मधुमेह के रोगियों को फलों का रस नहीं पीना चाहिए क्योंकि इसमें चीनी या चीनी से बनी चाशनी मिलाई जाती है | इसके अलावा एक ग्लास जूस बनाने में ढेर सारे फल की जरुरत पड़ती है | जूस बनाने में फल का गुदा हट जाता है जिसमे लाभकारी रेशे होते है | सिर्फ आम, सीताफल, चीकू, केले और अंगूर जैसे फल नहीं लेने चाहिए क्योंकि इनसे रक्त शर्करा का स्तर लम्हे अरसे के लिए बढ़ जाता है | इसी वजह से पिंडखजूर और सूखे मेवे भी नहीं लेने चाहिए |
अध्ययन बताते है की ब्लूबेरी ( करौंदा ), अन्नानास, नाशपाती जैसे 75 ग्राम फल आपको 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस देते है | सौ ग्राम अमरुद, मौसमी, आडू, स्ट्राबेरी, पपीता आदि भी 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस देते है | नारियल, रसभरी, गुजबेरी आदि के 150 ग्राम से भी 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस मिलते है |
फलों में शर्करा फ्रक्टोज के स्वरुप में रहती है | मधुमेह के रोगियों के लिए यह एक अतिरिक्त लाभ है क्योंकि फ्रक्टोज की मेटाबोली के लिए इंसुलिन की जरुरत नहीं पड़ती , लिहाजा उसे भली-भांति बर्दाश्त कर लिया जाता है | फल में विटामिन, खनिज और रेशे होते है जिन्हें किसी भी स्वास्थ्यकारी आहार में होना चाहिए | रसदार ( Citrus ) फलों में मौजूद मैग्नेशियम इंसुलिन का एक महत्वपूर्ण तत्व है |
आनार और मैंगोस्टीन में रक्त शर्करा घटाने की क्षमताये है | मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन के लिए प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है |
मैंगोस्टीन इस प्रतिरोध को मद्धिम करने और पूर्णतया रोक देने में खास भूमिका निभाता है | रक्त शर्करा की उंच-नीच को घटाकर यह उसे नियंत्रित करता है और मधुमेह के रोगियों में बार-बार संदुष्ण होने की संभावनाए घटाता है |
जब पोमेस्टीन के इस्तेमाल से ग्लूकोज के लिए कोशिकाओं का प्रतिरोध समाप्त हो जाता है , तो कई मामलों में रक्त शर्करा का स्तर खासी मात्रा में गिर जाता है | लेकिन अधिकांश मामलों में रक्त शर्करा स्तर में कमी कई दिनों या हफ़्तों के बाद ही देखने में आती है | मधुमेह के रोगी का वजन घट जाता है क्योंकि इसकी वजह से न तो भूख में बढ़त होती है और न ही शरीर में तरल पदार्थ रुकते है ( Fluid Retention ) होता है |
तजुर्बे से पता लगता है की पोमेस्टीन से टाइप-2 मधुमेह से उन रोगियों में प्रभावकारी रूप से रक्त शर्करा नियंत्रित हो जाती है, जिनका पैक्रियास थोड़ी-बहुत इंसुलिन पैदा करता रहता है | इसमें क्षमता है की यह शरीर के उतकों में इंसुलिन के लिए पैदा हो गए प्रतिरोध को घटा सकता है | परिणामस्वरूप शर्करा नियंत्रण क्षमता बढ़ जाती है | चुकी टाइप-2 मधुमेह की कई दशाएं होती है, इसलिए इसके रोगियों को सिर्फ 15 एमएल पोमेस्टीन प्रतिदिन से शुरुआत करनी चाहिए | एक महीने बाद इसकी खुराक बढ़ाई जा सकती है , तब तक रक्त शर्करा में होने वाली उंच-नीच में खासी कमी नजर आने लगेगी |
टाइप-1 मधुमेह के रोगी शायद शर्करा का घटना कम अनुभव करें, लेकिन उन्हें भी पोमेस्टीन के इस्तेमाल से एंटीओक्सिडेंट के महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे | मधुमेह से होने वाली अधिकाँश क्षति स्वतंत्र कोशिकाओं से होती है और पोमेस्टीन के एंटीओक्सिडेंट इन्हें निष्क्रिय बना सकते है |
जड़ी बूटी सम्बन्धी उपचार :-
1 .एलो वेरा जेल :- पैंक्रियास की कोशिकाओं को नवजीवन, शर्करा स्तर को कम करने में सहायक |
2 .बी पोलेन :- इसमें मौजूद पेनेडियम इंसुलिन के क्रियाकलाप के लिए जरुरी होता है , इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन और प्रोटीन है|
3 .फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन :- इसमें मौजूद मैग्नेशियम इंसुलिन के क्रियाकलाप के लिए जरुरी होता है, मेताबोली को संतुलित करता है |
4 .जिनचिया :- उर्जाकारक,चंगेपन का अहसास,इंसुलिन जैसे क्रियाकलाप के लिए एडेप्तोजेन होता है , कोलेस्ट्रोल में कमी लाता है |
5 .पोमेस्टीन पावर :- शक्तिशाली एंटीओक्सिडेंट, रक्त में शर्करा स्तर की तेजी से होने वाली घटत-बढ़त को कम करता है , जटिलताओं की रोकथाम कर उन्हें घटाता है |
6 .नेचर मीन :- उपयुक्त शारीरिक क्रियकलाप के लिए जरुरी , मधुमेह के पुराने मरीजों को खनिजों का अभाव हो सकता है जिसके लिए यह लाभदायक है |
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