आज एक बार फिर से आइये चर्चा करते है ह्रदय सम्बंधित समस्याएं और निदान ? दुनिया भर ह्रदय रोगियों की संख्या गुणात्मक रूप से वृद्धि हो रही है | चिंता की बात यह है की ह्रदय घात यानि दिल का दौरा का औसतन आयु सिमट कर 40 और 30 के बिच हो गई है | जिस रफ़्तार से यह घटती जा रही है न जाने आगे क्या होगा ? कहना बहुत ही मुश्किल है परन्तु यह बहुत ही भयावह तस्वीर बनती जा रही है |
भारतीय युवाओं में खासकर यह बिमारी दुनिया के देशों से दोगुनी है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में वर्तमान में ह्रदय रोगीओं की संख्या लगभग पाँच करोड़ है और यह आंकड़ा दोगुना हो जायगा जब दुनिया के साठ प्रतिशत ह्रदय रोगी भारतीय होंगे |
युवाओं में यह बीमारियाँ बढ़ने के प्रमुख कारण आज का जीवनशैली को जाता है | भागमभाग व तनाव ग्रस्त जीवन जीने को मजबूर है | प्रतिस्पर्धा के दौर में युवाओं का ध्यान अपनी सेहत पर कम और कमाने पर ज्यदा होता है |
ख़राब दिनचर्या, खानपान में समुचित मात्रा में पोषक तत्व की कमी भी प्रमुख कारन है | रही सही कसर पश्चात् शैली के खान-पान जैसे पिज्जा,बर्गर,नुडल, पेस्ट्री,डिब्बा बंद खाना, कोल्ड ड्रिंक, ज्यूस इत्यादि पूरा कर देती है | सोने व जागने का समय बिलकुल ठीक नहीं है लोग सोने के समय पर जागते है और जागने के समय पर सोते है जिससे शरीर में कई प्रकार की समस्याएं आ जाती है |
लेकिन ह्रदय रोग लाइलाज समस्या बिलकुल भी नहीं है | परन्तु अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की तरह यदि रोगी को यह प्रारम्भिक अवस्था में पता चल जाय तो इससे मुक्ति पाने में आसानी हो जाता है | अतः ह्रदय सम्बंधित रोग के बारे में जांच कर उचित इलाज जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए |
आप सब जानते है की ह्रदय रोग का प्रमुख कारण है "कोलेस्ट्रोल" | परन्तु सच तो यह है की कोलेस्ट्रोल नहीं है ,बल्कि मुख्य कारण है रक्त नलिकाओं की सूजन ( inlflammation of blood vessels ) है | अतः हमें कोलेस्ट्रोल के वजाय धमनियों की सूजन के कारण को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरुरत है |
सभी कोलेस्ट्रोल ख़राब नहीं होते है | HDL ( high density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल फायदेमंद होता है और इसकी अधिक मात्रा हमारे लिए फायदेमंद होता है, लेकिन LDL ( low density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल हमारे लिए हानिकारक होता है | LDL कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवार की भीतरी सतह पर जमा होकर प्लाक ( plaque ) बनाता है और उन्हें संकरा कर देता है | इसके साथ आने वाला HDL कोलेस्ट्रोल तो वास्तव में धमनियों में सफाई का काम करता है |
रक्त नलिकाओं के सूजन के लिए सिर्फ LDL कोलेस्ट्रोल ही जिम्मेदार नहीं होता है | इसके लिए होमोसिस्टीन तथा धुम्रपान, उच्च रक्त चाप , वसायुक्त भोजन और डायबिटिज से उत्पन्न होने वाले स्वतंत्र तत्व ( free radicals ) भी जिम्मेदार होते है |
अतः स्वतंत्र तत्व को प्रभाव को समाप्त करने के लिए आपको ज्यादा से ज्यादा एंटी ओक्सिडेंट का सेवन करें | जिससे की शारीर में अनचाहे मेहमान जो की free radicals के रूप में है वह सब समाप्त हो जायेगा | और आपका धमनी बिलकुल दुरुस्त हो जायेगा |
जीवन शैली में परिवर्तन लाकर इन जोखिम को कम किया जा सकता है | हरी सब्जियां व फल का ज्यादा से ज्यादा अपने आहार में शामिल करें जिसमे विटामिन बी-6 ,सी, मग्नेशियम व भरपूर मात्रा में एंटी ओक्सिडेंट फ्लेवोनायडस और कैरोटेनायड्स हो |
ह्रदय रोगी को अक्सर कम वसा, कम कार्बोहायड्रेट और कम प्रोटीन का आहार लेना फायदेमंद होगा | सेब,अनार का जूस, आंवले का मुरब्बा ह्रदय को ताकत देता है और ये ह्रदय को सुचारू रूप से काम करने में मदद करते है |
प्याज और लहसुन से कोलेस्ट्रोल का स्तर घटते है और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करते है |
कैरोटेनायड्स एंटी ओक्सिडेंट के लिए टमाटर का सेवन करें जिसमे लायकोपिन का भंडार होता है | जो की दिल को सही से चलाने में सहायता करता है |
करौंदा में पॉलीफेनोलिक एंटी ओक्सिडेंट होते है जो रक्त संचार को सुचारू करते है | अनाज, अखरोट, अलसी के बिज, बादाम, सोयाबीन ये सब कोलेस्ट्रोल के अलावा ट्रीग्लिसेरायड्स स्तर को भी घटते है | इसमें रक्त के थक्के जमने की आशंका काफी कम हो जाती है |
इन प्रकृति उपचार के अलावा सेहतमंद जीवन जीने के लिए नियमित परहेज से रहना, नियमित शारीरिक व्यायाम करना और डॉक्टरों से नियमित पूर्वक जांच भी कराते रहना चाहिए |
वैसे फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के पास इसमें अचूक उत्पाद है जिसके माध्यम से ह्रदय सम्बंधित किसी भी परेशानी से मुक्त हो सकते है जो की निचे दी जा रही है
Aloe Vera Gel , Garlic Thyme , Artic Sea Omega - 3 , Pomesteen Power इत्यादि इसका सेवन चार से छह महीने करने के बाद किसी भी प्रकार के धमनियों का सूजन पर नियंत्रिती की जा सकती है | अतः ह्रदय रोग से मुक्त पाने के लिए उपरोक्त एलोवेरा के उत्पाद अपने जीवन में शामिल अवश्य करें और जीवन को खुशहाल बनाए |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
शराब अपनी जड़ें बट वृक्षों के भांति जमा रखी है | ऐसा प्रतीत होता है की इनके सेवन से होने वाले दूषपरिणाम से बिलकुल अनभिग्य है | जबकि इसके भयकर परिणाम की गाथा से सड़क,गलियारे,सिनेमा हौल,चौराहे आदि पटे हुए होते है | मिडिया भी इससे होने वाले दुष्परिणाम से बराबर अवगत कराता रहता है |
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है की शराब की सेवन से लाभ कुछ नहीं, हानी ही हानी है | उससे थकान मिटने और स्फूर्ति मिलने की बात सिर्फ कोरी बकबास के अलावा और कुछ भी नहीं है |
अक्सर इसकी शुरुआत बड़े ही शौकिया ढंग से होती है परन्तु बाद में वह मज़बूरी बन जाती है | शराब की हानियों के देखने के लिए दैनिक जीवन में शराब पिने वालों की दुर्दशा देखना ही पर्याप्त होता है | शराबियों की बुद्धि व स्मृति दोनों ही अस्त-व्यस्त हो जाती है |
मद्यपान से कई भयंकर रोग होने की संभावनाएं निश्चित तौर पर हो जाती है :-
"कोसिकोफ़" नामक मानसिक रोग होने की अधिकांस संभावना रहती है | इस रोग से व्यक्ति की स्मरण शक्त कमजोर पड़ते पड़ते वस्तुतः क्षीण हो जाती है |
आँखों में एक तरह का रोग भी होने का भय रहता है, जिसमे एक वस्तु की दो वस्तुएं दिखाई पड़ने लगती है |
ह्रदय रोग विशेषग्य के अनुसार प्रायः सभी शराबियों का ह्रदय अपने सामान्य आकार से कुछ बड़ा हो जाता है और इस कारण उसे साँस लेने में कठिनाई होने लगती है |
मद्यपान पेट और आंत की झिल्लियों को भी सीधा क्षति ग्रस्त करता है | तेजाब की मात्रा बढ़ जाने से अल्सर की शिकायत होने का डर रहता है | बहुत अधिक पिने के कारण कभी-कभी खून की उल्टियाँ भी होने लगती है |
बदहजमी और अपच की शिकायत रहना तो जैसे शराबियों के लिए आम बात है और इस कारण उसका वजन तेजी से घटने लगता है | इससे पैंक्रियाज ग्रन्थि और पेट को जोड़ने वाली नलिका कभी कभी सूजन के कारण बंद हो जाती है | ऐसी स्थिति में उदर में भंयकर शूल उठता है |
रक्तचाप तेजी से गिरने लगता है | अगर तुरंत उपचार न हो तो यह स्थिति जीवन संकट भी उपस्थिति कर देती है |
पैंक्रियाज ग्रन्थि का यह रोग बराबर बना रहता है और शराब के कारण ख़राब हो जाने से बहुत कम मात्र में इंसुलिन बनाती है | इस कारण मधुमेह रोग होने की संभावना भी रहती है |
मद्यपान के कारण जिगर को होने वाली सिरोसिस बिमारी इतनी भानकर है की 6 महीने तक रोगी को बुरी तरह तडपा-तडपा कर प्राण हरण कर लेती है |
इसके अलावा ह्रदय की भांति ही जिगर का आकार भी फैलने लगता है | मरने वाले शराबियों में 90 प्रतिशत प्रायः जिगर के रोगों से मरते है, क्योंकि इस विषैले तत्व को परास्त करने और उससे संघर्ष करने में शराब को ही अधिक मेहनत करनी पड़ती है |
इन्हीं सब कारणों है मद्यपान करने वाले व्यक्ति कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त होने लगते है क्योंकि उनकी जीवनी शक्ति, जो शरीर के क्रियाकलापों का संचालन और नियमन करती है वह शराब के माध्यम से आए अतिरिक्त अल्कोहल को पचाने में नष्ट हो जाती है और सामान्य रोगों का आक्रमण रोकने की शक्ति भी शरीर को नहीं रह जाती है |
इससे बचने के लिए इक्षा शक्ति होनी चाहिए, साथ में पौष्टिक पूरक और एलो वेरा जेल का नियमित सेवन करें जिससे की शराब के कारण शरीर में हुए क्षति को दुरुस्त किया जा सके | एलो वेरा जेल, बी प्रोपोलिस tablet , पोमेस्टीन पॉवर आदि का सेवन करें और अपने जीवन की कायाकल्प करें |
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आइये कल की चर्चा को एक बार फिर से आगे बढाते हुए, शुरुआत करते है मधुमेही का क्या आहार होना चाहिए और क्या नहीं ? चुकी एक ओर जहाँ दुनिया भर में इस रोग से करोड़ों लोग मुश्किल में फंसे हुए है तो दूसरी ओर इस रोग का स्थायी इलाज अभी तक नहीं मिल पाने के कारण दुनिया भर के चिकित्सा विशेषग्य हैरान परेशान है |
मधुमेह के नाम से मशहूर यह रोग वास्तव में 'मधुमेह' न होकर 'विपतियों का मेह' बना हुआ है | इस रोग से जुड़े हर पहलुओं पर चर्चा हमेशा किसी न किसी प्रकार से की जाती रही है | परन्तु आज उस पहलु पर चर्चा करने जा रहे है जिससे आम मधुमेही को विशेष जानकारी नहीं होती है यानि रोगीं को दैनिक उपयोग की वस्तुओं में किन-किन चीज का सेवन करना चाहिए तथा किसका नहीं !
तो आइये चर्चा करते है आहार सम्बंधित वस्तुए रोगी अपने दैनिक उपयोग में क्या अपनाए और क्या नहीं ?
1 . क्या मधुमेही चावल का सेवन कर सकता है ?
> चावल साधारण और जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है | अतः चावल-दाल के मिश्रण से बनी खिचड़ी खाई जा सकती है | मार्केट में अधिक रेशे वाले ब्राउन चावल भी मिलते है, इनका सेवन किया जा सकता है |
2 . क्या मधुमेही आलू का सेवन कर सकता है ?
>आलू भी चावल की तरह साधारण तथा जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है, फिर भी इसे सिमित मात्र में खाया जा सकता है | परन्तुं इसे अगर पत्तेदार और रेशेदार सब्जियों के साथ खाया जाये तो बेहतर होगा |
3 . क्या मधुमेही को पपीता खा सकता है ?
> अधपका पपीता खाना बेहतर है जो मीठा नहीं होता | पका पपीता से बचे क्यूंकि वह ज्यादा मीठा होता है |
4 . क्या मधुमेही जामुन खा सकता है ?
> हाईपोग्लाईसीमिक तत्व जामुन में पाया जाता है , जो अग्न्याशय और शर्करा स्तर को घटाता है, अतः जामुन का उपयोग मधुमेही के लिए बेहतर होगा | जामुन का गुठली का 3-3 ग्राम चूर्ण दिन में 3 बार लेने से रक्त शर्करा का स्तर घटता है |
5. क्या मधुमेही के लिए मेथी के बीज उपयोगी होते है ?
> मेथीबीज में हाईपोग्लाईसीमिक तत्व रक्त शर्करा को कम करते है, अतः इनका सेवन उपयोगी है | इसका सेवन सूप,चटनी या सब्जी के रूप में किया जा सकता है | यदि नित्य 12 घंटे पानी में भीगे मेथीबीज का पेस्ट बनाकर दबाई के तौर पर लिया जाए तो शर्करा का स्तर नियंत्रित रखा जा सकता है | दिन भर में 200 ग्राम तक लिए जा सकते है |
6 . करेला मधुमेही के लिए कितना उपयोगी है ?
> मधुमेही के आलावा और भी कई रोगों में करेला उपयोगी है | इसमें पाया जाने वाला इंसुलिन रक्त और मूत्र की शर्करा का कम करता है | यदि प्रतिदिन सुबह खली पेट 125 से 140 मि.ली. करेले का जूस लिया जाये तो परिणाम बेहतर मिल सकता है | यह लीवर और पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है तथा रक्त को शुद्ध व त्वचा रोग में भी लाभ होने लगता है |
7 . नीम की कोपलें मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> कोपलें ही नहीं बल्कि नीम की अन्तर्छाल भी रक्त शर्करा स्तर को कम करती है क्योंकि इसमें हाईपोग्लाईसीमिक तत्व होता है | नीम की पत्तियों और छाल का रस लेना बहुत ही फायदेमंद रहेगा | दोनों की बराबर मात्रा यानि 5 ग्राम को 300 ग्राम पानी में डालकर उबले | पानी जलकर एक चौथाई रह जाये तक छानकर पी लें | ध्यान रहें उपरोक्त रस का सेवन अधिक दिनों तक न करें क्योंकि नीम का ज्यादा सेवन से कामशक्ति प्रभावित हो सकती है |
8 . क्या अलसी का सेवन मधुमेही के लिए उपयोगी है ?
> जी हाँ, मधुमेही के लिए अलसी का सेवन उपयुक्त है | अलसी 25 ग्राम तक मिक्सी में पीसकर आटा में मिलकर इस आटे की रोटी खाई जा सकती है |अलसी का सेवन व्यंजन बनाकर भी किया जा सकता है |
9 . क्या दूध का सेवन मधुमेही को करना चाहिए ?
> यदि ह्रदय रोग की शिकायत न हो तब मधुमेही कम मात्रा में दूध का सेवन कर सकता है | स्किम्ड मिल्क की 500 मि.ली. मात्रा तथा टोंड मिल्क की 200 मि.ली. मात्रा का सेवन किया जा सकता है |
10 . मधुमेही को पनीर का सेवन करना चाहिए ?
> पनीर और छैना जो दूध के ही उत्पाद है, का सेवन मधुमेही कर सकते है, वशर्ते वह ह्रदय रोगी न हों |
11 . चाय-कॉफ़ी मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> इन उत्तेजक पेयों में टैनिन और कैफीन नामक तत्व होता है, अतः इनका सेवन कम से कम करना चाहिए | दिन भर में 2 कप चाय या कॉफ़ी बिना चीनी यानि फीकी अथवा कृत्रिम मिठास डालकर ली जा सकती है |
13 . क्या नारियल का सेवन मधुमेही के लिए उपयुक्त है ?
> ह्रदय रोगी के लिए नारियल उपयुक्त नहीं है | यदि केवल मधुमेह है, तब इसका सेवन किया जा सकता है | नारियल का पानी भी दिनभर में दो कप तक पिया जा सकता है |
14 .क्या बादाम का सेवन कर सकते है ?
> केवल मधुमेह होने पर बादाम का सेवन किया जा सकता है | 100 ग्राम बादाम में 58.9 ग्राम वसा पायी जाती है जो 12 चम्मच तेल के बराबर है | अतः यदि ह्रदय रोग और उच्चरक्तचाप भी साथ में है, तब इसका सेवन न करें |
15 . मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
> मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
16 . क्या अखरोट का सेवन उपयुक्त हो सकता है ?
> मधुमेह में अखरोट का सेवन किया जा सकता है | इसकी 100 ग्राम मात्रा में 64.5 ग्राम वसा होती है जिनसे ट्राईग्लिसराइड की मात्रा बढती है अतः ह्रदय रोग अथवा उच्चरक्तचाप में इसका सेवन करना ठीक नहीं है |
17. डबल रोटी का सेवन कितना उपयुक्त हो सकता है ?
> डबल रोटी भी दो प्रकार की मिलती है, एक तो मैदे से बनी हुई सफ़ेद डबल रोटी, इसकी 100 ग्राम मात्रा में 0.2 ग्राम फाइबर होता है | दूसरी डबल रोटी भूरे रंग की होती है जो आटे की बनती है, इसकी 100 ग्राम मात्र में 1.2 ग्राम फाइबर होता है तथा 245 कैलोरी पायी जाती है | इसलिए सफ़ेद की बजाय भूरी डबल रोटी अधिक उपयुक्त है |
सबसे उपयुक्त होगा अगर आप अपने आहार में एलो वेरा जूस शामिल कर लें | एलो वेरा में मौजूद क्रोमियम,बिटासेल्स और विभिन्न प्रकार के विटामिन्स, मिनरल्स,खनिज जो शरीर के सेल स्तर पर काम करती है और आपके शरीर की जरूरतों को पूरा कर देती है जिससे आप रहते है हमेशा चुस्त और दुरुस्त |
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रोगों की उपस्थिति कोई नई बात नहीं है, प्राचीन से अर्वाचीन कल तक हर युग में रोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है | बल्कि यह कहना यथार्थ होगा की मनुष्य के उद्भव से पहले रोगों ने अपनी जड़े जमा चुके थे | खोजों से यह पता चला है की रोग फ़ैलाने वाले कुख्यात मच्छड विश्व रंगमंच पर मनुष्य के आगमन से पहले ही आ गए थे | जाहिर सी बात है जब इसका अस्तित्व प्राचीन काल से है तो हर युग -हर काल में मनुष्य इनसे पीड़ित रहा है |
लेकिन वर्तमान में रोगों की व्यापकता जनमानस को त्रस्त कर रखा है | अधिकांस व्यक्ति आज कल किसी न किसी रोग से घिरे नजर आते है | कई रोग तो प्रयाप्त चिकित्सा लेने से मिट जाते है जबकी अनेक रोग चिकत्सा से शांत यानि दबा तो रहते है पर विदा यानि जड़ से खत्म नहीं होते | मेहमानों की तरह उम्र भर खातिरदारी कराते रहते है | जरा सी भी मेहमानबाजी में कमी हुई उनके तेवर चढ़ जाते है और फिर बहुत नुकसान पंहुचा जाते है | ऐसे रोगों में वर्तमान के प्रमुख रोग है ,मधुमेह !
आजकल मधुमेह की महामारी से न केवल व्यक्ति विशेष परेशान है बल्कि चिकित्सा विशेषज्ञों से लेकर सरकारें भी इस रोग को जड़ से नष्ट करने के प्रयासों में लगी हुई है|
एलोपैथी में औषधियों तथा इंसुलिन के सेवन से इस पर काबू तो पाया जा सकता है मातब बस दबाया जा सकता है लेकिन मिटा पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है |
कई जड़ी-बूटियां मधुमेह में बढ़ी हुई रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में उपयोगी सिद्ध हुई है, ऐसी वनस्पतियों( Forever Aloe Vera Gel) जिसमे बीटा सेल्स में वृद्धि करने की सामर्थ्य हो जिसमे क्रोमियम भी पाया जाता हो तो मधुमेही का जीवन कुछ आसन हो जाता है क्योंकि बीटा सेल्स की सक्रियता में आ रही लगातार कमी रुक जाती है इससे अग्न्याशय ग्रन्थि ठीक तरह से कार्य कर पाती है |
मधुमेही के लिए तो उचित यह होगा की उसे चिकित्सक के परामर्श पर एलोपैथिक औषधियों का सेवन के साथ ही गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियों का साथ सेवन करते रहें ताकि इस रोग के प्रभाव को नियंत्रण में रखकर अपने आहार-विहार के सही पालन करता हुआ रोगों से मुक्ति पाकर दीर्घायु प्राप्त कर सकें |
फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के मधुमेह पर कारगर " एलो वेरा जेल", "फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन", "लाइसियम प्लस", "जिन-चिया" इत्यादि उत्पादों में मधुमेह में अत्यंत उपयोगी और शरीर तथा शरीर में ताकत और जोश को बनाए रखने के लिए लोग री- वाइटल का प्रयोग करते है बिलकुल वही गुण आपको हमारी "जिन-चिया" में मिलेगी और वो भी 100 फीसदी आयुर्वेदिक | अतः शरीर के किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिए आप इसका प्रयोग करें और अपनी खोयी हुई शारीरिक ताकत को पुनः प्राप्त करें |
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हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार, त्यौहार या ख़ुशी के अवसर पर मिठाई न बांटे तो खुशियाँ अधूरी माना जाता है | चाहे अवसर हो, शादी-विवाह का, जन्म-दिन या कोई पर्व मिठाई हमारी प्राथमिकता होती है | वगैर इसके तो कई अनुष्ठान संभव ही नहीं हो सकता है |
पर क्या वर्तमान में जिस तरह से मिठाई को लेकर तरह तरह की भ्रान्तियां और रोज समाचार पत्र में मिलावट खोरो की चर्चा ,क्या लगता है की मिठाई खाना या बाँटना चाहिए ?
शायद नहीं पिछले साल की बात है मेरे कार्यालय में उपहार स्वरूप मिठाइयाँ बांटा गया था | लोगों ने जमकर खाया और अपने-अपने घर को भी ले गए थे | परिणाम बहुत भी भयावह हुआ सुबह बहुत लोग अस्पताल तक पहुच गए | कुछ लोगों को पेट में बहतु तेज जलन और स्वस्थ्य बिगड़ गया और उसे अपोलो में भर्ती कराया गया | उन लोगों की दीपावली अस्पताल के बिस्तर पर ही हुआ | तिन से चार दिन लग गया उनलोगों को सामान्य होने में |
अब कुछ दिन पहले की बात है - 10 टन नकली खोया बाजार में नकली मिठाई पडोसने के काम में लगे हुए है | पुलिस प्रशासन अभी भी मस्स्क्त कर रही है परन्तु उनके पहुच से दूर है | पुलिस की नाकामी के वजह से उनके हाथ में आई 10 टन नकली खोया गायब हो गया |
क्या मजाक है? लोगों की जान की पड़ी है | जाने अनजाने में ये जहर किस किस लोगों तक पहुंचेगी और उनका क्या परिणाम होगा ? इस सबके लिए जिम्मेदार कौन होगा ? सिर्फ इतन कह देने से काम नहीं चलेगा जहाँ पर लोगों की जिन्दगी और मौत का सवाल है | उचित कारबाई होनी चाहिए ताकि नकली खोया से बना हुआ मिठाई लोगों तक न पहुच सके |
भला 10 टन खोया कोई 10 किलो जैसे तो नहीं हो सकता है जो सामने रखी हो और अचानक से गायब हो जायेगा | प्रशासन के क्रियाकलाप पर यह एक संदेह का विषय है | उनकी जांच करके ऐसे भ्रष्ट पुलिस कर्मी को तत्काल निलंबन कर देना चाहिए |
कुछ लोगों के अपने आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करने के वजह से आम लोगों में जहर बाँट रहे है | प्रशासन चाहे तो वो ऐसे मिलावटखोरों को अपने गिरफ्त में ले सकती है परन्तु 'चोर चोर मसोरे भाई' वाली कहावत है न, भला कौन अपना नुकसान करें ? आजकल का नारा है "काम अपना बनता भांड में जाय जनता" |
मिलावटी मिठाइयों की भरमार के बाद लोगों में दीपावली पर उपहार स्वरूप चाकलेट बाँटने का चलन बढ़ा है | लेकिन मिलावटखोरों ने चाकलेट को भी अछूता नहीं छोड़ा है | यहाँ तक नामी गिरामी कम्पनी के प्रोडक्ट भी इसके शिकार है |
इसलिए आप ब्रांडेड चाकलेट खरीदने से पहले आप सावधान हो जाइये | चुकी विशेषज्ञों का मानना है की मिलावटी चाकलेट में घटिया किस्म की चीनी, वजन बढाने के लिए कुछ पदार्थ और घटिया रंग मिलाये जाते है जो की स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है |
अतः दीपाली की मिठाइयाँ कहीं आपके जीवन की मिठास के लिए मुसीबत न बन जाय | ऐसे कोई भी मिठाई व चाकलेट खरीदने से पहले आप सावधान रहें | हाँ सबसे अच्छा उपहार हो सकता है वर्तमान में ड्राई फ्रूट |
आप सबों को मेरे और मेरे परिवार की ओर से दीपावली का ढेरो-ढेरो शुभकामना !
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स्वाइन फ्लू यानि इन्फ़्लुएन्ज़ा ( एच1 एन 1 ) एक ऐसा वाइरस है जिन्होंने पूरी दुनिया में अपना दस्तक दे चुके है | शायद ही कोई ऐसा देश हो जो इनका शिकार नहीं हुआ हो | वैसे तो यह साधारण फ्लू जैसे ही होते है परन्तु अगर सही वक्त पर इसका इलाज नहीं किया गया तो यह जानलेवा भी सवित हो सकती है |
आमतौर पर यह सूअरों से होने वाली साँस संबधी बीमारी है | वैसे तो यह बीमारी सूअरों में ही होता है परन्तु कई बार सूअरों के सीधे सम्पर्क में आने से यह मनुष्यों में भी फ़ैल जाती है इसके अलावा संक्रामक बीमारी है | बलगम और छींके से भी यह बीमारी फलती है |
स्वाइन फ्लू के लक्ष्ण :-
इसमें 100 डिग्री से ज्यादा का बुखार आना लगभग आम है | खांसी,काफ आना, जुकाम या नाक बहना , बदन दर्द और सर दर्द , ठंढ लग्न, साँस लेने के तकलीफ , थकावट, उल्टियां और दस्त ,गले में खराश महशुस होना आदि इनके मुख्य लक्ष्ण है |
बेकाबू हो रही स्वाइन फ्लू के रोकथाम के लिए नित्य नए कदम उठाये जा रहे है ताकि इसपर नकेल लगाया जा सके |
खासकर गर्भवती महिलायें, छोटे बच्चे और बुजोर्गों को इससे ज्यादा सावधान रहने की जरुरत है | इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति मधुमेह, अस्थमा, फेफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी, अर्थात कमजोर प्रतिरक्षा तन्त्र वाले व्यक्ति को विशेष सावधान रहने की जरुरत है |
लेकिन आप घबराए नहीं , सरल उपाय से इस तरह के महामारी को बढ़ने से रोक सकते है |
> बहार से आने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धोएं |
> नाक, मुंह अथवा हाथ को छूने से पहले तथा बाद में हाथ को साफ़ जरुर करें |
> शारीरिक रूप से सक्रीय रहें और रोज व्यायाम करें तथा भरपूर नींद लें |
> भीडभाड वाले स्थान में अनावश्यक न जाए |
> हाथ मिलाना, लोगों से गले मिलना और चुम्बन अथवा छूकर लोगों का स्वागत करने के अन्य तरीके से बचे | चिकित्सक के परामर्श से ही दवाई ले | खुली जगह पर ना थूके |
जैसा की मैं अक्सर चर्चा करता रहता हूँ दुनिया के सर्वश्रेष्ट औषधि के बारे में, जी हाँ एक बार फिर से मैं दुहरा रहा हूँ अगर कोई व्यक्ति आज के धरती का अमृत एलोवेरा जेल का सेवन करें तो ये छोटी मोटी रोग उन्हें छू भी नहीं सकती | यहाँ तक की बड़े से बड़े असाध्य रोग भी अगर शरीर के अंदर बन रहा होगा तो वह भी स्वतः नष्ट हो जायेगा | यह वास्तव में मानव के लिए अमृत तुल्य है |
जेल में उपस्थित 200 से भी ज्यादा घटक होते है, 20 मिनरल्स,18 अमीनो एसिड्स और 12 विटामिन सहित 75 पोषक तत्व है | खासकर एलोवेरा में 8 आवश्यक अमीनो एसिड होते है जिनकी जरुरत इंसान को होती है परन्तु शरीर स्वतः निर्माण नहीं कर सकता |
अगर कोई व्यक्ति डायबिटीज,उच्च रक्तचाप, एसिडिटी, कब्ज़, गठिया, मानसिक रोग, ह्रदय रोग यानि की कब्ज़ से लेकर कैंसर तक पुराने रोग से पीड़ित हो | ऐसे में उन्हें रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कम हो जाती है |
इसिलए उन्हें विशेष प्रकार की जड़ी बूटी से निर्मित फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट्स के पोषक पूरक और एलो वेरा जेल से सम्पूर्ण फायदा मिल सकता है | अगर आप ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते है तो उन्हें इसके बारे में जरुर बताएं | शायद आपका सलाह किसी के जीवन में उम्मीद की नई किरण ला सके |
अतः मनुष्य को आज के वायरस वाले वातावरण में अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के पूरक का सेवन करना नितांत आवश्यक हो गया है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
ल्यूकोरिया वर्तमान समय में स्त्रियों की एक आम समस्या है | इससे ज्यादातर स्त्रियाँ प्रभावित होती है | इसे आयुर्वेद में "श्वेत प्रदर" और आम भाषा में लोग " पानी जाना" कहते है | इस रोग से किसी भी उम्र की महिलायें प्रभावित हो सकती है यहाँ तक की अविवाहित लड़कियां भी इस रोग की शिकार हो जाती है | ज्यादातर महिलायें जिन्हें बिना परिश्रम के भोजन मिल जाता है, या जिनका चलना फिरना कम होता है अर्थात जो मौज मस्ती एशो आराम की जिन्दगी जीती है | वे स्त्रियाँ इस रोग से शीघ्र ग्रसित हो जाती है |
यह रोग गर्भाशय की स्लैष्मिक कला में सुजन उत्पन्न हो जाने के फलस्वरूप हो जाता है | इस रोग में गर्भाशय से सफ़ेद रंग का तरल पानी आने लगता है, जिस प्रकार पुरुषों में प्रमेह की आम शिकायत होती है, ठीक उसी प्रकार यह स्त्रियों का रोग है | स्त्री के इस धातुस्त्राव में दुर्गन्ध आती है और उसकी योनी से जब तब चौबीस घंटे पतला-सा स्त्राव होता रहता है |
ल्यूकोरिया के मुख्य कारण पोषण की कमी तथा योनी के अंदर रहने वाले जीवाणु है | इसके अतिरिक्त और भी कई कारण होता है जो श्वेद प्रदर होने की संभावना रहती है | जैसे :- गुप्तांगों की अस्वच्छता , खून की कमी तथा अति मैथुन.अधिक परिश्रम, अधिक उपवास आदि है |
इस रोग के दुसरे कारण जीवाणु का संक्रमण, गर्भाशय के मुख पर घाव होना , यौन रोग , मलेरिया आदि से श्वेत प्रदर गंभीर रूप धारण कर लेता है | इस तरह से यह रोग बहुत ही कष्टदायक हो जाता है अतः रोग कैसा भी क्यूँ न हो कभी भी शर्म से या लापरवाही से छिपाना नहीं चाहिए |
श्वेत प्रदर के प्रारम्भ में स्त्री को दुर्बलता का अनुभव होता है | खून की कमी के वजह से चक्कर आने लगते है , आँखों के आगे अँधेरा छा जाने जैसे लक्ष्ण उत्पन्न हो जाते है |
कुछ महिलाओं में स्त्राव के कारण जलन और खुजली भी होती है | रोगग्रस्त महिला क्षीण व उदास बनी रहती है उसके हाथ पैरों में जलन और कमर दर्द बना रहता है |
रोगी की भूख में कमी आने लगती हैं कब्ज़ बनी रहती हैं तथा पाचन शक्ति दुर्बल हो जाती है | इनके अतिरिक्त बार-बार मूत्रत्याग, पेट में भारीपन, जी मचलाना आदि लक्षण पाए जाते है | इस अवधि में रोगी का चेहरा पिला हो जाता है | मासिक धर्म में भी गरबड़ी आ जाती है फलस्वरूप स्त्री चिडचिडी हो जाती है |
ल्यूकोरिया सामान्य हो या असामान्य सर्वप्रथम इसके मूल कारणों का निवारण करना चाहिए | रोगिणी को खान-पान में सावधानी रखनी चाहिए | खट्ठी-मिट्ठी चीजें, तेल-मिर्च, अधिक गर्म पेय तथा मादक पेय का त्याग करना चाहिए | गुप्तांगो को नियमित साफ़ करना चाहिए | खून की कमी को पूरा करने के लिए आहार या आहारीय पूरक का प्रयोग करना चाहिए | बार-बार गर्भपात कराने से बचें | रोग को शर्म से छिपायें नहीं और न ही ज्यादा चिंता करें |
इसके लिए बाहरी उपचार जैसे योनी को किसी अच्छे साबुन से दिन में दो बार धोएं |
फिर आयुर्वेदिक औषधि से आप वो सब कारणों का इलाज़ कर सकते है जिससे वो समूल नष्ट हो जायेगा | जो की निचे लिखा जा रहा है और यह ल्यूकोरिया के लिए एक अचूक औषधि है :-
1 . एलो बेरी नेक्टर
2 . पोमेस्टिन पावर
3 . गार्लिक थाइम
4 . फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन
5 . बी प्रोपोलिस
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी!
आज जहाँ स्वास्थ्य रक्षा में आयुर्वेद का अपना विशेष महत्व है वहीँ बीमारियों की चिकित्सा पद्धति के रूप में भी अपना अस्त्तित्व को बुलंद किया हुआ है |
जहाँ कई तरह के चिकित्सा पद्धति बीमारियों पर असफल हो सकती है, उसे आयुर्वेद में माध्यम से ठीक किया जा सकता है | आयुर्वेद हमेश से लोगों की मान्यता पर खरा उतरता है | साथ ही यह लोगों में विश्वास पैदा करने में सफल हो चुकी है की, आयुर्वेद रोगों का समूल नाश करने वाली चिकित्सा है | इससे रोग को शरीर से स्थायी निराकरण संभव है |
वर्तमान में विकृत जीवनशैली व आहार विहार के कारण रोगों की लंबी श्रृंखला है किन्तु गुदा की बिमारियों में आयुर्वेद का अपना विशेष अधिकार रहा है | यह बात सर्वमान्य है की आज पाइल्स का इलाज में आयुर्वेद से अच्छी चिकित्सा पद्धति नहीं हो सकती है यह स्वयं का अनुभव भी है | अतः आज हम इस क्रम में पाइल्स की बिमारी पर चर्चा कर रहे है क्यूंकि इस बिमारी से ज्यादातर लोग पीड़ित होते है | सामान्य तौर पर अर्श का मतलब है पालीप्स तथा गुदा में होने वाले अर्श को पाइल्स के नाम से जाना जाता है | गुदा में स्थित शिराओं के फुल जाने का नाम ही अर्श है |
इनके प्रमुख कारण है आहार विहार की अनियमितता , अनेक प्रकार के संक्रमण भी एक कारण हो सकते है |
इन कारणों के आलावा आयुर्वेद में शोक , क्रोध,चिंता, मोह, आलस्य आदि के साथ-साथ मद्यसेवन अत्यधिक मैथुन, अत्यधिक व्यायाम आदि भी इनके लिए जिम्मेदार होते है | ह्रदय रोगियों में अर्श होना सामान्य बात होती है |
इस तरह से सामान्य कारणों से लेकर बीमारियों के उपद्रव भी पाइल्स हो सकते है | यह एक ऐसे दुश्मन है जो शरीर के विनाश में लम्बा समय लेते हुए कष्ट के साथ जीवन जीने को मजबूर करते है |
आजकल हर गली के चौक चौराहें व मुख्य मार्ग पर पाइल्स या और भी कई प्रकार के बीमारियों का शर्तिया इलाज करते हुए चिकित्सक अपना बोर्ड व पर्चा चिपकाए नजर आते है |
परन्तु कई बार देखा गया है की इन्ही निम् हकीम के वजह से लोग और भी मुसीबत में पर जाते है | अर्थात इस प्रकार से पर्चे वाले चिकित्सक से आपको सावधानी से काम करना चाहिए |
पाइल्स के इलाज़ के लिए आप हमारे एलोवेरा जूस के साथ भी शुरू कर सकते है | चुकी आयुर्वेद के अनुसार अगर आपका आंत और दांत स्वस्थ्य है तो आप को किसी भी प्रकार के कोई रोग हो ही नहीं सकता | अतः आप अपने आहार को ठीक रखें जिससे आपक पेट ठीक रहे |
नई या पुरानी, साधारण या भयंकर, कैसी भी समस्या हो, कहीं का भी बीमारी हो, एलोवेरा बिमारी के पैदा होने के मूल कारणों को ही शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है | एलोवेरा इस प्रकार से नई बिमारी को पैदा नहीं होने देता है | जिस प्रकार गाड़ी की सर्विस कराते है, एलोवेरा ठीक उसी प्रकार से शरीर को अन्दर से सर्विस करता है | नहाने से शरीर की बाहरी भाग की सफाई होती है | एलोवेरा से शरीर के अन्दुरुनी भाग की सफाई होती है | जाहिर सी बात है अगर आप अंदर से साफ़ है तो कोई बिमारी आपको छू भी नहीं सकता है |
पाइल्स के लिए हमारे पास निम्नलिखित उत्पाद है जो इस्तेमाल कर कर इससे मुक्ति पा सकते है :-
1 . एलो वेरा जेल
2 . फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन
3 . फॉर एवर अल्ट्रा लाईट
4 . एलो लिप्स
5 . गार्लिक थाइमस
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हमारे देश में जिस रफ़्तार से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, वह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है | फसल की उपज को कीड़ों की मार से बचाने के लिए खेतों में अँधा-धुंध जहर छिडकने का प्रचलन में किसान भाई एक दुसरे को पछाड़ने में लगे हुए है |
यह जानकार आप भी अचम्भित हो जायेंगे की अगर कोई व्यक्ति पाँच वर्ष लगातार बैगन अथवा भिन्डी का सेवन अपने आहार में कर ले तो वो निश्चित तौर पर दमा का मरीज बन सकता है | यहाँ तक की उसकी श्वास नलिका बंद हो सकती है |
दरअसल बैगन को तोड़ने के बाद उनकी चमक को कायम रखने के लिए उन्हें फोलिडन नामक कीटनाशक के घोल में डुबाया जाता है, चुकी बैगन में घोल को चूसने की क्षमता ज्यादा होती है, अतः फोलिडन घोल बैगन में चला जाता है | इसी प्रकार से भिन्डी में जब छेदक कीड़े लग जाते है, तो इसके ऊपर भी इसी घोल का छिडकाव बहुत अधिक मात्रा में की जाती है |
चमकते हुए फल या सब्जियां हमें अपनी ओर ज्यादा आकर्षित करती है परन्तु हमें सावधान रहना चाहिए जब बाजार में सब्जी या फल खरीदने जाए | ध्यान रखें चमकता हुआ हरेक चीज अच्छा नहीं हो सकता | तो हमें ज्यादा चमक और हरी दिखने वाली सब्जी से बचना चाहिए |
वैसे आज उगने वाले हर फसल पर कुछ न कुछ कीटनाशक दवाई का प्रयोग करते है | जैसे गेहूं को ही लेते है तो उसके ऊपर भी मैलाथिन नामक पाउडर का इस्तेमाल कीड़ों से बचने के लिए करते है और गेहूं खाने वालो को इस पाउडर के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है , चाहे उसकी मात्रा थोड़ी ही क्यूँ न हो, परन्तु लगातार उपयोग करने से आगे जाकर ना जाने क्या-क्या परेशानी हो सकती है |
विश्व बैंक द्वारा किये गए अध्यन के अनुसार दुनिया में 25 लाख लोग प्रतिवर्ष कीटनाशकों के दुष्प्रभावों के शिकार होते है, उसमे से 5 लाख लोग तक़रीबन काल के गाल में समा जाते है |
चिंता का विषय यह भी है ,जहाँ एक तरफ दुनिया के कई देशो ने जिस कीटनाशक दवाई को प्रतिबन्ध कर दिया है , अपने यहाँ धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है | यहाँ तक की अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे देश में कारखाने स्थापित कर बहार के देशों के प्रतिबंधित अनुपयोगी व बेकार रासायनों को यहाँ मंगा कर विषैले कीटनाशक उत्पादित कर रही है |
इनमे से कई कीटनाशकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बेहद जहरीला और नुकसानदेह बताया है जिनमे डेल्तिरन, ई. पी.एन., क्लोरेडेन, फास्वेल आदि प्रमुख है |
दिल्ली के कृषि विज्ञानं अनुसन्धान केंद्र के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली के आसपास के ईलाकों में कीटनाशकों का असर 2 प्रतिशत अधिक है | लुधियाना और उसके आसपास से लाये गए दूध के सभी नमूनों
में डी.डी.टी. की उपस्थिति पाई गई है | यहाँ तक की गुजरात जो देश की दुग्ध राजधानी के नाम से जाने जाते है, वहां से शहर के बाजारों में उपलब्ध मक्खन, घी और दूध के स्थानीय बरंदों के अलावा लोकप्रिय ब्रांडों में भी कीटनाशक के अंश पाए गए है |
विश्व में हमारा देश डी.डी.टी. और बी.एच.सी. जैसे कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि डी.डी.टी. कीटनाशक रसायन अनेक देशों में प्रतिबंधित है | हमारे यहाँ जमकर इसका प्रयोग किया जाता है |
आज यह सवित हो चूका है की अगर हमारे खून में डी.डी.टी. की मात्रा अधिक होने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है | साथ ही हमारे गुर्दों, होठों,जीभ व यकृत को भी नुकसान पहुंचता है |
बी.एच.सी. रसायन डी.डी.टी. से ढाई गुना ज्यादा जहरीला होता है | परन्तु हमारे देश में गेहूं व अन्य फसलों पर अधिक उपयोग किया जाता है जो की कैंसर और नपुंसकता जैसी तकलीफ के लिए जिम्मेदार होता है |
आज जरुरत है कीटनाशकों के विकल्प साधनों की जो जैविक नियंत्रण विधि, सामाजिक व यांत्रिक तरीकों को अपनाएं | दुनिया के कई देशों में इनका व्यापक प्रयोग सफलता पूर्वक किया जा रहा है, जिससे कीटनाशकों की खपत एक तिहाई कम हो गई है और उत्पादन भी बढ़ गया है |
अतः आनेवाली पीढ़ी व हमारे स्वास्थ्य के लिए धीरे-धीरे कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना अति उतम होगा |
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....कुत्ते- कैसे कैसे?
आज हर कोई सुख पाना चाहता है | सुख ऐसा लक्ष्य है जो जीवन के पलपल में समाहित है | दुसरे जीव इसे सरलता से प्राप्त कर लेते है परन्तु इंसान इस के लिए वैसे ही भटकता रहता है जैसे कस्तूरी के लिए मृग !प्रकृति प्रदत फूलों की सुगंध स्वाभाविक रूप से खिलने के बाद आता है |
मनुष्य जीवन में सुख भी अगर स्वाभाविक रूप से हो तो उसका आनंद आएगा लेकिन जैसे-जैसे जीवन की स्वाभाविकता खोते जाते है , जीवन को कृत्रिम और अप्राकृतिक बनाते जाते है, वैसे वैसे जीवन से सुख का एहसास लुप्त होते जाते है |अतः जीवन को स्वाभाविक रूप से फूलों की तरह खिलने दें तो सुखानंद की अनुभूति स्वतः फूटती रहेगी |
इंसान जबतक बच्चा होता है, पालने पर पड़े-पड़े जोर-जोर से जमकर हवा में हाथ पैर चलाता है और जम कर जीवन का आनंद उठता है | जैसे जैसे इंसान बड़ा होता है , उसपर सामाजिक बंधन, पारिवारिक अनुशासन लादा जाने लगता है और उस के आनंद में अवरोध शुरू हो जाती है | पढ़ाई के दौरान हम प्रतिस्पर्धा सीखते है और फिर ईष्र्याद्वेष भी पनपने लगता है |
यहाँ तक आते-आते मनुष्य जीवन का नैसर्गिक सुख को खोने लगता है | चिंता, तनाव उस के जीवन से सुख की सुगंध को लुप्त कर डालते है , फिर शुरू होती नकली आनंद प्राप्त करने के खेल जो की मनोरंजन के तौर पर खरीद लाते है | पर क्या खुशियाँ जुटाने के लिए जो सुविधा और मनोरंजन देने वाले यंत्र खरीदने से आन्तरिक खुशियाँ मिलती है ? सच तो यह है की इस प्रकार व्यक्ति एक आत्मछल का खेल खेलता है, सुख नहीं पा सकता |
वैसे प्रकृति ने हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी प्रतिभा का बीज
रखा होता है | मनुष्य को उस बीज को जानना है, उसे पहचानना है | उसे सींचना और पोषित करना अति आवश्यक है | अपनी प्रतिभा को उचित आयाम देने के लिए आपका लक्ष्य और कार्यक्रम स्पष्ट होना चाहिए , साथ ही आप में लगन,मेहनत, निष्ठा और इमानदारी की कमी भी नहीं होनी चाहिए |
आप अपने परिश्रम और योग्यता के अनुरूप की कुछ पा सकते है, इसलिए आप योग्यता, क्षमता और व्यक्तित्व को विकसित करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए | गीता का सार जीवन का भी सार है , " कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन " ! अतः रूचि पूर्वक अपना कार्य करने से जीवन में उत्सुकता और खुशियाँ बनी रहती है |
वास्तविकता तो यह है की आनंद , सुख का जो मूल स्वरूप है तो हम सब के भीतर ही , केवल हमें उसे अपने जीवन शैली,आचरण और व्यव्हार में सुधार कर के सुरक्षित रखना है और ऐसा करके, अपने आप को बचा सकते है अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से भी |
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....कुत्ते- कैसे कैसे?
कुछ लोगों का ख्याल है की मधुमेह के रोगियों को कोई भी फल नहीं खाना चाहिए | दरअसल, मधुमेह के रोगियों को रेशेदार फल, जैसे तरबूज, खरबूजा,पपीता और स्ट्राबेरी आदि खाने चाहिए | इन फलों से रक्त शर्करा स्तर नियंत्रित होता है | अपने कम ग्लैसेमिक सूचकांक के कारण इन फलों से धीरे-धीरे शर्करा स्तर बढ़ता है और इससे मधुमेह के रोगियों को काफी लाभ होता है | मौसमी भी बहुत फायदेमंद है क्योकि इसमें मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत सारे खनिज और विटामिन होते है |
मधुमेह के रोगियों को फलों का रस नहीं पीना चाहिए क्योंकि इसमें चीनी या चीनी से बनी चाशनी मिलाई जाती है | इसके अलावा एक ग्लास जूस बनाने में ढेर सारे फल की जरुरत पड़ती है | जूस बनाने में फल का गुदा हट जाता है जिसमे लाभकारी रेशे होते है | सिर्फ आम, सीताफल, चीकू, केले और अंगूर जैसे फल नहीं लेने चाहिए क्योंकि इनसे रक्त शर्करा का स्तर लम्हे अरसे के लिए बढ़ जाता है | इसी वजह से पिंडखजूर और सूखे मेवे भी नहीं लेने चाहिए |
अध्ययन बताते है की ब्लूबेरी ( करौंदा ), अन्नानास, नाशपाती जैसे 75 ग्राम फल आपको 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस देते है | सौ ग्राम अमरुद, मौसमी, आडू, स्ट्राबेरी, पपीता आदि भी 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस देते है | नारियल, रसभरी, गुजबेरी आदि के 150 ग्राम से भी 10 ग्राम कार्बोहायड्रेटस मिलते है |
फलों में शर्करा फ्रक्टोज के स्वरुप में रहती है | मधुमेह के रोगियों के लिए यह एक अतिरिक्त लाभ है क्योंकि फ्रक्टोज की मेटाबोली के लिए इंसुलिन की जरुरत नहीं पड़ती , लिहाजा उसे भली-भांति बर्दाश्त कर लिया जाता है | फल में विटामिन, खनिज और रेशे होते है जिन्हें किसी भी स्वास्थ्यकारी आहार में होना चाहिए | रसदार ( Citrus ) फलों में मौजूद मैग्नेशियम इंसुलिन का एक महत्वपूर्ण तत्व है |
आनार और मैंगोस्टीन में रक्त शर्करा घटाने की क्षमताये है | मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन के लिए प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है |
मैंगोस्टीन इस प्रतिरोध को मद्धिम करने और पूर्णतया रोक देने में खास भूमिका निभाता है | रक्त शर्करा की उंच-नीच को घटाकर यह उसे नियंत्रित करता है और मधुमेह के रोगियों में बार-बार संदुष्ण होने की संभावनाए घटाता है |
जब पोमेस्टीन के इस्तेमाल से ग्लूकोज के लिए कोशिकाओं का प्रतिरोध समाप्त हो जाता है , तो कई मामलों में रक्त शर्करा का स्तर खासी मात्रा में गिर जाता है | लेकिन अधिकांश मामलों में रक्त शर्करा स्तर में कमी कई दिनों या हफ़्तों के बाद ही देखने में आती है | मधुमेह के रोगी का वजन घट जाता है क्योंकि इसकी वजह से न तो भूख में बढ़त होती है और न ही शरीर में तरल पदार्थ रुकते है ( Fluid Retention ) होता है |
तजुर्बे से पता लगता है की पोमेस्टीन से टाइप-2 मधुमेह से उन रोगियों में प्रभावकारी रूप से रक्त शर्करा नियंत्रित हो जाती है, जिनका पैक्रियास थोड़ी-बहुत इंसुलिन पैदा करता रहता है | इसमें क्षमता है की यह शरीर के उतकों में इंसुलिन
के लिए पैदा हो गए प्रतिरोध को घटा सकता है | परिणामस्वरूप शर्करा नियंत्रण क्षमता बढ़ जाती है | चुकी टाइप-2 मधुमेह की कई दशाएं होती है, इसलिए इसके रोगियों को सिर्फ 15 एमएल पोमेस्टीन प्रतिदिन से शुरुआत करनी चाहिए | एक महीने बाद इसकी खुराक बढ़ाई जा सकती है , तब तक रक्त शर्करा में होने वाली उंच-नीच में खासी कमी नजर आने लगेगी |
टाइप-1 मधुमेह के रोगी शायद शर्करा का घटना कम अनुभव करें, लेकिन उन्हें भी पोमेस्टीन के इस्तेमाल से एंटीओक्सिडेंट के महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे | मधुमेह से होने वाली अधिकाँश क्षति स्वतंत्र कोशिकाओं से होती है और पोमेस्टीन के एंटीओक्सिडेंट इन्हें निष्क्रिय बना सकते है |
जड़ी बूटी सम्बन्धी उपचार :-
1 .एलो वेरा जेल :- पैंक्रियास की कोशिकाओं को नवजीवन, शर्करा स्तर को कम करने में सहायक |
2 .बी पोलेन :- इसमें मौजूद पेनेडियम इंसुलिन के क्रियाकलाप के लिए जरुरी होता है , इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन और प्रोटीन है|
3 .फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन :- इसमें मौजूद मैग्नेशियम इंसुलिन के क्रियाकलाप के लिए जरुरी होता है, मेताबोली को संतुलित करता है |
4 .जिनचिया :- उर्जाकारक,चंगेपन का अहसास,इंसुलिन जैसे क्रियाकलाप के लिए एडेप्तोजेन होता है , कोलेस्ट्रोल में कमी लाता है |
5 .पोमेस्टीन पावर :- शक्तिशाली एंटीओक्सिडेंट, रक्त में शर्करा स्तर की तेजी से होने वाली घटत-बढ़त को कम करता है , जटिलताओं की रोकथाम कर उन्हें घटाता है |
6 .नेचर मीन :- उपयुक्त शारीरिक क्रियकलाप के लिए जरुरी , मधुमेह के पुराने मरीजों को खनिजों का अभाव हो सकता है जिसके लिए यह लाभदायक है |
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ऑपरेशन कनखजूरा !
कैंसर की बिमारी उस समय होती है जब शरीर की कोशिकाएं अनियंत्रित हो जाती है | अनुपयुक्त जीवनशैली व भोजन को कैंसर के 60 प्रतिशत मामलो के लिए जिम्मेदार माना जाता है | धुम्रपान,एक्सरे का अत्यधिक रेडीएशन, सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों का दुष्प्रभाव, रसायन, अनुपयुक्त भोजन, संदुष्ण,कुछ हरमों और विरासत में मिली जिन विकृतियाँ कैंसर का कारण बन जाती है |
अनियंत्रित असामान्य कोशिका वृद्धि कैंसर पैदा कर देती है और तब ये असामान्य कोशिकाएं बड़ी तेजी से बढ़कर प्रतिरोधक प्रणाली पर हावी हो जाती है | नतीजतन कैंसर जिस्म के दुसरे हिस्से में फ़ैल जाता है |
वर्धन ( Growths ) की दो श्रेणिया है :-
एक - गाँठ, फोड़ा, साधारण ट्यूमर ( रसौली ) इत्यादि |
दो - विशालू रसौली ( Malignant Tumor ) या कैंसर प्रभावित वर्धन ( Canceroucus Growth ) |
गांठ ( Cyst) :- छोटी थैली जैसे वर्धन या रेशेदार उतक ( Fabrous Tissue) में गुहिका ( Cavity ) बन जाती है और उसमे अर्ध-ठोस पदार्थ भर जाता है | यह हानिरहित वर्धन है और आमतौर से त्वचा पर या प्रजनन अंगों से होता है | दर्द के साथ छोटी सी सुजन पैदा होती है, बुखार हो जाता है, लेकिन इससे आगे यह नहीं फैलती | इलाज करने के बाद यह वर्धन दोबारा नहीं होता | कभी-कभी वर्धन संदूषित हो जाता है तो इसका ऑपरेशन करना पड़ता है |
फोड़ा ( Abscess ) :- जब हमलावर बैक्टेरिया को खत्म करने के लिए सफ़ेद रक्त खोशिकाएं कारवाई करती है तो किसी स्थान पर मवाद इकट्ठा हो जाता है | यह शारीर के किसी भी भाग में हो सकता है :- फेफड़े, मस्तिस्क, मसुढे जिगर, स्तन आदि में | फुंसी छोटा फोड़ा है जो किसी बाल के कूप के आसपास ही जाता है | फुंसी बैक्टेरियाई या वायरल संदुष्ण , मधुमेह, अपौष्टिक आहार या संदुष्ण के फैलने से हो सकती है | बड़े फोड़े से मवाद निकालने के लिए इलाज की जरुरत पड़ सकती है |
साधारण रसौली ( Ordinary Tumour ) :- जब अनियंत्रित और अकारण कोशिकाओं का असामान्य वर्धन होता है, तो आमतौर से त्वचा के निचे वसायुक्त उतक, रक्त या मांसपेशी के उतक में एक कड़ी सुजन-सी हो जाती है | यह सुजन हानिरहित होती है | इसमें न पीड़ा होती है और न ही संदुष्ण होता है | जब इसे निकल दिया जाता है, तो दोबारा नहीं होती या फैलती है |
फाइब्रायड्स (गर्भाशय रसौली )(Fibroids ) :- यह गर्भाशय का अहानिकारक वर्धन है जिससे श्रोणीय ( Pelvic ) पीड़ा और मासिकधर्म के दौरान भरी रक्तस्त्राव होता है | अन्य लक्ष्ण है पेट में सुजन, पीड़ा और बार-बार पेशाब लग्न, गर्भाशय उतक में असामान्य वर्धन आदि | अन्य समस्या है गर्भाशय का निचे खिसकना और अनुर्वरता |
कई महिलायें 35 और 55 की उम्र के बिच इस दशा के कारण हिस्टेरेक्टमी
करा लेती है यानि गर्भाशय निकलबा देती है | इसके बाद मासिक धर्म बंद हो जाता है और महिला गर्भवती नहीं हो सकती है |
सामान्यतया यां ऑपरेशन कराना अनावश्यक होता है और शायद इससे नुकसान भी होता है क्यूंकि रजोनिवृति के बाद भी एंडीक्राईन प्रणाली में गर्भाशय अहम् भूमिका निभाता है |
हिस्टेरेक्टमी से लम्बे अरसे में काफी जोखिम पैदा हो जाते है, जैसे कामुकता में कमी, सम्भोग के दौरान दर्द, हताशा का भाव, और डिम्ब ग्रंथियों को छोड़ दिए जाने के बाद भी असमय रजोनिवृति | फाइब्रायड्स( गर्भाशय रसौली ) के अब कई अन्य उपचार उपलब्ध है | डिंब-ग्रंथियों, गर्भाशय या सर्विक्स के कैंसर के उपचार में ही हिस्टेरेक्टमी कराना आवश्यक होता है |
जड़ी बूटी सम्बंधित उपचार के लिए निचे दिए जा रहे है :- ( गांठ, फोड़ा, रसौली तीनो के लिए उपचार एक ही है )
1 . एलो वेरा जेल
2 . गार्लिक थाइम
3 . बी प्रोपोलिस
4 . रोयल जेली
5 . पोमेस्टीन पॉवर
उपरोक्त आहारीय पूरक लेकर आप ऐसे रोग से मुक्ति पा सकते है | यह उत्पाद 100 प्रतिशत सुरक्षित है और इनका कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता है |
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चलिए फिर से आपको मैं अर्जुन वृक्ष की छाल के औषधि गुण के बारे में चर्चा करते है - किस प्रकार से मानव जाती के लिए बहुपयोगी औषधि है |
अर्जुन वृक्ष की छाल ह्रदय के लिए है ही बेहतर , इसके सेवन से ह्रदय के मांसपेशियों को मजबूती मिलता है और इसके आलावा यह शक्तिवर्धक, रक्त स्तम्भक एवं प्रमेह नाशक भी है | यह नाडी की क्षीणता में वृद्धि, पुराणी खांसी, श्वास आदि विकारों में भी हितकर है | इसे मोटापे को रोकने वाला तथा हड्डियों के टूटने पर उस अंग की हड्डी को स्थिर करके रक्त संचार को सामान्य रूप से चालू करके हड्डियों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पाया गया है |
रासायनिक तत्व :-
अर्जुन वृक्ष की छाल में पाए जाने वाले सक्रिय रासायनिक तत्व है, विटा साइटो सटेराल, अर्जुनिक एसिड और फ्रीडलीन | अर्जुन अम्ल ग्लूकोज के साथ संयुक्त होकर एक ग्लुकोसाइड बनाता है जिसे ' अर्जुनेटिक ' कहा जाता है | यह छाल का सबसे महत्वपूर्ण रसायन है |
इनके अलावा अर्जुन छाल में पाए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण घटक है:-
1. खनिज लवण :-
अर्जुन छाल में 34% के लगभग तो अकेला कैल्सियम कार्बोनेट ही पाया जाता है | इसके अतिरिक्त इसमें सोडियम, पोटेशियम, मैग्नेशियम और एल्युमिनियम आदि अन्य क्षार भी पाए जाते है | इन्हीं खनिज लवण की प्रयाप्त उपलब्धता के कारण ही अर्जुन छाल ह्रदय की मांसपेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य करके अपना औषधीय प्रभाव प्रकट करती है |
2. अर्जुन छाल में 20 से 25 प्रतिशत भाग टैनिन्स से बनता है | अर्जुन के छाल में पाए जाने वाले दो प्रमुख टैनिन है :- पायरोगेलाल और केटेकाल |
3. इसके अतिरिक्त अर्जुन छाल में अन्य कई पदार्थ भी पाए जाते है , जैसे :- कार्बोहाईड्रेट, रंजक पदार्थ, विभिन्न अज्ञात कार्बनिक एसिड और उनके ईस्टर्स|
ह्रदय रोगों में :- ह्रदय में शिथिलता या विकार आ जाने पर अथवा ह्रदय का आकर बढ़ जाने पर अर्जुन छाल का अत्यंत बारीक चूर्ण दुध में गुड़ के साथ उबाल कर क्वाथ बना कर पिलाया जाता है |
पुरानी खांसी में :- अगर पुरानी खांसी उपचार के बाद भी नियंत्रण में न हो तो अर्जुन की छल बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है | खांसी के लिए अर्जुन का छाल का उपयोग निम्न प्रकार से करना चाहिए |
अर्जुन की छाल को सर्वप्रथम बारीक़ पिस ले और उसे कीसी कांच या मिटटी के वर्तन में भरकर 24 घंटे के लिए रख दें और फिर उसे खरल में डालकर 2 -3 घंटे तक अच्छी तरह घोंट कर धुप में सुखा ले | इसे पुनः पिस व छान कर किसी स्वच्छ पात्र में भर कर रख लें |
इस चूर्ण को आधी से एक चम्मच की मात्र में थोड़े से पानी में उबल कर 1 से 2 चम्मच शहद मिलकर दिन में तिन बार पिने से लगभग सभी प्रकार की खंसियों में आराम आ जाता है , जहाँ तक की क्षय रोग की उस खांसी में भी, जिसमे बलगम के साथ रक्त मिश्रित होकर आता है |
खुनी पेचिश :- इसमें अर्जुन की छाल को बकरी के दूध में पीसकर दूध और शहद मिलकर पिलाने से शीघ्र आराम आ जाता है |
हड्डी की टूटन या घाव में :- शरीर के किसी अंग विशेष की हड्डी टूट जाने पर भी अर्जुन की छाल शीघ्र लाभ करती है |
बवासीर में :- बवासीर में अर्जुन छाल को हारसिंगार के फुल तथा बकायन के फलों के साथ अत्यंत बारीक चूर्ण बनाकर 4 -4 ग्राम की मात्रा में दिन दो से तिन बार नियमित रूप से सेवन करते रहने से बवासीर के साथ आनेवाला रक्त गिरना बंद हो जाता है तथा बवासीर के मस्से सिकुड़ने लग जाते है |
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अर्जुन- इसे लोग धवल,ककुभ तथा नदीसर्ज ( नदी-नालों के तट पर होने के वजह ) भी कहा जाता है | साधारण बोलचाल की भाषा में इसे कहुआ तथा सादड़ों नाम से जाना जाता है | यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसे अलग-अलग भाषा व प्रान्त में अलग-अलग नाम से जाने जाते है जैसे- संस्कृत में - ककुभ,हिंदी में - अर्जुन,बंगला में-अर्जुन गाछ,तेलगु में- तेल्लमदिद, कन्नड़ में मदिद, तेलगु में- तेल्लमदिद, तमिल में -मरुदमरभ या बेल्म, अंग्रेजी में - अर्जुन वृक्ष कहा जाता है | वानस्पति नाम टर्मिनेलिया अर्जुन है |
अपने देश के लगभग प्रत्येक प्रान्त में पाया जाता है , खास कर बिहार, उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमालय के तराई वाले क्षेत्र और शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों , सड़क के किनारे एवं बाग़-बगीचों में पैदा होता है | यहाँ तक की दिल्ली के इंडिया गेट में भी इसके वृक्ष है | यह एक सदा हरि रहने वाला वृक्ष है |
अर्जुन वृक्ष की छाल का ही मुख्य रूप से औषधि के रूप में उपयोग होता है | इसके छाल उतारने के लिए कम से कम दो वर्ष ऋतुएँ चाहिए | एक वृक्ष में छाल तिन साल के चक्र में मिलती है | छाल उतरने के बाद पुनः छाल आ जाती है | इसकी छाल ऊपर से सफ़ेद, अन्दर से चिकनी, मोती तथा हलके गुलाबी रंग की होती है और कई बार वर्ष में स्वतः निकलकर निचे गिर पड़ती है | छाल का स्वाद कसैला, तीखा होता है | इसमें गोदने पर एक प्रकार के दूध सा निकलता है |
वसंत ऋतू में वृक्ष पर नए पते आते है जो छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते है | इसके पते अमरुद के पते के आकर का 6 से 20 से.मी.लम्बे आयताकार होते है | वृक्ष पर पते आते ही शाखाओं पर फुल भी आते है | अर्थात अर्जुन वृक्ष पर वसंत ऋतू या वैशाख या जयेष्ट मॉस में सफ़ेद-पीले हरियाली युक्त छोटे-छोटे फुल मंजरियों में आते है | इनमे हलकी सुगंध भी होती है | इसके फल लम्बे-अंडाकार 5 या 7 धारियों वाले जेष्ठ से श्रावण मास के बीच लगते है और शरद ऋतू में पकते है | स्वाद कसैला होता है | फल ही अर्जुन वृक्ष का बीज है | अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ , भूरा-सुनहरा सा व पर्दाश्क होता है | यह गोंद भी खाने के काम आता है तथा ह्रदय के लिए हितकारी माना जाता है |
भारत में अर्जुन वृक्ष की कम से कम 15 प्रजातियाँ है | सभी वृक्षों की औषधीय क्षमता अलग-अलग होता है | इसी कारण यह पहचान करना बहुत जरुरी है की कौन से वृक्ष की छाल औषधि रूप में ह्रदय रक्तवह संस्थान पर कार्य करती है |
औषधीय गुण वाले अर्जुन वृक्ष की छाल अन्य पेड़ों की छाल की तुलना में कहीं अधिक मोती तथा नरम होती है | रेशा रहित यह छाल अन्दर से रक्त जैसी लाल रंग की होती है | पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में उतरती है ,क्यूंकि अर्जुन का ताना काफी मोटा होता है |
संग्रह विधि :- औषधि रूप में आमतौर पर अर्जुन वृक्ष की छाल ही उपयोग की जाती है | अतः इसकी छाल को अच्छी तरह से सुखा कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर या फिर चूर्ण के रूप में ढक्कनदार पात्रों में भर कर ठंढे स्थानों पर रखा जाता है | इस प्रकार संग्रहित की गई अर्जुन वृक्ष की छाल 2 वर्ष तक प्रभावशाली बनी रहती है |
औषधि गुण :- प्राचीन आयुर्वेद शास्त्रियों में वागभट्ट ही ऐसे एकेले वैद्य थे जिन्होंने सबसे पहली बार इस औषधि के ह्रदय रोगों में उपयोगी होने की विवेचना की थी | उनके बाद चक्रदत और भाव मिश्र ने भी अर्जुन वृक्ष की छाल को ह्रदय रोगों की महौषधि स्वीकार किया | चक्रदत ने ऐसा माना है की घी,दूध या गुड़ जे सतग ही अर्जुन वृक्ष की छाल का चूर्ण, नियमित सेवन करता है, उसे हृदयरोग,जीर्ण ज्वर,रक्त पित जैसे रोग कभी नहीं सताता और वह चिरंजीवी होता है |
अतः मानव जीवन के लिए अर्जुन वृक्ष एक वरदान स्वरूप है | विस्तार में इसके औषधि गुण के बारे में हम अगले अंश में चर्च करेंगे | चुकी इसके औषधि गुण की लिस्ट बहुत लम्बी है तो इंतज़ार कीजिये अगले अंश की |
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आधुनिक जीवनशैली में स्वस्थ्य व सेहतमंद किस तरह से रहा जा सकता है ? कैसे रखे अपने आपको चुस्त और दुरुस्त ?
जबकि आज हम सब एक मानव मशीन की तरह दिन-रात काम में व्यस्त रहते है | दिन में आराम की बात छोडिये यहाँ रात को भी करबटें बदलते बीत जाते है | मानसिक परेशानी का ऐसा सबब है की रात बगैर नींद की गोली से आराम करना कुछ लोगों के लिए मुश्किल हो जाती है | आखिर क्या है यह ? और क्यूँ बेचैन है ?
इन सबका कारण है मनुष्य भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए शारीरिक सुख दाव पर लगाए हुए है | जबकि आज के समय में हम सब में आर्थिक रूप से बहुत कुछ पा लिया है परन्तु शारीरिक कीमत को भी चुकाना पड़ा है | दूसरी सबसे अहम् बात है समय के आभाव, जो की सबसे बड़ी समस्या है | लोगों को अपने खाने-पिने का भी समय दे पाना मुश्किल हो रहा है | इसी वजह से आज फास्ट फ़ूड कम्पनी खूब फल - फुल रही है |
इन सभी समस्या के पीछे हमारी विकृत आहार ही है | डिब्बा बंद खाना व जंक फ़ूड , जिसे परिरक्षित करने के लिए बहुत ही हानिकारक रासायन मिलाया जाता है | एक ऐसा रसायन जो अगर कुते खा ले तो वो भी चंद मिनटों में ढेर हो जाये यानि मौत भी हो सकती है | जिसे हमलोग बड़े चाव से खाते रहते है |
जरा सोंचे क्या होगा जब इस तरह से रासायन हमारे शरीर में
प्रवेश करेगा ? नुक्सान के अलावा कुछ नहीं कर सकता है | वर्तमान समय में ज्यादातर लोग पेट के परेशानी से ग्रस्त है जैसे कब्ज़ , गैस, अल्सर ,बवासीर इत्यादि ,ये सभी के सभी गलत खान-पान के नतीजा है |
अगर एक बार पेट की परेशानी शुरू हुई तो मेडिकल साइंस में इसके इलाज ढूंढ़ते रह जाओगे | ढूंढते रह जाओगे, मतलब जिन्दगी भर दवाइयां खाते रहो परन्तु पूरी तरह से काबू नहीं कर पायेंगे | फिर शुरू होगी कुछ असाध्य रोग जैसे मधुमेह, रक्तचाप, ह्रदय रोग , गठिया इत्यादि ये सब के सब पेट की बिमारी कब्ज़ , गैस की देन है |
अतः हमें अपने आहार में परिवर्तन करना चाहिए | खाना में भरपूर मात्र में पौष्टिक तत्व हो, फाइबर युक्त हो, जिससे आपके पेट में कब्ज़ नहीं बनेगा और आप हमेश तरोताजा महसूस करेंगे |
एक और वनौषधि जो पेट के किसी भी प्रकार के रोग से लड़ने के लिए रामवाण है | कितना भी पुराना से पुराना कब्ज़ व गैस की परेशानी हो , आप उससे छुटकारा पा सकते है |
जी हाँ एक बार फिर से मैं बात करने जा रहा हूँ विश्व प्रसिद्ध व मनुष्य
शरीर के लिए अमृत तुल्य " स्थिरीकरण एलो वेरा जेल " अपने जीवन के दैनिक आहार में शामिल करें और बहुत सारे बिमारी चाहे वो पेट की हो , त्वचा की , बाल की, या शरीर के किसी भी अंग की ,उसमे बहुत ज्यादा लाभ मिल सकता है |
शुद्ध और तजा एलो जेल जो ऍफ़.एल.पी प्राकृतिक रूप से परिरक्षित कर जूस 4 साल के बाद भी एक ताजा पते के जूस के बराबर पौष्टिक मिलेगा | दुनिया में शुद्ध एलो वेरा के सबसे बड़े उत्पादक होने के बाबजूद उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है गुणवता को कायम रखना | अपने स्वस्थ्य व सेहत के लिए लाखो लोग जिन उत्पादों पर निर्भर करते है, उनका उत्पादन करने व गुणवता और शुद्धता के सर्वोच्च मनको पर खरे उतरना सबसे बड़ी चुनौती है और ये बखूबी बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ निभा रहे है |
इन सबके वाबजूद , ऍफ़.एल.पी एलो जेल को कई तरह की
प्रतिष्ठा दिलाई है | इस उद्योग में प्रतिष्ठित इंटरनेसनल एलो साइंस काउन्सिल , सिल औफ़ अप्रूवल पाने वाली यह पहली कंपनी थी |
शुद्धता का यह अति सम्मानीय सबूत इस बात की आश्वासन है की हर उत्पाद में डाले गए शुद्ध एलो की गुणवता और मात्र किसी भी तरह से दुसरे दर्जे की नहीं है | इसके आलावा , ऍफ़. एल.पी के एलो वेरा पेय पदार्थों को अन्तराष्ट्रीय स्वीकृति और उत्कृष्टता के प्रमाण के तौर पर इंटरनेसनल कोशेर और इस्लामिक सिल्स औफ़ अप्रूवल मिली हुई है |
अतः हमारी कंपनी ऍफ़.एल.पी , दुनिया के 9 .5 मिलियन से भी अधिक वितरक को उच्च गुणवता वाले एलो वेरा आधारित स्वास्थ्य और सौन्दर्य उत्पाद प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करते है |
हमें गर्व है की हमारे उत्पादों ने पूरी दुनिया के 145 से भी अधिक देशों के लाखों लोगों को लाभान्वित किया है और ऐसे ही गुणवता व उत्कृष्टता के लक्ष्य को जारी रखने का वादा करते है |
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मिट्टी आसानी से हरेक जगह उपलब्ध हो जाती है इसीलिए उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है | परन्तु मिट्टी के एक टुकड़े को यदि प्रयोगशाला में जाँच कराया जाय तो उसमे अनेकों प्रकार के क्षार , विटामिन्स, खनिज, धातु, रासायन रत्न, रस आदि निकालेंगे |
क्या आपने कभी अनुभव किया है मिट्टी में एक बहुत ही खास गुण होता है | शरीर के जिस भाग में गीली मिट्टी के लेप लगाकर बांधा जाय तो उस अंग विशेष का विषैला अंश खींचकर मिट्टी में चला जाता है | मिट्टी के अंदर विश्हरण शक्ति होता है | रोगुक्त अंग पर गीली मिट्टी के बाँधने के कुछ देर पश्चात् खोला जाय तो मिट्टी में मनुष्य के शरीर का विष बहुत अधिक मात्रा में मिलेगा |
औषधियां कहाँ से आती है? जबाब होगा पृथ्वी , मतलब सारे के सारे औषधियां के भंडार होता पृथ्वी | अतः जो तत्व औषधियों में है, उनके परमाणु पहले से ही मिट्टी में उपस्थित रहते है | मिट्टी के उपयोग द्वारा स्वस्थ्य सुधारने में हमें बहुत सहायक साबित हो सकती है इसके लाभ से बंचित न रहे, और निर्दोष,पवित्र भूमि पर पैदल यानि नंगे पाँव चलना चाहिए |
हरियाली , हरी भरी छोटी-छोटी घास पर नंगे पाँव टहलना शरीरी के लिए बहुत ही ज्यादा अच्छा होता है | जमीन पर सोने के लिए मुलायम बिस्तर लगाया जाय तो बहुत ही अच्छा है , यदि ऐसा नहीं हो सकेगा तो चारपाई जमीन से बिलकुल करीब हो ताकि मिट्टी से निकलने वाली वाष्प अधिक मात्रा में मिलता है |
सैम्पू और साबुन से स्नान करने का प्रचलन फैशन के इस दौर में बढा है | वैसे मिट्टी का प्रयोग साबुन के अपेक्षा हजार दर्जे अच्छा है | साबुन में मौजूद कास्टिक सोडा त्वचा में खुश्की पैदा करता है जबकि मिट्टी में यह बात नहीं है ,वह मैल को दूर करती है , त्वचा को कोमल , ताजा, चमकीली एवं प्रफुल्लित कर देती है | शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करना एक अच्छा उबटन माना जाता है |
दिनों में उठने वाली घमौरियां और फुंसियाँ इससे दूर हो सकती है | सिर के बालों को मुल्तानी मिट्टी से धोने का रिवाज अभी तक मौजूद है | इससे मैल दूर होता है,काले बाल, मुलायम, मजबूत और चिकने रहते है तथा मस्तिस्क में बड़ी तरावट पहुँचती है |
साफ़ स्थान की मिट्टी चिकित्सा कार्य में उपयोग किया जाता है | खासकर चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम माना गया है | इसकी पट्टी प्रायः हर बीमारी में फायदा करती है | ऐसा भ्रम न मन में पालें की इससे ठंढ लग जाएगी | यह अनेक परिक्षण के बाद गलत साबित हुआ है |
अन्दुरुनी भाग के विकार में जहाँ दबा का असर ठीक तरह से नहीं पहुंचा सके, वहां मिट्टी के उपचार से अच्छे परिणाम की उम्मीद की जा सकती है | इससे आप गुर्दे की खराबी,मूत्राशय रोग,पेट के भीतरी फोड़े,गर्भाशय सम्बंधित विकार,मासिक धर्म की अनियमितता व पेडू की सुजन,दिल की धड़कन के तीव्र होना या अति मंद हो जाना,फेफड़ो का क्षय रोग,जिगर व लीवर की सुजन व दर्द आदि शरीर के अधिक भीतर भाग में होने वाले रोगों में, उदर या छाती पर मिट्टी की पट्टी बांधने से भीतरी विष धीरे-धीरे खिंच जाता है और वे प्राण घातक रोग अच्छे हो जाते है |
पेट दर्द,कब्ज़, आँतों का दाह, पेचिश, जलोदर आदि के लिए पेट पर मिट्टी का लेप लगाकर बांधने से बहुत फायदेमंद साबित होता है | फुंसी, फोड़ा,जख्म, गाँठ, गिल्टी, नासूर, सुजन, खुजली, दाद, दर्द आदि के लिए उस स्थान पर मिट्टी बंधनी चाहिए जहाँ तकलीफ हो | मसूढ़ों के दर्द में गाल के ऊपर आस-पास मिट्टी बांधनी चाहिए |
जहरीले जानवर के काटे हुए स्थान पर मिट्टी की टिकिया या लेप तुरंत फायदा पहुंचाती है | बर्र, बिच्छु, ततैया,मधुमक्खी, कनखजूरा, चूहा,मेढक,छिपकली , मकड़ी,कुता, बन्दर आदि के काट लेने पर उस स्थान पर मिट्टी की टिकिया बांध देनी चाहिए, दर्द शीघ्र बंद हो जाएगा और जहर नहीं चढ़ने पायेगा |
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