अभिवादन के तरीके को ही देखिये|
प्राचीन समय में जब दो व्यक्ति आपस में मिलते थे तो दूर से हाथ जोड़कर अभिवादन करते थे |
वो परमपरा अब लगभग समाप्त होने की कगार पर है |
चुकी अब भारत में भी पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण कर अभिवादन के साथ हाथ मिलाने की प्रचलन बढ़ता जा रहा है | बच्चों को भी बचपन से लेकर युवावस्था तक पहुँचते हुए अनेक प्रकार के आचरण को सिखाये जाते है | जैसे बड़े को सम्मान देना, माता-पिता व बुजुर्गों का आदर करना | पहले हम अपने से बड़े का अभिवादन उनके चरण स्पश कर किया करते थे और वो सर पे हाथ रखकर हमें आशीर्वाद देते थे |
पर आज पाश्चात्य संस्कृति का ऐसा जादू है अपने समाज में, की बच्चे भी अपने से बड़ों को हाय-हेल्लो का संबोधन कर हाथ मिलाते है | अब आप इसे विकास का परिवर्तन कहेंगे या पाश्चात्य सभ्यता का अपने समाज में पैठ करना ? हाथ मिलाने को देश दुनिया में एक सामजिक परंपरा के रूप में देखा जाता है |
लेकिन अब हमें इस परमपरा में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है क्यूंकि हाथ मिलाना सेहत के दृष्टिकोण से भी खतरनाक साबित हो सकता है |
संक्रमण की दृष्टि से यह अतिसंबेदंशील है क्यूंकि यह एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में संक्रमण फ़ैलाने का कारण बन सकता है |
हानी यह है की हम सब जब भी खांसते है या छिकते है उस समय मुह पर अक्सर हाथ रख लेते है , जिससे रोगों की जीवाणु या विषाणु हमारे हाथ पर आ जाते है | उसी दौरान (काल्पन करें) जब हम किसी दुसरे व्यक्ति से हाथ मिलाते है तो यही विषाणु व जीवाणु उसके हाथ में आ जाते है | अनजाने ही दिन में कितने बार चहरे पर हाथ घुमा लेते है या बिना हाथ धोए कुछ खा लेते है तो ये विषाणु या रोगाणु सीधे उसके शरीर में पैठ पर उन्हें बीमार बना देंगे |
इसे ही हम अप्रत्यक्ष रूप से ड्रॉपलेट इन्फेक्सन कहते है | हाथ मिलाना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है | हाथ मिलाना किसी भी घातक बिमारी का न्योता देने के बराबर है |
यदि आप बधाई देना चाहते है तो दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करें | अन्यथा आप पेट के रोग, क्रीमीरोग, एच१ एन१ फ्लू , सामान्य सर्दी-जुकाम खांसी जैसे अनेक प्रकार के संक्रमक रोगों से ग्रस्त हो सकते है, क्यूंकि इनके फैलने की आशंका हाथ मिलाने से अधिक हो सकती है |
साथ ही हाथों की स्वच्छता का भी ख्याल रखना चाहिए - कुछ भी खाने से पहले हाथों को अछि तरह से साफ कर लें क्यूंकि हाथ से विभिन्न प्रकार के काम करते है जाने-अनजाने ही सही हम कितनी अच्छी बुरी वस्तुओं को छू लेते है | जिसके कारण हमारे हाथ में बैक्टेरिया या वायरस आ जाते है |
भीड़ वाले इलाके में जाने से बचे - क्यूंकि उस स्थानों में अधिक व्यक्ति के होने से धुल उड़ने से श्वास की बिमारी होने का खतरा रहता है | किसी के खांसने या छींकने पर ड्रॉपलेट संक्रमण से होने वाले रोगों का खतरा बढ़ जाता है | कहीं भी पान की पीक या खराश थूकने पर उस पर बैठने वाली मक्खियाँ भी रोगों का वाहक होती है | अतः भीड़ भरे स्थानों पर अति-आश्यकता हो तो ही जाए ,अन्यथा बचें |
इसके अतिरिक्त जितने भी रोग उत्पन्न होते है उनका मुख्य कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होना भी है |
अतः इन रोगों से बचाव के लिए रोगों से लड़ने की क्षमता को बढाए, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने वाली आयुर्वेद में अनेक जड़ी-बूटिया व औषधियां है जैसे गिलोय, तुलसी,अदरक, हल्दी,कालीमिर्च,मुलेठी,अभ्रक, स्वर्ण भष्म,और
सबसे बेहतरीन होगा अगर आप नियमित तौर पर एलो वेरा जूस का सेवन करें |
साथ ही हमें अपने आचरण में बदलाव लाने की जरुरत है | पश्चमी सभ्यता की छाप कई बीमारियों का कारण है अतः हाथ मिलाने के वजाय हाथ जोड़कर अभिवादन कर कई बिमारियों से बचे |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
1 comments
बहुत बढ़िया बात कही है आपने ! हमारी संस्कृति व हमारा रहन सहन पूरी तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित था पर आधुनिक बनने की होड़ के चलते लोग इससे दूर होते चले जा रहे है |
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