" "यहाँ दिए गए उत्पादन किसी भी विशिष्ट बीमारी के निदान, उपचार, रोकथाम या इलाज के लिए नहीं है , यह उत्पाद सिर्फ और सिर्फ एक पौष्टिक पूरक के रूप में काम करती है !" These products are not intended to diagnose,treat,cure or prevent any diseases.

Oct 28, 2010

एलोवेरा है जहाँ तंदुरुस्ती है वहां !

माँ लक्ष्मी पूजन की तैयारी में आज कल लोग ज्यादा व्यस्त है | जहाँ तक निगाहें जाती है , घर में कुछ न कुछ काम, साफ़-सफाई, रंगाई, सजावट इत्यादि चलता देखा जा रहा है | भला हो भी क्यूँ न साल में एक बार तो ऐसे अवसर आते है जब घर के कोने-कोने तक चमकाए जाते है | दरअसल माता लक्ष्मी की स्वागत का मसला है भाई, और जहाँ सफाई है वहां माँ लक्ष्मी की निवास तो जरुर होगी |

अतः मैंने भी अपने घर के कोने कोने को नए रूप और रंग देने में लगा था | आखिर कुछ ही दिनों के बाद जो दीवाली आ रही है | साफ़-सफाई के वजह से घर के सामान अस्त व्यस्त था परन्तु आज कुछ सामान्य सा लग रहा है, तो सोचा क्यूँ नहीं आपलोगों का हाल चाल जान लूँ |

सप्ताह पहले ही हमारे पुरे परिवार के तरफ से आप सब पाठक और मेरे मित्र को दीवाली की हार्दिक बधाई और इश्वर से प्रार्थना है की आपके घर खुशियाँ, सुख, समृधि व धन-धन्य से भरपूर रखे |आप निरोग, सेहत मंद रहें, चुस्त दुरुस्त रहें- यही हमारी शुभकामना है |

पिछले अंश को एक बार फिर से आगे बढ़ाते हुए, जैसा की हमने कहा था एलोवेरा के बारे में लोगों की आम सवाल क्या होता है ? कुछ और अच्छी जानकारी है जो आपके साथ बांटना चाहता हूँ | आइये जानने की कोशिस करते है एलोवेरा कुछ विशिष्ट गुण और क्या है ?:-
आखिर एलो वेरा को क्या चीज इतना विशिष्ट व अद्भुत बनाती है ?
वैज्ञानिक शोध एलो के अनेक ऐसे स्वास्थ्यकारी गुणों की पुष्टि कर चूका है की उनके बारे में जानकर कोई भी कहेगा," यह सच नहीं हो सकता है |" एलो वेरा कई तरह से शरीर की सेहत और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ा देता है और वह भी प्राकृतिक रूप से, जिसके सिर्फ अच्छे प्रभाव पड़ते है |


एलो वेरा में सभी प्रकार के पॉलीसेखेराइड्स ( कोशिकाओं को पोषण देने वाली शर्करा की जटिल श्रृंखला ) सहित 250 तत्व होते है | शरीर इसका निर्माण किशोरावस्था तक करता रहता है | इसके बाद हमें ये स्वास्थ्यकारी और बाढ़ जरी रखने वाले पॉलीसेखेराइड्स बाहरी स्त्रोतों से लेने पड़ते है | एलो वेरा यह पौधा है जिसमे स्वास्थ्यवर्धक म्युकोपॉलीसेखेराइड्स का सबसे बड़ा जखीरा पाया जाता है |

केरिंगटन लेबोरटरीज , एक दावा कम्पनी ने एलो वेरा में शर्करा की लम्बी श्रृंखला के विभिन्न आकारों में आश्चर्यनक तत्व दर्ज किये है | डॉ इवान डेनहॉफ की रिपोर्ट के अनुसार छोटी कड़ियों में पॉलीसेखेराइड्स में वे तत्व है जो रक्त शर्करा स्तर का संतुलन बनाए रखने में मदद करते है | शोध अभी भी जारी है परन्तु काफी साबुत मिल चूका है की इंसुलिन रिसेप्टर कोशिकाओं को सुधार देते है |

इसीलिए इसका महत्व टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह के लिए बढ़ जाता है | इसके अतिरिक्त ये मिठाई/शर्करा के तलब को भी संतुलित करते है | शोधों से यह भी पता चला है की इन अपेक्षाकृत छोटे पॉलीसेखेराइड्स में कुछ उद्दीपन-रोधी तत्व भी है जो स्टेराईड्स की तरह काम करते है |


माध्यम आकर के पॉलीसेखेराइड्स में शक्तिशाली एंटी-ओक्सिडेंट पाए गए है | अपेक्षाकृत बड़ी श्रृंखलाओं ( स्टेप,स्ट्रेप, ई-कोली जैसी ) में बैक्टीरिया रोधी तत्व है जो बैक्टीरिया पर सीधे वार करते है | इसी तरह से इनसे हर्पिस,इन्फ्लुएंजा जैसे वायरसों में प्रत्यक्ष लड़ने वाले तत्व भी है | इनसे शरीर के उतकों की नवजीवन प्रक्रिया को प्रेरणा मिलती है |

एलो वेरा का उपयोग करना वह तरीका है जिसके जरिये शरीर की अपनी स्वास्थ्य लाभकारी प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जाता है | निरोधक कोशिकाओं की सेना को मेक्रोफेज कमांड करते है, वे ही इस सेना को आदेश देते है की वह कहाँ जाए, कब और कितना जबरदस्त हमला करें और कब युद्ध बंद कर दें |

एक बिल्ली जिसकी औसतन उम्र 6 से 8 साल की होती है | और जहाँ घर की बिल्ली हो जिसे खान-पान का ध्यान रखा जाता है मेरा मतलब है पालतू बिल्ली तो वह ज्यादा से ज्यादा 14 -15 साल तक जी सकती है | परन्तु एक बिल्ली ऐसी भी थी जो अपने जीवन का 31 साल 2 महिना पूरा किया है | लन्दन के घर में एक बिल्ली ने अपने 31 वाँ वर्ष गाँठ मानाने के दो महीने बाद मर गई |बीबीसी समाचार में World's oldest cat and Forever Living Product Aloe Vera Gel

अब आप कहेंगे भाई ये क्या बिल्ली की कहानी लेकर बैठ गए | दरअसल ये खबर मैं नहीं यह बीबीसी की पहली खबर थी साल 11 जुलाई 2001 की, दुनिया का सबसे बूढी बिल्ली नाम स्पाइक और uk में थी | जब उनसे पूछा गया की लम्बे उम्र का राज क्या है ,तो उन्होंने बताया मैं पिछले दस साल फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट का एलो वेरा उनके आहार में शामिल करती रही है | और वो लगातार स्वस्थ्य रही है जीवन के अंतिम दिनों में भी वो स्वस्थ्य थी | अतः एलो वेरा के विशिष्ट गुणों के वजह से ही हमारे कोशिकाओं की नवजीवन प्रदान होता रहता है और हम हमेशा जवान और स्वस्थ्य नजर आते है |
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Oct 17, 2010

क्या होता है एलो वेरा के बारे में आम सवाल? आइये जानते है !

एक बार फिर से एलोवेरा के सम्बन्ध में जानकारी लेकर उपस्थित हो रहा हूँ | दरअसल अपने देश के विभिन्न प्रान्तों से इस उत्पाद के बारे में फोन आता रहता है | कुछ लोग घर के गमले में लगे एलो वेरा ( ग्वारपाठा) के बारे में जानना चाहते है की वो उसका जूस किस तरह से निकले और पियें | कुछ लोग उसे खाने और सब्जी बनाने के विधि पूछते है वगैरह वगैरह | तो मैंने सोचा क्यूँ नहीं आज इस पोस्ट के माध्यम से लोगों के मन की भ्रांतियां को दूर किया जाय ? तो पेश कर रहा हूँ कुछ अति विशिष्ट जानकारी जो हम सबके लिए बहुपयोगी है |

क्या सामान्य और स्वस्थ्य लोगों को एलो जेल लेना चाहिए ?
जी हाँ , एलो वेरा जेल एक अच्छे और उत्तम किस्म का आहार माना जाता है | यह मानव शरीर के लिए पोषक का भंडार है, शरीर के निर्विषीकरण के लिए बहुत ही उपयोगी है और सभी को इसकी जरूरत है | आज के वातावरण में जहाँ प्रदूषित पदार्थ का जमावड़ा है जैसे आहार से लेकर वायु , पानी सबके सब प्रदूषित है जिसके कारण शरीर में टोक्सिन जमा हो जाता है और इसी को डीटोक्सीफाई करने के लिए एलो वेरा जेल समर्थ है |यह कोशिकाओं को नवजीवन प्रदान कर उन्हें स्वस्थ रखता है |
जैसे मोटरगाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियमित रूप से सर्विसिंग कराना जरुरी होता है, ठीक उसी प्रकार से एलो वेरा जेल मानव शरीर के लिए काम करता है | गाडी के कल-पुर्जों के मुकाबले हमारे शरीर के कल-पुर्जे कहीं ज्यादा विशिष्ट, अनोखे, अद्धभुत, अनमोल है और उनकी देख-भाल करना , संभालना निहायत जरुरी है |


कितने दिनों तक एलो वेरा जेल उपयोग करना चाहिए ?
एक स्वस्थ व्यक्ति को एलो वेरा जेल कम से कम छह से आठ बोतलें पिने की सिफारिश की जाती है | ऊर्जा स्तर, सामान्य स्वास्थ्य, मुड और चुस्ती-फुर्ती में सुधार नजर आने लगेगा | परन्तु बीमार व्यक्ति के लिए तो शरीर की निरोधक प्रणाली को उस पर काबू पाने के लिए अतिरिक्त पोषाहार की जरुरत पड़ेगी | एलो वेरा जेल के उपभोग की अवधि व्यक्ति की बीमारी, उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करेगी |

क्या लगातार एलो वेरा लेने से इसकी लत पड़ सकती है या इम्युनिटी पैदा हो सकती है ?
जी बिलकुल नहीं, एलो वेरा की आदत या लत नहीं पड़ती चुकी यह बुनियादी रूप से पौष्टिक आहार है, कोई सिंथेटिक दवा ( ड्रग्स) नहीं | इसलिए इसके पिने से किसी भी प्रकार का कोई दुष्परिणाम या इम्युनिटी प्रतिक्रिया होने का सवाल ही नहीं पैदा होता |

क्या किस दूसरी दवाओं के साथ हम एलो वेरा ले सकते है ?
एलो वेरा आँतों की सफाई करके ग्रहण करने की क्षमता और आत्मसात्करण को बढाता है | इससे अन्य दवाओं को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है जिसकी वजह से दवा की खुराक मानी जा सकती है | अगर ऐसे लक्षण दिखाई दे तो अपने डॉक्टर से सलाह करके खुराक की मात्रा घटाई भी जा सकती है | कई मामलों में जब शरीर की निरोधक प्रणाली का स्तर बढ़ने लगता है, तो दवाओं की मात्रा वैसे भी धीरे-धीरे घटाई जाती है | ऐसा वक्त आ सकता है जब दवाओं की शायद जरूरत ही नहीं रहे |


बाजार में एलो वेरा के कई ब्रांड मिलते है, जो हमें किस ब्रांड का इस्तेमाल करना चाहिए ?
भारत में एलो वेरा के कई निर्माता है | किसी भी उत्पादन की साख जमने में समय लगता है, खासकर जब मामला सेहत से सम्बंधित हो | जो उत्पाद लगातार अच्छा होता है,वह लगातार अच्छे परिणाम देता है |

भारत में निर्मित होने वाले अधिकांस एलो वेरा का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग करता है | पिने वाले एलो वेरा जेल की गुणवता ऐसी होनी चाहिए जो एलो के ताजे-ताजे काटे गए पते से निकलने वाले जेल का मुकाबला कर सकें | जाहिर सी बात है, इसके लिए विशेष प्रकार की प्रक्रिया की समझ व जानकारी होनी चाहिए | इसे सब लोग नहीं कर सकते | लिहाजा ऐसी जेल का चुनाव करें जिसमे ये सभी तत्व मौजूद हो |


अगर एलो जेल वास्तव में इतना कारगर है तो हर कोई इसकी चर्चा क्यूँ नहीं करता ?
बाजार में कई तरह के जेल उपलब्ध है और उनकी गुणवता में भी अंतर पाया जाता है | हाँ ये थोडा महंगा उत्पाद है | इसके अलावा अच्छी गुणवता के बारे में जानकारी का आभाव या अच्छे माल की उपलब्धि न होने के कारण लोगों को जो मिल जाता है वही खरीद लेते है | जब मन मुताविक परिणाम नहीं मिलते, तो एलो वेरा की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है | हमारे देश के डॉक्टर को एलो वेरा और पोषक पूरकों सम्बंधित जानकारी बहुत थोड़ा है | इसलिए अक्सर वे लोगों मतलब मरीजों को ऐसे पूरकों और उत्पादों का उपयोग करने से मना करते है |

मरीज भी इस समस्या में इजाफा करते है | वे इस 'चमतकारी पौधे' से चमत्कार की उम्मीद करते हुए, आनन्-फानन नतीजे चाहते है | अक्सर जब दुसरे इलाज से परेशां हो जाते है , तो वे पोषक चिकित्सा को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाते है | मरीजों को पोषक चिकित्सा के काम करने के तरीके के बारे में बताया जाना चाहिए | यह बताया जाना चाहिए की पहले साकारत्मक परिवर्तन नजर आने में कितना वक्त लगेगा | शुरुआती चरणों में उनका तब तक उचित निर्देशन करना चाहिए, जब तक वे इलाज द्वारा हुए फर्क को खुद महसूस न करने लगे |

पोषक पूरकों द्वारा इलाज के नतीजे आनन-फानन में देखने को क्यूँ नहीं मिलता ? क्या खुराक बढ़ने से नतीजा जल्दी मिल सकते है ?
पोषक पूरक प्राकृतिक उत्पाद है और इनके द्वारा दी जाने वाला इलाज किसी एक बीमारी के लिए नहीं होता | प्रकृति किसी समस्या को ठीक करने में अपना वक्त लेती है और वह कई कारको पर निर्भर करती है | जो लक्षण देखने में आते है वे हो सकते है किसी गहरा गई समस्या से सम्बन्ध रखते हो या फिर यह समस्या पोषकों के आभाव से सम्बंधित हो जिसे ठीक करने में समय लगता है | पोषकों के ग्रहण करने की प्रक्रिया का नियन्त्रण शरीर के हाथ में होता है | शरीर अतिरिक्त खुराक को बाहर निकाल देता है |
विकाश और मरम्मत के बारे में मानव शरीर के अपने नियम है | गर्भाधान से शिशु के जन्म और फिर किशोरावस्था तक पहुँचने में समय लगता है | इस तरह से हर एक चीज का समय निर्धारण किया गया है | मानव शरीर बढ़ने और विकसित होने में समय लगता है | यह समय प्रकृति के प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित है | अतः धैर्य व संयम रखें और प्रकृति को अपने समय लेने दे | और भी है जिसके बारे में चर्चा अगले भाग में करेंगे |

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Oct 15, 2010

ग्लुकोसामिन सल्फेट आर्थराइटिस ( जोड़ों के दर्द ) के लिए अचूक औषधि !

कार्टिलेज के निर्माण की प्रक्रिया में ग्लुकोसामिन एक महत्वपूर्ण तत्व है | यह एक सामान्य सी अमीनो शर्करा ( Amino Sugar ) होती है जो प्रोटोग्लाइकन ( Protoeoglycans ) बनाती है | ये प्रोटोग्लाइकन हमारे कार्टिलेज में लचीलापन लाते है | दर्द निबारक दवाएं और एस्प्रिन सिर्फ दर्द निबारक का कार्य करती है पर इसके विपरीत ग्लुकोसामिन कार्टिलेज को बनाने का काम करती है |

दुनिया भर में रिसर्च के बाद पता चला की ग्लुकोसामिन लेने से न सिर्फ दर्द और सुजन से आराम होता है बल्कि कार्टिलेज को होने वाली नुकसान भी रुक जाती है | इससे भी उत्साहवर्धक बात यह सामने आई की जोड़ों में नई कार्टिलेज बनानी शुरू हो जाती है |


इस प्रकार इस विषय पर होने वाले सारे शोध अध्ययन में पाया गया की आर्थराइटिस के वे सभी रोगी, जो 1500 से 2000 मिली ग्राम ग्लुकोसमिन सल्फेट लेते है , तो इन्हें जबरदस्त फायदा होता है और खास बात यह है की किसी प्रकार का कोई दुष्परिणाम भी नहीं होता है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है की जब इन मरीजों ने ग्लुकोसमिन लेना बंद कर दिया, उसके बाद भी महीनो तक उनके जोड़ो में दर्द नहीं हुआ |

जहाँ तक बाजार की दबाएँ है, जो अक्सर Gastrointestinal bleeding और लीवर को नुकसान पहुंचाती है और बिमारी को बढ़ने से बिलकुल नहीं रोक पाती है | यहाँ तक की कई मामलो में तो और भी बढ़ा देती है, फिर भी पूरी दुनिया में क्यूँ इतनी मात्रा में खाई जाती है ? पर वर्तमान में ख़ुशी की बात है की काफी डाक्टर अपने रोगियों को ग्लुकोसामिन सल्फेट दे रहे है |


अब आपको जानकार और भी ख़ुशी होगी की हमारे पास ऐसा उत्पाद है जिसके अन्दर ग्लुकोसमिन सल्फेट के अलावा कोंड्रोयटिन सल्फेट , एम्.एस.एम् ( मेथेल-सल्फोनिल-मीथेन ), विटामिन-सी इत्यादि सब के सब एक ही बोतल में बंद है !
इस उत्पाद का नाम है फॉर एवर फ्रीडम ! जी हाँ इसका साफ-साफ मतलब होता है जोड़ो के दर्द से सदा के लिए आजादी !

फॉर एवर फ्रीडम :-
दर्द से राहत देने, सुजन में कमी व सिनोवायल द्रव में सुधर करने, कार्टिलेज की हिफाजत करने और उसे नया जीवन प्रदान करने के अलावा जोड़ो के लचीलेपन और गतिशीलता को बढाता है ! 70 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को हर दिन 100 एम्.एल से 120 एम्.एल तक रोजाना सुबह के नाश्ते और रात के भोजन के पश्चात् लेना चाहिए !


भोजन के तुरंत बाद लेने से पेट में हो सकने वाली हलकी जलन की सम्भावना खत्म हो जाती है ! एक से दो महीने में दर्द से राहत नजर आने लगेगा, मगर यह इस पर निर्भर है की क्षति कितनी और किस तरह की है ! इसके अलावा फॉर एवर फ्रीडम में एलो वेरा जेल, संतरे का रस कंसन्ट्रेट, विटामिन-सी और विटामिन-ई का उच्च प्रतिशत होता है !


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Oct 14, 2010

आर्थराइटिस ( जोड़ों के दर्द ) में दिव्य औषधि है एलोवेरा !

विगत तिन दिन पहले यानि 12 अक्टूबर वर्ल्ड आर्थराइटिस दिवस के रूप में मनाया जाता है | आर्थराइटिस के नाम से मन में जोड़ों के दर्द के बारे में खौफनाक ख्याल उभरने लगते है | एक पुरानी कहावत के अनुसार आप दो चीजों पर पूरा भरोसा कर सकते है, ये आना लगभग तय है मतलब अवश्य आएँगी | एक जन्म और मृत्यु | पर वर्तमान मानसिक पटल पर एक और चीज चित्रित हो रही है जिन्हें अवश्य जोड़ देनी चाहिए जिसका नाम है "आर्थराइटिस" |

वर्तमान में छोटे उम्र यहाँ तक की बच्चों में यह बिमारी बड़े पैमाने पर अपना पैठ बना लिया है | जबकि कुछ दशक पहले यह सिर्फ 50 के बाद ही जोड़ों में दर्द की शिकायत मिला करता था | परन्तु अब तो यह 25 -30 साल में जैसे आम हो गया है |

एक सर्वे के अनुसार हमारे यहाँ भारत में हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी आयु वर्ग में आर्थराइटिस से पीड़ित है | और ऐसे में इस की भयावहता को लेकर चिंता करना की कहीं मैं भी इसका शिकार न बन जाऊं और आशंकित हो भी क्यूँ न? क्यूंकि सर्वे तो साफ़ साफ़ बता रहा है की हर पांच में से एक व्यक्ति पीड़ित हो सकता है |



सुबह उठने पर जोड़ों में दर्द, हलकी सुजन और अकड़न वर्तमान में यह सबसे ज्यादा मरीजों में पाई जाती है | इसका शिकार कोई भी हो सकता है, वो स्त्री हो या पुरुष , शरीर के किसी भी जोड़े में हो सकती है, यहाँ तक की गर्दन और कमर के निचले हिस्से में भी | यह बिमारी बढ़ जाने से काफी असहनीय तकलीफ , दर्द और यहाँ तक की विकलांग भी बना सकता है |

आर्थराइटिस आमतौर पर जोड़ों के कार्टिलेज के क्षय की बिमारी है | पर यह जोड़ की उपरी सतह और हड्डी के अंदर भी असर दाल सकती है | इस बिमारी से कार्टिलेज घिसने लगता है और हड्डी पद दबाव पड़ने लगता है | हड्डी पर अतिरिक्त दबाव के कारण हड्डी का घनत्व बढ़ने लगती है |

अपने कभी सुना होगा की उसने घुटना बदलवाया है क्यूंकि उसकी हड्डी पर हड्डी आ गई है | इसी को वैज्ञनिक भाषा में जोड़ो में कार्टिलेज का एकदम खत्म हो गई है ऐसा माना जाता है | यह बिमारी आमतौर पर वजन उठाने वाले जोड़ों,घुटने और कुल्हे के जोड़ों में ज्यादा होती है और वजन बढ़ने , ज्यादा काम करने, चोट लगने के कारण बढती जाती है |


आर्थराइटिस का पारंपरिक उपचार :-
रोगीओं को आमतौर पर डाक्टर एस्प्रिन और बिना स्टीरियोइड की एंटी इन्फ्लेमेट्री दवाएं दे दी जाती है | ये दवाएं जोड़ों के दर्द और सुजन से तो कुछ देर के लिए राहत दिला देती है परन्तु इनके गंभीर दुष्परिणाम होते है |

पेट का अल्सर, और पाचन तंत्र में रक्त-स्त्राव इसी के दुष्प्रभाव का परिणाम है | सबसे बड़ी सम्स्य यह है की ये दवाएं सिर्फ कुछ समय के लिए दर्द कम करती है और बिमारी के मूल कारण को बिलकुल असर नहीं करती |


एलोवेरा और उसके कुछ विश्वसनीय उत्पाद है, जो जोड़ों के दर्द से बिलकुल छुटकारा दिला सकता है , जो की निचे दी जा रही है :-
1 . एलोवेरा जेल
2 . पोमेस्टीन पॉवर
3 . फोरेवर फ्रीडम
4 . गार्लिक थाइम
5 . हीट लोसन और एम्.एस.एम्जेल :- सुजन वाले स्थान पर दोनों को मिलाकर मालिश करना चाहिए |

अतः आर्थराइटिस दिवस के अवसर पर आइयें हम सब मिलकर इस खौफनाक रोगों से डटकर मुकाबला करें |
आहार विहार और नियमित घुटनों का व्यायाम करने से इस रोग से उत्पन्न दर्द को कम किया जा सकता है | परन्तु उपरोक्त उत्पाद के नियमित चार से छः महीने तक सेवन से इससे पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है |


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Oct 9, 2010

बेहतर स्वस्थ के लिए व्रत का आहार शुद्ध व सात्विक !

जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी ! जय माता दी !

आज नवरात्र का पहला दिन था | कार्यालय में भी माहौल भक्तिमय व पवित्र लग रहा था | एक दुसरे से नमस्कार और गुड मोर्निंग के वजाय " जय माता दी" कहकर दिन का शुरुआत किया | एक बात यह की ज्यादातर लोग आज उपवास में थे |

कुछ पहला और आखिरी तो कुछ नौ दिन के लिए उपवास का संकल्प लिया हुआ था | मैं आपसे जो ख़ास बात करने जा रहा हु यह है उपवास के विधि विधान यानि तौर तरीका | उपवास के दौरान लोग का किस तरह का आहार विहार होना चाहिए और क्या आज के भक्त आहार में ले रहे है | आज यही चर्चा का विषय है |

दरअसल समय के साथ-साथ व्रत रखने का विधि-विधान, तौर तरीका भी बदल गया है | व्रत के दौरान जहाँ तक कुछ दशक पहले हम जब अपने गाँव में रहते थे, याद आता है बचपन में जब कोई व्रत रखते थे | बड़ी ही मुश्किल की घडी हुआ करता था | हमें पानी तक पिने नहीं दिया जाता था | अगर प्यास लगी तो पानी के साथ चीनी और निम्बू का मिश्रण जरुरी है | मतलब सदा पानी नहीं पी सकते वर्ना व्रत टूट जाएगी |

किन्तु वर्तमान में हालत पे गौर करें तो भक्त गन बड़े ही चाव से वो दिन भर सब कुछ खाते पीते नजर आते है | शीतल पेय हो चाय पे चाय और फल बगैरह दिन भर खाते रहते है |

विगत कुछ वर्षों में बड़े बड़े रेस्तरां में भी व्रत के नाम की थाली परोसने लगी है | अगर कभी थाली कास्वाद ले तो पता चलेगा की उस थाली का खाना दो लोगो के लिए पर्याप्त है | अगर एक व्यक्ति ने उस थाली का खाना खा लिया तो उन्हें रात के भी खाना खाने की जरुरत नहीं हो सकता है |
चुकी उस थाली में रोटी , दाल, पनीर की सब्जी , मिठाई, इत्यादि भरपूर मात्रा में होता है, जो की वर्तमान के हमारे माता के भक्त लंच समय में अपना उदर का भूख मिटाते है |

हमारे एक मित्र है जो पुरे नौ दिन का उपवास रखते है | किन्तु आज देखा तो बड़ा ही आश्चर्य लगा | उनका लंच बॉक्स पहले के अपेक्षा एक बॉक्स ज्यादा था | मैंने पूछा भाई साहब ये क्या आज व्रत में नहीं हो क्या ? बोला हाँ भाई व्रत का ही तो खाना है |

मैंने कहा क्या ? यह व्रत का खाना है- यार ये तो आपने पहले से एक लंच बॉक्स ज्यादा लाया हुआ है | बोला यार व्रत में तस्मय ;यानि खीर भी जरुरी है | कुटू के आंते की रोटी, आलू की सब्जी सेंधा नमक के साथ, दही, मीठा आलू , खीर आदि ये सब व्रत का खाना है | मैंने कहा भाई कमाल है अगर सामान्य दिन के अपेक्षा ज्यादा और स्वच्छ खाना मिले तो ऐसे व्रत रोज करना चाहिए |

दरअसल उपवास के दौरान अक्सर हमारे पाचन तंत्र सक्रीय नहीं रहता है | अतः इस अवधि में हमें तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए | पानी खूब पीना चाहिए , जिससे आपके आंत की सफाई हो जाएगी और आप चुस्त और दुरुस्त हो जायेंगे | वो कहाबत है न की अगर आंत और दांत स्वथ्य है तो शरीर स्वतः स्वस्थ्य होंगे |

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Oct 7, 2010

सौन्दर्य और एलोवेरा जूस !

सौन्दर्य या सुन्दरता वह बला है जिसका उपासक हर जीव है ,हर प्राणी है, सौन्दर्य प्रकृति से जुड़ा हुआ प्राकृतिक भी हो सकता है, और भौतिकता से जुड़ा हुआ भौतिक भी हो सकता है | यह सृष्टि प्राकृतिक सौन्दर्य की अदभुत मिशाल है और इस सृष्टी में रचित हर वस्तु सुन्दरता से परिपूर्ण है |

व्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की और फिर इस सृष्टि के सृजन के लिए स्त्री-पुरुष दो प्राणियों ( नर-मादा) की रचना की, जिनका शारीरिक गठन,बोली अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है | जिस प्रकार ऋतुओं की सुन्दरता, हरियाली, वृक्षों में खिले हुए फूलों और फूलों से उठती मंद-मंद खुशबुओं, बादलों की काली घटाओं, हल्के-हल्के चलती पवन आदि से आभास होती है और हमें आकर्षित करती है, ठीक इसी प्रकार ही ब्रह्मा की खुबसूरत रचना स्त्री की सुन्दरता भी उसके मधुर, मीठी वाणी, नम्रता, स्नेह,कोमलता, व्यवहार कुशलता, लज्जा-शर्म-हया,सम्मान देने वाली आँखों व स्वाभाव से आभास होती है |


शारीरिक सौन्दर्य (आकर्षण) तो स्त्री में होती ही है किन्तु जब यह सौन्दर्य व्यवहार से भी छलकता है तो वह स्त्री एक सम्पूर्ण सौन्दर्य की प्रतिक मानी जाती है | आँखों को जो भाता है वह सुन्दर है परन्तु मन और आत्मा को भाता है व तृप्त करता है वह अति सौन्दर्य का प्रतिक है व सौन्दर्य की गरिमा अच्छे व्यवहार से ही स्थायी रहती है |

स्त्री का समस्त और पूर्णरूप से सुन्दर होना जिसमे आंतरिक व बाहरी, शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ व सुन्दर होना ही स्त्री सम्पूर्णता को दर्शाता है | मन मस्तिस्क से जब व्यक्ति पुर्णतः स्वस्थ होते है, तनाव रहित रहते है व अपने समस्त क्रियाकलापों को तन्मयता से पूर्ण करने में सक्षम होते है यही स्त्री की सर्वांग व सम्पूर्णता है |


आज के जीवन शैली में तनाव जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है | हर एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से तनावपूर्ण जिन्दगी जीने को मजबूर है | प्रमुख कारण आधुनिक जीवन का आहार - विहार है | परन्तु दिनचर्या व स्वस्थ आहार-विहार को अपने जीवन में अपना कर एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन जिया जा सकता है | एक और जरुरी बाते है , अगर हलकी-फुलकी व्यायाम नित्य करती रहे तो जीवन और भी स्वस्थ और सुन्दर रखने में मदद मिलेगी |

एक और उपाय है स्त्री अपने आप को स्वस्थ व सौन्दर्य को बनाए रखने के लिए घृतकुमारी के जूस का नित्य सेवन करें | जिससे शरीर में दुर्बलता, अपचन, चक्कर आना, पेट के विकार, हाथ-पाँव में जलन या झुनझुनाहट होना मानसिक रूप से अस्वस्थ आदि कई लक्ष्ण का पूर्ण निदान हो सकता है |

अतः घृतकुमारी ( एलोवेरा ) का नियमित रूप से अपने जीवन में अपनाए और बिमारी को दूर भगाए |

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Oct 3, 2010

गर्दन-कंधे का दर्द( सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस) और एलोवेरा जेल !

मानव शरीर इश्वर की आश्चर्यजनक -रहस्यमय रचना है | लेकिन यह मानव शरीर विभिन्न प्रकार के दुखों से भरा पड़ा है | उनमे से एक है गर्दन या कंधे में दर्द या कड़ापन | गर्दन का दर्द कोई जानलेवा बिमारी नहीं है परन्तु अत्यंत तकलीफ देह जरुर है | गर्दन की तीव्र वेदना और जकड़न के कारण रोगी अपना सर हिलाने-डुलाने में भी असमर्थ हो जाता है |

आमतौर पर यह रोग 30 वर्ष की उम्र से शुरू होता है और 40 वर्ष की उम्र के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर देता है | 65 वर्ष के आसपास या उसके उपर तो दो तिहाई लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है |

मेरुदंड यानि ( स्पाइनल कॉर्ड ) रीढ़ की हड्डी में उत्पन्न विकार ही गर्दन, कन्धा, पीठ तथा कमर दर्द का प्रमुख कारण है | मेरुदंड की सबसे उपरी हिस्से यानि की गर्दन के क्षेत्र की मनकों में जब कोई विकृति आ जाती है तो गले या कन्धों में दर्द होता है इसी को सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस यानि की गर्दन की ओस्टीरियोआर्थीराइटिस ( गर्दन की गठिया) कहा जाता है |


इसके कई कारण होते है :-
> यदि गलत ढंग से बैठते है , लम्बे समय तक सर झुका कर काम करते है, सोते समय सिर के निचे मोटा तकिया लगाते है तो इस रोग की शिकायत हो सकती है |
> यदि आप ऐसा कम करते जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाब पड़ता है तो रीढ़ की लचक समाप्त होने से यह विकृति उत्पन्न हो सकती है |
> जन्मजात स्पाइनल केनाल यानि मेरुनाली का संकरा होना भी इस रोग की वजह बन सकता है |
> इनके अतिरिक्त मोटापा, वृद्धावस्था, संक्रमण, रयूमेटाइड रोग, तनाव आदि कारणों से भी सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस रोग की उत्पति हो सकती है |

बचाव के उपाय :-
जो लोग इस रोग से पीड़ित है और जो पीड़ित नहीं भी है उन्हें भी, निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए :-
> सोते समय बहुत पतला तकिया लगाए ! जो गर्दन के दर्द से पीड़ित हो वो तकिया ना लगाए ! सदा सख्त तख़्त पर सोयें , गद्दा मोटा नहीं होना चाहिए |
> लेटकर किताब न पढ़े, काम करते समय या लिखते समय गर्दन को अधिक न झुकाय, न अधिक समय तक गर्दन झुकाकर बैठे !
> ऐसा वाहन से सफ़र न करें जिससे शरीर को तेजी के साथ झटका लगे, चिंता और तनाव से बचकर रहे !
आप गर्दन के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज़ भी करा सकते है :-

1 . Aloe Vera Gel :- पाचन मार्ग को साफ़ करता है , उद्दीपन प्रतिरोधी
2. Forever Freedom :- दर्द से राहत , कार्टिलेज का पुनर्निर्माण,साइनोवायल द्रव का पुनरुत्पादन, उद्दीपन विरोधी |
3. Pomesteen Power :- गठिया प्रतिरोधी, उद्दीपन प्रतिरोधी |
4. Garlic Thyme :- मांसपेशियों को आराम करता है |
उपरोक्त लिखित उत्पाद का सेवन 4 से 6 महीने तक करें और गर्दन के अति कष्टदायक रोग से मुक्ति पाए |

एलोपैथिक चिकित्सा में इस रोग का उपचार प्रारंभिक अवस्था में गर्दन व कंधे की सिंकाई और मालिश के साथ फिजियोथेरैपी यानि गर्दन के व्यायाम के जरिये रोग पर काबू पाया जाता है , इसके अतिरिक्त रोगी के गले में एक कालर लगाईं जाती है जिसे सर्वाइकल कालर कहा जाता है | इस उपाय से गर्दन की हलचल यानि गति कम हो जाती है | गर्दन का हिलना- डुलना कम होने से इस रोग के कारण गर्दन में होने वाले और हाथ तक फैलने वाले दर्द से छुटकारा मिल जाता है |

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