चाहे आप एक ब्यस्त माँ-बाप हो या होनहार-परिश्रमी विद्यार्थी या हो ऊँचे स्तर के पदाधिकारी
आपको अपनी शरीर की ऊर्जा का स्तर आदर्श रखना होता है
ताकि ऐसा न हो जब आप को ऊर्जा की अत्यधिक जरूरत हो तभी आप उसे खो बैठे |
मानव शरीर के अन्दर ही ऊर्जा बनाने और बचाने की प्रणाली मौजूद होती है |
मसलन हम सोते है,खाते है,ब्यायाम करते है ,पीते है ,ये सब ऊर्जा पाने के लिए |
पर जल्दी जल्दी थकान का अनुभव करने का मतलब है की शरीर के अन्दर कुछ भयंकर कमी है जिसका पता लगाना बहूत ही महत्वपूर्ण है | अधिकांश लोगों द्वारा अपने आहार में सेहत की जगह स्वाद को ज्यादा महत्व देना युवावस्था के तुरंत बाद ही उनके शरीर पर भारी पड़ने लगता है |
40 साल के बाद ही विभिन्न प्रकार के बीमारियों का उभरना इस तथ्य की ओर ध्यान खिचता है की ब्यक्ति विशेष ने स्वास्थ्य रहने के नियमों का समय के साथ इमानदारी से पालन नहीं किया है |
स्वास्थ्य का सीधा सा गणित है की हम जैसा और जो कुछ भी खायेंगे उसका परिणाम शरीर को भुगतना ही पडेगा |
यदि अपवाद स्वरुप अनुवांशिक कारणों को छोड़ दिया जाये तो जावानी का खाया, बुढापा में रंग दिखाता है |
हम में से कई लोग खुद को कैफीन,टैनिन,अल्कोहल का लती बना लेते है |
इससे हमें उत्तेजना मिलती है और हम सक्रीय हो जाते है ,बिना यह चिंता किए की इससे हमारे शरीर पर व नींद लेने व ऊर्जा बचाने पर क्या असर पडेगा ? और यदि जवानी आपके पिज्जा---------वर्गर---------------और प्रक्रिया वाले भोजन के स्वाद में मस्त रहें तो बुढ़ापा बदरंग होगा ही ,इसमें संदेह कहाँ है ?
ऐसी आदतें सेहत विरोधी है , यह शरीर में ऊर्जा का स्तर गिरा देती है |
फिर शरीर और ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा की मांग करता है |
यदि आपने जवानी के समय में स्वाद के कारण अनाप-शनाप भोजन करके पांच हाथ के शरीर के वजाय दो इंच जीभ की ओर ज्यादा ध्यान दिया है --- जिसके कारण आप अस्वस्थ्य महसूस कर रहे है और कायाकल्प करना चाहते है |
तो भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है |
अगर आप में दृढ शक्ति है ,यदि आप गलती महसूस करके भूल सुधारने के लिए तैयार है |
केवल आपको भोजनचर्या में सुधार लाना होगा और ऐसे पौष्टिक पूरक को शामिल करना होगा जिससे उम्र बढ़ने पर गठिया, मोटापा, पीठ में दर्द, मस्तिस्क में शिथिलता, मोतियाबिंद व ह्रदय रोग पीछे न लगें और बुढापा कराहते हुए न बीते और जीवन के अंतिम दिनों में भी बहूत तकलीफ ना हो |
कुछ ऐसे ही सुझाव इस रचना में हम रखने जा रहे है जिससे की वृधावस्था सुख से बीते और युवा के समान ही हम इस संसार से विदा ले सकें |
बढती उम्र में भी आप स्वास्थ्य और जवान रह सकते है बस आपको विशेष ध्यान देने की जरूरत है ---------
विटामिन - इ ---- नवयुवक में रोग के प्रतिरोध करने की क्षमता सबसे अधिक रहती है पर जैसे-जैसे उम्र बढती है यह क्षमता कम होती जाती है |
विटामिन -इ विशेषकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में सहायक होते है |
वृद्ध लोगों को यदि इस विटामिन की पर्याप्त मात्र मे दे दी जाए तो उनकी प्रतिरोधक शक्ति नवयुवक के सामान हो जाएगी |
विटामिन- बी 6 --- शोधों के द्वारा ज्ञात हुआ है की बढ़ी हुई उम्र में विटामिन बी 6 की कमी से प्रतिरोधक क्षमता में तेजी से गिरावट आ जाती है
और यदि इसकी समुचित मात्रा दिया जाये तो न केवल प्रतिरोधक शक्ति में गिरावट कम होगी बल्कि बढ़ोतरी होती रहेगी |
अनाक्सिकारक पदार्थ --------- कोशिकाओं में भारी मात्रा में तहस-नहस होते रहना ही बुढापे की ओर अग्रसर होने का एक मात्र कारण है |
भाग्यवश प्रकृति में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ विद्यमान है जो की अनियंत्रित ऑक्सीकरण का विरोध करते है |
और जो शारीर में free redical ( मुक्त अभिकारक ) के द्वारा सजीव कोशिकाओं को भारी मात्रा में क्षतिग्रस्त होना भी बुढापे के संकेत है |
इनमे सबसे शक्तिशाली अनाक्सिकारक पदार्थ विटामिन - इ है |
विटा कैरोटिन जो हरे सब्जियां, पपीता,पीले फल इत्यादि में होता है जो विटामिन ए का प्रतिरूप है |
विटामिन- सी ----- तीसरा मुख्य पदार्थ है जो एस्कारविक अम्ल है जो रसदार फल जैसे निम्बू, मौसमी , संतरा ,अमरुद ,सब्जी जैसे हरे मिर्च ,आंवला , बंद गोभी में पाया जाता है यदि हम इस पदार्थ को लेते है तो कोशिकाओं की क्षतिग्रस्तता रुकी रहेगी और बुढापे देर से आयेगा |
इस कारण यह उचित होगा की 40 -42 वर्ष की आयु के बाद से ही इन खाद्य पदार्थ का अधिकाधिक मात्रा में लेना शुरू कर दें ताकि बुढापे की कगार पर पहुँचने से पूर्व हमारी प्रतिरोधक प्रणाली चुस्त-दुरुस्त रहें |
प्रस्तुत रचना में आहार में छुपे गुणों को आपके समक्ष रखकर यह बताने की चेष्टा की जा रही है की सर्व सुलभ खाद्य पदार्थ भी सेहत को बुढापे तक बरकरार रख सकते है ,और शारीर को बुढ़ाने की क्रिया को धीमा करके द्रिघायु प्रदान कर सकते है |
साथ ही शारीर के अन्दर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती देकर रोगों से दूर रख सकते है |
एलो वेरा जेल जिसका उपयोग मनुष्य हजारों साल पहले से करता आ रहा है |
इसके गुण के बारे में रामायण,महाभारत ,बाइबल ,चरक संहिता,और भी कई ग्रंथों में लिखा हुआ है |
सिकंदर महान ने एक पूरी युद्ध इस पौधों के लिए सुमात्रा द्वीप पर लड़ा था
जिससे वो अपने घायल सैनिक का इलाज किया करते थे |
एलो पौधे को संस्कृत में " कुमारी " कहते है , जिसका अर्थ है कुवांरी या युवती |
यह सावित करता है की इस पौधे में बुढापा प्रतिरोधी तत्व है जिनके उपयोग करने से मनुष्य लम्बे समय तक अन्दुरुनी और बाहरी तौर पर जवान बना रह सकता है | आयुर्वेद में इस के उपयोगों का वर्णन 4000 वर्ष पहले हुआ था |
भारत के बिभिन्न भागों में इसके भिन्न-भिन्न नाम है ----जैसे कोरफेड , कलामांडा , चित्रकुमारी , घृतकुमारी , गृहकन्या , ग्वारपाठा , कारगंधक , लालेसरा , कुमार पट्टू इत्यादि |
अपने बहूत से फायदों के वजह से लोग एलो को चमत्कारी पौधा कहा जाता है |
आज के युग में यह जेल मानव जाती के लिए अमृत के सामान है | वर्तमान समय में धरती पर तमाम उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ पूरकों में से एलो जेल को एक माना जाता है |
एलो जेल में 18 एमिनो एसिड ,12 विटामिन (विटामिन ए , बी -1 , बी -3 , बी -5 , बी -6 , बी-12 , सी , इ , के और कोलाइन तथा फॉलिक एसिड ) और 20 खनिज पाए जाते है | इसके आलावा भी कई अन्य अनजाने यौगिक है जो शारीर के लिए उपयुक्त है | प्राकृतिक उत्पाद होने के कारण यह जैविक रूप से शारीर के लिए एकदम ठीक है ,इसका कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है
और इसके सेवन से कोई इसका आदी नहीं होता | संक्षेप में , एलो जेल इस धरती का चमत्कार है |
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ज्ञान दर्पण
ताऊ .इन
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