्तान की ये हिम्मत होती की कोई सरबजीत को छू भी पाता , पर क्या करे ? कितना धिक्कारे पाकिस्तान को और उनके मुल्क को चलाने वाले को !
"परिंदों ने कभी रोका नहीं रास्ता परिंदों का,खुदा दुनिया में जाकर खुद कहा होता तो अच्छा था!" क्या कहूँ और किस से कहूँ ? पड़ोसी से शिकायत है पर खुद हमारे अपने कंधे भी तो इतने मजबूत नहीं की खुद हम किसी को सहारा दे सके ! मातम है तो मनाना होगा ,मौत पर रोने का दस्तूर है , रोने वाले तो रो लिया ! पर क्या पाकिस्तान से हमेशा तोहफे में हमें गम ही मिलेगा ? क्या हिंदुस्तान सिर्फ रुदालियों का देश है ? मुश्किल यह है की सवाल पूछे भी तो किस से ? क्योंकि सियासत के पगडंडियों पर कोहरा शरहद के उस पार भी है और शरहद के इस पार भी !
सरबजीत के परिवार लाहौर जिन्ना अस्पताल उनसे मिलने गया परन्तु हालात देख कर वो मंगलबार को ही वापस आ गया और वो सोनिया गाँधी व प्रधानमंत्री जी से मिलने गए परन्तु तबतक सरबजीत हमलोगों से बहुत दूर चला गया ! पर इस से पहले भारत सरकार मानवीय आधार पर सरबजीत का बेहतर इलाज के लिए भारत भेजने की पाकिस्तान सरकार से अपील की थी लेकिन पाकिस्तान ने अपील ठुकरा दी !
हां अब पाकिस्तान ने जरुर सरबजीत को लौटा दिया है पर उखड़ी सांसों के साथ मुर्दा क्योंकि जिन्दा सरबजीत पाकिस्तान के नाम का था ताकि पाकिस्तान उसपर जुल्म ढा सके अब लाश उनके लिए किस काम का ? लिहाजा बेरहम ने रहम के नाम पर लाश भारत को सौप दिया ताकि कहने में रहे की देखो हम इतने भी जल्लाद नहीं है !
और अपनी सरकार भी कम नहीं सोचा चलो इसी को हम अपनी जित मान लेते है ! लिहाजा एयर इंडिया की पूरी खाली विशेष विमान लाहौर भेजा और सरबजीत अमृतसर ले आया गया और इस तरह 23 लम्बे साल बाद सरबजीत अपने घर लौट आया अब जिन्दा या मुर्दा क्या फर्क पड़ता है वैसे भी हम लोग हर गम,हर जख्म , हर सरबजीत को भुलाते ही तो आये है ! तो इस सरबजीत को कबतक याद रखेंगे ? दो चार दिन और बस यही न !!!
राजनीति बचाने का सबाल इस समय नेताओं के लिए बहुत जरुरी होता है कितना अजीब इतेफाक है की एक कमजोर सरकार चलाने वाली पार्टी का उपाध्यक्ष शोक संतप्त परिवार के लोगों को मजबूती देने पहुंचे थे ! सलमान खुर्शीद साहेब देश की विदेश मंत्री जी कड़वा बोलने के लिए विख्यात है लेकिन अच्छा लगता कभी कुछ काम का भी बोलते थोडा और अच्छा लगता अगर काम करते हुए देश को नजर आते !
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश के प्रधानमंत्री बाजपेयी जी की सरकार थी और पार्टी के लौह पुरुष लाल कृष्ण आडवानी जी गृह मंत्री ,फिर क्या हुआ ? कुछ भी तो नहीं बदला ?इन 23 सालों में पाकिस्तान नहीं बदला, हम नहीं बदले हमारी सियासत नहीं बदली हमारी सोच नहीं बदली हमारा सच नहीं बदला , और जब कुछ नहीं बदला तो सरबजीत का मुकद्दर कैसे बदल जाता इसीलिए पाकिस्तान ने उस पर लिख दिया मौत !
तेईस साल से हर रात सरबजीत के लिए इन्तेजार की रात थी और सुबह की सूरज देखकर रोज ये सोचता की उनके लिए भी नया नूर लेकर आएगा लेकिन उन्हें नहीं पता था की दिल्ली में बैठे रौशनी के देवताओं की कलम की रोशनाई सुख चुकी है दर्द पर रोने का दस्तूर है सो रोने वाले रो रहे है इस मौके पर हमें ये पूछने का हक़ बनता है की क्या हिंदुस्तान रुदालियों का देश है परन्तु मुश्किल है की ये सवाल पूछे भी तो किस से क्योंकि सियासत के पगडंडियों पर कोहरा उधर भी है और इधर भी !
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