जैसे जैसे मौसम का मिजाज बदल रहा है वैसे ही लोगो में परेशानियाँ शुरू होने लगी है | एक तो ठंढ वैसे भी अपने साथ बहुत सारी समस्याएं लेकर आती है जैसे सर्दी-जुकाम,एलर्जी आदि और सबसे बड़ी समस्या उनके साथ होती है जो की साँस की बिमारी से ग्रसित होते है | उनके लिए ये मौसम बहुत ही कष्टदायक होता है | दर्द चाहे नए हो या पुराने इस मौसम में और भी ज्यादा उभर आती है | आज चर्चा करते है दमा के बारे में जो खासकर कड़ाके की ठंढ में बहुत ही ज्यादा घातक सिद्ध होता है |
दमा ( Asthma ) एक साँस की बिमारी है | इस बिमारी में श्वसन नलिका संकुचित हो जाती है जिससे प्रभावित व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है | यह सांस की नली व फेफड़ों में संक्रमण के कारण होता है | साँस की नलियां आगे जाकर पतली हो जाती है इसके अन्दर कार्बन जमा हो जाता है तथा वह अपनी लचक खो देती है |
तरल द्रव फेफड़ों में इकठ्ठा हो जाता है और श्वसन नलिका की श्लेष्मा झिल्ली उद्दीप्त हो जाती है |
इसके कारण फेफड़ों में सुजन भी आ जाती है | यह भी कह सकते है की फेफड़ों में बलगम जम जाता है |
सांस लेने में कोई परेशानी नहीं होती परन्तु साँस छोड़ते समय दम सा घुटने लगता है | छाती में तकलीफ रहती है |
कारण कुछ भी हो सकता है , जैसे किसी कारण एलर्जी, वायु प्रदुषण, कुछ तरह के भोजन आदि से प्रतिक्रियास्वरूप यह दशा भड़क सकती है | दबाब-तनाव, तापमान में परिवर्तन, चिंता और ब्रोंकाइटिस आदि अन्य कारण भी हो सकते है | धुम्रपान, गलत जीवन शैली या विपरीत परिश्थितियों में रहने से भी अस्थमा हो सकता है |
जड़ी बूटी सम्बंधित उपचार आप कर सकते है :-
एलो वेरा जेल / एलो बेरी नेक्टर
जिन्क्गो पलुस
गार्लिक थाइम
बी प्रोपोलिस
इसके साथ हल्का व्यायाम से फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ने में फायदेमंद हो सकता है |
सुकन पाने के लिए योग करना अच्छा है | रात को भरी खाना न खाएं | फल और सब्जियां काफी मात्र में ले |
चिकन सूप लाभदायक है | मशरूम, चीज, सोया सॉस और भोजन में सिंथेटिक सामग्री का इस्तेमाल न करें |
चाय या कॉफ़ी का एक प्याला कभी-कभार पिने से दमे का हल्का हमला रोका जा सकता है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
रामायण में एक अंश मुझे याद आ रहा है जब सुखेन वैद्य ने लक्ष्मण जी का प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने को कहा - जिससे प्रभु लक्ष्मण का प्राण बचाया गया था | वैसे तो संजीवनी बूटी का नाम सिर्फ सुना ही है किसीने शायद ही देखा हो | चुकी संजीवनी बूटी लाने के समय में स्वयं हनुमान जी भी दुबिधा में पड़ गए थे | जैसा की वैद्य ने कहा था की जिस बूटी के निचे दीपक जल रहा होगा वही असल में संजीवनी बूटी होगा | परन्तु जब हनुमान जी धवलागिरी पर्वत पर गए तो वो आश्चर्यचकित हो गए | उन्होंने देखा यहाँ तो प्रत्येक बूटी के पास दीपक जल रहे है |फिर उन्होंने सम्पूर्ण पहाड़ ही उठा लाये थे |मतलब संजीवनी बूटी को पहचानने में हनुमान जी भी दुबिधा में थे |
अगर वर्तमान समय की संजीवनी बूटी पर चर्चा करें तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एलो वेरा के पौधे में वो सारे गुण समाहित है जिसे आप संजीवनी बूटी कह सकते है ! एफ.एल.पी के एलो वेरा जेल ने ऐसे कई तरह के चमत्कार कर चुके है जिससे की लोग इसे जड़ी बूटी के श्रृंखला में सर्वोच्च स्थान पर रखते है !
अक्सर लोग मेरे पास सारे इलाज से थके हुए रोगी ही मिलते है,वे अपना कीमती वक्त व धन गवाँ कर जीवन को जैसे तैसे जीने को मजबूर होते है | इतने हताश और परेशान होते है की जब हम किसी और आयुर्वेदिक दवाइयां या पौष्टिक पूरक की बात करते है तो वो सिरे से नकार देते है,यह कहकर की बहुत देख ली साहेब कोई फायदा नहीं होता है बस लोग बेबकूफ बनाते है और अपनी जेब भरते हमारी समस्या वहीं के वहीँ है | इसीलिए कृपया हमें हमारी हाल पर छोड़ दें |
इसमें इसकी क्या गलती ? यहाँ हर गली, चौराहे पर इस तरह के झोला छाप डॉक्टर अपना दुकान खोले बैठे नजर आते है | जहाँ हर तरह के बिमारी का शर्तिया इलाज होता है | बस स्टेंड हो या शौचालय, बड़े-बड़े बैनर -पोस्टर से पटे हुए होते है | कोई न कोई व्यक्ति अक्सर ऐसे निम्-हकीम, वैद्य, बाबाओं के चक्कर में फंसते रहते है | जिसके कारण रोगी के रोग में लाभ होने के वजाय वो और भी अस्वस्थ्य होते चले जाते है |ऐसे हकीमों को कोई फर्क नहीं पड़ता, दुकान यहाँ नहीं चली तो कहीं और खोल देंगे ?
वैसे तो हमारे से भी अक्सर लोग पूछते है सर क्या इस उत्पाद की कोई साय्ड इफेक्ट भी हो सकता है ? यह बात पहले बताइये , आपने तो सारी खूबियाँ गिनती करवा दी हमें इसके दूसरी पहलु के बारे में भी कृपया बताएं ? सवाल इस तरह का आना लाजिमी है क्युकी कई सालों से इलाज का तजुर्बा होता है, कई दवाइयां एक साथ लेना होता है फिर कुछ दिनों के बाद इसी के कारण कोई और परशानियाँ आ जाते है | मैंने कहा - साय्ड इफेक्ट ( दुष्परिणाम) तो बहुत है , सबसे बड़ा साय्ड इफेक्ट एलो वेरा उत्पाद से होता है की आप ठीक हो जायेंगे | और एक दिन आप बिलकुल स्वस्थ्य और खुशहाल जीवन जियेंगे, यही है इसका साय्ड इफेक्ट |
कब्ज़ से लेकर कैंसर तक के मरीजों को एलो वेरा के चमत्कारिक गुणों से फायदा होता रहा है और भविष्य में भी कोई भी असाध्य रोगी अगर इन उत्पादों का प्रयोग श्रधा और विश्वास के साथ सेवन करेगा तो निश्चित ही लाभ मिलेगा |
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आजकल यह कहना अतिशयोक्ति होगी की आयु पर हम विजय पा सकते है | प्राणी की कब मृत्यु हो जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता है | हर क्षण मृत्यु के करीब जा रहे प्राणी की आयु शरद ऋतु के बादल के सामान स्वल्प है, यह तो बुझते हुए लौ की दीपक के समान चंचल है, जो गई हुई देखी जाती है |
सबाल यह नहीं है की आपकी कितनी आयु है पर जितनी भी आयु आप जिए वह सुखकर हो, दिन-हिन् और रोगी बनकर जीना बहुत ही कष्ट देता है | मृत्यु के श्रीजन्हार असंख्य रोगों को शरीर में समा देते है और उसे कष्ट दे-देकर मारने की जुगत में लगे रहते है |
ज्यादातर रोग हमारी खुद की गलतियों के परिणाम होते है | स्वास्थ्य का महत्व भी उस समय ज्ञात होता है जब व्यक्ति बीमार होता है | रोग कोई भी हो - कब्ज़ या कैंसर, सभी रोग ख़राब और आयु का क्षीण करने वाले होते है | जो दूरदर्शी लोग होते है वह हर समय सेहत की अहमियत को ध्यान में रखते है और ऐसे कार्य से बचते है जो अंततः रोगकारक बनें |
रोग अपनी शुरुआती दौर में प्रायः घातक नही होते लेकिन बाद में वे जटिल बनते चले जाते है | कब्ज़ जैसा मामूली सा रोग भी हमारी लापरवाही का परिणाम होता है | वैसे कब्ज़ अपनी प्रारम्भिक अवस्था में बिना नुक्सान पहुंचाए सामान्य उपचारों से मिट जाता है लेकिन यदि लापरवाही बरती जाए तब धीरे-धीरे यह अन्य रोगों का कारण भी बन जाता है |
वर्तमान में कैंसर का भी प्रसार बहुत है | सामान्य विकार बिगरते-बिगरते कैंसर में परिवर्तित हो जाते है | इसे मौत का दूसरा नाम भी कह दिया जाता है | कैंसर के मरीज को देखकर एक स्वस्थ्य व्यक्ति के अंदर से यही शब्द निकलते है " हे भगवान मुझे इस बीमारी से बचाए रखना" |
वैसे इश्वर ने हमें वे सुविधाए दे रखी है जिनसे हम रोगों से बचे भी रह सकते है, रोग निवारण भी कर सकते है और दीर्घायु को प्राप्त कर सकते है , लेकिन जानकारी के अभाव में अथवा लापरवाही वश हम इन सुविधाओं का लाभ न उठाकर विज्ञापनबाजी से प्रचारित उन चीजो का ज्यादा इस्तेमाल करते है जो अंततः स्वास्थ्य के लिए घातक ही सिद्ध होती है | कोल्ड्रिंक्स,वर्गर,पिज्जा इत्यादि अनेक उदाहरण आपके सामने है |
बहरहाल यहाँ उस 'कमाल के नुस्खे' को निचे दिया जा रहा है जो बहुत ही साधारण और घरेलु है | तो आपके लिए लीजिये प्रस्तुत है घरेलु परन्तु असरदार नुस्खा :-
तुलसी और पुदीना की सामान मात्रा को मिलकर बनाये गए चूर्ण का नित्य नियमपूर्वक 5 ग्राम मात्रा दिन में एक बार सेवन किया जाए तो कैंसर जैसे भयंकर बीमारी से सदैव बचा जा सकता है | यह नामुराद बिमारी आपसे दूर ही रहेगी |
अगले क्रम में आपसे इस बनौषधि दोनों के मिश्रण के बारे में विस्तृत जानकारी और शोध के विषय के साथ उपस्थित होंगे !
एलोवेरा जेल रोज पिए और स्वस्थ्य तन-मन के साथ सदैव जियें !
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सच्ची बात तो यह है की अगर ये खाकी और खादी वर्दीधारी सुधर जाए तो देश स्वतः सुधर जाएगा | सोमबार रात की घटना जो दिल्ली वालों को दिल दहला दिया | बात लक्ष्मी नगर के पास ललीता पार्क की है | सोमबार रात के 8 बजे पाँच मंजिला इमारत मलबे के ढेर में तब्दील हो गया ! कोई नहीं जानता की कब क्या हो जाए ? किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा की इस कदर ये पाँच मंजिला इमारत रेत की तरह भरभरा के गिर पड़ेंगे ? सरकारी आंकड़ा के अनुसार अब तक इस हादशा में करीब 70 व्यक्ति ने अपनी जान गवां दी है |
शक्तिशाली भारत को एक ओर जहाँ पड़ोसियों ने कमजोर करने की कोशिस किया, वहीँ हमारे अपने ही लोग भी इस कुकृतियों में शामिल रहे है, यह सौ फीसदी सत्य है ! स्वभाविमान राष्ट्र के लिए सबसे पहली आवश्यकता है, वहां के लोगों का नैतिक स्तर उच्च होना !
वर्तमान में हमारे देश में उच्च नैतिक स्तर वाले भी है लेकिन नैतिकता से गिरे लोगों की अपेक्षा कम है | आज हम किसी भी क्षेत्र की बात करें भ्रष्ट और बेईमान लोगों की कोई कमी नजर नहीं आएगी !राजनीती क्षेत्र की बात करें तो लगता है की पुरे 'कुए में ही भांग' मिली हुई है !चाहे सताधारी हो या विपक्ष, अधिकांश भ्रष्टाचार में लिप्त दिखाई देते है |
हमारा मकसद ऐसे भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को सरेआम उजागर करना , जिनके कारण आज 70 बेगुनाहों की मौत हो गई है | प्रशाशन के कुछ भ्रष्ट आचरण वाले अधिकारी की पूरी जिम्मेदारी है जिन्होंने भवन निर्माण कार्य में पाँच मंजिल इमारत बनाने की इजाजत दी थी |साइलेंट किलर है यह खादी और खाकी के वर्दी में लिप्त कुछ भ्रष्ट अधकारी !
आज एक बार फिर से दिल्ली शर्मशार हो गई | ठीक उसी इलाके में अभी तक़रीबन चार या पाँच बिल्डिंग और भी जो कभी भी गिर सकती है परन्तु प्रशाशन की कान पर जूं नहीं रेंगता | उन्हें इसके बारे में ततकाल कदम उठाना चाहिए ! या फिर प्रशाशन दूसरी घटना का इन्तेजार करेगी | क्या आँखे खोलने के लिए इतना कुछ कम है ?
अरे कुम्भकरण भी छे महीने पश्चात् उठ जाया करता था परन्तु लगता है जैसे प्रशाशन सालों भर सोती रहती है और घटना उपरांत तुरंत नींद से जाग जाती है ! अपनी फायदों के लिए ऐसे खुनी खेल बंद करों ! आखिर कब तक लोगों को उनके ऊपर का आशियाना छिनते रहोगे ?
कई घरों के चिराग बुझ गए , कईयों ने अपने परिजनों को खो दिया ? कौन है इनके जिम्मेदार ? क्या उनके बिलखते हुए आत्मा उन्हें कभी माफ़ कर सकेगा ?
आज हम सभी जानते है की अनेकता में एकता राष्ट्र के रूप में विश्व विख्यात हमारा देश आज भ्रष्टाचार में नित नई ऊँचाइयों को छू रहा है | अगर देश का रक्षक ही भक्षक बनने को उतारू हो तो देश की हालात क्या हो सकता है ! भले ही ऐसा कुछ चंद लोग करते हों परन्तु बदनामी का दाग तो दूर-दूर तक अन्य लोगों को भी दागदार बना देता है |
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आइये कल की चर्चा को एक बार फिर से आगे बढाते हुए, शुरुआत करते है मधुमेही का क्या आहार होना चाहिए और क्या नहीं ? चुकी एक ओर जहाँ दुनिया भर में इस रोग से करोड़ों लोग मुश्किल में फंसे हुए है तो दूसरी ओर इस रोग का स्थायी इलाज अभी तक नहीं मिल पाने के कारण दुनिया भर के चिकित्सा विशेषग्य हैरान परेशान है |
मधुमेह के नाम से मशहूर यह रोग वास्तव में 'मधुमेह' न होकर 'विपतियों का मेह' बना हुआ है | इस रोग से जुड़े हर पहलुओं पर चर्चा हमेशा किसी न किसी प्रकार से की जाती रही है | परन्तु आज उस पहलु पर चर्चा करने जा रहे है जिससे आम मधुमेही को विशेष जानकारी नहीं होती है यानि रोगीं को दैनिक उपयोग की वस्तुओं में किन-किन चीज का सेवन करना चाहिए तथा किसका नहीं !
तो आइये चर्चा करते है आहार सम्बंधित वस्तुए रोगी अपने दैनिक उपयोग में क्या अपनाए और क्या नहीं ?
1 . क्या मधुमेही चावल का सेवन कर सकता है ?
> चावल साधारण और जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है | अतः चावल-दाल के मिश्रण से बनी खिचड़ी खाई जा सकती है | मार्केट में अधिक रेशे वाले ब्राउन चावल भी मिलते है, इनका सेवन किया जा सकता है |
2 . क्या मधुमेही आलू का सेवन कर सकता है ?
>आलू भी चावल की तरह साधारण तथा जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है, फिर भी इसे सिमित मात्र में खाया जा सकता है | परन्तुं इसे अगर पत्तेदार और रेशेदार सब्जियों के साथ खाया जाये तो बेहतर होगा |
3 . क्या मधुमेही को पपीता खा सकता है ?
> अधपका पपीता खाना बेहतर है जो मीठा नहीं होता | पका पपीता से बचे क्यूंकि वह ज्यादा मीठा होता है |
4 . क्या मधुमेही जामुन खा सकता है ?
> हाईपोग्लाईसीमिक तत्व जामुन में पाया जाता है , जो अग्न्याशय और शर्करा स्तर को घटाता है, अतः जामुन का उपयोग मधुमेही के लिए बेहतर होगा | जामुन का गुठली का 3-3 ग्राम चूर्ण दिन में 3 बार लेने से रक्त शर्करा का स्तर घटता है |
5. क्या मधुमेही के लिए मेथी के बीज उपयोगी होते है ?
> मेथीबीज में हाईपोग्लाईसीमिक तत्व रक्त शर्करा को कम करते है, अतः इनका सेवन उपयोगी है | इसका सेवन सूप,चटनी या सब्जी के रूप में किया जा सकता है | यदि नित्य 12 घंटे पानी में भीगे मेथीबीज का पेस्ट बनाकर दबाई के तौर पर लिया जाए तो शर्करा का स्तर नियंत्रित रखा जा सकता है | दिन भर में 200 ग्राम तक लिए जा सकते है |
6 . करेला मधुमेही के लिए कितना उपयोगी है ?
> मधुमेही के आलावा और भी कई रोगों में करेला उपयोगी है | इसमें पाया जाने वाला इंसुलिन रक्त और मूत्र की शर्करा का कम करता है | यदि प्रतिदिन सुबह खली पेट 125 से 140 मि.ली. करेले का जूस लिया जाये तो परिणाम बेहतर मिल सकता है | यह लीवर और पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है तथा रक्त को शुद्ध व त्वचा रोग में भी लाभ होने लगता है |
7 . नीम की कोपलें मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> कोपलें ही नहीं बल्कि नीम की अन्तर्छाल भी रक्त शर्करा स्तर को कम करती है क्योंकि इसमें हाईपोग्लाईसीमिक तत्व होता है | नीम की पत्तियों और छाल का रस लेना बहुत ही फायदेमंद रहेगा | दोनों की बराबर मात्रा यानि 5 ग्राम को 300 ग्राम पानी में डालकर उबले | पानी जलकर एक चौथाई रह जाये तक छानकर पी लें | ध्यान रहें उपरोक्त रस का सेवन अधिक दिनों तक न करें क्योंकि नीम का ज्यादा सेवन से कामशक्ति प्रभावित हो सकती है |
8 . क्या अलसी का सेवन मधुमेही के लिए उपयोगी है ?
> जी हाँ, मधुमेही के लिए अलसी का सेवन उपयुक्त है | अलसी 25 ग्राम तक मिक्सी में पीसकर आटा में मिलकर इस आटे की रोटी खाई जा सकती है |अलसी का सेवन व्यंजन बनाकर भी किया जा सकता है |
9 . क्या दूध का सेवन मधुमेही को करना चाहिए ?
> यदि ह्रदय रोग की शिकायत न हो तब मधुमेही कम मात्रा में दूध का सेवन कर सकता है | स्किम्ड मिल्क की 500 मि.ली. मात्रा तथा टोंड मिल्क की 200 मि.ली. मात्रा का सेवन किया जा सकता है |
10 . मधुमेही को पनीर का सेवन करना चाहिए ?
> पनीर और छैना जो दूध के ही उत्पाद है, का सेवन मधुमेही कर सकते है, वशर्ते वह ह्रदय रोगी न हों |
11 . चाय-कॉफ़ी मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> इन उत्तेजक पेयों में टैनिन और कैफीन नामक तत्व होता है, अतः इनका सेवन कम से कम करना चाहिए | दिन भर में 2 कप चाय या कॉफ़ी बिना चीनी यानि फीकी अथवा कृत्रिम मिठास डालकर ली जा सकती है |
13 . क्या नारियल का सेवन मधुमेही के लिए उपयुक्त है ?
> ह्रदय रोगी के लिए नारियल उपयुक्त नहीं है | यदि केवल मधुमेह है, तब इसका सेवन किया जा सकता है | नारियल का पानी भी दिनभर में दो कप तक पिया जा सकता है |
14 .क्या बादाम का सेवन कर सकते है ?
> केवल मधुमेह होने पर बादाम का सेवन किया जा सकता है | 100 ग्राम बादाम में 58.9 ग्राम वसा पायी जाती है जो 12 चम्मच तेल के बराबर है | अतः यदि ह्रदय रोग और उच्चरक्तचाप भी साथ में है, तब इसका सेवन न करें |
15 . मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
> मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
16 . क्या अखरोट का सेवन उपयुक्त हो सकता है ?
> मधुमेह में अखरोट का सेवन किया जा सकता है | इसकी 100 ग्राम मात्रा में 64.5 ग्राम वसा होती है जिनसे ट्राईग्लिसराइड की मात्रा बढती है अतः ह्रदय रोग अथवा उच्चरक्तचाप में इसका सेवन करना ठीक नहीं है |
17. डबल रोटी का सेवन कितना उपयुक्त हो सकता है ?
> डबल रोटी भी दो प्रकार की मिलती है, एक तो मैदे से बनी हुई सफ़ेद डबल रोटी, इसकी 100 ग्राम मात्रा में 0.2 ग्राम फाइबर होता है | दूसरी डबल रोटी भूरे रंग की होती है जो आटे की बनती है, इसकी 100 ग्राम मात्र में 1.2 ग्राम फाइबर होता है तथा 245 कैलोरी पायी जाती है | इसलिए सफ़ेद की बजाय भूरी डबल रोटी अधिक उपयुक्त है |
सबसे उपयुक्त होगा अगर आप अपने आहार में एलो वेरा जूस शामिल कर लें | एलो वेरा में मौजूद क्रोमियम,बिटासेल्स और विभिन्न प्रकार के विटामिन्स, मिनरल्स,खनिज जो शरीर के सेल स्तर पर काम करती है और आपके शरीर की जरूरतों को पूरा कर देती है जिससे आप रहते है हमेशा चुस्त और दुरुस्त |
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रोगों की उपस्थिति कोई नई बात नहीं है, प्राचीन से अर्वाचीन कल तक हर युग में रोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है | बल्कि यह कहना यथार्थ होगा की मनुष्य के उद्भव से पहले रोगों ने अपनी जड़े जमा चुके थे | खोजों से यह पता चला है की रोग फ़ैलाने वाले कुख्यात मच्छड विश्व रंगमंच पर मनुष्य के आगमन से पहले ही आ गए थे | जाहिर सी बात है जब इसका अस्तित्व प्राचीन काल से है तो हर युग -हर काल में मनुष्य इनसे पीड़ित रहा है |
लेकिन वर्तमान में रोगों की व्यापकता जनमानस को त्रस्त कर रखा है | अधिकांस व्यक्ति आज कल किसी न किसी रोग से घिरे नजर आते है | कई रोग तो प्रयाप्त चिकित्सा लेने से मिट जाते है जबकी अनेक रोग चिकत्सा से शांत यानि दबा तो रहते है पर विदा यानि जड़ से खत्म नहीं होते | मेहमानों की तरह उम्र भर खातिरदारी कराते रहते है | जरा सी भी मेहमानबाजी में कमी हुई उनके तेवर चढ़ जाते है और फिर बहुत नुकसान पंहुचा जाते है | ऐसे रोगों में वर्तमान के प्रमुख रोग है ,मधुमेह !
आजकल मधुमेह की महामारी से न केवल व्यक्ति विशेष परेशान है बल्कि चिकित्सा विशेषज्ञों से लेकर सरकारें भी इस रोग को जड़ से नष्ट करने के प्रयासों में लगी हुई है|
एलोपैथी में औषधियों तथा इंसुलिन के सेवन से इस पर काबू तो पाया जा सकता है मातब बस दबाया जा सकता है लेकिन मिटा पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है |
कई जड़ी-बूटियां मधुमेह में बढ़ी हुई रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में उपयोगी सिद्ध हुई है, ऐसी वनस्पतियों( Forever Aloe Vera Gel) जिसमे बीटा सेल्स में वृद्धि करने की सामर्थ्य हो जिसमे क्रोमियम भी पाया जाता हो तो मधुमेही का जीवन कुछ आसन हो जाता है क्योंकि बीटा सेल्स की सक्रियता में आ रही लगातार कमी रुक जाती है इससे अग्न्याशय ग्रन्थि ठीक तरह से कार्य कर पाती है |
मधुमेही के लिए तो उचित यह होगा की उसे चिकित्सक के परामर्श पर एलोपैथिक औषधियों का सेवन के साथ ही गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियों का साथ सेवन करते रहें ताकि इस रोग के प्रभाव को नियंत्रण में रखकर अपने आहार-विहार के सही पालन करता हुआ रोगों से मुक्ति पाकर दीर्घायु प्राप्त कर सकें |
फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के मधुमेह पर कारगर " एलो वेरा जेल", "फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन", "लाइसियम प्लस", "जिन-चिया" इत्यादि उत्पादों में मधुमेह में अत्यंत उपयोगी और शरीर तथा शरीर में ताकत और जोश को बनाए रखने के लिए लोग री- वाइटल का प्रयोग करते है बिलकुल वही गुण आपको हमारी "जिन-चिया" में मिलेगी और वो भी 100 फीसदी आयुर्वेदिक | अतः शरीर के किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिए आप इसका प्रयोग करें और अपनी खोयी हुई शारीरिक ताकत को पुनः प्राप्त करें |
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हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार, त्यौहार या ख़ुशी के अवसर पर मिठाई न बांटे तो खुशियाँ अधूरी माना जाता है | चाहे अवसर हो, शादी-विवाह का, जन्म-दिन या कोई पर्व मिठाई हमारी प्राथमिकता होती है | वगैर इसके तो कई अनुष्ठान संभव ही नहीं हो सकता है |
पर क्या वर्तमान में जिस तरह से मिठाई को लेकर तरह तरह की भ्रान्तियां और रोज समाचार पत्र में मिलावट खोरो की चर्चा ,क्या लगता है की मिठाई खाना या बाँटना चाहिए ?
शायद नहीं पिछले साल की बात है मेरे कार्यालय में उपहार स्वरूप मिठाइयाँ बांटा गया था | लोगों ने जमकर खाया और अपने-अपने घर को भी ले गए थे | परिणाम बहुत भी भयावह हुआ सुबह बहुत लोग अस्पताल तक पहुच गए | कुछ लोगों को पेट में बहतु तेज जलन और स्वस्थ्य बिगड़ गया और उसे अपोलो में भर्ती कराया गया | उन लोगों की दीपावली अस्पताल के बिस्तर पर ही हुआ | तिन से चार दिन लग गया उनलोगों को सामान्य होने में |
अब कुछ दिन पहले की बात है - 10 टन नकली खोया बाजार में नकली मिठाई पडोसने के काम में लगे हुए है | पुलिस प्रशासन अभी भी मस्स्क्त कर रही है परन्तु उनके पहुच से दूर है | पुलिस की नाकामी के वजह से उनके हाथ में आई 10 टन नकली खोया गायब हो गया |
क्या मजाक है? लोगों की जान की पड़ी है | जाने अनजाने में ये जहर किस किस लोगों तक पहुंचेगी और उनका क्या परिणाम होगा ? इस सबके लिए जिम्मेदार कौन होगा ? सिर्फ इतन कह देने से काम नहीं चलेगा जहाँ पर लोगों की जिन्दगी और मौत का सवाल है | उचित कारबाई होनी चाहिए ताकि नकली खोया से बना हुआ मिठाई लोगों तक न पहुच सके |
भला 10 टन खोया कोई 10 किलो जैसे तो नहीं हो सकता है जो सामने रखी हो और अचानक से गायब हो जायेगा | प्रशासन के क्रियाकलाप पर यह एक संदेह का विषय है | उनकी जांच करके ऐसे भ्रष्ट पुलिस कर्मी को तत्काल निलंबन कर देना चाहिए |
कुछ लोगों के अपने आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करने के वजह से आम लोगों में जहर बाँट रहे है | प्रशासन चाहे तो वो ऐसे मिलावटखोरों को अपने गिरफ्त में ले सकती है परन्तु 'चोर चोर मसोरे भाई' वाली कहावत है न, भला कौन अपना नुकसान करें ? आजकल का नारा है "काम अपना बनता भांड में जाय जनता" |
मिलावटी मिठाइयों की भरमार के बाद लोगों में दीपावली पर उपहार स्वरूप चाकलेट बाँटने का चलन बढ़ा है | लेकिन मिलावटखोरों ने चाकलेट को भी अछूता नहीं छोड़ा है | यहाँ तक नामी गिरामी कम्पनी के प्रोडक्ट भी इसके शिकार है |
इसलिए आप ब्रांडेड चाकलेट खरीदने से पहले आप सावधान हो जाइये | चुकी विशेषज्ञों का मानना है की मिलावटी चाकलेट में घटिया किस्म की चीनी, वजन बढाने के लिए कुछ पदार्थ और घटिया रंग मिलाये जाते है जो की स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है |
अतः दीपाली की मिठाइयाँ कहीं आपके जीवन की मिठास के लिए मुसीबत न बन जाय | ऐसे कोई भी मिठाई व चाकलेट खरीदने से पहले आप सावधान रहें | हाँ सबसे अच्छा उपहार हो सकता है वर्तमान में ड्राई फ्रूट |
आप सबों को मेरे और मेरे परिवार की ओर से दीपावली का ढेरो-ढेरो शुभकामना !
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एलोवेरा के बारे में विशेष जानकारी के लिए आप यहाँ यहाँ क्लिक करें
"एलोवेरा " ब्लॉग ट्रैफिक के लिए भी है खुराक |
अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
माँ लक्ष्मी पूजन की तैयारी में आज कल लोग ज्यादा व्यस्त है | जहाँ तक निगाहें जाती है , घर में कुछ न कुछ काम, साफ़-सफाई, रंगाई, सजावट इत्यादि चलता देखा जा रहा है | भला हो भी क्यूँ न साल में एक बार तो ऐसे अवसर आते है जब घर के कोने-कोने तक चमकाए जाते है | दरअसल माता लक्ष्मी की स्वागत का मसला है भाई, और जहाँ सफाई है वहां माँ लक्ष्मी की निवास तो जरुर होगी |
अतः मैंने भी अपने घर के कोने कोने को नए रूप और रंग देने में लगा था | आखिर कुछ ही दिनों के बाद जो दीवाली आ रही है | साफ़-सफाई के वजह से घर के सामान अस्त व्यस्त था परन्तु आज कुछ सामान्य सा लग रहा है, तो सोचा क्यूँ नहीं आपलोगों का हाल चाल जान लूँ |
सप्ताह पहले ही हमारे पुरे परिवार के तरफ से आप सब पाठक और मेरे मित्र को दीवाली की हार्दिक बधाई और इश्वर से प्रार्थना है की
आपके घर खुशियाँ, सुख, समृधि व धन-धन्य से भरपूर रखे |आप निरोग, सेहत मंद रहें, चुस्त दुरुस्त रहें- यही हमारी शुभकामना है |
पिछले अंश को एक बार फिर से आगे बढ़ाते हुए, जैसा की हमने कहा था
एलोवेरा के बारे में लोगों की आम सवाल क्या होता है ? कुछ और अच्छी जानकारी है जो आपके साथ बांटना चाहता हूँ | आइये जानने की कोशिस करते है एलोवेरा कुछ विशिष्ट गुण और क्या है ?:-
आखिर एलो वेरा को क्या चीज इतना विशिष्ट व अद्भुत बनाती है ?
वैज्ञानिक शोध एलो के अनेक ऐसे स्वास्थ्यकारी गुणों की पुष्टि कर चूका है की उनके बारे में जानकर कोई भी कहेगा," यह सच नहीं हो सकता है |" एलो वेरा कई तरह से शरीर की सेहत और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ा देता है और वह भी प्राकृतिक रूप से, जिसके सिर्फ अच्छे प्रभाव पड़ते है |
एलो वेरा में सभी प्रकार के
पॉलीसेखेराइड्स ( कोशिकाओं को पोषण देने वाली शर्करा की जटिल श्रृंखला ) सहित 250 तत्व होते है | शरीर इसका निर्माण किशोरावस्था तक करता रहता है | इसके बाद हमें ये स्वास्थ्यकारी और बाढ़ जरी रखने वाले पॉलीसेखेराइड्स बाहरी स्त्रोतों से लेने पड़ते है | एलो वेरा यह पौधा है जिसमे
स्वास्थ्यवर्धक म्युकोपॉलीसेखेराइड्स का सबसे बड़ा जखीरा पाया जाता है |
केरिंगटन लेबोरटरीज , एक दावा कम्पनी ने एलो वेरा में शर्करा की लम्बी श्रृंखला के विभिन्न आकारों में आश्चर्यनक तत्व दर्ज किये है | डॉ इवान डेनहॉफ की रिपोर्ट के अनुसार छोटी कड़ियों में पॉलीसेखेराइड्स में वे तत्व है जो र
क्त शर्करा स्तर का संतुलन बनाए रखने में मदद करते है | शोध अभी भी जारी है परन्तु काफी साबुत मिल चूका है की इंसुलिन रिसेप्टर कोशिकाओं को सुधार देते है |
इसीलिए इसका महत्व टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह के लिए बढ़ जाता है | इसके अतिरिक्त ये मिठाई/शर्करा के तलब को भी संतुलित करते है | शोधों से यह भी पता चला है की इन अपेक्षाकृत छोटे पॉलीसेखेराइड्स में कुछ उद्दीपन-रोधी तत्व भी है जो स्टेराईड्स की तरह काम करते है |
माध्यम आकर के
पॉलीसेखेराइड्स में शक्तिशाली एंटी-ओक्सिडेंट पाए गए है | अपेक्षाकृत बड़ी श्रृंखलाओं ( स्टेप,स्ट्रेप, ई-कोली जैसी ) में
बैक्टीरिया रोधी तत्व है जो बैक्टीरिया पर सीधे वार करते है | इसी तरह से इनसे हर्पिस,इन्फ्लुएंजा जैसे वायरसों में प्रत्यक्ष लड़ने वाले तत्व भी है | इनसे शरीर के उतकों की
नवजीवन प्रक्रिया को प्रेरणा मिलती है |
एलो वेरा का उपयोग करना वह तरीका है जिसके जरिये शरीर की अपनी स्वास्थ्य लाभकारी प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जाता है | निरोधक कोशिकाओं की सेना को मेक्रोफेज कमांड करते है, वे ही इस सेना को आदेश देते है की वह कहाँ जाए, कब और कितना जबरदस्त हमला करें और कब युद्ध बंद कर दें |
एक बिल्ली जिसकी औसतन उम्र 6 से 8 साल की होती है | और जहाँ घर की बिल्ली हो जिसे खान-पान का ध्यान रखा जाता है मेरा मतलब है पालतू बिल्ली तो वह ज्यादा से ज्यादा 14 -15 साल तक जी सकती है | परन्तु एक बिल्ली ऐसी भी थी जो अपने जीवन का 31 साल 2 महिना पूरा किया है | लन्दन के घर में एक बिल्ली ने अपने 31 वाँ वर्ष गाँठ मानाने के दो महीने बाद मर गई |बीबीसी समाचार में World's oldest cat and Forever Living Product Aloe Vera Gel
अब आप कहेंगे भाई ये क्या बिल्ली की कहानी लेकर बैठ गए | दरअसल ये खबर मैं नहीं यह बीबीसी की पहली खबर थी साल 11 जुलाई 2001 की, दुनिया का सबसे बूढी बिल्ली नाम स्पाइक और uk में थी | जब उनसे पूछा गया की लम्बे उम्र का राज क्या है ,तो उन्होंने बताया मैं पिछले दस साल फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट का एलो वेरा उनके आहार में शामिल करती रही है | और वो लगातार स्वस्थ्य रही है जीवन के अंतिम दिनों में भी वो स्वस्थ्य थी | अतः एलो वेरा के विशिष्ट गुणों के वजह से ही हमारे कोशिकाओं की नवजीवन प्रदान होता रहता है और हम हमेशा जवान और स्वस्थ्य नजर आते है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
एक बार फिर से एलोवेरा के सम्बन्ध में जानकारी लेकर उपस्थित हो रहा हूँ | दरअसल अपने देश के विभिन्न प्रान्तों से इस उत्पाद के बारे में फोन आता रहता है | कुछ लोग घर के गमले में लगे एलो वेरा ( ग्वारपाठा) के बारे में जानना चाहते है की वो उसका जूस किस तरह से निकले और पियें | कुछ लोग उसे खाने और सब्जी बनाने के विधि पूछते है वगैरह वगैरह | तो मैंने सोचा क्यूँ नहीं आज इस पोस्ट के माध्यम से लोगों के मन की भ्रांतियां को दूर किया जाय ? तो पेश कर रहा हूँ कुछ अति विशिष्ट जानकारी जो हम सबके लिए बहुपयोगी है |
क्या सामान्य और स्वस्थ्य लोगों को एलो जेल लेना चाहिए ?
जी हाँ , एलो वेरा जेल एक अच्छे और उत्तम किस्म का आहार माना जाता है | यह मानव शरीर के लिए पोषक का भंडार है, शरीर के निर्विषीकरण के लिए बहुत ही उपयोगी है और सभी को इसकी जरूरत है | आज के वातावरण में जहाँ प्रदूषित पदार्थ का जमावड़ा है जैसे आहार से लेकर वायु , पानी सबके सब प्रदूषित है जिसके कारण शरीर में टोक्सिन जमा हो जाता है और इसी को डीटोक्सीफाई करने के लिए एलो वेरा जेल समर्थ है |यह कोशिकाओं को नवजीवन प्रदान कर उन्हें स्वस्थ रखता है |
जैसे मोटरगाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियमित रूप से सर्विसिंग कराना जरुरी होता है, ठीक उसी प्रकार से एलो वेरा जेल मानव शरीर के लिए काम करता है | गाडी के कल-पुर्जों के मुकाबले हमारे शरीर के कल-पुर्जे कहीं ज्यादा विशिष्ट, अनोखे, अद्धभुत, अनमोल है और उनकी देख-भाल करना , संभालना निहायत जरुरी है |
कितने दिनों तक एलो वेरा जेल उपयोग करना चाहिए ?
एक स्वस्थ व्यक्ति को एलो वेरा जेल कम से कम छह से आठ बोतलें पिने की सिफारिश की जाती है | ऊर्जा स्तर, सामान्य स्वास्थ्य, मुड और चुस्ती-फुर्ती में सुधार नजर आने लगेगा | परन्तु बीमार व्यक्ति के लिए तो शरीर की निरोधक प्रणाली को उस पर काबू पाने के लिए अतिरिक्त पोषाहार की जरुरत पड़ेगी | एलो वेरा जेल के उपभोग की अवधि व्यक्ति की बीमारी, उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करेगी |
क्या लगातार एलो वेरा लेने से इसकी लत पड़ सकती है या इम्युनिटी पैदा हो सकती है ?
जी बिलकुल नहीं, एलो वेरा की आदत या लत नहीं पड़ती चुकी यह बुनियादी रूप से पौष्टिक आहार है, कोई सिंथेटिक दवा ( ड्रग्स) नहीं | इसलिए इसके पिने से किसी भी प्रकार का कोई दुष्परिणाम या इम्युनिटी प्रतिक्रिया होने का सवाल ही नहीं पैदा होता |
क्या किस दूसरी दवाओं के साथ हम एलो वेरा ले सकते है ?
एलो वेरा आँतों की सफाई करके ग्रहण करने की क्षमता और आत्मसात्करण को बढाता है | इससे अन्य दवाओं को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है जिसकी वजह से दवा की खुराक मानी जा सकती है | अगर ऐसे लक्षण दिखाई दे तो अपने डॉक्टर से सलाह करके खुराक की मात्रा घटाई भी जा सकती है | कई मामलों में जब शरीर की निरोधक प्रणाली का स्तर बढ़ने लगता है, तो दवाओं की मात्रा वैसे भी धीरे-धीरे घटाई जाती है | ऐसा वक्त आ सकता है जब दवाओं की शायद जरूरत ही नहीं रहे |
बाजार में एलो वेरा के कई ब्रांड मिलते है, जो हमें किस ब्रांड का इस्तेमाल करना चाहिए ?
भारत में एलो वेरा के कई निर्माता है | किसी भी उत्पादन की साख जमने में समय लगता है, खासकर जब मामला सेहत से सम्बंधित हो | जो उत्पाद लगातार अच्छा होता है,वह लगातार अच्छे परिणाम देता है |
भारत में निर्मित होने वाले अधिकांस एलो वेरा का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग करता है | पिने वाले एलो वेरा जेल की गुणवता ऐसी होनी चाहिए जो एलो के ताजे-ताजे काटे गए पते से निकलने वाले जेल का मुकाबला कर सकें | जाहिर सी बात है, इसके लिए विशेष प्रकार की प्रक्रिया की समझ व जानकारी होनी चाहिए | इसे सब लोग नहीं कर सकते | लिहाजा ऐसी जेल का चुनाव करें जिसमे ये सभी तत्व मौजूद हो |
अगर एलो जेल वास्तव में इतना कारगर है तो हर कोई इसकी चर्चा क्यूँ नहीं करता ?
बाजार में कई तरह के जेल उपलब्ध है और उनकी गुणवता में भी अंतर पाया जाता है | हाँ ये थोडा महंगा उत्पाद है | इसके अलावा अच्छी गुणवता के बारे में जानकारी का आभाव या अच्छे माल की उपलब्धि न होने के कारण लोगों को जो मिल जाता है वही खरीद लेते है | जब मन मुताविक परिणाम नहीं मिलते, तो एलो वेरा की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है | हमारे देश के डॉक्टर को एलो वेरा और पोषक पूरकों सम्बंधित जानकारी बहुत थोड़ा है | इसलिए अक्सर वे लोगों मतलब मरीजों को ऐसे पूरकों और उत्पादों का उपयोग करने से मना करते है |
मरीज भी इस समस्या में इजाफा करते है | वे इस 'चमतकारी पौधे' से चमत्कार की उम्मीद करते हुए, आनन्-फानन नतीजे चाहते है | अक्सर जब दुसरे इलाज से परेशां हो जाते है , तो वे पोषक चिकित्सा को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाते है | मरीजों को पोषक चिकित्सा के काम करने के तरीके के बारे में बताया जाना चाहिए | यह बताया जाना चाहिए की पहले साकारत्मक परिवर्तन नजर आने में कितना वक्त लगेगा | शुरुआती चरणों में उनका तब तक उचित निर्देशन करना चाहिए, जब तक वे इलाज द्वारा हुए फर्क को खुद महसूस न करने लगे |
पोषक पूरकों द्वारा इलाज के नतीजे आनन-फानन में देखने को क्यूँ नहीं मिलता ? क्या खुराक बढ़ने से नतीजा जल्दी मिल सकते है ?
पोषक पूरक प्राकृतिक उत्पाद है और इनके द्वारा दी जाने वाला इलाज किसी एक बीमारी के लिए नहीं होता | प्रकृति किसी समस्या को ठीक करने में अपना वक्त लेती है और वह कई कारको पर निर्भर करती है | जो लक्षण देखने में आते है वे हो सकते है किसी गहरा गई समस्या से सम्बन्ध रखते हो या फिर यह समस्या पोषकों के आभाव से सम्बंधित हो जिसे ठीक करने में समय लगता है | पोषकों के ग्रहण करने की प्रक्रिया का नियन्त्रण शरीर के हाथ में होता है | शरीर अतिरिक्त खुराक को बाहर निकाल देता है |
विकाश और मरम्मत के बारे में मानव शरीर के अपने नियम है | गर्भाधान से शिशु के जन्म और फिर किशोरावस्था तक पहुँचने में समय लगता है | इस तरह से हर एक चीज का समय निर्धारण किया गया है | मानव शरीर बढ़ने और विकसित होने में समय लगता है | यह समय प्रकृति के प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित है | अतः धैर्य व संयम रखें और प्रकृति को अपने समय लेने दे | और भी है जिसके बारे में चर्चा अगले भाग में करेंगे |
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कार्टिलेज के निर्माण की प्रक्रिया में ग्लुकोसामिन एक महत्वपूर्ण तत्व है | यह एक सामान्य सी अमीनो शर्करा ( Amino Sugar ) होती है जो प्रोटोग्लाइकन ( Protoeoglycans ) बनाती है | ये प्रोटोग्लाइकन हमारे कार्टिलेज में लचीलापन लाते है | दर्द निबारक दवाएं और एस्प्रिन सिर्फ दर्द निबारक का कार्य करती है पर इसके विपरीत ग्लुकोसामिन कार्टिलेज को बनाने का काम करती है |
दुनिया भर में रिसर्च के बाद पता चला की ग्लुकोसामिन लेने से न सिर्फ दर्द और सुजन से आराम होता है बल्कि कार्टिलेज को होने वाली नुकसान भी रुक जाती है | इससे भी उत्साहवर्धक बात यह सामने आई की जोड़ों में नई कार्टिलेज बनानी शुरू हो जाती है |
इस प्रकार इस विषय पर होने वाले सारे शोध अध्ययन में पाया गया की आर्थराइटिस के वे सभी रोगी, जो 1500 से 2000 मिली ग्राम ग्लुकोसमिन सल्फेट लेते है , तो इन्हें जबरदस्त फायदा होता है और खास बात यह है की किसी प्रकार का कोई दुष्परिणाम भी नहीं होता है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है की जब इन मरीजों ने ग्लुकोसमिन लेना बंद कर दिया, उसके बाद भी महीनो तक उनके जोड़ो में दर्द नहीं हुआ |
जहाँ तक बाजार की दबाएँ है, जो अक्सर Gastrointestinal bleeding और लीवर को नुकसान पहुंचाती है और बिमारी को बढ़ने से बिलकुल नहीं रोक पाती है | यहाँ तक की कई मामलो में तो और भी बढ़ा देती है, फिर भी पूरी दुनिया में क्यूँ इतनी मात्रा में खाई जाती है ? पर वर्तमान में ख़ुशी की बात है की काफी डाक्टर अपने रोगियों को ग्लुकोसामिन सल्फेट दे रहे है |
अब आपको जानकार और भी ख़ुशी होगी की हमारे पास ऐसा उत्पाद है जिसके अन्दर ग्लुकोसमिन सल्फेट के अलावा कोंड्रोयटिन सल्फेट , एम्.एस.एम् ( मेथेल-सल्फोनिल-मीथेन ), विटामिन-सी इत्यादि सब के सब एक ही बोतल में बंद है !
इस उत्पाद का नाम है फॉर एवर फ्रीडम ! जी हाँ इसका साफ-साफ मतलब होता है जोड़ो के दर्द से सदा के लिए आजादी !
फॉर एवर फ्रीडम :-
दर्द से राहत देने, सुजन में कमी व सिनोवायल द्रव में सुधर करने, कार्टिलेज की हिफाजत करने और उसे नया जीवन प्रदान करने के अलावा जोड़ो के लचीलेपन और गतिशीलता को बढाता है ! 70 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को हर दिन 100 एम्.एल से 120 एम्.एल तक रोजाना सुबह के नाश्ते और रात के भोजन के पश्चात् लेना चाहिए !
भोजन के तुरंत बाद लेने से पेट में हो सकने वाली हलकी जलन की सम्भावना खत्म हो जाती है ! एक से दो महीने में दर्द से राहत नजर आने लगेगा, मगर यह इस पर निर्भर है की क्षति कितनी और किस तरह की है ! इसके अलावा फॉर एवर फ्रीडम में एलो वेरा जेल, संतरे का रस कंसन्ट्रेट, विटामिन-सी और विटामिन-ई का उच्च प्रतिशत होता है !
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विगत तिन दिन पहले यानि 12 अक्टूबर वर्ल्ड आर्थराइटिस दिवस के रूप में मनाया जाता है | आर्थराइटिस के नाम से मन में जोड़ों के दर्द के बारे में खौफनाक ख्याल उभरने लगते है | एक पुरानी कहावत के अनुसार आप दो चीजों पर पूरा भरोसा कर सकते है, ये आना लगभग तय है मतलब अवश्य आएँगी | एक जन्म और मृत्यु | पर वर्तमान मानसिक पटल पर एक और चीज चित्रित हो रही है जिन्हें अवश्य जोड़ देनी चाहिए जिसका नाम है "आर्थराइटिस" |
वर्तमान में छोटे उम्र यहाँ तक की बच्चों में यह बिमारी बड़े पैमाने पर अपना पैठ बना लिया है | जबकि कुछ दशक पहले यह सिर्फ 50 के बाद ही जोड़ों में दर्द की शिकायत मिला करता था | परन्तु अब तो यह 25 -30 साल में जैसे आम हो गया है |
एक सर्वे के अनुसार हमारे यहाँ भारत में हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी आयु वर्ग में आर्थराइटिस से पीड़ित है | और ऐसे में इस की भयावहता को लेकर चिंता करना की कहीं मैं भी इसका शिकार न बन जाऊं और आशंकित हो भी क्यूँ न? क्यूंकि सर्वे तो साफ़ साफ़ बता रहा है की हर पांच में से एक व्यक्ति पीड़ित हो सकता है |
सुबह उठने पर जोड़ों में दर्द, हलकी सुजन और अकड़न वर्तमान में यह सबसे ज्यादा मरीजों में पाई जाती है | इसका शिकार कोई भी हो सकता है, वो स्त्री हो या पुरुष , शरीर के किसी भी जोड़े में हो सकती है, यहाँ तक की गर्दन और कमर के निचले हिस्से में भी | यह बिमारी बढ़ जाने से काफी असहनीय तकलीफ , दर्द और यहाँ तक की विकलांग भी बना सकता है |
आर्थराइटिस आमतौर पर जोड़ों के कार्टिलेज के क्षय की बिमारी है | पर यह जोड़ की उपरी सतह और हड्डी के अंदर भी असर दाल सकती है | इस बिमारी से कार्टिलेज घिसने लगता है और हड्डी पद दबाव पड़ने लगता है | हड्डी पर अतिरिक्त दबाव के कारण हड्डी का घनत्व बढ़ने लगती है |
अपने कभी सुना होगा की उसने घुटना बदलवाया है क्यूंकि उसकी हड्डी पर हड्डी आ गई है | इसी को वैज्ञनिक भाषा में जोड़ो में कार्टिलेज का एकदम खत्म हो गई है ऐसा माना जाता है | यह बिमारी आमतौर पर वजन उठाने वाले जोड़ों,घुटने और कुल्हे के जोड़ों में ज्यादा होती है और वजन बढ़ने , ज्यादा काम करने, चोट लगने के कारण बढती जाती है |
आर्थराइटिस का पारंपरिक उपचार :-
रोगीओं को आमतौर पर डाक्टर एस्प्रिन और बिना स्टीरियोइड की एंटी इन्फ्लेमेट्री दवाएं दे दी जाती है | ये दवाएं जोड़ों के दर्द और सुजन से तो कुछ देर के लिए राहत दिला देती है परन्तु इनके गंभीर दुष्परिणाम होते है |
पेट का अल्सर, और पाचन तंत्र में रक्त-स्त्राव इसी के दुष्प्रभाव का परिणाम है | सबसे बड़ी सम्स्य यह है की ये दवाएं सिर्फ कुछ समय के लिए दर्द कम करती है और बिमारी के मूल कारण को बिलकुल असर नहीं करती |
एलोवेरा और उसके कुछ विश्वसनीय उत्पाद है, जो जोड़ों के दर्द से बिलकुल छुटकारा दिला सकता है , जो की निचे दी जा रही है :-
1 . एलोवेरा जेल
2 . पोमेस्टीन पॉवर
3 . फोरेवर फ्रीडम
4 . गार्लिक थाइम
5 . हीट लोसन और एम्.एस.एम्जेल :- सुजन वाले स्थान पर दोनों को मिलाकर मालिश करना चाहिए |
अतः आर्थराइटिस दिवस के अवसर पर आइयें हम सब मिलकर इस खौफनाक रोगों से डटकर मुकाबला करें |
आहार विहार और नियमित घुटनों का व्यायाम करने से इस रोग से उत्पन्न दर्द को कम किया जा सकता है | परन्तु उपरोक्त उत्पाद के नियमित चार से छः महीने तक सेवन से इससे पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है |
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जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी !
आज नवरात्र का पहला दिन था | कार्यालय में भी माहौल भक्तिमय व पवित्र लग रहा था | एक दुसरे से नमस्कार और गुड मोर्निंग के वजाय " जय माता दी" कहकर दिन का शुरुआत किया | एक बात यह की ज्यादातर लोग आज उपवास में थे |
कुछ पहला और आखिरी तो कुछ नौ दिन के लिए उपवास का संकल्प लिया हुआ था | मैं आपसे जो ख़ास बात करने जा रहा हु यह है उपवास के विधि विधान यानि तौर तरीका | उपवास के दौरान लोग का किस तरह का आहार विहार होना चाहिए और क्या आज के भक्त आहार में ले रहे है | आज यही चर्चा का विषय है |
दरअसल समय के साथ-साथ व्रत रखने का विधि-विधान, तौर तरीका भी बदल गया है | व्रत के दौरान जहाँ तक कुछ दशक पहले हम जब अपने गाँव में रहते थे, याद आता है बचपन में जब कोई व्रत रखते थे | बड़ी ही मुश्किल की घडी हुआ करता था | हमें पानी तक पिने नहीं दिया जाता था | अगर प्यास लगी तो पानी के साथ चीनी और निम्बू का मिश्रण जरुरी है | मतलब सदा पानी नहीं पी सकते वर्ना व्रत टूट जाएगी |
किन्तु वर्तमान में हालत पे गौर करें तो भक्त गन बड़े ही चाव से वो दिन भर सब कुछ खाते पीते नजर आते है | शीतल पेय हो चाय पे चाय और फल बगैरह दिन भर खाते रहते है |
विगत कुछ वर्षों में बड़े बड़े रेस्तरां में भी व्रत के नाम की थाली परोसने लगी है | अगर कभी थाली कास्वाद ले तो पता चलेगा की उस थाली का खाना दो लोगो के लिए पर्याप्त है | अगर एक व्यक्ति ने उस थाली का खाना खा लिया तो उन्हें रात के भी खाना खाने की जरुरत नहीं हो सकता है |
चुकी उस थाली में रोटी , दाल, पनीर की सब्जी , मिठाई, इत्यादि भरपूर मात्रा में होता है, जो की वर्तमान के हमारे माता के भक्त लंच समय में अपना उदर का भूख मिटाते है |
हमारे एक मित्र है जो पुरे नौ दिन का उपवास रखते है | किन्तु आज देखा तो बड़ा ही आश्चर्य लगा | उनका लंच बॉक्स पहले के अपेक्षा एक बॉक्स ज्यादा था | मैंने पूछा भाई साहब ये क्या आज व्रत में नहीं हो क्या ? बोला हाँ भाई व्रत का ही तो खाना है |
मैंने कहा क्या ? यह व्रत का खाना है- यार ये तो आपने पहले से एक लंच बॉक्स ज्यादा लाया हुआ है | बोला यार व्रत में तस्मय ;यानि खीर भी जरुरी है | कुटू के आंते की रोटी, आलू की सब्जी सेंधा नमक के साथ, दही, मीठा आलू , खीर आदि ये सब व्रत का खाना है | मैंने कहा भाई कमाल है अगर सामान्य दिन के अपेक्षा ज्यादा और स्वच्छ खाना मिले तो ऐसे व्रत रोज करना चाहिए |
दरअसल उपवास के दौरान अक्सर हमारे पाचन तंत्र सक्रीय नहीं रहता है | अतः इस अवधि में हमें तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए | पानी खूब पीना चाहिए , जिससे आपके आंत की सफाई हो जाएगी और आप चुस्त और दुरुस्त हो जायेंगे | वो कहाबत है न की अगर आंत और दांत स्वथ्य है तो शरीर स्वतः स्वस्थ्य होंगे |
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सौन्दर्य या सुन्दरता वह बला है जिसका उपासक हर जीव है ,हर प्राणी है, सौन्दर्य प्रकृति से जुड़ा हुआ प्राकृतिक भी हो सकता है, और भौतिकता से जुड़ा हुआ भौतिक भी हो सकता है | यह सृष्टि प्राकृतिक सौन्दर्य की अदभुत मिशाल है और इस सृष्टी में रचित हर वस्तु सुन्दरता से परिपूर्ण है |
व्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की और फिर इस सृष्टि के सृजन के लिए स्त्री-पुरुष दो प्राणियों ( नर-मादा) की रचना की, जिनका शारीरिक गठन,बोली अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है | जिस प्रकार ऋतुओं की सुन्दरता, हरियाली, वृक्षों में खिले हुए फूलों और फूलों से उठती मंद-मंद खुशबुओं, बादलों की काली घटाओं, हल्के-हल्के चलती पवन आदि से आभास होती है और हमें आकर्षित करती है, ठीक इसी प्रकार ही ब्रह्मा की खुबसूरत रचना स्त्री की सुन्दरता भी उसके मधुर, मीठी वाणी, नम्रता, स्नेह,कोमलता, व्यवहार कुशलता, लज्जा-शर्म-हया,सम्मान देने वाली आँखों व स्वाभाव से आभास होती है |
शारीरिक सौन्दर्य (आकर्षण) तो स्त्री में होती ही है किन्तु जब यह सौन्दर्य व्यवहार से भी छलकता है तो वह स्त्री एक सम्पूर्ण सौन्दर्य की प्रतिक मानी जाती है | आँखों को जो भाता है वह सुन्दर है परन्तु मन और आत्मा को भाता है व तृप्त करता है वह अति सौन्दर्य का प्रतिक है व सौन्दर्य की गरिमा अच्छे व्यवहार से ही स्थायी रहती है |
स्त्री का समस्त और पूर्णरूप से सुन्दर होना जिसमे आंतरिक व बाहरी, शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ व सुन्दर होना ही स्त्री सम्पूर्णता को दर्शाता है | मन मस्तिस्क से जब व्यक्ति पुर्णतः स्वस्थ होते है, तनाव रहित रहते है व अपने समस्त क्रियाकलापों को तन्मयता से पूर्ण करने में सक्षम होते है यही स्त्री की सर्वांग व सम्पूर्णता है |
आज के जीवन शैली में तनाव जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है | हर एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से तनावपूर्ण जिन्दगी जीने को मजबूर है | प्रमुख कारण आधुनिक जीवन का आहार - विहार है | परन्तु दिनचर्या व स्वस्थ आहार-विहार को अपने जीवन में अपना कर एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन जिया जा सकता है | एक और जरुरी बाते है , अगर हलकी-फुलकी व्यायाम नित्य करती रहे तो जीवन और भी स्वस्थ और सुन्दर रखने में मदद मिलेगी |
एक और उपाय है स्त्री अपने आप को स्वस्थ व सौन्दर्य को बनाए रखने के लिए घृतकुमारी के जूस का नित्य सेवन करें | जिससे शरीर में दुर्बलता, अपचन, चक्कर आना, पेट के विकार, हाथ-पाँव में जलन या झुनझुनाहट होना मानसिक रूप से अस्वस्थ आदि कई लक्ष्ण का पूर्ण निदान हो सकता है |
अतः घृतकुमारी ( एलोवेरा ) का नियमित रूप से अपने जीवन में अपनाए और बिमारी को दूर भगाए |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
मानव शरीर इश्वर की आश्चर्यजनक -रहस्यमय रचना है | लेकिन यह मानव शरीर विभिन्न प्रकार के दुखों से भरा पड़ा है | उनमे से एक है गर्दन या कंधे में दर्द या कड़ापन | गर्दन का दर्द कोई जानलेवा बिमारी नहीं है परन्तु अत्यंत तकलीफ देह जरुर है | गर्दन की तीव्र वेदना और जकड़न के कारण रोगी अपना सर हिलाने-डुलाने में भी असमर्थ हो जाता है |
आमतौर पर यह रोग 30 वर्ष की उम्र से शुरू होता है और 40 वर्ष की उम्र के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर देता है | 65 वर्ष के आसपास या उसके उपर तो दो तिहाई लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है |
मेरुदंड यानि ( स्पाइनल कॉर्ड ) रीढ़ की हड्डी में उत्पन्न विकार ही गर्दन, कन्धा, पीठ तथा कमर दर्द का प्रमुख कारण है | मेरुदंड की सबसे उपरी हिस्से यानि की गर्दन के क्षेत्र की मनकों में जब कोई विकृति आ जाती है तो गले या कन्धों में दर्द होता है इसी को सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस यानि की गर्दन की ओस्टीरियोआर्थीराइटिस ( गर्दन की गठिया) कहा जाता है |
इसके कई कारण होते है :-
> यदि गलत ढंग से बैठते है , लम्बे समय तक सर झुका कर काम करते है, सोते समय सिर के निचे मोटा तकिया लगाते है तो इस रोग की शिकायत हो सकती है |
> यदि आप ऐसा कम करते जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाब पड़ता है तो रीढ़ की लचक समाप्त होने से यह विकृति उत्पन्न हो सकती है |
> जन्मजात स्पाइनल केनाल यानि मेरुनाली का संकरा होना भी इस रोग की वजह बन सकता है |
> इनके अतिरिक्त मोटापा, वृद्धावस्था, संक्रमण, रयूमेटाइड रोग, तनाव आदि कारणों से भी सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस रोग की उत्पति हो सकती है |
बचाव के उपाय :-
जो लोग इस रोग से पीड़ित है और जो पीड़ित नहीं भी है उन्हें भी, निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए :-
> सोते समय बहुत पतला तकिया लगाए ! जो गर्दन के दर्द से पीड़ित हो वो तकिया ना लगाए ! सदा सख्त तख़्त पर सोयें , गद्दा मोटा नहीं होना चाहिए |
> लेटकर किताब न पढ़े, काम करते समय या लिखते समय गर्दन को अधिक न झुकाय, न अधिक समय तक गर्दन झुकाकर बैठे !
> ऐसा वाहन से सफ़र न करें जिससे शरीर को तेजी के साथ झटका लगे, चिंता और तनाव से बचकर रहे !
आप गर्दन के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज़ भी करा सकते है :-
1 . Aloe Vera Gel :- पाचन मार्ग को साफ़ करता है , उद्दीपन प्रतिरोधी
2. Forever Freedom :- दर्द से राहत , कार्टिलेज का पुनर्निर्माण,साइनोवायल द्रव का पुनरुत्पादन, उद्दीपन विरोधी |
3. Pomesteen Power :- गठिया प्रतिरोधी, उद्दीपन प्रतिरोधी |
4. Garlic Thyme :- मांसपेशियों को आराम करता है |
उपरोक्त लिखित उत्पाद का सेवन 4 से 6 महीने तक करें और गर्दन के अति कष्टदायक रोग से मुक्ति पाए |
एलोपैथिक चिकित्सा में इस रोग का उपचार प्रारंभिक अवस्था में गर्दन व कंधे की सिंकाई और मालिश के साथ फिजियोथेरैपी यानि गर्दन के व्यायाम के जरिये रोग पर काबू पाया जाता है , इसके अतिरिक्त रोगी के गले में एक कालर लगाईं जाती है जिसे सर्वाइकल कालर कहा जाता है | इस उपाय से गर्दन की हलचल यानि गति कम हो जाती है | गर्दन का हिलना- डुलना कम होने से इस रोग के कारण गर्दन में होने वाले और हाथ तक फैलने वाले दर्द से छुटकारा मिल जाता है |
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रूप और सौन्दर्य दोनों ही मानव के अभीष्ट है | जिनकी ओर मनुष्य स्वाभावतः आकर्षित होता है, मुग्ध होता है | किन्तु उन सब साधनों व बातों से अनभिग्य रहता है की जो उसके रूप सौन्दर्य को स्थायित्व देते है, उसकी काया सदा जवान बनाए रखते है, सही मायने में वे साधन जो उनका कायाकल्प करते है | बढती हुई उम्र को वृद्धावस्था को पुनः यौवन की ओर ले जाते है |
यदि वर्तमान युग की बात करे, तो युवक-युवतियां दोनों ही अपने सौन्दर्य व अपनी काया को सुन्दर कोमल-सुदृढ़ बनाए रखने में प्रयासरत तो है लेकिन मात्र कोस्मेटिक के सहारे जिसका कुछ ही समय बाद दुष्प्रभाव उजागर होने लगता है |कोस्मेटिक से सौन्दर्य प्राप्त करना कोई स्थायी विकल्प नहीं है हाँ, यह हमारे रूप लावण्य, त्वचा, बालों, आँखों इत्यादि को कुरूप बनाने का तो जरुर स्थायी विकल्प हो सकता है |
कायकल्प का मतलब सिर्फ बाहरी तौर पर नवीन बनाना नहीं है बल्कि इसका आशय है तन और मन को बहार से और अन्दर से पुर्णतः स्वस्थ्य-सुदृढ़ और सुन्दर बनाना | अपने अन्दर बढती उम्र के अनुसार उत्पन्न होती कमजोरी को, थकावट, आलस्य, रोग-विकार, आदि कई रोगों को नष्ट कर अपनी बढती उम्र को वहीँ विराम देकर पुनः नवीनता की ओर अग्रसर करना |
अतः अपने सौन्दर्य व कायाकल्प की देखरेख में आपके संतुलित सात्विक आहार-विहार से लेकर शारीरिक व्यायाम आवश्यक है और इन सबके लिए अत्यधिक आवाश्यक है आपका प्रकृति से जुड़ना |
क्यूंकि हमारा शरीर प्रकृति से मिलकर बना है, अग्नि, वायु,मिटटी,आकाश,पानी अतः हमारी देखभाल भी इन्ही पंचतत्वों के उत्पन्न पदार्थों से ही संभव है, न ही कोस्मेटिक व कैमिकल्स डालकर बनाए गए क्रीम,लोशन और जेल इत्यादि से |
शारीरिक सौन्दर्य व आंतरिक सौन्दर्य यानि ( उदर,यकृत,किडनी,आँतों, ह्रदय की स्वस्थ्यता ) को लम्बे समय तक कायम व सुचारू रखने के लिए आवश्यक है- संतुलित एवं पौष्टिक आहार | कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनो से प्राप्त सौन्दर्य कृत्रिम ही रहता है स्थायी नहीं |
कायकल्प में आहार की भूमिका :- भोजन में कार्बोहाईड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, शर्करा और खनिज लवण आदि पोषक तत्वों का समावेश शारीरिक सौन्दर्य के लिए आवश्यक है | शारीरिक -मानसिक स्वास्थ्य सौन्दर्य को द्रिघकाल तक स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए संतुलित आहार का सेवन बहुत आवश्यक है | संतुलित एवं सात्विक और संयमित भोजन का नियमित सेवन और सकारात्म्ल सोच, शारीरिक स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य के लिए प्रार्थमिक आवश्यकता है |
शरीर में आवश्यक जल, रक्त तथा अन्य पोषक तत्वों की मात्र बनाए रखने के लिए भोजन में फल-सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए |
प्राकृतिक चिकित्सा में दूषित तत्वों को शरीर से निष्कासित किया जाता है,प्राकृतिक चिकित्सा में किसी औषधि का सेवन नहीं कराया जाता, फल, जूस व सब्जियां के माध्यम से पाचन क्रिया को तीव्र की जा सकती है, जिससे मॉल विसर्जन नियमित रूप से होता रहता है | इस प्रकार शरीर विभिन्न रोगों से मुक्त रहता है |
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कार्यालय की व्यस्तता के वजह से आज मैं काफी दिनों के बाद आपके सामने आ रहा हूँ | मस्तिष्क में एक साथ कई विचारों का टकराव चल रहा है | एक तरफ ज्वलंत विषय जैसे राष्ट्रमंडल खेल तो दूसरी और जम्मू कश्मीर की समस्या | और भी कई ऐसे विचार मन में उभर के आ रहा है परन्तु सबसे खुसी की बात यह है की दुनिया भर की थुक्क्म पैजार और घोटाले पर घोटाले की खुलासे के बाद अंततः राष्ट्र की गौरव राष्ट्र मंडल खेल की शुरुआत होने जा रही है | राहत की बात यह भी है की हामारे यहाँ करीब करीब दुनिया के सारे खिलाड़ी आ रहे है, जो की पहले मना कर दिए थे |
इन सब के लिए जिम्मेदार रहा अपने ही देश की मिडिया, जिन्होंने सम्पूर्ण संसार में अपने देश का नाम पर जी भर के कीचड़ उछाला | राष्ट्र मंडल खेल से सम्बंधित अगर कोई खबर कहीं छपी है तो भ्रष्टाचार, बैमानी,दुर्घटना, बदहाल सड़के,पुल इत्यादि | पर क्या इतने पड़े पैमाने पर जो आयोजन है इसमें कोई अच्छाईयां भी होगी या नहीं ?
लेकिन कहीं भी मिडिया ने उसे सुर्खियाँ में नहीं लाया | तो क्या मिडिया की दायित्व सिर्फ गलत और भ्रष्ट बातें ही आम लोगों में परोसने का है | देश की अच्छी तस्वीर भी है और हम अपने देश पर गर्व करते है, राष्ट्रमंडल खेल का सिर्फ हिस्सा ही नहीं बल्कि दुनिया को दिखा देंगे की इस तरह के आयोजन को सही और स्वस्थ्य तरीके से सम्पन्न कराने के लिए देश बिल्कुल समर्थ है |
खैर ये तो रहा स्वस्थ्य मानसिकता वाली बाते जो हमेशा लोगों में होनी ही चाहिए | साकारत्मक सोच से आप को सही मार्गदर्शन मिलती है | नाकारात्मक सोच लोगों में पेशानियाँ,बीमारियाँ जैसे मानसिक रोगी, रक्तचाप,ह्रदय रोग पैदा करती है | क्यूँ नहीं हम हमेशा एक अच्छी सोच के साथ दिनों की शुरुआत करें ,ताकि दिन का अंत भी खुशहाल एवं सुखद हो |
आज के प्रतिस्पर्धात्मक व तीव्र गति के आधुनिक जीवन शैली में "स्वस्थ्य ही धन है", जैसे शब्द का कोई मायने नहीं रह गया है | जीवन का आपाधापी भागमभाग, विकृत आहार विहार और पाश्चात शैली इत्यादि में लोगों को समय तालिका ही बिगार दिया है | आजकल तो लोग जागने के समय पर सोते है और सोने के समय पर जागते है | इससे क्या स्वस्थ्य मानसिक का विकाश संभव है ? कदापि नहीं , अगर ताउम्र हम स्वस्थ्य जीवन जीना चाहते है, तो हमें अपने जीवन शैली में सुधर लाना चाहिए |
इन्हीं सबके कारण आज कल आमतौर पर लोगों में गंभीर माने जाने वाले रोग का संक्रमण हो रहे है | छोटे उम्र में चश्मा, बालों में सफेदी,मधुमेह, घुटनों में दर्द आदि देखा गया है | बच्चों में भी आजकल तनाव का माहौल है |इसके कई कारण है , इसके लेकिन आज के मुख्य कारण है अकेला परिवार जहाँ दिन भर बच्चे अकेले घर में रहते है उनके माता-पिता काम पर चले जाते है | फिर अपने आप को अकेला महशुस कर बच्चे धीरे-धीरे तनाव में रहने लगते है | और बाद में कई समस्या बच्चों को बिमारी के रूप में घेर लेती है |
दिनचर्या में आप आजके सबसे प्रसिद्द आयुर्वेदिक औषधि एलो वेरा का जूस का नियमित सेवन करें और अपने बच्चों को बिट्स न पिचेज जरुर दें और देखें फर्क सिर्फ कुछ ही महीनो में बच्चे की सारी समस्या स्वतः समूल नष्ट हो जायेंगे | बच्चों के लिए खासकर अमृत है बिट्स न पिचेज |
इस उत्पाद के सेवन से बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकाश होंगे और मंद बुद्धि बच्चों लिए तो ये मस्तिस्क का खुराक जैसा काम करेगा यानि सर्वश्रेष्ट उत्पाद है | इस उत्पाद का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता है | अतः अपने घर में एलो वेरा जूस और बिट्स न पिचेज लाये और घर को स्वस्थ्य बनाए |
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पेट में दर्द होना एक आम समस्या है ,जिससे लगभग सभी व्यक्तियों को जीवन में अनेक बार सामना करना पड़ता है | इनके कारण अनेक तथा अलग हो सकते है , किन्तु फिर भी पेट के किसी भी भाग में व स्थान में दर्द को सामान्यतः हम "पेट दर्द" के नाम से ही संबोधित करते है | तत्पश्चात यदि चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता पड़ जाय तो तो वो निदान कर के बताते है कि पेट दर्द किस कारण से हो रहा है और उसे फिर रोग विशेष का नाम देकर उपचार प्रारंभ करते है |
जैसे की गेस्ट्राईटिस, हायपर एसिडिटी, अपेंडीसाईटिस, कोलाइटिस, या अल्सरेटिव कोलाइटिस इत्यादि | कई बार ऐसा देखा गया है कि अचानक पेट में असहनीय दर्द के मरे व्यक्ति तड़पने व छटपटाने लगता है | अनेक बार वायु का गोला सा उठता है और कई बार ऐठन , मरोड़, सुई या शूल चुभने जैसा, आरी से काटने जैसी स्थिति हो जाती है | कभी कभी पेट में अफारा आकर पेट को ढोल की तरह फुल जाता है और ऐसा लगता है मनो पेट फटने वाला है , ऐसी हालात में पेट में तेज दर्द होने लगता है|
अब हम इनके प्रमुख कारणों पर गौर करेंगे : - पेट दर्द के अनेकों कारण हो सकते है | पेट अवस्थित अंगों में अन्न नलिका, आमाशय, ग्रहणी, छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, मलाशय, लीवर, तिल्ली, दोनों गुर्दे, मूत्र नलिका ( Ureter ) पेनक्रियाज, पिताश्य ( Gall bladder ),तथा स्त्रियों में गर्भाशय एवं अंडाशय ( दोनों ओवरीज ) प्रमुख है
इन अंगों में से किसी भी अंग में विकार होने से पेट में दर्द हो सकता है | किन्तु दर्द का स्थान और दर्द की प्रकृति भीं-भिन्न प्रकार से महसूस की जाती है | कब्ज़-गैस बनाना, अपच या अजीर्ण तथा कीड़े पेट दर्द के प्रमुख कारण माने जाते है |
आमतौर पर पेट दर्द का कारण हमारे खाने-पिने की विकृत होने से सम्बंधित ही होता है | व्यस्त जीवन शैली, जंक फ़ूड आजकल का सबसे प्रमुख आहार हो गया है | गरिष्ठ भोजन जो की वायु बनता है, उसका सेवन अधिक मात्रा में करना, ठंढा-बासी खाना, तेल-,मिर्च मसालेदार पदार्थों का अत्यधिक सेवन, पेट में गैस बनाना , कब्ज़ रहना,आमाशय -गृहणी अथवा आँतों में अल्सर, हायपर एसिडिटी, आँतों में सुजन भोजन के तत्काल बाद सो जाना, भोजन के तत्काल ही भागना, कूदना, फंदना , कोई विषाक्त पदार्थ खा लेना इत्यादि अनेक कारण से पेट में तेज दर्द हो सकता है |
घरेलु उपचार :- अब जैसे ही पेट दर्द की शिकायत कोई व्यक्ति अपने घर में करता है तो उसे तत्काल घरेलु उपचार कर उसे ठीक करने की कोशिस की जाती है | उस वक्त सिवाय इसके की क्या खाया-पिया था, पेट दर्द की वास्तविक जानकारी के बगैर अपनी समझ से घर पर मौजूद सुबिधाओं जैसे सोंठ, मेथीदान, काला नमक, अजवायन इत्यादि का प्रयोग आमतौर पर किया जाता है | प्रार्थमिक उपचार के तौर पर यह एक विशिष्ट औषधि माना जाता है | फिर भी अगर दर्द में लाभ नहीं मिल रहा हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाना ही बुद्धिमानी है |
पर अगर आपके घर में एलो वेरा जेल है तो आपके घर का समझिये वो खुद ही वैद्य है | एलो वेरा भारत में सदियों से लोकप्रिय है और इसे कई नाम से जाना जाता है जैसे कोरफड, कुमारी, घी कंवार, ग्वार पाठा, घृत कुमार, केतकी इत्यादि | एलो वेरा का सबसे अधिक चिक्तिसीय व औषधीय गुणों के भण्डार वाले पौधा बार्बाड़ेंसिस मिलर का ही प्रयोग करते है |
एलो वेरा में मौजूद लिग्निन और सेपोनिन प्राकृतिक तरीके से आपके पेट के अन्दर की आंत को अच्छी तरह से सफाई कर देते है | जब आपके पाचन प्रणाली का टाक्सिन निकल जाता है तो आप अन्दर और बाहर दोनों रूप से स्वस्थ्य हो जाते है | अतः एलो वेरा आपके घर का वैद्य है जब तक आपके पास है आपको प्रार्थमिक चिकित्सा की शायद आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |
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एलो वेरा नेक्टर में है हमारे एलो वेरा जेल में पाए जाने वाले सभी पोषक घटक साथ ही, इसमें है क्रेनबेरी और एपल के अतिरिक्त पोषक गुण क्रेनबैरिज इतनी गुणकारी क्यों है? अपने मीठे स्वाद और मूत्रमार्ग को साफ करने के अपने अनोखे गुण के अलावा, क्रेनबैरिज में है विटामिन सी, यह पिक्नोजिनाल का भी एक उत्तम प्राकृतिक स्त्रोत है, जो ऐसा शक्तिशाली एंटीओक्सीडेंट है , जिसे कोलाजेन बनाए में सहायता मिलती है |
कोलाजेन इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?
कोलाजेन का निर्माण शरीर के टिश्यु सैल्स, मसूड़ों,रक्तवाहिनियों,हड्डियों और दांतों के विकाश तथा मरम्मत के लिए अत्यावश्यक है | इतना ही नहीं, कोलाजेन एक ऐसा ग्लू है, जो वास्तव में पुरे शरीर को एक साथ जोड़े रखता है |
एलो बेरी नेक्टर:- इसमें क्रेनबेरी के जूस के अलावा एपल जूस भी मौजूद है | एपल जूस में मौजूद विटामिन ए और सी के अलावा पोटाशियम और पक्तिं भी होता है | यही नहीं, एपल्स में किसी भी अन्य फल या सब्जी के मुकाबले फास्फेट की मात्रा कहीं ज्यादा होती है |
आइये अब जानते है विटामिन सी इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?
सबसे पहले तो यह समझ ले की हमारा शरीर विटामिन सी को शरीर में संग्रह नहीं रख सकता, इसलिए आपको हर दिन 200 से 400 मी.ग्रा. विटामिन सी लेना बहुत जरुरी है | कुछ स्त्रोत के अनुसार हर दिन 500 मी.ग्रा.विटामिन सी लेने की सिफारिस की जाती है |
हमारी रोगप्रतिकारक प्रणाली को मजबूत बनाने, फ्री रेडिकल्स से लड़ने और ह्रदय तथा आँखों के स्वास्थ्य के लिए हर दिन विटामिन सी लेना जरुरी है | यह कोई साधारण बात नहीं !
फास्फेट और विटामिन ए क्यों इतने आवश्यक है ?
लायनस पोलिन इंस्टीच्युट के अनुसार फॉस्फेट एक ऐसा अत्यावश्यक मिनरल है, जो शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली की हर कोशिका के लिए जरुरी है साथ ही, हमारी रोगप्रतिकारक प्रणाली के सामान्य रूप से काम करने के लिए भी विटामिन ए जरुरी है |
उप्रोत्क्त जानकारी के उपरांत ये बात तो आपको समझ में आ गई होगी की - क्यों एलो बेरी नेक्टर हर दिन लेना चाहिए ? हमें एलो बेरी नेक्टर पिने के असली कारणों को नहीं भूलना चाहिए ------ जो स्टेबीलाइज्ड एलो जेल है !
अब सबाल यह है की एलो वेरा जेल इतना क्यों महत्वपूर्ण है?
अपने प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाले विटामिन्स और मिनरल्स एक साथ, एलो वेरा हमारी रोगप्रतिकारक प्रणाली और पाचन प्रणाली को प्राकृतिक रूप से सहायता करता है | एलो वेरा जेल में शामिल है :- विटामिन ए , बी 1 ,बी 2 ,बी 6 ,बी 12 , सी, ई, फालिक एसिड और निआसिन- ऐसे सभी विटामिन, जो हमारा शरीर तैयार नहीं कर सकता, तो एलो बेरी नेक्टर पीजिये और शरीर की रोगप्रतिकारक प्रणाली को शक्तिशाली बनाइये.... प्राकृतिक रूप से !
एलो बेरी नेक्टर कैल्सियम,सोडियम,आयरन, पोटाशियम,क्रोमियम,मैग्नेशियम,मेंग्निज,कॉपर,और जिंक भी उपलब्ध कराता है, है न मिनरल्स का खजाना ! शरीर को अपने सुडौल-स्वस्थ आकार में बनाए रखने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है? आपकी त्वचा इन पोषक तत्वों का भौपुर इस्तेमाल करेगी, जिनमे है भरपूर एंटीओक्सीडेंट क्षमता आपके शरीर को हर दिन पोषक तत्वों की जरुरत पड़ती है
आपके शरीर के टिश्यु,सैल्स,मसूड़े, रक्तवाहिनियाँ,हड्डियाँ और दांत भी आपका शुक्रिया अदा करेंगे | तो चलिए , इस पोषक तत्वों के एक ही खजाने से चुनिए अनेक फायदे के लिए !
उपयोग करने का निर्देश :-
हर दिन, दिन में एक या दो बार सुबह सबसे पहले और रात को सोने से पहले पीना न भूलें..... बशर्ते आप रात का खाना जल्द खा लेते हों, ग्लास में डालने से पहले इसे अच्छी तरह हिलाएं | एक बार सील तोड़ने के बाद हमेशा इसे रेफ्रिजरेटर में रखें | एक बिना खुला डिब्बा आप चार साल तक रख सकते है और खोलने के बाद रेफ्रिजरेटर में रखा डिब्बा आपको 3 महीने के भीतर इस्तेमाल करना होगा |
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