आज हमारे देश में पाश्चात्य चिकित्सा अत्यधिक पनप रही है | इस पद्धति ने हमारे स्वास्थ्य और हमारे देश को काफी नुकसान पहुँचाया है | आज एक कुशल चिक्तिसक की सलाह भी मोटी फ़ीस दिए बिना नहीं मिल पाती |
खोज और अनुसन्धान निरंतर चलता रहता है | जिस तरह से चिकित्सक वर्ग कई क्षेत्र में कीर्तिमान बनाते रहते है ठीक उसी प्रकास से रोग भी आज अपनी ओर से नए-नए आयाम को छू रहे है |
वैसे भी अधिकांशतः रोगी और चिकित्सक का समबन्ध अन्य व्यवसायों की तरह घटिया स्तर की सौदाबाजी का सम्बन्ध होकर रह गया है | ऐसा होना मानवीय मूल्यों की घोर उपेक्षा और चिकितिस्क के चरित्र के सर्वथा प्रतिकूल है |
अनेक गरीब वर्ग केवल पैसे के आभाव में साधारण बीमारी को असाध्य बनाकर शरीर से चिपटाए कष्टप्रद जीवन जीते हुए मृत्यु की घड़ियाँ गिनते रहते है |
कदाचित इसका प्रमुख कारण अनाध्यात्मिकता के अतिरिक्त कुछ नहीं है , जबकि हमारे ऋषिओं-मुनियों के सिद्धांत अनादिकाल से अभी तक वैसे ही चले आ रहे है और वे सभी के लिए लाभदायक ही है | जिसका एक मात्र कारण अध्यात्मिक शक्ति ही है |
वैसे कलयुग में आध्यात्मिक शक्ति का जितना विस्तार देखा जा रहा है , आध्यात्मिक चेतना उतनी ही कम होती जा रही है | व्यवसायिकता के चलते बड़े-बड़े कम्पनियां नई-नई दवाओं के माध्यम से रोग निदान का दावा करती है , लेकिन अंततः रोगों की निवृत सही मायनों में नहीं हो पा रही है |
वर्तमान में डायबिटीज ,ब्लड प्रेसर, हार्ट प्रोब्लेम्स, माइग्रेन,गठिया इत्यादि एक बहूत बड़ी जनसँख्या को अपनी गिरफ्त में ले चूका है | उन्मुक्त जीवन शैली और प्राकृतिक नियमों की अवहेलना के चलते ये समस्याएं तेजी से बढ़ रही है | जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है |
ग्रामीण क्षेत्र में कई व्याधियां तो प्राथमिक स्तर पर ही क्षेत्रीय जड़ी-बूटियों से ठीक हो जाती है पर इनका समुचित प्रचार-प्रसार न होने कारण इनका लाभ नहीं लिया जा रहा है | हमने एलोपेथी चिकित्सा को ही एक मात्र वैज्ञानिक और सफलतम चिकत्सा पद्धति मान लिया है | जबकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी पारंपरिक चिकित्सा यानि की जड़ी-बूटी को ही मूल चिकत्सा मानती है |
वैसे तो मानवजाति को सदैव सवास्थ्य रहने के लिए रोग प्रतिरोधक तंत्र शरीर के अन्दर ही प्रदान किया हुआ है लेकिन कई कारणों से प्राणियों की, खासकर मनुष्यों की यह स्वास्थ्य शक्ति क्षीण होती जा रही है | रही सही कसार मौजूदा जीवन शैली ने पूरी कर दी है |
ऐसे में स्वस्थ्य रहने का दायित्व स्वयं मनुष्य पर ही है की वो अपने जीवन में आध्यातिमिक विचार को अपनाकर किन्तु पाश्चात्य शैली को छोड़कर एक सादगी और स्वच्छ जीवन शैली को अपनाए और रोग मुक्त होकर अपने जीवन को हर्षोल्लास से व्यतीत करें |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
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