मैं वैवाहिक कार्यक्रम में अपने पैत्रिक गाँव आया हुआ था | यहाँ पेड़-पौधों की भरमार है जिसमे फलों का राजा कहे जाने वाले वृक्ष जिसका नाम है "आम" की बहुतायत है | वृक्ष फल से लदे हुए है | बहुत दिनों के पश्चात् मुझे अवशर मिला पके हुए पेड़ का आम के स्वाद लेने का | यहाँ आज कल खाने में पके हुए आम जम कर खाए जा रहे है | आम के फल ज्यादा फलने से यहाँ इसका दाम बहुत ही न्यूनतम स्तर पर है , जी हाँ लंगड़ा जैसे आम भी यहाँ ३ से ५ रुपैये किलो मिल जाता है |आज चलिए इसी वृक्ष और इसके फल के औषधि गुण के बारे में चर्चा करते है :-
आम का वैज्ञानिक नाम अंबज और फारसी में अम्ब कहा जाता है आम को हिंदी और बंगाली में आम, मराठी में आम्बा, गुजराती में आम्बी, सिन्धी और पंजाबी में अम्ब, कन्नड़ में अम्भ और तमिल में मंगा नाम से जाना जाता है | आम एनाकार्डीऐसी परिवार का वृक्ष है |
आम के वृक्ष सदाबहार और छायादार होता है | इसके आकार अलग-अलग जातियों के आधार से इसकी उंचाई १० मीटर से लेकर ४५ मीटर तक हो सकती है | लगभग १० वर्षों बाद फल देना शुरू कर देता है फिर लम्बे समय तक फल देता है | कई स्थान पर तो इसके आयु लगभग १०० भी पर कर चूका होता है | आम मूल रूप से गर्म भागों का वृक्ष है | यह शुष्क तथा आर्द्र दोनों प्रकार के जलवायु में उगाया जा सकता है |
मूल रूप से आम के वृक्ष दो प्रकार के होते है जंगली और फलदार | जंगली आम के वृक्ष पर फल नहीं लगते | आम के फलदार वृक्षों को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है | स्वतः और सप्रयास | सप्रयास लगाए गए आम के वृक्ष दो प्रकार के होते है कलमी और बीजू | १५ दिन के अन्दर अगर आम के गुठलियों को जून या जुलाई माह में मॉनसून आते ही बो दिया जाता है | ऐसे में वृक्ष को बड़ा होने और फल देने में ८ से १० साल लग जाता है | इस प्रकार से वृक्षों से प्राप्त होने वाले आम को बीजू आम कहते है |
अप्रैल के मध्य में आम के फुल झड़ने लगते है और प्रायः अप्रैल के अंत तक आम के वृक्षों से फुल समाप्त हो जाते है |आम के वृक्षों पर, फुल को झाड़ते ही छोटे दाने जैसे फल आने लगते है | आम के बड़े और कच्चे फलों को अमिया कहते है | आम की विभिन्न प्रकार के प्रजातियाँ होने के कारण इसके आकार, रंग, स्वाद आदि में काफी विविधता होती है | फल के आकार एक बड़े बेर से लेकर छोटे बच्चे के सिर के बराबर तक हो सकता है |
सामान्य रूप से आम गर्मी के मौसम में फलता और पकता है, परन्तु मुंबई और दक्षिण भारत के आसपास के क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में भी आम फलता है |
भारत में पाए जाने वाले आमों में बनारस के लंगड़ा, मुम्बई का अल्फ़ान्सो, लखनऊ का सफेदा, मुर्शिदाबाद का शाहपसंद और जरदालू, हाजीपुर का सुकुल, दरभंगा का सुंदरिय, बडौदा का वंशराज, रत्नगिरि का राजभोग, हैदराबाद का सुन्दर्षा, मालवा का ओलर, तमिलनाडु का रूमानी, आंध्रप्रदेश का रेड्डीपसंद, बंगाल का हिमसागर, उड़ीसा का दो फुल आदि प्रमुख है | दक्षिण भारत के मलगोवा और महमूदा तथा उत्तर भारत के चौसा और जाफरान की गणना भारत के विख्यात आमों में की जाती है |
मुख्य रूप से आम दो प्रकार के होते है - गुदे वाले और रस वाले | गुदे वाले आम में दशहरी, चौसा, लंगड़ा आदि आम आते है | चूसने वाले आमों में बिहार का सुकुल प्रमुख है | वृक्ष के पके हुए फल केवल इनके निकट रहने वाले व्यक्ति को ही मिल पाते है | व्यावसायिक उपयोग के लिए आम को प्रायः पुआल के निचे आम को बंद कमरों के भीतर रख कर पकाते है , इस प्रक्रिया में करीब ७ दिन लग जाता है | कहीं-कहीं आम को पकाने के लिए रासायनिक पदार्थों का भी उपयोग किया जाता है | इस प्रकार पकाए गए आम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है तथा अनेक प्रकार के रोगों को फैलाते है | अतः आमों को ख़राब होने से बचने के लिए तथा इनका भण्डारकरण करने के लिए शीतगृह सर्वाधिक उपयोगी है |
आम के वृक्ष का औषधीय गुण :- इसके तने और शाखाओं की छाल से अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां तैयार की जाती है |
१- वृक्ष के ताजे छाल का रस पेचिश में लाभदायक होता है |
२- छाल के काढ़े से धोने पर पुराने से पुराना घाव भरने लगता है | यह घाव के दर्द को भी कम करता है |
३- आम के वृक्ष से बाबुल के सामान ही गोंद निकलता है और इसका उपयोग भी बाबुल के गोंद के सामान किया जाता है | बाजार में आम के गोंद के नाम से बिकता है |
४- आम के हरे व ताजे पत्ते को चबाने से मशुढ़े मजबूत होते है और दाँत के बहुत सारे रोग को जड़ से समाप्त कर देते है |
५-आम की ताज़ी पत्तियों को तोड़कर उन्हें साफ़ करके छाया में सुखा कर, इन्हें कूट-पीसकर बारीक़ चूर्ण बना ले | यह चूर्ण २-३ ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण औषधि जैसे निश्चित रूप से लाभ होता है |
६- आम के छिलके को ताजे पानी में पीसकर पिलाने से हैजे के रोगी को विशेष लाभ होता है |
७- कच्चे आम के छिलकों को साफ़ करके सुखा कर फिर कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खुनी पेचिस ठीक हो जाती है |
८- पका हुआ आम का फल ह्रदय रोगी के लिए विशेष लाभ दायक होता है | इसका सेवन शरीर स्वास्थ्य,बलशाली,पाचनशक्ति बढाने और शुक्राणु सम्बंधित दोषों को दूर करने की क्षमता होती है |
९- गर्मियों के मौसम में पका हुआ फल का सेवन से प्यास और थकान का अनुभव नहीं होता है | आम को लम्बी आयु प्रदान करने वाला फल कहा गया है |
१०- आम के पके हुए फल में ग्लूकोज, कार्बोहाईड्रेट, सुक्रोस, फ़्रकट्रोस, माल्टोस,विटामिन A , लंगड़ा में विटामिन C आदि प्रचुर मात्रा में होते है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
आधुनिक युग में सुन्दरता मात्र चेहरे तक सिमित नहीं रहा है | चेहरे में चाहे कोई विशेष आकर्षक हो न हो पर शरीर छरहरा होना चाहिए | तभी वास्तव में उस व्यक्ति को चुस्त व दुरुस्त माना जाता है | जहाँ एक ओर शरीर के अंगों को सही आकार एवं सुन्दरता प्रदान करने के लिए चर्बी का होना आवश्यक है, वहीँ दूसरी ओर चर्बी जब जरुरत से ज्यादा एकत्रित होने लगती है, तो शरीर बदसूरत नजर आने लगता है |
वैसे भी मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है, एवं कई असाध्य रोगों के जनक भी होते है | यदि तन स्वस्थ्य रहे तो अपने-आप ही चेहरे पर नूर झलकता है | मोटापा सुन्दरता का दुश्मन है, विशेषकर महिलाए मोटापे की समस्या से ज्यादा प्रभावित होती है | महिलाएं छरहरी व कमनीय काया की कल्पना करती है |
जीवनशैली व आहार-विहार के साथ-साथ जो परिवर्तन सबसे पहले नजर आता है, वह है मोटापा | इसे किसी भी तरह से सुखद नहीं माना जा सकता है | क्युकी इसकी वजह से विभिन्न प्रकार की शारीरिक समस्याएँ पैदा हो रही है | फेट बढ़ने से धमनियों में चर्बी जमा होकर उन्हें संकरा कर देती है , जिससे दिल की व्याधि होती है , मस्तिस्क का रोग स्ट्रोक, उच्च, रक्तचाप, आर्थराईटिस, डाईबिटिज, बवासीर आदि सभी बीमारियों की जड़ मोटापा है |
मोटापा एक व्यापक रोग है | मोटे लोगों की संख्या तेजी से बढती ही जा रही है | यह समस्या न केवल भारत में है बल्कि विश्व के सभी देशों , जातियों एवं सभी अवस्था के लोगों में पायी जाती है | प्रायः यह मध्य आयु के लोगों में ज्यादा पायी जाती है | विशेषकर महिलायें इससे ज्यादा प्रभावित हो रही है |
कारण है:- अधिक आहार लेना , हर वक्त कुछ न कुछ खाते रहना, दिन भर बठे-बैठे काम करना, शारीरिक श्रम कम करना, व्यायाम न करना, अलसी दिनचर्या, दिन में सोना, ज्यादा तेल का सेवन करना, मांसाहार व अंडे का सेवन करना, वंशानुगत प्रभाव व हार्मोनल असंतुलन आदि कारणों से चर्बी बढ़ने को मोटापा कहते है |
एक बार मोटापा आ जाये तो दूर करना कठिन होता है, मोटापा सिर्फ सौन्दर्य का दुश्मन ही नहीं, बल्कि सेहत का भी दुश्मन है |
शारीरिक सौन्दर्य के लिए शरीर की लम्बाई के अनुसार वजन का होना तथा उसका आनुपातिक वितरण होना आवश्यक है | लेकिन मोटापे से संतुलन बिगड़ जाता है | शरीर में अधिक चर्बी एकत्र होने से प्रायः त्वचा खीचकर बढ़ जाती है जो बाद में मोटापा कम होने या कम करने पर पहली स्थिति में न पहुंचकर लटक भी सकती है तथा झुर्रियां भी पड़ सकती है |
सामान्य से अधिक भार होने पर अस्थि संस्थान व जोड़ों को अधिक भार ढ़ोना पड़ता है | इससे रीढ़ की हड्डी में तथा जोड़ों में दर्द रहने लगता है और आदमी समय से पहले ही बूढ़ा दिखाई देने लगता है |
आज लड़कियां अपने शरीर और फिगर को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहती है | जीरो फिगर की चाह में महिलाए अपनी सुन्दरता और स्वास्थ्य दोनों ख़राब कर रही है , क्यूंकि वो भोजन कम करती है या फिर समय से भोजन नहीं करती जो की गलत है |
यदि आप छरहरा होना चाहती है तो उचित तरीके से वजन कम करें | कुछ ऐसे नुस्खे है जिन्हें अपनाकर आप बिना डाईटिंग के भी स्लिमट्रिम हो सकते है |
१. सुबह-शाम खली पेट रोज 50ML Aloe vera gel का सेवन नियमित चार से छे महीने तक करें | जिससे आपका शरीर का निर्वाशिकरण हो जायेगा और आँत बिलकुल स्वस्थ्य एवं स्वक्ष हो जायेगा | जिससे आप स्वतः हलकी-फुलकी महसूर करने लगेंगे | हमेशा आप तरोताजा ,चुस्त-दुरुस्त महसूस करेंगे |
२. खाने की शुरुआत सलाद व छाछ से करें और अंत भी भोजन के साथ छाछ से करें |
३. सुबह नाश्ता जरुर करें |
४. व्यायाम जरुर करें |
५.भोजन के अंत में १-२ घूंट से ज्यादा पानी न पियें |
६. ज्यादा मात्रा में जूस व पानी पिए | फास्टफ़ूड, कोल्डड्रिंक का सेवन न करें |
७. सुबह खली पेट एक गिलास ठंढे पानी में निम्बू निचोरकर १ चम्मच शहद घोलकर पिए | आदि कुछ जीवन शैली में बदलाव लाये और आप स्वतः स्लिमट्रिम हो जायेंगे |
आयुर्वेद के अनुसार पहले मोटापा उत्पन्न करने वाले सभी कारणों का त्याग करें, संतुलित व पौष्टिक भोजन, नियमित दिनचर्या और रोजाना व्यायाम करने से आप सुन्दरता को मन और तन दोनों से महसूस करेंगी |
वैसे हमारे पास इसे दूर करने के लिए और भी पौष्टिक पूरक है जिसे सेवन करके आप मोटापा से बच सकते है :-
(a) Aloe Vera gel, ( b) Garlic Thyme (c) Garcinea Plus (d) Artis sea omega-3 (e) Bee Pollen इत्यादि से आप चार से छे महीने में शरीर में नई उर्जा का स्त्रोत महसूस कर सकते है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
सतेन्दर सिंह राँची निवासी पेशे से स्वास्थ्य विभाग में कुष्ठ रोग के डॉक्टर है | मेरी मुलाकात सर्वप्रथम अंतरजाल के माध्यम से हुआ | उन्होंने सारे खर्च राँची आने-जाने का दिया | मैंने अपने कार्यालय से छुट्टी ली और उनसे मुलाकात के लिए निकल पड़े | अगले दिन ही सुबह-सुबह उनके यहाँ पहुँच गया |
बातचित से पता चला की उनका दोनों किडनी ख़राब हो चुकी है | जाँच में अपनी पत्नी की किडनी ( गुर्दा )मैच नहीं हो पाई | फ़िलहाल उनकी जिन्दगी डाइलिसिस के सहारे चल रही है, लेकिन महंगी प्रक्रिया होने के कारण उसकी सारी जमा पूंजी लगभग समाप्त हो चुकी है | उनके ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेदारी है | एक जवान बेटी का अभी हाथ पीले करना बाकी है | मौत का खौफ, परिवार के प्रति अपना कर्तव्य और आर्थिक संकट की वजह से कई बार वो रात भर रोते हुए ही गुजार देता है |
उपचार महंगा होने के कारण यह बीमारी बेलगाम होती जा रही है | देश की 90 प्रतिशत लोग इसका खर्च नहीं उठा सकती | सरकारी अनुमानों के अनुसार सालाना लगभग दो लाख लोगों की किडनी ( गुर्दा ) फेल होने के शिकायत होती है जबकि लाखों अन्य किडनी की बीमारी से ग्रस्त हो जाते है |
विशषज्ञों का कहना है की लोगों को डायबिटिज और हाई ब्लड प्रेशर के कारण (सी के डी) "क्रानिक किडनी डिजीज" की आशंका बढ़ जाती है | पिछले दो दशको में किडनी फेल के मामले बढे है क्यूंकि लोग तेजी से डायबिटिज के शिकार हो रहे है | दिल्ली व आस-पास के इलाके में कराये गए सर्वेक्षण में पाया गया है की प्रति 10 हजार लोगों में से आठ किडनी डिजीज के शिकार है | इस लिहाज से देश के करीब 78 लाख से ज्यादा आबादी इस बिमारी से ग्रस्त मानी जा सकती है |
"नेफ्रोलोजी डाइलिसिस ट्रांसप्लांटेसन" पत्रिका में प्रकाशित इस सर्वेक्षण के अनुसार डायबिटिज के शिकार 41 फीसदी, हायपरटेन्सन 22 फीसदी, क्रानिक ग्लोमेरू नेफ्राईटिस के शिकार 16 फीसदी लोगों को किडनी डिजीज का खतरा है |
जब किडनी शरीर के प्रोटीन, नाइट्रोजन, एसिड आदि को नहीं छान पाता है और जल का संतुलन नहीं कर पाता है तो शरीर में गंदगी इकट्ठी होती चली जाती है, जो किडनी ( गुर्दा ) फेल होने की निशानी है | इसके फलस्वरूप शरीर में सूजन उत्पन्न होना शुरू हो जाता है | व्यक्ति को बचाने के लिए डायलिसिस का सहारा लेना पड़ता है |
डायलिसिस एक महंगी प्रक्रिया है | किडनी ख़राब व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम दो या तिन बार डायलिसिस करानी होती है | इस पुरे प्रक्रिया पर महीने में तक़रीबन 15 से 25 हजार तक का खर्च आ जाता है | डायलिसिस मशीने भी विदेशों से आयत किया जाता है, जबतक इसका निर्माण भारतीय कम्पनियाँ शुरू नहीं करेगी, तबतक इलाज सस्ता होना मुश्किल है | इसके लिए हमारे देश की सरकार को प्रयास करने के जरुरत है ताकि अपने ही देश की कम्पनियाँ डायलिसिस के उपकरण का निर्माण कर सके |
जापान जैसे देश में डायलिसिस की प्रक्रिया अपने देश के अपेक्षा सस्ती है , बल्कि लोग वहां प्रतिदिन डायलिसिस कराते है |अधिक और गुणवतापूर्ण डायलिसिस से व्यक्ति की उम्र बढ़ जाती है | डायलिसिस पर रहने वाला व्यक्ति 5 से लेकर 25 वर्ष तक जीवित रह सकता है | भारत में जिस तरह से किडनी की बीमारी बढ़ रही है और प्रत्यारोपण के लिए डोनर नहीं मिल रहा है , उसे देखते हुए डायलिसिस को लोकप्रिय बनाने की जरुरत है |
किडनी ( गुर्दा ) को ख़राब होने से बचाएं :- चिकित्सक के अनुसार किडनी या गुर्दा ख़राब होने की मुख्य वजह है मोटापा, मधुमेह और हायपरटेन्सन है | यदि मधुमेह और हायपरटेन्सन पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो किडनी को काफी क्षति पहुंचाते है |
जिन लोगों के परिवार में मोटापा, मधुमेह और हायपरटेन्सन का इतिहास रहा हो उन्हें ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए | इसके अलावा सेल्फ मेडिकेसन अर्थात बेवजह दर्द निवारक गोलियां खाने की वजह से भी किडनी ख़राब होता है |
अतः इससे बचने का एक मात्र उपाय है- एलोवेरा जेल और कुछ पौष्टिक पूरक , अगर नियमित रूप से व्यक्ति सेवन करें तो मोटापा, मधुमेह और हायपरटेन्सन पर नियंत्रित रख सकते है | इसके सम्बन्ध कई बार मैं चर्चा कर चूका हूँ की एलोवेरा आज के प्रदूषित वातावरण के लिए नितान्त जरुरी है | शरीर के लिए यह एक महत्वपूर्ण खुराक है जिससे व्यक्ति किसी भी प्रकार के असाध्य रोग पर विजय प्राप्त कर सकते है |
जैसा की आज डॉक्टर सतेन्दर जी रांची वाले कर रहे है और वो डायलिसिस भी करा रहे है पर सप्ताह में एक बार जबकि पहले वो तीन बार से भी ज्यादा करा रहे थे |
यह बात प्रत्येक व्यक्ति को गांठ बांध लेनी चाहिए की शरीर के दो महत्वपूर्ण और जिन्दगी के आधार अंग है किडनी और ह्रदय | लिहाजा किडनी और ह्रदय के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए |
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वर्चस्व की लड़ाई हमेशा से इस संसार में प्रत्येक परिवार, समाज और देश में गुण-अवगुण, अच्छाई-बुराई के साथ-साथ चलती है और जबतक मानवजाति का अस्तित्व रहेगा, ये साथ-साथ ही रहेंगे |अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए गुणों पर बार करने में लगा रहता है, अच्छाइयों को समाप्त करने की कोशिश करता है पर अंततः जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है |
बुराई के अनेक स्वरुप है, इनमे से सबसे विनाशकारी स्वरुप है घमंड | घमंड एक ऐसी बुराई है जो मनुष्य के अन्दर के हजारों अच्छाइयों को दबा देता है | उनके द्वारा किया गया प्रत्येक क्रिया-कलाप में घमंड की छाया साफ़ तौर से देखी जा सकती है | ऐसे व्यक्ति के अन्दुरुनी घमंड की वजह से चेहरे की कान्ति समाप्त हो जाती है | वह अपनेआप को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को हिन् समझने लगता है | उनके व्यवहार में एवं प्रत्येक क्रिया-कलाप में बहुत तीव्रता होती है ,उसके भीतर का घमंड उन्हें कोई भी कार्य सहजता के साथ नहीं करने देता है |
घमंडी लोगों के बारे में विचारकों का मानना है की घमंड से ग्रस्त व्यक्ति अन्य लोगों को अपने समक्ष तुक्ष समझते है और इसी वजह से खुद भी दुसरे लोगों के साथ सामान्य नहीं बना रह पाता है | घमंड भीतर से उत्पन्न होता है किन्तु उसका असर बाहरी स्तर पर दिखाई देता है | एक व्यक्ति को अचानक ढेर सारा दौलत मिल जाता है | वह धनी हो जाता है ,फिर उनके अपने करीबी लोगों के प्रति व्यवहार तथा दृष्टिकोण बदल जाता है | ऐसे व्यक्ति अनेक लोगों के बीच होते हुए भी स्वयं को अकेला अनुभव करता है | धीरे-धीरे उसके साथी भी उससे दूर होने लगता है |
एक व्यक्ति जब पिता की कुर्सी पर बैठता है , और कल्पना करें उनके पिता का व्यवसाय कई करोड़ों में हो | प्रतिष्ठित व्यावसायिक पुत्र होने के कारण अचानक उन्हें वो सब कुछ मिल जाता है जो की उनके पिता ने अपनी कड़ी मेहनत व खून-पसीने से बनाई है |पुत्र अपने पिता का करोड़ों के सम्पति का इकलौता वारिस है तो घमंड आना स्वाभाविक होगा | वो स्वयं को सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझते है और उनके कंपनी के कार्यरत समस्त व्यक्ति को गौण जिन्होंने कंपनी के लिए सालों-साल दिया है और जिनके वजह से कंपनी एक छोटी इकाई से लेकर आज कई सौ करोड़ों में व्यवसाय कर रही है | एक मात्र व्यवसाय उतराधिकारी होने के कारण , पिता की कुर्सी पर बैठते ही घमंड की अनुभूति होने लगी |
सामान्य रूप में माना जाता है की किसी भी चीज की अधिकता घमंड पैदा करने का बहुत बड़ा कारण बन जाती है | यदि व्यक्ति के पास बहुत पैसा है व बहुत योग्यता है , तो वह घमंडी बन सकता है | पर इस स्थिति में व्यक्ति यदि साकारात्मक सोच के साथ सही दिशा में कार्य करें तो वह महान भी बन सकता है |
लकड़ियाँ इक्कट्ठा कर आग जलाकर कसी के घर जलाया जा सकता है तो उस पर खाना पकाकर पेट भी भरा जा सकता है | एक विशेषज्ञ चिकित्सक अपनी योग्यता के बल दिन-हिन् लोगों का उपचार कर समाज सेवा कर सकता है तो वहीँ बीमार लोगों से मनमाना धन ऐंठकर उनके लिए परेशानी भी बढ़ा सकते है |
आमतौर पर देखा गया है की दुर्गुणों का विकास बड़ी तेजी के साथ होता है जबकि दुर्गुणों का विकास धीमी गति से होता है | यह अलग बात है की उतनी ही तेजी रफ़्तार से दुर्गुणों को दंड भी प्राप्त हो जाता है | यह दंड सभी को मिलता है चाहे वह राजा ही क्यूँ न हो |
रावण महाप्रतापी और परम विद्वान थें | रावण विद्वता को स्वयं भगवान राम ने भी स्वीकार किया था | इसीलिए उन्होंने लक्ष्मण को रावण के पास भेजा था ताकि रावण मरने से पहले उसे कुछ ज्ञान दे जाये | इतना विद्वान और बलशाली होने के पश्चात् भी रावण का अन्त हो गया | उसके अन्त का कारण केवल उसका घमंड था उसे ? इस बात का घमंड था की उसके दस सिर, उसके भाई एवं पुत्र बहुत बड़े शूरवीर और बहुत बड़े योद्धा है | बहुत बड़ी सेना है | सोने की लंका है | स्वयं भी सर्वाधिक बलशाली था | इन्ही सब कारणों से उसके भीतर घमंड उत्पन्न हो गया | वह प्रकाण्ड विद्वान था किन्तु घमंड ने उसकी इस श्रेष्ठता को दबा दिया, उसे उभरने नहीं दिया | इसी के चलते उसने सीता का हरण किया और बाद में श्री राम के हाथों मारा गया |
यह होता है घमंड का परिणाम | आज भी घमंडी लोगों का परिणाम इससे भिन्न नहीं होता है | इसके उपरांत भी कई लोग घमंड जैसी बुराई को अपने साथ चिपकाए घूम रहे है |
अतः जो व्यक्ति घमंड के निकट खड़े है उन्हें एक बार अवश्य अपने भीतर झाँकने का प्रयास करना चाहिए | उन्हें जरा सा भी आभास हो तो तुरंत घमंड से अपने आपको दूर करने का प्रयास करना चाहिए |
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आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी समाचार पत्र के माध्यम से जानने का अवसर मिला | दरअसल सुबह-सुबह कार्यालय के काम से फरीदाबाद गया था |एक मित्र ने जाते ही मुझे कहने लगा- रामबाबू जी आपके लिए आज एक बहुत ही खास खबर है, और इसके बारे में लोगों को जरुर जानकारी दें | उसके बाद उसने मुझे दैनिक जागरण का समाचार पत्र सामने रख दिया | शीर्षक देखकर एक बार मन में बेचैनी सी आ गई और मैं अपना कार्य को स्थगन कर तुरंत अपने घर वापस आ गया | रसोई घर में सबसे पहले मैं रसोई गैस सिलेंडर का निरक्षण किया फिर जाकर दिल को तसल्ली मिली | शीर्षक था " सावधान, आपके घर में बम तो नहीं " |
अपने घर का गैस सिलेंडर को मैंने तो सही तरीके से निरक्षण कर लिया है | क्या आपने निरक्षण कर लिया ? अगर नहीं तो तुरंत जाँच लें की आपके घर का सिलेंडर एक्सपायरी डेट के अन्दर है या डेट ख़त्म हो चूका है ? सबसे पहले तो आप यह समझ ले की रसोई गैस सिलेंडर की भी एक्सपायरी तिथि होती है | और इस तरह से एक्सपायरी तिथि के बाद के सिलेंडर घर के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक होते है और कभी भी बम की तरह फट सकते है | आपके थोड़ी सी साबधानी एक बड़े दुर्घटना होने से बचा सकते है |
चुकी आज कल के भागम-भाग व व्यस्त जिन्दगी में ऐसे विषय के बारे में ध्यान देने के लिए लोगों के पास वक्त ही नहीं होता है | हमलोग जानकारी के आभाव और परेशानी से बचने के लिए इस ओर बिलकुल ध्यान ही नहीं देते है | ज्यादा से ज्यादा हमारी नजर वजन और सील के ऊपर इंगित रहता है | पर सिलेंडर की एक्सपायरी डेट की जानकारी नहीं होने के कारण एलपीजी आपूर्ति करने वाली कंपनी फायदा उठा लेती है | आजकल तिथि पार कर चुकी सिलेंडर रिफिल होकर धरल्ले से घरों में पहुंचाई जा रही है |
आए दिन कोई न कोई दुर्घटना गैस सिलेंडर के फटने के कारण होते रहते है | कुछ महिना पहले भी एक नहीं दो हादसा पानीपत गैस सिलेंडर लिक होने के कारण हुए |अगर उपभोक्ता इसके प्रति जागरूक होते तो शायद इस तरह के हदशा से बचा जा सकता था | अतः हमें इसके बारे में जागरूक होनी चाहिए और अपनी जानकारी औरों के साथ भी बांटनी चाहिए ताकि इस तरह के हादशा की पुर्नावृति भविष्य में न हो |
एक्सपायरी डेट का पता इस तरह से लगा सकते है :-- सिलेंडर के उपरी हिस्सा जो पकड़ने के लिए सर्किल बना होता है | इसके निचे तिन पट्टियों में से एक पर काले पेंट से कोड में सिलेंडर की " एक्सपायरी डेट " अंकित होती है |
इसमें ए, बी, सी, या दी अंकित होते है और उसके साथ दो नंबर लिखे होते है | ए साल की पहली तिमाही ( जनवरी, फरवरी व मार्च ), बी साल की दूसरी तिमाही ( अप्रैल, मई व जून ), सी साल की तीसरी तिमाही ( जुलाई, अगस्त व सितम्बर ), और डी साल की चौथी तिमाही ( अक्टूबर, नवम्बर व दिसंबर ) को दर्शाता है | जबकि अंक वर्ष को दर्शाते है |कृपया ऊपर के दोनों तस्वीर को ध्यान से देखें |
यानि यदि सिलेंडर पर " बी 07" कोड अंकित है तो इसका मतलब है की सिलेंडर का एक्सपायरी समय जून 2007 है | इसके बाद इस सिलेंडर का रसोई घर में होना एक जीता-जगता बम से कम नहीं आंकना चाहिए |अतः हमें इस तरह के सिलेंडर लेने से बचना चाहिए |
सिलेंडर से हुए हादशे के बाद गैस कंपनी की तरफ से मुआवजा देने का भी प्रावधान है | इसमें उपभोक्ता को थर्ड पार्टी इंश्योरेंस कराया जाता है | इसके तहत हादशा होने पर उपभोक्ताओं को 10 लाख रुपैये तक की राशी प्रदान की जाती है | इसके लिए उपभोक्ता को तुरंत डीलर को सूचित करना चाहिए | डीलर वहां सर्वेयर को भेजकर सर्वे कराता है और उचित मुआवजा राशी प्रभावित उपभोक्ता को दी जाती है | पर एक बात का ध्यान रहे की अवैध रूप से इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता को मुआवजा नहीं दिया जाता है |
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पारम्परिक चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद में अदरक का प्रचलन बतौर औषधि प्राचीन कल से होता आ रहा है | अदरक को आयुर्वेद में महाऔषधि कहा जाता है | इसका वानस्पतिक नाम जिंजिबर ऑफिसिनेल है | अदरक को अंग्रेजी में " जिंजर " कहते है | हिंदी में आदि, अदरक, सोंठ कहते है | यह आद्र अवस्था में अदरक तथा सुखी अवस्था में सोंठ कहलाता है |
ताजी अदरक में 81% जल, 2.5% प्रोटीन, 1% वसा, 2.5% रेसे और 13% कार्बोहायड्रेट होता है | इसके अतिरिक्त इसमें आयरन, कैल्सियम लौह फास्फेट आयोडीन क्लोरिन खनिज लवण तथा विटामिन भी प्रयाप्त मात्र में होता है |
अदरक के सेवन से अपच, गैस दूर करने, पेट दर्द, सुजन दूर करने, पेट में कीड़े, पेशाब की मात्र बढाने, हाजमा ठीक करने तथा खांसी आदि के लिए व्यापक रूप से किया जाता है |
सुखी अदरक को सोंठ कहा जाता है | इसमें 9 से 10 प्रतिशत 15% प्रोटीन, 3 से 6 प्रतिशत वसा, 3 से 8 प्रतिशत रेशे, 60 से 70 प्रतिशत शर्करा तथा उड़नशील तेल 1 से 3 प्रतिशत होते है |
दुसरे देशों में भी पारम्परिक रूप से अदरक का सेवन शरीर के द्रव्य का बहाव सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए भी किया जाता है | अदरक पुरे शरीर में रक्त प्रवाह बढ़ा देता है | इसके सेवन से ह्रदय की मांसपेशियां ज्यादा शक्ति से संकुचित होती है , रक्त वाहिनियाँ फ़ैल जाती है, जिससे उतकों और कोशिकाओं का रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और मांसपेशियों का अकड़न, दर्द, तनाव आदि से आराम मिलता है |
आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी अदरक के लाभकारी प्रभाव की पुष्टि हो गई है | वैज्ञानिकों ने अदरक को पाचन तंत्र, ह्रदय रोग, संक्रमण, माइग्रेन, जोड़ों का दर्द, कैंसर इत्यादि विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभकारी पाया है |
ह्रदय पर जोर कम पड़ता है | अदरक के प्रभाव से रक्त प्लेटलेट कोशिकाओं का चिपचिपापन कम हो जाता है जिससे रक्त में थक्का बनने की सम्भावना कम हो जाती है फलस्वरूप अनेक रोगों जैसे ह्रदय आघात, स्ट्रोक ( पक्षघात ) इत्यादि से बचाव हो जाता है | कोलेस्ट्रोल युक्त भोजन के बाद भी अदरक के सेवन से कोलेस्ट्रोल स्तर कम बढ़ता है |
जापान तथा यूरोपीय देशों में अदरक के शोधों से पता चला है की अदरक शरीर में कुछ खास किस्म के जैव रसायन ( बायो-केमिकल ) के निर्माण में सहायक करता है | जो न सिर्फ कुदरती तौर पर घाव के ठीक होने में मदद करता है बल्कि शरीर में इम्यून सिस्टम को भी बल प्रदान करता है |
शोधों से ज्ञात हुआ है की करीब एक ग्राम अदरक सेवन करने से यात्रा के दौरान सम्बेदनशील व्यक्तियों में होने वाली मितली और उलटी से आराम मिलता है | इसी प्रकार 250 मिली ग्राम सोंठ दिन में चार बार सेवन से महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान होने वाली मितली व उलटी से आराम मिलता है और इसके सेवन से कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है|
शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है की जोड़ो, हड्डियों के रोगों के कारण सुजन, दर्द, हाथ पैर चलाने में कठिनाई, पेट के कीड़े और खांसी आदि समस्या में अदरक सेवन करने से सुजन एवं अन्य लक्ष्ण उत्पन्न करने वाले रसायन हारमोन जैसे प्रोसटाग्लेनडीन, ल्यूकोट्रिन का उत्पादन कम हो जाता है |
डेनमार्क में हुए अध्ययनों से सिद्ध हुआ है की 0.5 से 1 ग्राम अदरक प्रतिदिन 3 माह तक सेवन करने से आस्टियो आर्थराइटिस, रुमेटाइड आर्थराइटिस तथा मांसपेशियों के दर्द के मरीजों को आराम मिलता है |
अदरक एक शक्तिशाली जिवानुनाशक भी है | शोधों से यह ज्ञात हुआ है की अदरक बड़ी आँत में पाए जाने वाली बैक्टीरिया का बढ़ना रोक देता है जिसके कारण गैस से राहत मिलती है | इसमें विद्यमान गुण के कारण कैंसर से भी बचा जा सकता है | इसमें एंटी-ओक्सिडेंट गुण भी होते है , इसके सेवन से कैंसर बचाव में सहायक एंजायम सक्रीय हो जाते है | अदरक में 400 से भी ज्यादा ऐसे कम्पाउंड ( यौगिक ) है जो अलग-अलग ढंग से अपना अच्छा प्रभाव शरीर पर डालता है |
भारतीय व्यंजन में अदरक का उपयोग बहुतायत से होता है | इसका सेवन सब्जी, चटनी, अचार, सॉस, टॉफी, पेय पदार्थों, बिस्कुट, ब्रेड इत्यादि में स्वाद व सुगंध के लिए किया जाता है | इसका प्रयोग से भोजन स्वादिष्ट और सुपाच्य हो जाता है साथ ही स्वास्थ्यवर्धक भी |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
भोजन शरीर की एक ऐसी आवश्यकता है जिसके द्वारा शरीर को प्रयाप्त पोषण मिलता है और व्यक्ति अपनी आयु को सुखपूर्वक भोग करता है | पहले के समस्त आहार शरीर, आयु एवं मौसम की अनुकूलता की ध्यान में रखते हुए लिये जाते थे , परिणामस्वरूप व्यक्ति स्वस्थ्य रहता था | अच्छी निद्रा लेता था और लम्बी आयु भोगता था |
कालांतर में शरीरिक क्षमता, समय तथा मौसम के बारे में चेतना विलुप्त होने लगी और मुँह का स्वाद बढ़ता गया | इसका परिणाम यह निकला की कब, कैसे, क्या और कितना खाना चाहिए, इसके बारे में सोच-विचार बंद हो गया | जब चाहा और मनचाहा खाना खाने की प्रवृति बढ़ने लगी तो परिणाम यह निकला की व्यक्ति का स्वास्थ्य ख़राब होने लगा | विभिन्न प्रकार के रोग पनपने लगे और मानव जीवन इसी दुश्चक्र में फंसता चला गया |
W.H.O ने मांसाहार से होने वाली 160 बिमारियों की सूचि तैयार की है | इन बिमारियों में मिर्गी की बीमारी प्रमुख है | यह बीमारी मस्तिस्क में रिबिपासोलियम नामक कीड़े से होती है , यह कीड़ा सूअर का मांस खाने से हो जाता है | इसी प्रकार जो जानवर गन्दा पानी-भोजन ग्रहण करते है, उनके शरीर में अनेक कीटाणु होते है | ऐसे जानवरों को खाने से मनुष्य के शरीर में अनेक रोग हो जाते है | शाकाहार मांसाहार की अपेक्षा काफी सस्ता और पौष्टिक आहार है जो आसानी से उपलब्ध हो जाता है यानि आर्थिक दृष्टिकोण से भी शाकाहार अच्छा है |
नैतिकता और अध्यात्मिक दृष्टि की कसौटी पर यदि कोई भोजन खरा उतरता है तो वह शाकाहार ही है क्यूंकि मांसाहारी व्यक्ति जिन पशु-पक्षियों को अधिकतर अपना भोजन बनाता है वे पशु-पक्षी खुद ही घास-फल आदि खाकर शाकाहार से ही अपना पेट भरते है |
अतः मांसाहारी मनुष्य शाकाहारी पशु-पक्षियों को अपना भोजन बनाता है और साथ में हिंसा का भागी भी बनता है | मांसाहार छोड़ देने से कई प्रकार के बिमारियों से भी बचा जा सकता है और मूक असहाय पशु-पक्षियों पर होने वाली हिंसा को भी खत्म किया जा सकता है |
वैज्ञानिक मतानुसार मांसाहार परोक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसों उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है | जलवायु परिवर्तन के क्षत्र में काम कर रहे संगठन का कहना है की मांसाहार के अधिक प्रचालन से वातावरण में कार्बनडाई औक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है |
शाकाहार ग्लोबल वार्मिंग को के बढ़ते खतरे को कम करने में सहायक है | शाकाहार या हरी सब्जियों व फलों के लिए अधिक कृषि उत्पादन होगा तो वातावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है | भूमि की उर्वरा शक्ति पेड़ों और जानवरों पर निर्भर करती है | हमें पशु-पक्षी और पेड़-पौधों दोनों का ही संरक्षण करना चाहिए न की उनका भक्षण | नहीं तो एक दिन ये पृथ्वी वीरान हो जायेगी और मनुष्य मांसाहार और शाकाहार दोनों से ही वंचित हो जायेगा |
जो व्यक्ति मांसाहार को शारीरिक शक्ति और बुद्धि कौशल के विकाश के लिए आवश्यक मानते है , वह सच्चाई और वैज्ञानिक अनुसंधानों से भलीभांति परिचित नहीं है , क्यूंकि वैज्ञानिको ने भी शक्ति को मापने के लिये शेर-चिता जैसे पशु को शक्ति मापन का साधन नहीं माना , अपितु शाकाहारी घोड़े को ही शक्ति का माप प्रकट करने के लिये चयन किया | इसी कारण वैज्ञानिक होर्स पॉवर ( Horse Power ) में ही शक्ति मापन का कार्य करते है |
सच्चाई को स्वीकार करें तो शाकाहार प्रकृति का मानव जाती के लिये सर्वोत्तम उपहार है | मनुष्य को शारीरिक शक्ति और विवेक देने के साथ ही प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने के अद्भुत क्षमता उत्पन्न करता है |
प्रक्रति प्रदत ऐसे आहार से धरती भरी हुई है जिसके उपयोग से मनुष्य जीवन पर्यन्त शारीरिक व मानसिक रूप खुशहाल रह सकता है |
एक ऐसा ही पौधा है एलोवेरा जो वास्तविक में आज के वातावरण में स्वस्थ्य रहने के लिये नितांत आवश्यक है |"एक कहावत है पहला सुख निरोगी काया , बनी रहे यौबन की माया" |
एलो वेरा जूस आज के प्रदूषित वातावरण में स्वस्थ्य रहने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को लेना ही चाहिए, जिससे के आपके शरीर आने वाले किसी भी प्रकार के रोग से आराम से मुकाबला कर सकता है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
वैज्ञानिकों एवं चिकित्साशास्त्रियों ने विभिन्न प्रकार के अनुसंधानों से यह निश्चित रूप से पुष्टि कर दिया है की मनुष्य के शरीर की रचना एवं शरीर के विभिन्न अंग जैसे मुंह, दाँत, हाथों की अंगुलियाँ, नाख़ून एवं पाचन तंत्र की बनावट के अनुसार वह एक शाकाहारी प्राणी है |
मनुष्य का शरीर, शरीर के विभिन्न अंग एवं पाचन प्रणाली मांसाहारी प्राणियों जैसी नहीं है | भारत ही नहीं, अपितु दुनिया के सारे प्राणी यह मानाने लगा है की शाकाहार ही मनुष्य की प्रकृति और उसके शरीर तंत्र की अन्दुरुनी एवं बहरी संरचना के सर्वथा अनुकूल है | अमेरिकी प्रसिद्ध बिजनेस पत्रिका फार्ब्स के अनुसार 1998 से 2003 तक शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री दोगुनी हो गई है
आज के इस तनाव भरी आर्थिक और विषम सामाजिक परिस्थितियों के बिच जी रहा मनुष्य यही चाहता है की वह किसी भी प्रकार के शरीरिक व मानसिक दुःख से पीड़ित न हो | स्वास्थ्य का सम्बन्ध शरीर से है और प्रत्येक व्यक्ति मन और तन दोनों से स्वाथ्य रहना चाहता है |
इश्वर ने मनुष्य को सर्वगुण संपन्न शरीर प्रदान की है | सामान्य रूप से यह शरीर सौ वर्ष तक स्वस्थ रह सकता है या उससे अधिक भी | परन्तु स्वस्थ रहने और लम्बी आयु के लिए आवश्यक है की वह बचपन से ही संयमित और सात्विक जीवनचर्या का पालन करें | मनुष्य अपने आचार-विचार और आहार की पवित्रता से ही वह अपने इस मानव जीवन का सदुपयोग करते हुए भरपूर आनन्द उठा सकता है |
आज दुनिया के बड़े-बड़े देश शाकाहार अपना रहे है | सर्वेक्षण के अनुसार शाकाहार अपनाने के पीछे 34 फीसदी लोगो का मानना है की वे अनैतिक मानते हुए शाकाहार बने है | 12 फीसदी धार्मिक कारणों से, तो 6 फीसदी अपने परिजनों और दोस्तों की वजह से शाकाहारी बने है | शाकाहार अब एक अभियान बनता जा रहा है |
दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाली मशहूर हस्तियाँ जैसे रुसी लेखक टालस्टाय, लियोनार्दो डी विन्ची, अब्राहम लिकन, प्लूटो, सुकरात, रविंद्रनाथ टैगोर,अलबर्ट आइन्स्टाइन, डा.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, अमिताभ बच्चन, ब्रेड पिट, केट विसंलेट जैसी ख्याति प्राप्त हस्तियों ने शाकाहार को जीवन में अपनाया |
शाकाहार में भोजन तंतु प्रयाप्त मात्रा में होते है | भोजन तंतुओं की प्रयाप्त्ता से पाचन तंत्र के क्रिया प्रणाली सही तरीके से संचालित होती है | शाकाहार से व्यक्ति कब्ज़, कोलाइटिस, बवासीर जैसी बिमारियों से काफी हद तक बचा रहता है | शाकाहार से आँतों के कैंसर की सम्भावना भी कम हो जाती है | शाकाहार में सभी पोषक तत्व,प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण उचित अनुपात में होते है |
विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब यह सिद्ध कर दिया है की भीषण बीमारियों जैसे कैंसर, ह्रदय रोग आदि को शाकाहार द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है | शाकाहारी भोजन ने वसा अपने उचित अनुपात में होती है अर्थात बहुत ज्यादा भी नहीं और बहुत कम भी नहीं परन्तु मांसाहारी भोजन में वसा की प्रचुरता होती है जिसके कारण ह्रदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है | वसा की अधिकता से कोलेस्ट्रोल का स्तर रक्त में बढ़ जाता है | कोलेस्ट्रोल से रुधिर नलिकाएं तंग हो जाती है और धीरे-धीरे बंद हो जाती है जिससे रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होने लग जाता है | यह हार्ट अटैक का एक प्रमुख कारण है | डॉक्टरों का कहना है की ह्रदय रोगों से बचने के लिए मनुष्य को मांसाहार का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए |
अतः शाकाहार को अपनाएं जीवन स्वास्थ्य बनायें
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उपवास हमारे जीवन के लिए बहुत ही खास होता है | पहले के अपेक्षा आज कल ये प्रचलन बहुत कम होता जा रहा है | परन्तु आयुर्वेद एवं अध्यात्म दोनों ही दृष्टिकोण से उपवास की महता बताई गई है |
शारीरिक स्वस्थ्य व मानसिक स्वस्थ्य के लिए यह अत्यंत आवश्यक है | शरीर के अन्दुरुनी भाग के सफाई के लिए उपवास एक सरल प्राकृतिक क्रिया है | इससे शरीर को आराम भी मिलता है |
जैसे यांत्रिक मशीन हो या कोई भी मशीन सप्ताह में एक बार उनकी साफ-सफाई बेहद जरुरी है, अन्यथा असमय ही धोखा दे सकती है |
ठीक उसी प्रकार, शरीर रूपी मशीन की साफ-सफाई भी नितांत आवश्यक है अन्यथा हम तरह-तरह के रोगों से प्रभावित हो सकते है |
आज कल के गर्मी के मौसम में तो हप्ते में एक दिन का उपवास अवश्य करना चाहिए , क्यूंकि इस समय पाचक अग्नि भी कमजोर होती है | उपवास रखने से पाचन संस्थान को आराम मिल जाता है तथा शरीर की सफाई होती है |
वैसे भी समय-समय पर एक-दो दिन का उपवास से साधारण रोगों के साथ-साथ अनेक असाध्य रोगों , जैसे मधुमेह, बबासीर आदि में अधिक लाभ मिलता है , इसके अतिरिक्त पाचन तंत्र के रोग, जैसे कब्ज़, अपच आदि में तो उपवास एक तरह से चमत्कारी प्रभाव दिखता है |
उपवास करने से पूर्व यह भ्रम मन से निकाल दें कि इससे आप कमजोरी महसूस करेंगे | उपवास के दौरान मन प्रसंचित तथा शरीर में स्फूर्ति आती है |
उपवास के समय मुंह से दुर्गन्ध सी आती महसूस होती है और जीभ का रंग सफ़ेद पड़ जाता है |
यह इस बात का लक्ष्ण है कि शरीर में सफाई काम शुरू हो गया है |
कुछ ऐसे भी रोग है जिनमे उपवास नहीं करनी चाहिए, जैसे- क्षय रोग, ह्रदय रोग आदि, इसी प्रकार स्त्रियों को भी गर्भावस्था में उपवास नहीं करना चाहिए | इसके अतिरिक्त कुछ रोगों में सिर्फ उपवास करना ही पर्याप्त नहीं होता , बल्कि अन्य उपायों कि भी जरुरत है, जैसे औषधि आदि इसलिए चिकिस्क कि सलाह ले लेनी चाहिए |
उपवास आरम्भ करने के चौबीस घंटे पहले गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए | फलाहार करना ही उचित है | उपवास करते समय बहुत साबधानी बरतनी चाहिए | पेट के विभिन्न अंग उपवास कल में क्रियाशील नहीं रहते, इसलिए उपवास समाप्त करने के तुरंत बाद ही ठोस खाद्य पदार्थों का सेवन न करें | फलों का रस लेना ही ठीक रहता है|
आजकल तो उपवास का विकृत स्वरुप प्रचलित है | इसके दौरान भी लोग इतना गरिष्ठ भोजन करते है कि और दिनों के अपेक्षा ज्यादा ले लिया जाता है | उपवास के नाम से बड़े-बड़े नामी गिरामी होटल भी ब्रत की थाली सजाये बैठे रहते है और लोग बड़े चाव से उस थाली का आनन्द लेते है |
ब्रत के दौरान ज्यादा-ज्यादा पेय पदार्थ जैसे मट्ठा-दूध, जल पर ही रहना चाहिए | ज्यादा से ज्यादा फल व शक ले सकते है |
पेय पदार्थ में अगर आपने ऍफ़.एल.पी का एलो वेरा जूस का सेवन करेंगे तो आपके शरीर का निर्वशिकरण( साफ-सफाई) निश्चित तौर पर तेजी के साथ होगा |
अतः इस गर्मी के मौसम में अपने शरीर के रख-रखाव के लिए और सुन्दर तन व मन के लिए व्रत के दौरान व नित्य-प्रतिदिन एलो वेरा जेल का सेवन करना चाहिए |
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