दरअसल आम आदमी पार्टी की राजनीतिक नीव ही झूठे व लोक लुभावने वायदे से हुई ,जो तर्कसंगत नहीं थे ! आम लोगों की धरना थी की टीम केजरीवाल अन्य पार्टी से अलग काम करेंगे ! जैसा की उन्होंने अपनी एजेण्डे में शामिल किया था ! आम आदमी पार्टी की उम्मीद से कहीं ज्यादा राज्य चुनाव में जीत हासिल की ,अप्रत्यासित जीत के बाबजूद उन्हें बहुमत नहीं मिली परन्तु बिना शर्त काँग्रेस ने समर्थन दिया , फिर रायसुमारी जनता के बिच और ना जाने क्या क्या ड्रामेबाजी किये गए अंततः केजरीवाल साहेब ने जनता पर अपना अहसान जताया और मुख्यमंत्री बनने पर राजी हो गए ! सरकार बनाने और चलाने के प्रति केजरीवाल साहेब शुरू से ही गम्भीर नहीं रहे ! सरकार बनाने का कार्य तो अनिशिचितता से हुई पर उनके काम करने का तौर तरीके से अंत जल्द होगी ये जरुर निश्चित थी !
उनकी छटपटाहट , हरबराहट में लिए गए तमाम फैसले केजरीवाल के मनसा पर प्रश्नचिन्ह उठ रही है ! क्या वो वाकई दिल्ली के लिए कुछ करना चाहते थे ? क्या वो कार्य पूरा कर लिए जिसके लिए आम जनता ने उन्हें हाथो-हाथ लिया था ? बिजली -पानी ,महिला सुरक्षा,शिक्षा ,रैनबसेरा इत्यादि अनेक प्रकार के समस्याएँ से जूझती दिल्ली को क्या निदान हो गया ?
>क्या वाकई लोकपाल ही दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या थी ? अरे केजरीवाल जी अगर भ्रष्टाचार के विषय से आप वाकई चिंतित थे तो सबसे पहले निचले स्तर से काम करते , जैसे राशन कार्ड जो दिल्ली वालो के लिए सबसे बड़ी समस्या है , राशन दुकान और राशन कार्ड के लिए कभी आप धरना पर बैठते तो शायद दिल्ली के लोगो को भी लगता की वाकई आप कुछ करना चाहते है ! निचले स्तर पर आज भी गरीब लोगो के लिए दो जून की रोटी पर भी मुसीबत हो रही है !
लेकिन आप की छटपटाहट तो शुरू से ही भागने के लिए था ! तंग मानसिकता के परिचायक तब बने जब दो पुलिस वाले को छूटी भेजने के लिए अपने दल बल के साथ धरना पर बैठ गए ! गणतंत्र दिवस पर आपकी टिपण्णी भी आपकी दिमागी दिबलियापन नहीं तो और क्या था ? डेढ़ महीने में आपने हमेशा लाइट कैमरा और एक्शन वाले काम किया है ! काम हो न हो ढोल पीटने वालों को साथ में पहले से लेकर चलते थे !
क्या टीम केजरीवाल बतायगा की सिमरत ली अमेरिकन ( CIA ) एजेंट अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के NGO कबीर में साल 2010 में 4 महीने के लिए काम किया था और उसी दौरान अमेरिका से 86 लाख रुपैये का अनुदान राशि भी मिली थी ! ऐसा क्या काम किया था जिसके बदले उन्होंने अमेरिका से इतनी बड़ी धन राशि मिली थी ! केंद्र सरकार ने कई बार चिट्ठी लिखी है पर ये लोग अभी तक जबाब नहीं दिया है ! आखिर माजरा क्या है ?
भ्रष्टाचार के खिलाप ढोल पीटने वाले ढोली अपनी करतूत क्यों नहीं साफ करती है ? अभी हाल ही हर्षवर्धन जी भी सबाल उठाये है फिर वो मौन क्यों है ? बस दुसरो के बारे में अनाप-सनाप बाते करना ही उनका एक मकसद है ! पर जब खुद ही भ्रष्टाचार के दल-दल में ऊपर से निचे तक फंसा हो तो औरो को भी ऐसा ही समझते है ! एक कहाबत है न " चोरक ध्यान मोटरिये पर " ! जो चोर होते है वो सबको चोर ही समझते है !
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