" "यहाँ दिए गए उत्पादन किसी भी विशिष्ट बीमारी के निदान, उपचार, रोकथाम या इलाज के लिए नहीं है , यह उत्पाद सिर्फ और सिर्फ एक पौष्टिक पूरक के रूप में काम करती है !" These products are not intended to diagnose,treat,cure or prevent any diseases.

Mar 16, 2014

केजरीवाल का काला सच ??

आम आदमी के संजोयक केजरीवाल आज ऐसे मेहमान ढूंढ रहे है जो इनके साथ बैठकर दस हजार, बीस हजार रुपैये का खाना खा सके ! इस राजनीती में आम आदमी कहाँ बचा है ? केजरीवाल के राजनीती का ये काला चेहरा है जो लोगों के सामने आ रहा है ! दिल्ली की चुनाव जितने के बाद केजरीवाल ने कहा जीत किसकी हुई है - यह आम आदमी की जीत है , जनता बिच में जायेंगे और उनकी सेवा करेंगे !

वो केजरीवाल कहाँ खो गया ? चुनाव से पहले नागपुर के चमचमाते होटल में जब हजारी प्लेट बिछाई जायेगी तो केजरीवाल का विश्वास उन पाखंड के सामने सर झुकाये खड़ा होगा ! आम आदमी की राजनीती जब रईस के रुपैया खरीद लेगा तो परिवर्तन कि बुनयाद हिल नहीं रही होगी ये सबाल परेशान तो करेगा ही ! क्या अरविन्द केजरीवाल दस रुपैये में मिटने वाली भूख पर प्रीमियम वसूलने का फैसल क्या है वो भी हजार से दो हजार गुना ? और जब ये फैसला कर लेते है तो वो यकीन अपनी मौत मर लेते है की आम आदमी की अठन्नीयाँ भी एक आदर्श राजनीती के रस्ते खोल सकते है ! दस हजार का रात्रिभोज उस रिक्से वाले का चंदा मिटा नहीं देगा ? क्या केजरीवाल इस बात का जबाब देंगे की करोड़पतियों की ये जमात बिना अपनी फायदे की उम्मीद के उनके साथ दस हजार का डिनर क्यों करेगी ?

क्या केजरीवाल को बताना नहीं चाहिए कि जब ताकत आम आदमी का है तो रुपैये खास आदमी का क्यों चाहिए ? क्या केजरीवाल ने अब स्वीकार कर लिया है की रुपैये के अम्बार के बिना राजनीती नहीं बदल सकती ? यह सबाल तो बनता है की जिस जनता ने केजरीवाल कि एक पुकार पर उनकी तिजौरी में इतना रुपैया भर दिया था की उन्हें मना करना पड़े , उसी जनता पर उन्होंने फिर से भरोसा क्यों नहीं किया ? क्या केजरीवाल को वाकई आम आदमी पर भरोसा नहीं रहा या फिर आम आदमी को केजरीवाल पर भरोसा नहीं रहा ?

क्या केजरीवाल को अपनी राजनीती से ज्यादा रईस लोगो पर भरोसा हो चला है ? या फिर उन्होंने मान लिया है की राजनीती में रुपैया नहीं तो कुछ भी नहीं ! अगर केजरीवाल को इसी तरह से रुपैये जुटाने थे तो सितारा होटल के कैंडल लाइट डिनर के वजाय शहर के मैदान में चटाई बिछाकर चुनाव का खर्च निकाल सकते थे ! अब यह सबाल तो बनता है की केजरीवाल ने आम आदमी के बीच पचास रुपैये की थाली क्यों नहीं बेचीं और क्या गारेंटी है की आज दस हजार की थाली बेचने बाल कल लाखो की थाली नहीं बेचेंगे और आगे करोड़ों की चन्दा नहीं लेंगे ?

पार्टी का जो मूल मुद्दा था वो कहीं ग़ुम सा हो गया है जैसे भ्रष्टाचार, सुराज्य सुशाशन ये सब कही गायब सा हो गया है ! वास्तव में केजरीवाल का सियासत बुनियादी विश्वास व सहयोग की राजनति थी परन्तु उनके डिनर ने उनकी सोच को भी संकीर्ण किया है ! और उनसे ज्यादा सिमटा हुआ है उनका आत्मविश्वास की सिर्फ सही होने के दम पर सियासत के सामानांतर लकीरे खिची जा सकती है क्योंकि रोटी के पहले कौर के साथ ही रईसों का यह गरूर सातवे आसमान पर पहुच चूका होगा कि राजनीती उनके रुपैये से चलती है ,जिसके खिलाप लड़ने के लिए चौराहो ने केजरीवाल को चमत्कार का सारथी बनाया था !

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Feb 21, 2014

"जान बचे तो लाख उपाय, लौट के झूठे घर को आय "

दरअसल आम आदमी पार्टी की राजनीतिक नीव ही झूठे व लोक लुभावने वायदे से हुई ,जो तर्कसंगत नहीं थे ! आम लोगों की धरना थी की टीम केजरीवाल अन्य पार्टी से अलग काम करेंगे ! जैसा की उन्होंने अपनी एजेण्डे में शामिल किया था ! आम आदमी पार्टी की उम्मीद से कहीं ज्यादा राज्य चुनाव में जीत हासिल की ,अप्रत्यासित जीत के बाबजूद उन्हें बहुमत नहीं मिली परन्तु बिना शर्त काँग्रेस ने समर्थन दिया , फिर रायसुमारी जनता के बिच और ना जाने क्या क्या ड्रामेबाजी किये गए अंततः केजरीवाल साहेब ने जनता पर अपना अहसान जताया और मुख्यमंत्री बनने पर राजी हो गए ! सरकार बनाने और चलाने के प्रति केजरीवाल साहेब शुरू से ही गम्भीर नहीं रहे ! सरकार बनाने का कार्य तो अनिशिचितता से हुई पर उनके काम करने का तौर तरीके से अंत जल्द होगी ये जरुर निश्चित थी !

उनकी छटपटाहट , हरबराहट में लिए गए तमाम फैसले केजरीवाल के मनसा पर प्रश्नचिन्ह उठ रही है ! क्या वो वाकई दिल्ली के लिए कुछ करना चाहते थे ? क्या वो कार्य पूरा कर लिए जिसके लिए आम जनता ने उन्हें हाथो-हाथ लिया था ? बिजली -पानी ,महिला सुरक्षा,शिक्षा ,रैनबसेरा इत्यादि अनेक प्रकार के समस्याएँ से जूझती दिल्ली को क्या निदान हो गया ?

>क्या वाकई लोकपाल ही दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या थी ? अरे केजरीवाल जी अगर भ्रष्टाचार के विषय से आप वाकई चिंतित थे तो सबसे पहले निचले स्तर से काम करते , जैसे राशन कार्ड जो दिल्ली वालो के लिए सबसे बड़ी समस्या है , राशन दुकान और राशन कार्ड के लिए कभी आप धरना पर बैठते तो शायद दिल्ली के लोगो को भी लगता की वाकई आप कुछ करना चाहते है ! निचले स्तर पर आज भी गरीब लोगो के लिए दो जून की रोटी पर भी मुसीबत हो रही है !

लेकिन आप की छटपटाहट तो शुरू से ही भागने के लिए था ! तंग मानसिकता के परिचायक तब बने जब दो पुलिस वाले को छूटी भेजने के लिए अपने दल बल के साथ धरना पर बैठ गए ! गणतंत्र दिवस पर आपकी टिपण्णी भी आपकी दिमागी दिबलियापन नहीं तो और क्या था ? डेढ़ महीने में आपने हमेशा लाइट कैमरा और एक्शन वाले काम किया है ! काम हो न हो ढोल पीटने वालों को साथ में पहले से लेकर चलते थे !

क्या टीम केजरीवाल बतायगा की सिमरत ली अमेरिकन ( CIA ) एजेंट अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के NGO कबीर में साल 2010 में 4 महीने के लिए काम किया था और उसी दौरान अमेरिका से 86 लाख रुपैये का अनुदान राशि भी मिली थी ! ऐसा क्या काम किया था जिसके बदले उन्होंने अमेरिका से इतनी बड़ी धन राशि मिली थी ! केंद्र सरकार ने कई बार चिट्ठी लिखी है पर ये लोग अभी तक जबाब नहीं दिया है ! आखिर माजरा क्या है ?

भ्रष्टाचार के खिलाप ढोल पीटने वाले ढोली अपनी करतूत क्यों नहीं साफ करती है ? अभी हाल ही हर्षवर्धन जी भी सबाल उठाये है फिर वो मौन क्यों है ? बस दुसरो के बारे में अनाप-सनाप बाते करना ही उनका एक मकसद है ! पर जब खुद ही भ्रष्टाचार के दल-दल में ऊपर से निचे तक फंसा हो तो औरो को भी ऐसा ही समझते है ! एक कहाबत है न " चोरक ध्यान मोटरिये पर " ! जो चोर होते है वो सबको चोर ही समझते है !

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Jan 21, 2014

केजरीवाल का कुचक्र , लुटिया डुबोने पर उतारू !

लगता है दिल्ली की राजनीती में जैसे कबड्डी मैच चल रही हो ! एक तरफ टीम केजरीवाल जो आम आदमी पार्टी के संस्थापक और वर्त्तमान मुख्य मंत्री जी है और सामने प्रतिद्विंदी दिल्ली की पुलिस है और रेफरी यहाँ के केंद्रीय गृह मंत्री सुशिल कुमार शिंदे है ! मैच का परिणाम चाहे जो भी हो जनता की हार हर हाल में सुनिश्चित नजर आ रही है ! जनता अब क्या करें? कहाँ जाएँ ? अपनी दुखड़ा किसके पास लेकर जाये? क्योंकि केजरीवाल जी भूल चुके है की वही यहाँ के मुख्यमंत्री है ! परन्तु व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर अनायास आन्दोलन की कोई खास जरुरत यहाँ नजर नहीं आ रही है ? पहले यहाँ के जनता से किये हुए वायदे को पूरा कर लेते इसके बाद जो आन्दोलन का कीड़ा उनके अंदर है वो भी पूरा कर लेते ! इन सब आपाधापी में जनता बिचारी अपनी भाग्य को कोश रही है की क्या हमने इन्हे सिर्फ रोड छाप राजनीती करने के लिए वोट दिया है या सचिवालय में बैठ कर भी कोई नेक काम जो जनता के हक़ में हो उसकी लड़ाई लड़ी जा सकती है ?

दिल्ली की नव निर्वाचित सरकार जिस प्रकार अपना सचिवालय चौराहे पर लगा रखी है यहाँ तक की कुछ जरुरी कागजाते भी वहीँ पर हस्ताक्षरित किये जाते नजर आ रहे थे ! उससे दिल्ली कि अंतराष्ट्रीय पटल पर केजरीवाल साहेब क्या सन्देश देना चाहती है ? क्या यह देश और सचिवालय जैसे प्रतिष्ठित संस्था की गरिमा के साथ छेड़छाड़ नहीं है ? और तो और आजकल उनकी भाषा भी अनपढ़ और सामयवादी लम्पटवाद जैसे हो रही है ! मानसिक स्थिति जैसे असंतुलित हो गया हो, कुछ भी बोल रहे है ? मुख्यमंत्री जी शिंदे को नहीं पहचानते, और वो कहते है कौन होता है शिंदे मुझे बताने वाले कि मैं कहाँ धरना पर बैठूं , मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूँ मेरी मर्जी कहीं भी बैठ सकता हूँ , मैं बता सकता हु कि शिंदे को कहाँ बैठना है ? अब यह कितना मर्यादित और संयमित भाषा है हमारे आम आदमी पार्टी की आप ही निष्कर्ष निकाले !

केजरीवाल साहेब को एक बात और मान लेनी चाहिए की "काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ा सकते है " और हाँ महोदय जनता बिलकुल जागरूक है जैसा कि आप जानते है ! आप के लाइट एक्सन और मिडिया प्रेम भी अच्छी तरह से समझने लगे है ! अगर अपनी औकात में समय से पहले आ जाये तो बेहतर होगा वर्ना आम आदमी की ताकत भला आप से अच्छा और कौन जान सकता है ? वो जब सर आँखों बिठा सकता है तो जमीं पर पटकने में भी उन्हें जायदा वक्त नहीं लगेगा !

आम आदमी पार्टी अब आम आदमी के लिए अभिशाप साबित होने लगा है ! आज के तारीख में दिल्ली वासियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अगर कोई है तो वो है आम आदमी पार्टी और उनके मुखिया अरविन्द केजरीवाल, जो अनरगल कार्यों और अपने आप को मीडियामय करने के लिए तरह तरह के ड्रामा करने में लगे रहते है !

अपने घरों में खुद आग लगाकर हाथ सेक रहे है और दूसरे लोगों के बारे में बड़ी बड़ी बाते कर रहे है ! जब घर मुखिया को कोई फिर्क नहीं हो तो दूसरा कोई क्यों चिंता करने लगे ?मुख्यमंत्री जी दिल्ली की महिला सुरक्षा को लेकर इतना सख्त है ये पता नहीं था ? जहाँ उनकी रिहायश है, जो उत्तरप्रदेश मे है क्या वो महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से बिलकुल सुरक्षित है ? धरना अब उत्तरप्रदेश में भी तयारी करनी चाहिए ! " करना न धरना , सिर्फ करते रहो धरना "

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