यह जानकार आप भी अचम्भित हो जायेंगे की अगर कोई व्यक्ति पाँच वर्ष लगातार बैगन अथवा भिन्डी का सेवन अपने आहार में कर ले तो वो निश्चित तौर पर दमा का मरीज बन सकता है | यहाँ तक की उसकी श्वास नलिका बंद हो सकती है |
दरअसल बैगन को तोड़ने के बाद उनकी चमक को कायम रखने के लिए उन्हें फोलिडन नामक कीटनाशक के घोल में डुबाया जाता है, चुकी बैगन में घोल को चूसने की क्षमता ज्यादा होती है, अतः फोलिडन घोल बैगन में चला जाता है | इसी प्रकार से भिन्डी में जब छेदक कीड़े लग जाते है, तो इसके ऊपर भी इसी घोल का छिडकाव बहुत अधिक मात्रा में की जाती है |
चमकते हुए फल या सब्जियां हमें अपनी ओर ज्यादा आकर्षित करती है परन्तु हमें सावधान रहना चाहिए जब बाजार में सब्जी या फल खरीदने जाए | ध्यान रखें चमकता हुआ हरेक चीज अच्छा नहीं हो सकता | तो हमें ज्यादा चमक और हरी दिखने वाली सब्जी से बचना चाहिए |
वैसे आज उगने वाले हर फसल पर कुछ न कुछ कीटनाशक दवाई का प्रयोग करते है | जैसे गेहूं को ही लेते है तो उसके ऊपर भी मैलाथिन नामक पाउडर का इस्तेमाल कीड़ों से बचने के लिए करते है और गेहूं खाने वालो को इस पाउडर के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है , चाहे उसकी मात्रा थोड़ी ही क्यूँ न हो, परन्तु लगातार उपयोग करने से आगे जाकर ना जाने क्या-क्या परेशानी हो सकती है |
विश्व बैंक द्वारा किये गए अध्यन के अनुसार दुनिया में 25 लाख लोग प्रतिवर्ष कीटनाशकों के दुष्प्रभावों के शिकार होते है, उसमे से 5 लाख लोग तक़रीबन काल के गाल में समा जाते है |
चिंता का विषय यह भी है ,जहाँ एक तरफ दुनिया के कई देशो ने जिस कीटनाशक दवाई को प्रतिबन्ध कर दिया है , अपने यहाँ धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है | यहाँ तक की अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे देश में कारखाने स्थापित कर बहार के देशों के प्रतिबंधित अनुपयोगी व बेकार रासायनों को यहाँ मंगा कर विषैले कीटनाशक उत्पादित कर रही है |
इनमे से कई कीटनाशकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बेहद जहरीला और नुकसानदेह बताया है जिनमे डेल्तिरन, ई. पी.एन., क्लोरेडेन, फास्वेल आदि प्रमुख है |
दिल्ली के कृषि विज्ञानं अनुसन्धान केंद्र के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली के आसपास के ईलाकों में कीटनाशकों का असर 2 प्रतिशत अधिक है | लुधियाना और उसके आसपास से लाये गए दूध के सभी नमूनों में डी.डी.टी. की उपस्थिति पाई गई है | यहाँ तक की गुजरात जो देश की दुग्ध राजधानी के नाम से जाने जाते है, वहां से शहर के बाजारों में उपलब्ध मक्खन, घी और दूध के स्थानीय बरंदों के अलावा लोकप्रिय ब्रांडों में भी कीटनाशक के अंश पाए गए है |
विश्व में हमारा देश डी.डी.टी. और बी.एच.सी. जैसे कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि डी.डी.टी. कीटनाशक रसायन अनेक देशों में प्रतिबंधित है | हमारे यहाँ जमकर इसका प्रयोग किया जाता है |
आज यह सवित हो चूका है की अगर हमारे खून में डी.डी.टी. की मात्रा अधिक होने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है | साथ ही हमारे गुर्दों, होठों,जीभ व यकृत को भी नुकसान पहुंचता है |
बी.एच.सी. रसायन डी.डी.टी. से ढाई गुना ज्यादा जहरीला होता है | परन्तु हमारे देश में गेहूं व अन्य फसलों पर अधिक उपयोग किया जाता है जो की कैंसर और नपुंसकता जैसी तकलीफ के लिए जिम्मेदार होता है |
आज जरुरत है कीटनाशकों के विकल्प साधनों की जो जैविक नियंत्रण विधि, सामाजिक व यांत्रिक तरीकों को अपनाएं | दुनिया के कई देशों में इनका व्यापक प्रयोग सफलता पूर्वक किया जा रहा है, जिससे कीटनाशकों की खपत एक तिहाई कम हो गई है और उत्पादन भी बढ़ गया है |
अतः आनेवाली पीढ़ी व हमारे स्वास्थ्य के लिए धीरे-धीरे कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना अति उतम होगा |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
....कुत्ते- कैसे कैसे?
1 comments
जानकारी का बहुत-बहुत शुक्रिया,
आप भी इस बहस का हिस्सा बनें और
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
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