चुकी मैं विहार का निवाशी हूँ ----- पूर्वोत्तर रेलवे जो विहार की ओर प्रस्थान करती है ------खासकर कोई पर्व के समय नयी देल्ली रेलवे स्टेसन का नज़ारा कुछ ऐसा ही प्रतीत होता ----जैसे की कुम्भ का मेला लगा हो | खचाखच यात्रियों से भरी होती है ------ पुलिस प्रशाशन का समुचित व्यवस्था किया जाता है ----ताकि यात्रिओं के साथ किसी भी प्रकार के कोई घटना या दुर्घटना न हो जाय | एक बार तो मुझे भी इस भीड़ का हिंस्सा बनना पडा था -----स्थान आरक्षित भी करवाया पर ऐसे बक्त पर कोई लाभ नहीं होता है ---कई ऐसे लोग मिले ,जिनके पास आरक्षित स्थान के बाबजूद उन्हें अपना स्थान नहीं मिल पाया था ------उनमें से एक मैं भी था |
दिल्ली से विहार की ओर जाने वालों के लिए त्यौहार के समय ये नज़ारा आम है | भाग्य आपका साथ दे दिया तो ही स्थान पर बैठने का अवसर मिल सकता वरना आपका कुछ नहीं हो सकता, ऊपर वाले ही कुछ करेंगे |
"रेलगाड़ी की जेनरल बोगी
पता नहीं आपने भोगी की नहीं भोगी
एक बार मुझे करनी पड़ी यात्रा
स्टेशन पर देखकर सवारियों की मात्रा
मुझे तो पसीने छूटने लगी |"
"इतने में एक कुली आया
और जोर से चिल्लाया
उसने पूछा---जाओगे
मैंने कहा --पहुँचाओगे
उसने कहा- बड़े बड़ों को पहुंचाया हूँ
आपको भी पहुंचा दूंगा
पर रुपैये पुरे पचास लूंगा"
"मैंने कहा पचास रुपैये
उसने कहा हाँ बाबूजी
बीस रूपैये आपके और
बाकी सामान के
मैंने कहा - भाई मेरे पास सामान नहीं है
उसने कहा - यही तो गम है-----
बाबूजी क्या आप किसी सामान से कम है ?"
"देखो पहले आपको उठाना पडेगा
फिर कंधे पर चढ़ाना पडेगा
और उसके बाद
जोर से धक्का देकर
अन्दर को पहुंचाना पडेगा"
"मैंने कहा चलो ठीक है
उसने बिलकुल वैसा ही किया
और मुझे सामान और सूटकेस की तरह
ट्रेन के अन्दर फेक दिया |"
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ज्ञान दर्पण
ताऊ .इन
1 comments
वाह ! क्या बढ़िया अनुभव रहा रेल यात्रा का |
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