बजट महापर्व संसद के पटल पर रखा गया |
हमेशा की तरह इस बार भी नए लुभावने लोक कल्याणकारी योजनाएं लोगों के लिए पेश किये गये |
पर आम आदमी अब बजट के सुनहरे सपनो पर भरोसा नहीं करते |
चुकी सरकार बजट के नाम पर बड़ी बड़ी घोषणाएं करती है |
लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी जनता यदि पानी ,बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुबिधाएं से बंचित रहे तो सरकारी बजट पर घोषणाएं बैमानी और उसपर सवाल उठना स्वाभाविक है |
देश की 65 प्रतिशत आबादी की आजीविका कृषि पर आश्रित है |
हमारी कृषि की सबसे बड़ी समस्या है ,किसानो को फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाना |
खाद्यान्न पदार्थ की मूल्यों में वृद्धि भी किसानो के बजाय ये सटोरियों या ब्यापारी उठाते है |
गरीब किसानो के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया है ?
जहां पर किसानो के कंधे पर हमारी देश की १२० करोड़ लोगों को आहार पूर्ति करने की जिम्मेद्दारी है |
उनकी हालात सुधारें बिना सम्पूर्ण विकाश का सपना पूरा नहीं हो सकता है |
हमारे यहाँ आनाज लगभग 22 करोड़ टन उत्पादन होता है जबकि पडोसी देश चाइना में 55 करोड़ टन है |
कृषि की पैदावार बढाए बगैर हम विकाश की गति को तेजी नहीं ला सकते |
आर्थिक सुधार के जिन योजना के तहत सरकार समाज के मानवीय चेहरा दिखाना चाहती है उसके लिए वर्तमान नीतिओं में भारी फेर-बदल की गुंजाइश है |
अपितु वास्तविकता यह है की योजना आयोग ने कभी भी राष्ट्रिय आर्थिक विकास और विभिन्न वर्गों के आर्थिक विकाश को ध्यान में रखकर निति बनाई ही नहीं है |
इसीलिए यहाँ करोडपति की संख्या 70 हजार से भी ज्यादा है और अरबपति 311 है , जिनके पास कुल 3 लाख 64 हजार करोड़ की सम्पति है |
राजस्व संग्रह में भ्रष्टाचार को समाप्त किये बिना राजस्व घाटा कम नहीं होगा |
जो बिक्री या आय कर सरकारी राजकोष में जाना चाहिए वह भरष्ट बाबु की जेब में चला जाता है |
आज केवल 10 प्रतिशत वर्ग को ध्यान में रखकर बजट का रूप रेखा तैयार की जाती है |
120 करोड़ के इस देश में 3 लाख सालाना वेतन पाने वाले कितने लोग होंगे ?
जिनको आयकर में छुट मिलेगी |
पर रातों रात डीजल और पेट्रोल में दाम बढ़ाकर इस से ज्याद आम आदमी से वसूलने की तयारी कर ली है |
मजदुर ,आम आदमी ,छोटे किसान जो कमरतोड़ महगाई का सामना कर रहे थे |
उसके लिए सरकार ने कुछ नहीं किया, उलटा लगता है डीजल और पेट्रोल की रातों रात दाम बढ़ाकर,खाद्यान्न पदार्थ के दामों में और भी वृद्धि होगी |
मतलब महगाई पर नकेल कसने की उम्मीद लगाईं जनता का आक्रोस और भी बढ़ा दिया है |
महगाई सुरसा जैसी राक्षसी की तरह अपना मुह फाड़े खड़ी है |
नित्य प्रतिदिन देश के गरीब जनता उनके शिकार हो रहे है |
सरकार पंगु की तरह मूक दर्शक है |
बेहाल लोगों की हाल पर सिर्फ और सिर्फ अपनी मजबूरी का रोना रोने का अलावा कुछ नहीं करते दिखाई दे रही है |
वो कहाबत है न "सर मुड़ाते ओले पड़े" ,बजट ने चरितार्थ कर दिखाया है |
"एक दिन हमारे आसू हमसे पूछ बैठे,हमे रोज़ -रोज़ क्यों बुलाते हो,
हमने कहा ---- -याद तो हम कभी नहीं करते ,पर बेबक्त तुम क्यों चले आते हो |"
ज्ञान दर्पण
ताऊ .इन
हमेशा की तरह इस बार भी नए लुभावने लोक कल्याणकारी योजनाएं लोगों के लिए पेश किये गये |
पर आम आदमी अब बजट के सुनहरे सपनो पर भरोसा नहीं करते |
चुकी सरकार बजट के नाम पर बड़ी बड़ी घोषणाएं करती है |
लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी जनता यदि पानी ,बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुबिधाएं से बंचित रहे तो सरकारी बजट पर घोषणाएं बैमानी और उसपर सवाल उठना स्वाभाविक है |
देश की 65 प्रतिशत आबादी की आजीविका कृषि पर आश्रित है |
हमारी कृषि की सबसे बड़ी समस्या है ,किसानो को फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाना |
खाद्यान्न पदार्थ की मूल्यों में वृद्धि भी किसानो के बजाय ये सटोरियों या ब्यापारी उठाते है |
गरीब किसानो के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया है ?
जहां पर किसानो के कंधे पर हमारी देश की १२० करोड़ लोगों को आहार पूर्ति करने की जिम्मेद्दारी है |
उनकी हालात सुधारें बिना सम्पूर्ण विकाश का सपना पूरा नहीं हो सकता है |
हमारे यहाँ आनाज लगभग 22 करोड़ टन उत्पादन होता है जबकि पडोसी देश चाइना में 55 करोड़ टन है |
कृषि की पैदावार बढाए बगैर हम विकाश की गति को तेजी नहीं ला सकते |
आर्थिक सुधार के जिन योजना के तहत सरकार समाज के मानवीय चेहरा दिखाना चाहती है उसके लिए वर्तमान नीतिओं में भारी फेर-बदल की गुंजाइश है |
अपितु वास्तविकता यह है की योजना आयोग ने कभी भी राष्ट्रिय आर्थिक विकास और विभिन्न वर्गों के आर्थिक विकाश को ध्यान में रखकर निति बनाई ही नहीं है |
इसीलिए यहाँ करोडपति की संख्या 70 हजार से भी ज्यादा है और अरबपति 311 है , जिनके पास कुल 3 लाख 64 हजार करोड़ की सम्पति है |
राजस्व संग्रह में भ्रष्टाचार को समाप्त किये बिना राजस्व घाटा कम नहीं होगा |
जो बिक्री या आय कर सरकारी राजकोष में जाना चाहिए वह भरष्ट बाबु की जेब में चला जाता है |
आज केवल 10 प्रतिशत वर्ग को ध्यान में रखकर बजट का रूप रेखा तैयार की जाती है |
120 करोड़ के इस देश में 3 लाख सालाना वेतन पाने वाले कितने लोग होंगे ?
जिनको आयकर में छुट मिलेगी |
पर रातों रात डीजल और पेट्रोल में दाम बढ़ाकर इस से ज्याद आम आदमी से वसूलने की तयारी कर ली है |
मजदुर ,आम आदमी ,छोटे किसान जो कमरतोड़ महगाई का सामना कर रहे थे |
उसके लिए सरकार ने कुछ नहीं किया, उलटा लगता है डीजल और पेट्रोल की रातों रात दाम बढ़ाकर,खाद्यान्न पदार्थ के दामों में और भी वृद्धि होगी |
मतलब महगाई पर नकेल कसने की उम्मीद लगाईं जनता का आक्रोस और भी बढ़ा दिया है |
महगाई सुरसा जैसी राक्षसी की तरह अपना मुह फाड़े खड़ी है |
नित्य प्रतिदिन देश के गरीब जनता उनके शिकार हो रहे है |
सरकार पंगु की तरह मूक दर्शक है |
बेहाल लोगों की हाल पर सिर्फ और सिर्फ अपनी मजबूरी का रोना रोने का अलावा कुछ नहीं करते दिखाई दे रही है |
वो कहाबत है न "सर मुड़ाते ओले पड़े" ,बजट ने चरितार्थ कर दिखाया है |
"एक दिन हमारे आसू हमसे पूछ बैठे,हमे रोज़ -रोज़ क्यों बुलाते हो,
हमने कहा ---- -याद तो हम कभी नहीं करते ,पर बेबक्त तुम क्यों चले आते हो |"
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