आज एक बार फिर से माता वैष्नो देवी का ख्याल मेरे मन में आया और दिल प्रफुल्लित हो उठा |
बात कल का था ------------------ हम अपने कार्यालय के कुछ मित्र के साथ योजना बनाया था माता के दर्शन के लिए , परन्तु हम जा न सके ऐसा नहीं है की कोई नहीं गया ---------------बस हम अपने परिवार के साथ तैयार तो थे पर वो कहते है न की बगैर बुलावा कोई वहां पहुँच ही नहीं सकता |
बात कुछ इस तरह से हुआ की ----------------- हमें रेलगाड़ी से सफ़र करना था , सबकुछ ठीक ठाक था ---- मैं अपने कार्यालय से छुट्टी ले चूका था ,और घर भी पहुँच गया ,घर पे मेरे बच्चे बिलकुल तैयार सामान सब बांध के , मैं आते ही ऑटो लेने गया और ऑटो लेकर आ भी गया क्यूंकि मित्र ने कहा रेलगाड़ी ३.५० बजे की है ,-----------------
परन्तु अंतिम समय में एक मित्र का फोन आता है की मुझे दुःख है आप का टिकेट नहीं बन पाया ,फिर भी कोशिश कर रहा हूँ |पर देर तक कोशिश करता रहा लेकिन निराशा ही हाथ लगी | फिर मैंने जम्मूतवी में टिकेट लिया पर बाद में पता चला की वो तो ६ घंटे देरी से आएगी | सो अंत में मैं नहीं जा पाया | पर मेरे कुछ पुराने अनुभव है जो आज में आपलोगों के सामने रख रहा हूँ ------------------- |
हम बहुत बड़े आस्तिक तो नहीं पर नास्तिक भी नहीं नहीं है | पर मंदिर में आकर ऐसा लगता है जैसा की मन भी मंदिर जैसा पवित्र और मन की भावना भी स्वतः निर्मल होने लगता है |जिस तरह से मूर्ती बनाने वाले मूर्तिकार इतना आत्मनिष्ठ होकर उनकी कलाओं का प्रदर्शन करता है की उसमे ज्ञानमयी भावनाओं का प्रभावी स्वरुप अपने आप आ जाता है ,स्वयं में शरीर का ,शरीर में ब्याप्त जीवन का,जीवन में ब्याप्त जीवन आनंद इन सभी का आनंद लेने वाले मन का,मन ही एकमात्र साक्षी मति का दर्शानन्द ,एकनिष्ठ होकर हर मानव कर सकता है |
चार साल पुरानी बात है हमें कुछ नए दोस्त के साथ माता के दर्शन का अबसर मिला ,वो भी बहुत ज्यादा कठिन पर रोमांचित और मेरे आस्था को और भी मजबूत किया |
बात कुछ इस तरह से हुआ की उस समय कार्यालय से लगातार ३ या चार छुटी मिली थी , तो हमने सोचा क्यूँ नहीं इस अबसर पर अपने बच्चों के साथ माता को दर्शन के लिया चला जाय और फिर कुछ मित्र के साथ योजना बनी और चल पड़े |
वहां जाने के बाद पता चला की करीब ३ लाख लोग पहले से ही वहां भवन पर अपने बारी का इन्तेजार कर रहा है ,वो भी समाचार पत्र के माध्यम से , उन दिनों में कुछ दिनों तक समाचार पत्र की सुर्खियाँ बनी रही माता वैष्नो देवी में लगातार बढती भीड़ |
बेकाबू भीड़ के वजह से कटरा में जो यात्रा स्लिप मिलता था वो बिकुल बंद कर दिया । और पुरे एक दिन का अन्तराल रख रहा था की जब ऊपर से यात्री निचे के तरफ आ जायेगा फिर जितने यात्री कटरा में रुके हुए है उनको यात्रा स्लिप मिलेगा |इस तरह से मुझे लगा की कम से कम हमें यहाँ ४ से ५ दिन या उससे भी ज्यादा बक्त लग सकता है | इतना समय हम कार्यालय से लेकर नहीं गया था | हालत को देखकर हमें ऐसा लगा की इस बार तो मैया का दर्शन नामुमकिन ही होगा , पर मेरे मन में माता के प्रति बेसुमार प्रेम,श्रधा ,विश्वास था ------------------
हम सबने बिना यात्रा सिल्प लिए ही माता के भवन की चढ़ाई चालू कर दी , रस्ते में कहीं कुछ परेशानी नहीं आई -------माता की जयकारा लगाते हुए और पेड़ ,पहाड़,झाड़ना सड़क और लोगों का हुजूम को देखते हुए ,मन प्रसंचित था|
चलते चलते पता ही नहीं चला की माता का भवन भी आ गया | पर वो बेकाबू भीड़ को देखकर मेरी तो हालात भी बेकाबू होने लगी और सोच में पर गया की हे माता रानी अब मैं आ तो गया आपके भवन पर आप ही जानेंगे की अपना दर्शन किस तरह से कराएँगे क्यूंकि जो लोग लम्बी लम्बी कतार बनाये बैठा हुआ है करीब २ दिन से उसका भी बारी ना जाने कब दर्शन को आएगा |
फिर में अपने बच्चों को बोला------------ चलो आपलोग अब स्नान कर लो दर्शन के बारे में कोई न कोई युक्ति लगायेंगे | इस तरह से स्नान के बाद मैं तैयार होकर फिर से कतार की ओर बढ़ा और लाखों लोगों की कतार देखकर मेरा हिम्मत पस्त हो गया और सोचने लगा की अगर हम कतार से दर्शन को गए तो हमें यहाँ कम से कम चार से पाँच दिन लग जायेगा ,
मैंने देखा एक कतार जो फाटक नंबर ३ था जो अतिविशिष्ट लोगों के लिए था ,वहां गया और लोगों से निवेदन करने लगा की अगर किसीके के पास अतिरिक्त पास हो तो कृपया हमें भी साथ दर्शन के लिए ले जाएँ | इस तरह से करीब ४ घंटे बीत चुके थे और मैं मायूस हो रहा था और सोच रहा था की शायद इस बार दूरदर्शन पर जो माता का स्वरुप का प्रसारण चल रहा था वही दर्शन करना परेगा और कुछ नजर नहीं आ रहा था |
अंत में मैं एक बार फिर से उसी अतिविशिष्ट कतार में गया और एक सज्जन से पुछा तो वो तैयार हो गए की हाँ मेरे पास है अतिरिक्त पास आप मेरे साथ चल सकते है ,पर मेरा जूता जरा आप अपने पास रखवा देंगे ---मैंने कहाँ अवश्य ,आप मेरे साथ चलें और फिर वो सज्जन ने हमें दर्शन करवा दिया |
पर बात इतनी सी होती तो कोई बात नहीं था -- दरअसल बात यह है की वो ब्यक्ति अपने आपको जम्मू का बताया और बोला मैं रक्षा बिभाग में हूँ । पहली बार दर्शन के लिए आया हूँ और हम आपके साथ ही बाबा भैरों के मंदिर चलेंगे | दर्शन के बाद वो वहां रुक गया और द्यान्मग्न होकर करीब १० मिनट तक बैठा रहा जहाँ नारियल रखा जाता है ,और हमने भी उनका साथ दिया ,
फिर हम दर्शन करके वापस अपने स्थान पर आ गए जहां हामरा सामान रखा हुआ था | साथ ही हम सबने जूता पहनना शुरु किया उसी समय मेरी बीबी बोली की भाई साहेब से चाय के लिए जरूर पूछ लीजियेगा ,मैंने कहा जूता पहनलेते है क्यूंकि साथ में वो भी पहन रहा था |
पर जैसे ही मैंने अपना जूता पहन कर बोला भाई साहेब और इधर उधर देखने लगा ,मेरी बीबी भी उनको idhar-उधर ढूंढा पर वो बिलकुल जैसे अदृश्य हो गए , हमदोनो ने बहुत प्रयास किया की शायद कहीं मिल जाता वो बिलकुल साधारण से ब्यक्ति पर नहीं मिल पाया । मेरी तो आँख नम हो गया था उस दिन ,और मैं सोचने लगा , की वो देवी माँ ने मेरी मदद के लिए ही उनको भेजा था, जरूर वो कोई नेक आत्मा था , मेरे लिए वो घटना बहुत ही शुखद घटना है , मैं उसे जीवन पर्यन्त कभी नहीं भूल पाउँगा , क्यूंकि कोई भी ब्यक्ति कतार में जूता पहनाकाk क्यूँ रहेगा और एक बार कहने मात्र से वो तैयार हो गया की आप मेरी जूता रखबा दीजिये |मेरी आस्था का ज्योत मेरे मन में और भी तेज हो गया और मैं मानता हूँ की माता रानी आज भी है और सदेह वो हमारे बीच ही है पर हमें उनके प्रति सच्ची श्रधा निष्ठा विस्वाश और समर्पण की भावना होनी चाहिए | जय माता दी |
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ज्ञान दर्पण
ताऊ .इन
1 comments
han ye sach hai matarani jab bulati hai tabhi koi baha ja sakta hai
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