इक्कीसवीं सदी के साइलेंट किलर का ख़िताब जिस बिमारी को जाता है वो है
उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर | ब्लड प्रेशर व्यक्ति के जीवन के लिए वैसे ही जरुरी है जैसे किसी शहर को चलाने के लिए पानी का पाइप लाइन में प्रेशर | आपने सुना होगा कि अमुक व्यक्ति बहुत ज्यादा गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है और उसका ब्लड प्रेशर बहुत कम हो गया है इसलिए बचने की उम्मीद कम है | यानि ब्लड प्रेशर कम हो जाना बेहद खतरनाक है | लेकिन हम बात कर रहे है हाई बीपी की | तो सबसे पहले जानते है की ब्लड प्रेशर है क्या ?
रक्त जब धमनियों में प्रवाहित होता है तो धमनियों की दीवारों पर उसके घर्षण से जो दबाव उत्पन्न होता है उसे ब्लड प्रेशर कहते है | यानि बीपी नामक कोई बीमारी नहीं होती है बल्कि आम बोलचाल की भाषा में लोग हाई बीपी को 'बीपी' हो गया कहने लगते है |
सामान्य बीपी :- व्यस्को में सिस्टोलिक बीपी 120 या उससे कम और डायस्टोलिक बीपी 80 या उससे कम सामान्य बीपी होता है | आजकल कई बार लोगों से सुनने को मिलता है कि ज्यादा उम्र में बीपी अपने आप ही बढ़ा हुआ रहने लगता है , परन्तु यह एक प्रकार कि भ्रान्ति है | यदि बीपी सिस्टोलिक 130 -140 या डायस्टोलिक 80 -90 की रेंज में आ जाए तो उसे प्रीहाइपरटेंसन कहते है | यानि बीपी सिस्टोलिक 140 से ज्यादा हो या डायस्टोलिक 90 से ज्यादा हो दोनो ही अवस्था में हाई कहलाएगा |
खतरा .......यदि बीपी ज्यादा समय तक बढ़ा रहे और अनियंत्रित रहे तो धीरे-धीरे शरीर के अंगो को क्षति पहुँचने लगती है | इसका सबसे अधिक घातक असर होता है ह्रदय पर | ह्रदय की धमनियों को यदि लम्बे समय तक हाई-बीपी झेलना पड़े तो हृदयघात यानि हार्ट अटैक की आशंका कई गुना बढ़ जाती | इसी तरह लकवा होने की आशंका भी बहुत बढ़ जाती है | समय के साथ गुर्दों का फेल होने का डर भी रहता है जो की एक जानलेवा होती है | आँखों के पर्दे पर रक्त स्त्राव या सुजन हो सकती है | यानि शरीर के चार विशिष्ट अंगो को खतरा पैदा हो जाता है |
कारण ........... कुछ ऐसी बीमारियाँ है जिससे बीपी बढ़ने का कारण आसानी से मालुम पड़ जाता है जैसे की गुर्दों में पथरी होना , गुर्दों फेल हो जाना या पेशाब की नली में रूकावट होना | थायराइड की बीमारी से भी बीपी बढ़ सकता है | लेकिन इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण है भोजन में नामक की अधिकता व तेल घी का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल और मोटापा, ये सभी बीपी को बढ़ जाने में छुपे हुए कारण है |
लक्ष्ण.......... जैसा की शुरू में बताया गया है की यह एक साइलेंट किलर है , यानि हाई बीपी का अपना कोई विशेष लक्ष्ण नहीं होता है | कुछ मरीज सर-दर्द, थकन, सांस फूलने की शिकायत करता है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं की जब सर-दर्द हो तो मान ले की बीपी बढ़ गया होगा और बस तभी दबा खा ले | कई मरीज तो 240 -120 होने पर भी आराम से घूमते रहते है | लेकिन यह बेहद खतरनाक होती है |
क्या कोई स्थाई इलाज़ है ........अधिकतर मरीजों में ऐसी कोई एक बिमारी या कारण पकड़ में नहीं आता जिसका इलाज होने से उच्च रक्त चाप की समस्या स्थाई रूप से ठीक हो जाय | एलोपेथ में उच्च रक्त चाप का कोई स्थाई इलाज नहीं होता है | अगर कोई इलाज है तो वो है वैकल्पिक चिकत्सा जिसमे पक्का इलाज संभव है | आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों जैसे फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट्स का विश्वशनीय उत्पाद का इस्तेमाल अगर कोई व्यक्ति चार से छे महीने तक करता है तो उन्हें है बीपी जैसे जानलेवा रोग से मुक्ति मिल सकती है | इसके लिए जरुरी है विश्वास व लगातार उत्पाद को लेने की ,फोरेवर लिविंग प्रोडक्ट्स के उत्पाद से न सिर्फ हाई- बीपी उसके साथ-साथ सम्बंधित सम्पूर्ण रोग से मुक्ति मिल सकेगी|
निम्नलिखित उत्पाद इस रोग के लिए आप ले सकते है : -
ALOEVERA GEL, ARCTIC SEA OMEGA 3, GARLIC THYME, ABSORBENT साथ में अगर गुर्दों सम्बंधित समस्या है तो LYCIUM PLUS
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अतः उच्च रक्त चाप एक आम और खतरनाक बीमारी है | कारण अपने लक्ष्ण लम्बे समय तक पता नहीं लग पाता है और दिमाग के साथ-साथ शरीर के कई अंगो को खोखला करती रहती है | जीवन शैली व आहार , रहन -सहन ऐसे रखे की तकलीफ आये ही नहीं बीपी बढ़ने की दशा में चिकित्सक का सलाह जरुर ले और आयुर्वेदिक उपचार जो की प्रार्थमिक उपचार के रूप में अपने और बिना किसी दुष्प्रभाव के निरोगी जीवन जिए !!!
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दादी माँ के स्वास्थ्य सम्बंधित नुस्खे गलत नहीं हो सकते | वे हमेशा कहती थी की अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरी-पत्तेदार सब्जियां खाना जरुरी है |और अब आहार सम्बंधित जानकारी रखने वाले इस बात की पुष्टि भी करते है - हरी-पत्तेदार सब्जियां बहुत से बेशकीमती तथा आवश्यक पोषक तत्वों का स्त्रोत है |
चाहे आप बढ़ते हुए वजन से परेशान है, उसे आप नियंत्रण करना चाहते है, या ह्रदय सम्बंधित समस्या से जूझ रहे है , हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन अति-उत्तम है क्योंकि इनमे पोषक तंतु, फौलिक एसिड,विटामिन-सी,पोटाशियम, मैग्नेशियम अत्यधिक होने के साथ-साथ प्रचुर मात्र में फाइटोकैमिकल, जैसे की ल्यूटिन, जिजेंथिन तथा बीटा-कैरोटिन ( ये तीनों मैक्यूलर हेल्थ के लिए लाभदायक है ) होते है | इनमे चर्बी और कैलोरीज कम होती है और अधिक मात्र में मैग्नेशियम तत्व तथा नीची ग्लाइसिमिक इंडेक्स होने से उन लोगों के लिए भी उत्तम आहार है जो मधुमेह ( डाईबेटिज ) से पीड़ित है |
वर्तमान समय में ज्यादातर आहारों में भरपूर मात्रा में कीटनाशक, कृमिनाशक, एडेटिब्स, स्वाद बढ़ाने वाले रसायन मिलाये जाते है जिससे हम आशवस्त नहीं हो पाते है की क्या हमें पर्याप्त मात्र में एंटीओक्सिडेंट तथा क्लोरोफिल मिल रहे है, जिसके सेवन से हम चिंतामुक्त हो सकते ? अब आपको इधर-उधर भागने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि फॉरएवर लिविंग प्रोडक्ट्स आपके लिए प्रस्तुत करते है " फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन्स" जो सुखमय भोजन का सुगम उपाय है |
विशेषरूप से यह उत्पाद पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के उद्देश्य से ही बनाया गया है | " फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन्स" में मिश्रित है यंग बार्ली,वीट ग्रास,अल्फ़ा-अल्फ़ा तथा काइन पैपर ( young barley grass, wheat grass, alfaalfa and cayenne pepper) और यह स्वास्थ्य तथा शक्ति बढ़ाएं इसलिए इसे शहद से मजबूत किया गया है |
बार्ली ग्रास( BARLEY GRASS )- ऐसा कहा गया है-बार्ली ग्रास में गाय के दूध के मुकाबले तिस गुना बी-1 तथा 11 गुना कैल्शियम होता है | इसमें प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक एंजायम होता है जो शरीर को विधिवत रखने के लिए आवश्यक है | एक और अद्धभुत पोषक तत्व है 'क्लोरोफिल' जो एक प्राकृतिक तरीके से आँतों में जमे विषैले तत्वों से छुटकारा दिलाता है | मानव शरीर के लिए खून की महत्व है वैसे ही पेड़-पौधों के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है | बार्ली ग्रास में मौजूद बहुत अधिक घुलनशील व अघुलनशील फाइबर के कारण अनचाहे तत्वों को शरीर से बाहर कर सकता है |
वीट ग्रास ( WHEAT GRASS )- बार्ली ग्रास की तरह इसमें भी प्राकृतिक पोषक तत्वों का सर्वशक्तिशाली स्त्रोत है और इसमें भरपूर मात्रा में क्लोरोफिल पाए जाते है | वीट ग्रास के रस को सम्पूर्ण भोजन माना गया है | इसमें भोजन पचाने की क्षमता है और यह मेटाबोलिज्म को बढाता है और इसमें समाहित एंटी-ओक्सिडेंट ख़राब हुई कोशिकाओं की मरम्मत कर मुरझाई हुई त्वचा को नवजीवन प्रदान करती है |
अल्फाल्फा (ALFALFA)- जिसका अर्थ है "सभी भोजनों का पितामह" | अल्फाल्फा की खोज कई हजार वर्ष पहले अरब लोगों ने की | उन्होंने शरुआत में अपने घोड़ो को सेवन कराया तो पाया की पहले से तेज व मजबूत बन गए फिर अपने भोजन में भी इस ग्रास को सम्मलित किया और शारीरिक पौष्ट्ता में अंतर पाया | इस ग्रास के गुणों व शारीरिक फायदा देखकर ही इनका नाम अल्फाल्फा रखा |
अल्फ़ाअल्फ़ा के फायदे क्या है? इसमें आठ जरुरी अमीनो एसिड है जो प्रोटीन्स की आधारशिला है | इसमें बड़ी मात्र में खनिज,जैसे की कैल्शियम,मैग्नेशियम,पोटाशियम,लोह तथा जिंक है | और इन सबसे ऊपर यह क्लोरोफिल का एक अच्छा स्त्रोत है |जड़ी-बूटी विशेषग्य इसे अच्छे टॉनिक की संज्ञा देते है | जिसमे समाहित है विटामिन, खनिज तथा प्रोटीन्स | ऐसा जाना गया है की अल्फाल्फा की जड़ें जमीं में 130 फुट तक जाती है तथा जमीन में मौजूद सर्वोत्तम खनिजों की खोज-बिन करती है |
काइन पैपर ( CAYENNE PAPPER )- ( तेज लाल मिर्च ) - हमारी रक्त प्रवाह की क्रिया के लिए यह जड़ी-बूटी उत्तम आहार का काम करती है और यह जाना गया है की यह धमनी, नसों तथा कोशिकाओं की बनावट में आवश्यक योगदान देती है | काइन में गर्मी पैदा करने वाले तत्व शरीर में प्राकृतिक ताप पैदा करते है और आत्मसात, तथा मल बाहर निकालने के साथ-साथ आँतों की क्रिया में भी सहायक होते है | काइन पैपर सभी जड़ी-बूटियों के लिए उत्प्रेरक के रूप में भी जाना जाता है |
इन चार आधारभूत तत्वों का मिश्रण "फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन्स" को बाजार में सबसे प्रचलित न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट बनाता है | तो हमें दिन में कितनी लेनी चाहिए ? इनकी कोई मात्र निश्चित नहीं है और यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितना फायदा चाहते है | हाँ , एक व्यस्क के लिए हम दो से तिन गोलियां रोज खाने की सलाह देते है |
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नपुंसकता की समस्या आधुनिक युग में तेजी से वृद्धि हो रही है | इसका अर्थ है व्यक्ति सामान्य यौन सम्बन्ध नहीं बना पाना ,अगर बनाता भी है तो इतने अल्प समय के लिए की वह सम्भोग सम्पन्न नहीं कर सकता | समय से पहले स्खलन या स्खलन में असमर्थता भी इसके लक्ष्ण है | ऐसे पुरुष संतान उत्पति करने लायक नहीं होते है | यदि दम्पति संतान हीन हो तो, पति- पत्नी दोनों का ही जांच होना आवश्यक है | जिससे समस्या का पता लगने पर सही निदान किया जा सके | अक्सर संतान न होने का दोषारोपण ज्यादातर महिला पर ही लगाया जाता है, जबकि यह धारणा बिलकुल बेबुनियाद है इसके लिए पुरुष भी बराबर रूप से जिम्मेदार हो सकते है |
शोधों से पता चला है की लगभग 10 प्रतिशत दम्पति निःसंतान होते है | इनमे से तक़रीबन 50 प्रतिशत महिलाएं और 40 प्रतिशत पुरुष भी जिम्मेदार होते है | 10 प्रतिशत दोनों ही जिम्मेदार होते है | प्रत्येक दम्पति की चाहत देर सवेर संतान की होती है और इच्छा होती है उनके घर भी बच्चों की किलकारियों से गुंजायमान हो जाये | यदि संतान की चाहत रहने पर भी संतान नहीं हो तो वे दुखी व परेशान रहने लगते है | प्रन्तुं एक दुसरे पर दोषारोपण करने से कुछ समाधान नहीं निकलता है | उचित चिकित्सक से परामर्श लेकर जाँच परिक्षण के बाद इलाज करना चाहिए |
अक्सर लोग इस कारण ओझा, तांत्रिक व बाबाओं के चक्कर में पर जाते है जिससे निराशा के अलावा कुछ नहीं हाथ आता है | जबकि उचित इलाज से संतानहीन दम्पति के घर भी खुशियाँ आ सकती है | इसके समाधान से पहले आइये इसके कारण पर रौशनी डाल लेते है |
पिछले दशक में पुरुषों के प्रजनन क्षमता की प्रक्रिया के बारे में जानकारी में तेजी से विकाश हुआ है | आइये जानते है - पुरुषों में नपुंसकता के प्रमुख कारण :-
पुरुषों में नपुंसकता के कारण अनेक प्रकार के रोग भी हो सकते है | अन्तः-स्त्रावी ग्रन्थि से हार्मोन स्त्राव में बदलाव के कारण नपुंसकता हो सकती है | शरीर के स्वस्थ्य रखने, सामान्य प्रक्रियाओं और वीर्य एवं शुक्राणु की सामान्य संरचना और उनकी कार्यक्षमता के लिए अनेक प्रकार के हार्मोन का योगदान होता है |
पिट्यूटरी , थायराइड, एड्रिनल ग्रन्थि के हार्मोन स्त्राव में असंतुलन व मधुमेह रोगीओं, पुरुषत्व हार्मोन ( टेस्टस्टेरान ) के कम स्त्राव के कारण नापुन्क्सकता हो सकती है |
शुक्राशय पेट के अन्दर ही शुक्राणु का निर्माण ( टेस्टीज ) होता है और जन्म से कुछ समय पूर्व या एक वर्ष की आयु के लगभग यह पेट से निचे उतरता है | शुक्राणु के निर्मान के लिए कम तापमान की जरुरत होती है इसलिए यह अंडकोष में मौजूद होता है | वीर्य में शुक्राणु का का अंश लगभग 10 प्रतिशत होता है | शुक्राणु में फिर सहायक प्रजनन ग्रन्थि-प्रोस्टेट, सेमाइनल वेसिकल, कपूर ग्रन्थि के स्त्राव मिलकर वीर्य का निर्माण करते है | इन सहायक ग्रन्थि का स्वरूप और इसके स्त्राव का सामान्य होना भी जरुरी है, क्योंकि यह स्त्राव शुक्राणुओं को सक्रीय रखता है , पोषक तत्व प्रदान करता है , अन्डो के मिलन में सहायक सिद्ध होता है |
वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या तक़रीबन 10 से 20 करोड़ प्रति मिली. होती है | शुक्राणु की वीर्य में विशिष्ट चाल होती है | यदि वीर्य की संख्या सामान्य नहीं है तो भी नपुंसकता आ सकती है | वैसे तो वर्त्तमान में सेक्स के प्रति अरुचि और इसीसे बढ़ते नपुंसकता में जीवन शैली ही सबसे प्रमुख कारणों में से एक है | तनाव ग्रस्त जीवन- थकान, हताश, निराश , किसी अन्य कार्य में ध्यान , घबराहट या मनोवैज्ञानिक सदमा इत्यादि किसी न किसी रूप से व्यक्ति परेशान रहता है | सेक्स जीवन सबसे सुखद अनुभूति में से एक है | स्वस्थ्य जीवन के लिए सेक्स लाइफ स्वस्थ्य होना आवश्यक है | मानसिक परेशानी हो या शारीरिक परेशानी सेक्स जीवन अगर सुखी है तो बहुत कुछ अपने आप स्वस्थ्य हो जाता है |
आज के जीवन शैली का असर यह होता है की शरीर में फ्री रेडिकल का उत्पाद बहुत तेजी से होता है | यदि इनकी मात्रा शरीर में या शुक्राणुओं में बढ़ जाती है तो शुक्राणु क्षतिग्रस्त होने से नपुंसकता आ सकती है | फ्री रेडिकल की मात्रा को शरीर में नियंत्रित करने के लिए अनेक प्रक्रियाएं मौजूद होती है | इनको एंटी-ओक्सिडेंट कहा जाता है | इस प्रकार भोजन में अनेक एंटी-ओक्सिडेंट मौजूद होते है जैसे की विटामिन-'इ ',खनिज लावन इत्यादि | स्वस्थ्य जीवन के लिए फ्री रेडिकल और एंटी-ओक्सिडेंट में संतुलन होना चाहिए | एंटी-ओक्सिडेंट एंजायम की कमी के कारण शुक्राणु कमजोर हो जाते है |
आयुर्वेदिक उपचार व एंटी-ओक्सिडेंट औषधियों के द्वारा नपुंसक पुरुष को स्वस्थ्य किया जाता है |
जिस प्रकार मनुष्य में वीर्य होता है उसी प्रकार वृक्षों में भी उपस्थिति मिलती है | यह वीर्य 'गोंद' के रूप में होता है | जैसे- छुहारे का गोंद, कीकर का गोंद ,बरगद का गोंद इत्यादि | इनका प्रयोग कर शुक्राणु निर्माण एवं उनकी सक्रियता को बढाई जा सकती है | छुहारे का गोंद 10 ग्राम लेकर रात को पानी में भिंगोकर सुबह औटाये हुए गर्म मीठे दूध में मिलकर लगातार 40 दिनों तक सेवन से शुक्राणुओं का निर्माण, सबलता व सक्रियता बढ़ेगी |
कुछ उत्पाद निचे दिए जा रहे है जिसके मदद से शारीरिक शक्ति पुनः पा सकते है :-
1 Aoevera Gel
2Royal Jelly
3 Gin-Chia
4. Pomestin Power
5. Ginkgo Plus
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वर्तमान के भौतिकवादी युग में लोग प्रतिस्पर्धा में तमाम तरह के सुख-सुविधाओं को घर में जुटाने के कारण दिन रात भागते रहते है | ऐसे में एक अच्छी सुख भरी गहरी नींद लोगों से दूर होती चली जा रही है | आज कल लगभग एक चौथाई व्यस्क लोग अनिद्रा रोग से पीड़ित है | भागमभाग वाली जीवन शैली के कारण उनके खान-पान को भी प्रभावित करती है | यहाँ तक की सही तरह से समयानुसार आहार उन्हें नहीं मिल पाता है ,और ज्यादातर लोग फास्ट फ़ूड पर निर्भर रहते है | शारीरिक व मानसिक परेशानियाँ , हाई-ब्लड प्रेशर इत्यादि रोग भी इन्ही की देन है |
अनिद्रा से पीड़ित व्यक्ति रात भर बिस्तर पर करबटें बदलता रहता है | प्रायः ऐसे लोग रात भर गिनती गिनता है, तारे गिनता है , उठकर रात को भी चहलकदमी करता रहता है फिर भी उसे नींद नहीं आ पाती है | इतना कुछ करने के पश्चात् थक हार कर नींद लाने के प्रयास में नींद की गोलियां , शराब व अन्य प्रकार के घातक नशीले पदार्थ का सेवन कर उनके आदी सा हो जाता है | इन सारी स्थितियों के चुंगल में फँसकर व्यक्ति अपने जीवन को दुःख व बीमारियों के भंवर में डुबो लेता है|
नींद नहीं आने के पीछे कई कारण हो सकते है जैसे मानसिक कारणों में ज्यादा थकान, मन में निराशा, असंतुलित आहार, आशंका, डर आदि प्रमुख भूमिका माना जा सकता है | व्यक्ति वर्तमान में मशीनी मानव बन कर रह गया है | काम, काम बस काम , वो इस कदर इस बोझ के तले दबे जा रहे है जैसे कोई जानवर के पीछे उनके मालिक चाबुक लिए खड़े हों और वो बस भगाए जा रहा है | दिशाहीन,विचारशून्य होकर जीवन को एक बोझ जैसे बनाकर बस ढो रहे है |
टेंसन नींद ना आने का सबसे प्रमुख कारण है | शोर-शराबे वाली जीवन शैली, सोने के समय जागना व जागने के समय सोना, शारीरिक व्यायाम व मेहनत से बचना, ज्यादा शराब पीना आदि से भी नींद नहीं आती है |
अगर इस रोग से ज्यादा समय तक पीड़ित रहें तो इसके साथ अनेक प्रकार की बीमारियों का समूह घेर लेती है | तनाव भरी जीवन से शारीरिक व मानसिक परेशानियां बढ़ जाती है | साथ ही घातक बीमारियाँ जिसकी शुरुआत होती है कब्ज़ से और आगे बढ़ते बढ़ते वो डायबिटीज, डिप्रेसन, ब्लड प्रेशर, मोटापा, ह्रदय रोग आदि के रूप धारण कर व्यक्ति के जीवन को मुशीबत में डाल देती है | ऐसे मरीजों में मिर्गी के दौरे भी पड़ने शुरू हो जाते है | और तो और उसके मन में नाकारात्म सोच इस कदर घर कर लेती है की उन्हें आत्म हत्या करने की विचार भी आने लगते है |
रोगी के लक्ष्ण :-
रोगी को हमेशा सिर भारीपन की शिकायत रहने लगती है | लम्बे समय तक नींद सहीं ढंग से न आने के कारण व्यक्ति मानसिक रोगी होकर विक्षिप्त और पागल तक हो सकता है | कब्ज़ के कारण भी नींद नहीं आ सकती है | ऐसे रोगी में एकाग्रता की कमी होती है , स्मरण शक्ति कमजोर होने लगती है | हमेशा शरीर थका-थका, आलस्य, किसी भी काम में मन नहीं लगना आदि भी इनके प्रमुख कारण होते है |
घरेलु उपचार :-
>अनिद्रा रोगी को रात में सोने से पहले बादाम तेल से सिर में मालिश करनी चाहिए , तथा पैरों के दोनों घुटनों तक सरसों के तेल की मालिश अच्छी तरह से करनी चाहिए |
> एक गिलाश दूध में एक चम्मच घी डालकर रात को सोने से पहले पीना चाहिए | घी में सफ़ेद प्याज को भुनकर खाने से भी नींद अच्छी आती है |
> भाँग की हरी पत्तियों को पिस ले तथा इनकी मालिश पैर के तलवों पर करनी चाहिए |
> शाम के वक्त दही में सौंफ चीनी और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से भी नींद अच्छी आती है |
>सोने से पूर्व दोनों आँखों पर पानी के छींटे मारने चाहिए |
> आजकल की गर्मी के मौसम में शाम को जरुर नहायें और रोयेंदार तौलिये से शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ़ करें |
> उबली हुई सब्जियां और फलों के अलावा एक सप्ताह तक कुछ भी न खाएं |
> शहद के साथ बाजरे की रोटी खाने से अच्छी नींद आती है |
औषधीय उपचार :-
Aloe Vera Gel :- इससे शरीर के अन्दर जिसे चिकित्सकीय भाषा में टोक्सिन ( जहर ) कहते है जो आँत के साथ वर्षों से चिपका रहता है जिसके कारण अनेक प्रकार की सम्सयाएं पैदा हो जाती है, सबसे पहले टोक्सिन को शरीर से बहार करेगा | फिर जेल में समाहित पोषक पदार्थ शरीर में कमी होगी उसकी भरपाई करेगी और व्यक्ति करीब करीब पूरी तरह से चुस्त और दुरुस्त हो सकेंगे मात्र कुछ ही महीनो मे !
Fields of Green :- यह गोली के रूप में होता है जिसका सेवन से शारीरिक व मानसिक थकावट दूर होती है | खून की कमी को पूरा करती है और तक़रीबन कई प्रकार के शाक-सब्जियों से मिलने वाली विटामिन इसके मात्र एक गोली से पूरा हो सकता है |
Royal Jelly :- यह भी गोली की तरह ही है जिसे जीभ के निचे रखा जाता है और तुरंत व्यक्ति उर्जायमान महसूस करने लगते है | इसे 'Fountain of Youth' भी कहा जाता है मतलब "जबानी का फब्बाड़ा " यह एक शक्ति शाली टॉनिक के साथ साथ शरीरिक व मानसिक परेशानी में एक अचूक औषधि के तरह काम करती है |
Artic Sea - Omega-3 - ब्लड सम्बंधित समस्या जैसे नस में ब्लड के सुचारू रूप से काम करना, ब्लड के थक्का सम्बंधित, तथा ह्रदय रोगी के लिए यह तो सबसे शक्तिशाली उत्पाद में से एक है | जेली रूप में यह एक कैप्सूल की तरह है जिसका सेवन से ब्लड में उपस्थित कोलेस्ट्रोल को निकाल बहार करता है | ह्रदय रोगी के लिए एक रामवाण औषधि माना गया है |
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अपेंडिक्स क्या है ? यह छोटी आँतों और बड़ी आँतों के बिच की कड़ी है | इसमें एक छोटी से थैलिनुमा जो शेह्तुत के आकर की होती है जो आँतों से बाहर की ओर निकली रहती है | इसी को अपेंडिक्स कहते है | दरअसल पहले इसके कार्य प्रणाली के बारे में नहीं मालुम था की क्या मनुष्य के लिए अपेंडिक्स जुरुरी है या नहीं | अक्सर चिकित्सक अपेंडिक्स को हटा देने में ही भलाई समझते थे , इससे मरीजो को कोई समस्या नहीं आती है, मतलब यह एक आँतों के बिच में गैरजरूरी चीज समझा जाता था |
परन्तु चिकित्सक ने अपेंडिक्स पर शोध के बाद पाया की यह स्वस्थ्य शरीर के लिए जरुरी भी है | इससे मनुष्य के पाचन प्रणाली के लिए अच्छे वाले बैक्टेरिया को जमा करके रखने वाली थैली है जिससे कारण जब लम्बे समय से रोगों के वजह से जब शरीर के बैक्टेरिया में कमी हो जाती है तो अपेंडिक्स का काम पाचन प्रणाली को सुदृढ़ रखना होता है |
दरअसल अपेंडिक्स की थैली एक ओर से खुली और दुसरे ओर से बंद होती है | छोटी आँतों से बचा हुआ कण अगर उसमे जाकर फंस जाता है और ज्यादा दिनों तक एकत्रित होकर सड़ने-गलने लगते है फिर सुजन हो जाता है जिसके कारण जबरदस्त दर्द मध्य रात्रि के आसपास शुरू होता है जो की कभी तेज कभी धीमा परन्तु लगातार करीब चार घंटे तक होता रहता है |
इसके मुख्य कारण होता है लम्बे समय तक कब्ज़ का रहना , पेट में पलने वाला परजीवी व आँतों के रोग इत्यादि से अपेंडिक्स की नाली में रुकावट आ जाता है |
भोजन में रेशे का न होना या कमी भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार होता है | जब यह अपेंडिक्स में लगातार रुकावट की स्थिति बनी रहे तो सुजन और संक्रमण के बाद यह फटने की स्थिति में हो जाती है फिर तो यह बहुत ही भयावह हो सकता है |
इसके लक्षण पेट के दाहिने भाग के निचे अचानक तेज दर्द का होना , उलटी आना, जी मचलाना , जीभ के ऊपर सफ़ेद आवरण का होना , हलकी बुखार का होना | शुरू में अपेंडिक्स का दर्द नाभि के निचे से उठता है और बाद में दाहिने टांग के ऊपर पेट में होता है |
दर्द बहुत बढ़ जाने पर ओपरेशन आवश्यक हो जाता है | यदि यह शुरूआती अवस्था में हो या ऐसे लम्बे अरसे है जिसके दौरान दर्द उठता है फिर चला जाता है, तो पोषक तत्वों व जड़ी बूटी से रोगी को काफी मदद मिल सकती है |
एलो वेरा आधारित जड़ी बूटी के माध्यम से रोगी का इलाज संभव है जो की निचे दी जा रही है :-
1 Aloevera Gel - भोजन के कणों को हटता है और निर्वाशिकरण करके शरीर के पाचन प्रणाली व पौष्टिकता प्रदान करता है !
2 Pomesteen Power - सुजन विरोधी, पीड़ा निवारक है !
3 Bee Propolis - प्राकृतिक एंटी बायोटिक ,
4 Garlic Thyme - एंटी-बायोटिक, मांसपेशी को रहत पहुंचाती है |
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"एलोवेरा " ब्लॉग ट्रैफिक के लिए भी है खुराक |
अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
आज एक बार फिर से आइये चर्चा करते है ह्रदय सम्बंधित समस्याएं और निदान ? दुनिया भर ह्रदय रोगियों की संख्या गुणात्मक रूप से वृद्धि हो रही है | चिंता की बात यह है की ह्रदय घात यानि दिल का दौरा का औसतन आयु सिमट कर 40 और 30 के बिच हो गई है | जिस रफ़्तार से यह घटती जा रही है न जाने आगे क्या होगा ? कहना बहुत ही मुश्किल है परन्तु यह बहुत ही भयावह तस्वीर बनती जा रही है |
भारतीय युवाओं में खासकर यह बिमारी दुनिया के देशों से दोगुनी है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में वर्तमान में ह्रदय रोगीओं की संख्या लगभग पाँच करोड़ है और यह आंकड़ा दोगुना हो जायगा जब दुनिया के साठ प्रतिशत ह्रदय रोगी भारतीय होंगे |
युवाओं में यह बीमारियाँ बढ़ने के प्रमुख कारण आज का जीवनशैली को जाता है | भागमभाग व तनाव ग्रस्त जीवन जीने को मजबूर है | प्रतिस्पर्धा के दौर में युवाओं का ध्यान अपनी सेहत पर कम और कमाने पर ज्यदा होता है |
ख़राब दिनचर्या, खानपान में समुचित मात्रा में पोषक तत्व की कमी भी प्रमुख कारन है | रही सही कसर पश्चात् शैली के खान-पान जैसे पिज्जा,बर्गर,नुडल, पेस्ट्री,डिब्बा बंद खाना, कोल्ड ड्रिंक, ज्यूस इत्यादि पूरा कर देती है | सोने व जागने का समय बिलकुल ठीक नहीं है लोग सोने के समय पर जागते है और जागने के समय पर सोते है जिससे शरीर में कई प्रकार की समस्याएं आ जाती है |
लेकिन ह्रदय रोग लाइलाज समस्या बिलकुल भी नहीं है | परन्तु अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की तरह यदि रोगी को यह प्रारम्भिक अवस्था में पता चल जाय तो इससे मुक्ति पाने में आसानी हो जाता है | अतः ह्रदय सम्बंधित रोग के बारे में जांच कर उचित इलाज जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए |
आप सब जानते है की ह्रदय रोग का प्रमुख कारण है "कोलेस्ट्रोल" | परन्तु सच तो यह है की कोलेस्ट्रोल नहीं है ,बल्कि मुख्य कारण है रक्त नलिकाओं की सूजन ( inlflammation of blood vessels ) है | अतः हमें कोलेस्ट्रोल के वजाय धमनियों की सूजन के कारण को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरुरत है |
सभी कोलेस्ट्रोल ख़राब नहीं होते है | HDL ( high density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल फायदेमंद होता है और इसकी अधिक मात्रा हमारे लिए फायदेमंद होता है, लेकिन LDL ( low density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल हमारे लिए हानिकारक होता है | LDL कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवार की भीतरी सतह पर जमा होकर प्लाक ( plaque ) बनाता है और उन्हें संकरा कर देता है | इसके साथ आने वाला HDL कोलेस्ट्रोल तो वास्तव में धमनियों में सफाई का काम करता है |
रक्त नलिकाओं के सूजन के लिए सिर्फ LDL कोलेस्ट्रोल ही जिम्मेदार नहीं होता है | इसके लिए होमोसिस्टीन तथा धुम्रपान, उच्च रक्त चाप , वसायुक्त भोजन और डायबिटिज से उत्पन्न होने वाले स्वतंत्र तत्व ( free radicals ) भी जिम्मेदार होते है |
अतः स्वतंत्र तत्व को प्रभाव को समाप्त करने के लिए आपको ज्यादा से ज्यादा एंटी ओक्सिडेंट का सेवन करें | जिससे की शारीर में अनचाहे मेहमान जो की free radicals के रूप में है वह सब समाप्त हो जायेगा | और आपका धमनी बिलकुल दुरुस्त हो जायेगा |
जीवन शैली में परिवर्तन लाकर इन जोखिम को कम किया जा सकता है | हरी सब्जियां व फल का ज्यादा से ज्यादा अपने आहार में शामिल करें जिसमे विटामिन बी-6 ,सी, मग्नेशियम व भरपूर मात्रा में एंटी ओक्सिडेंट फ्लेवोनायडस और कैरोटेनायड्स हो |
ह्रदय रोगी को अक्सर कम वसा, कम कार्बोहायड्रेट और कम प्रोटीन का आहार लेना फायदेमंद होगा | सेब,अनार का जूस, आंवले का मुरब्बा ह्रदय को ताकत देता है और ये ह्रदय को सुचारू रूप से काम करने में मदद करते है |
प्याज और लहसुन से कोलेस्ट्रोल का स्तर घटते है और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करते है |
कैरोटेनायड्स एंटी ओक्सिडेंट के लिए टमाटर का सेवन करें जिसमे लायकोपिन का भंडार होता है | जो की दिल को सही से चलाने में सहायता करता है |
करौंदा में पॉलीफेनोलिक एंटी ओक्सिडेंट होते है जो रक्त संचार को सुचारू करते है | अनाज, अखरोट, अलसी के बिज, बादाम, सोयाबीन ये सब कोलेस्ट्रोल के अलावा ट्रीग्लिसेरायड्स स्तर को भी घटते है | इसमें रक्त के थक्के जमने की आशंका काफी कम हो जाती है |
इन प्रकृति उपचार के अलावा सेहतमंद जीवन जीने के लिए नियमित परहेज से रहना, नियमित शारीरिक व्यायाम करना और डॉक्टरों से नियमित पूर्वक जांच भी कराते रहना चाहिए |
वैसे फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के पास इसमें अचूक उत्पाद है जिसके माध्यम से ह्रदय सम्बंधित किसी भी परेशानी से मुक्त हो सकते है जो की निचे दी जा रही है
Aloe Vera Gel , Garlic Thyme , Artic Sea Omega - 3 , Pomesteen Power इत्यादि इसका सेवन चार से छह महीने करने के बाद किसी भी प्रकार के धमनियों का सूजन पर नियंत्रिती की जा सकती है | अतः ह्रदय रोग से मुक्त पाने के लिए उपरोक्त एलोवेरा के उत्पाद अपने जीवन में शामिल अवश्य करें और जीवन को खुशहाल बनाए |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
शराब अपनी जड़ें बट वृक्षों के भांति जमा रखी है | ऐसा प्रतीत होता है की इनके सेवन से होने वाले दूषपरिणाम से बिलकुल अनभिग्य है | जबकि इसके भयकर परिणाम की गाथा से सड़क,गलियारे,सिनेमा हौल,चौराहे आदि पटे हुए होते है | मिडिया भी इससे होने वाले दुष्परिणाम से बराबर अवगत कराता रहता है |
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है की शराब की सेवन से लाभ कुछ नहीं, हानी ही हानी है | उससे थकान मिटने और स्फूर्ति मिलने की बात सिर्फ कोरी बकबास के अलावा और कुछ भी नहीं है |
अक्सर इसकी शुरुआत बड़े ही शौकिया ढंग से होती है परन्तु बाद में वह मज़बूरी बन जाती है | शराब की हानियों के देखने के लिए दैनिक जीवन में शराब पिने वालों की दुर्दशा देखना ही पर्याप्त होता है | शराबियों की बुद्धि व स्मृति दोनों ही अस्त-व्यस्त हो जाती है |
मद्यपान से कई भयंकर रोग होने की संभावनाएं निश्चित तौर पर हो जाती है :-
"कोसिकोफ़" नामक मानसिक रोग होने की अधिकांस संभावना रहती है | इस रोग से व्यक्ति की स्मरण शक्त कमजोर पड़ते पड़ते वस्तुतः क्षीण हो जाती है |
आँखों में एक तरह का रोग भी होने का भय रहता है, जिसमे एक वस्तु की दो वस्तुएं दिखाई पड़ने लगती है |
ह्रदय रोग विशेषग्य के अनुसार प्रायः सभी शराबियों का ह्रदय अपने सामान्य आकार से कुछ बड़ा हो जाता है और इस कारण उसे साँस लेने में कठिनाई होने लगती है |
मद्यपान पेट और आंत की झिल्लियों को भी सीधा क्षति ग्रस्त करता है | तेजाब की मात्रा बढ़ जाने से अल्सर की शिकायत होने का डर रहता है | बहुत अधिक पिने के कारण कभी-कभी खून की उल्टियाँ भी होने लगती है |
बदहजमी और अपच की शिकायत रहना तो जैसे शराबियों के लिए आम बात है और इस कारण उसका वजन तेजी से घटने लगता है | इससे पैंक्रियाज ग्रन्थि और पेट को जोड़ने वाली नलिका कभी कभी सूजन के कारण बंद हो जाती है | ऐसी स्थिति में उदर में भंयकर शूल उठता है |
रक्तचाप तेजी से गिरने लगता है | अगर तुरंत उपचार न हो तो यह स्थिति जीवन संकट भी उपस्थिति कर देती है |
पैंक्रियाज ग्रन्थि का यह रोग बराबर बना रहता है और शराब के कारण ख़राब हो जाने से बहुत कम मात्र में इंसुलिन बनाती है | इस कारण मधुमेह रोग होने की संभावना भी रहती है |
मद्यपान के कारण जिगर को होने वाली सिरोसिस बिमारी इतनी भानकर है की 6 महीने तक रोगी को बुरी तरह तडपा-तडपा कर प्राण हरण कर लेती है |
इसके अलावा ह्रदय की भांति ही जिगर का आकार भी फैलने लगता है | मरने वाले शराबियों में 90 प्रतिशत प्रायः जिगर के रोगों से मरते है, क्योंकि इस विषैले तत्व को परास्त करने और उससे संघर्ष करने में शराब को ही अधिक मेहनत करनी पड़ती है |
इन्हीं सब कारणों है मद्यपान करने वाले व्यक्ति कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त होने लगते है क्योंकि उनकी जीवनी शक्ति, जो शरीर के क्रियाकलापों का संचालन और नियमन करती है वह शराब के माध्यम से आए अतिरिक्त अल्कोहल को पचाने में नष्ट हो जाती है और सामान्य रोगों का आक्रमण रोकने की शक्ति भी शरीर को नहीं रह जाती है |
इससे बचने के लिए इक्षा शक्ति होनी चाहिए, साथ में पौष्टिक पूरक और एलो वेरा जेल का नियमित सेवन करें जिससे की शराब के कारण शरीर में हुए क्षति को दुरुस्त किया जा सके | एलो वेरा जेल, बी प्रोपोलिस tablet , पोमेस्टीन पॉवर आदि का सेवन करें और अपने जीवन की कायाकल्प करें |
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मौसम में परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी त्वचा और स्वास्थ्य पर पड़ता है | सर्दियों में विशेषकर सर्द हवाएं त्वचा की नमी को सोंख लेती है | ऐसे में हमें त्वचा को विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है | परन्तु इस कंपकंपाती सर्द मौसम में अगर आप खिली खिली त्वचा के साथ स्वाथ्य रहना चाहते है तो कुछ बाते आपको ध्यान में रखनी चाहिए जिससे आप अपने आपको स्वस्थ्य और सुंदर रख सकें |
> अगर आपकी त्वचा बेजान या रुखी है तो बाजार का साबुन का प्रयोग बिलकुल न करें | बल्कि आप फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट का एलो एवाकाडो साबुन/ एलो लिकुइड सोप का प्रयोग करें जो त्वचा के सफाई के साथ-साथ मोस्चरैजर भी प्रदान करती है | जिसका किसी भी प्रकार से त्वचा पर दुष्प्रभाव नहीं होगी |
> नहाने के पानी में अगर आप फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट का एलो बाथ जेली का प्रयोग करें तो इससे रुखी त्वचा में पोषण आने लगती है और इसके प्रयोग के कुछ दिनों के बाद ही त्वचा कोमल और चिकनी हो जाती है |
एलो बाथ जेली इस मौसम में विशेषकर प्रयोग करना चाहिए क्यूंकि सर्दियों में अधिकतर लोग हलके गर्म पानी से नहाते है जिसके कारण त्वचा की नमी समाप्त होने लगता है अतः त्वचा के पोषण के लिए इस से नहाना बहुत ही फायदेमंद होगा |
इसमें प्राकृतिक रूप से एक तेल भी होता है ताकि जब बहार निकले तो आपके त्वचा दिन भर सर्द हवा व प्रदुषण का सामना कर सकें | नहाने के बाद एलो बॉडी केयर का इस्तेमाल जरुर करें ताकि आपके त्वचा में तेल और नमी का संतुलन बना रहें |
इस मौसम में आपकी त्वचा को अतिरिक्त मोस्चरैजर की आवश्यकता होती है | इसलिए ज्यादा से ज्यादा मोस्चारैजर क्रीम का प्रयोग करें | इसके लिए आप ऍफ़.एल.पी एलो मोस्चाराइजर क्रीम का इस्तेमाल करें जिसमे एलो वेरा का विशेष गुण होता है जो आपके त्वचा के लिए गुणकारी होता है |
> आजकल के सर्द हवाओं के प्रभाव से होंठ फटने जैसे बात तो आम लगते है | कभी कभी रूखेपन के कारण होंठ पर पपड़ी जैसी पड़ जाती है | इसके लिए आप ऍफ़.एल.पी एलो लिप्स का इस्तेमाल करें जिसे होंठों की नमी बनी रहेगी और फटने व पपड़ी पड़ने जैसी समस्या दूर हो जायगी | ऐसे में बेहतर होगा की लिपस्टिक का प्रयोग न करें | सर्दियों में लिप गार्ड के लिए एलो लिप्स बेहतर उत्पाद है |
सर्दियों में शुष्क हवाओं के लगातार सम्पर्क में रहने से सर्दी,जुकाम,मौसमी फ्लू के कारण बाल रूखे, बेजान व कमजोर हो जाते है | इसके लिए आप ऍफ़.एल.पी एलो जोजोबा सेम्पू का इस्तेमाल करें | इसके बाद सर की त्वचा व बालों में हलके हाथो से एलो स्टायलिश जेल का भी प्रयोग कर सकते है जिससे बाल चमकते व खिले-खिले नजर आयेंगे |
>जब भी बहार निकले तो ध्यान रखें की बाल बिलकुल सुखा हो | इन दिनों तरह-तरह के आकर्षक वाले स्कार्फ बाजार में उपलब्ध है | यह आपके खूबसूरती में चार चाँद भी लगायेंगे और साथ ही बालों के देखभाल के लिए भी बहुत बेहतर साबित होगा | मतलब सर्द हवा से आपके बालों की रक्षा तो करेंगे इसके साथ आपके सौन्दर्य को भी आकर्षक प्रदान करेंगे |
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जैसे जैसे मौसम का मिजाज बदल रहा है वैसे ही लोगो में परेशानियाँ शुरू होने लगी है | एक तो ठंढ वैसे भी अपने साथ बहुत सारी समस्याएं लेकर आती है जैसे सर्दी-जुकाम,एलर्जी आदि और सबसे बड़ी समस्या उनके साथ होती है जो की साँस की बिमारी से ग्रसित होते है | उनके लिए ये मौसम बहुत ही कष्टदायक होता है | दर्द चाहे नए हो या पुराने इस मौसम में और भी ज्यादा उभर आती है | आज चर्चा करते है दमा के बारे में जो खासकर कड़ाके की ठंढ में बहुत ही ज्यादा घातक सिद्ध होता है |
दमा ( Asthma ) एक साँस की बिमारी है | इस बिमारी में श्वसन नलिका संकुचित हो जाती है जिससे प्रभावित व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है | यह सांस की नली व फेफड़ों में संक्रमण के कारण होता है | साँस की नलियां आगे जाकर पतली हो जाती है इसके अन्दर कार्बन जमा हो जाता है तथा वह अपनी लचक खो देती है |
तरल द्रव फेफड़ों में इकठ्ठा हो जाता है और श्वसन नलिका की श्लेष्मा झिल्ली उद्दीप्त हो जाती है |
इसके कारण फेफड़ों में सुजन भी आ जाती है | यह भी कह सकते है की फेफड़ों में बलगम जम जाता है |
सांस लेने में कोई परेशानी नहीं होती परन्तु साँस छोड़ते समय दम सा घुटने लगता है | छाती में तकलीफ रहती है |
कारण कुछ भी हो सकता है , जैसे किसी कारण एलर्जी, वायु प्रदुषण, कुछ तरह के भोजन आदि से प्रतिक्रियास्वरूप यह दशा भड़क सकती है | दबाब-तनाव, तापमान में परिवर्तन, चिंता और ब्रोंकाइटिस आदि अन्य कारण भी हो सकते है | धुम्रपान, गलत जीवन शैली या विपरीत परिश्थितियों में रहने से भी अस्थमा हो सकता है |
जड़ी बूटी सम्बंधित उपचार आप कर सकते है :-
एलो वेरा जेल / एलो बेरी नेक्टर
जिन्क्गो पलुस
गार्लिक थाइम
बी प्रोपोलिस
इसके साथ हल्का व्यायाम से फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ने में फायदेमंद हो सकता है |
सुकन पाने के लिए योग करना अच्छा है |
रात को भरी खाना न खाएं | फल और सब्जियां काफी मात्र में ले |
चिकन सूप लाभदायक है | मशरूम, चीज, सोया सॉस और भोजन में सिंथेटिक सामग्री का इस्तेमाल न करें |
चाय या कॉफ़ी का एक प्याला कभी-कभार पिने से दमे का हल्का हमला रोका जा सकता है |
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रामायण में एक अंश मुझे याद आ रहा है जब सुखेन वैद्य ने लक्ष्मण जी का प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने को कहा - जिससे प्रभु लक्ष्मण का प्राण बचाया गया था | वैसे तो संजीवनी बूटी का नाम सिर्फ सुना ही है किसीने शायद ही देखा हो | चुकी संजीवनी बूटी लाने के समय में स्वयं हनुमान जी भी दुबिधा में पड़ गए थे | जैसा की वैद्य ने कहा था की जिस बूटी के निचे दीपक जल रहा होगा वही असल में संजीवनी बूटी होगा | परन्तु जब हनुमान जी धवलागिरी पर्वत पर गए तो वो आश्चर्यचकित हो गए | उन्होंने देखा यहाँ तो प्रत्येक बूटी के पास दीपक जल रहे है |फिर उन्होंने सम्पूर्ण पहाड़ ही उठा लाये थे |मतलब संजीवनी बूटी को पहचानने में हनुमान जी भी दुबिधा में थे |
अगर वर्तमान समय की संजीवनी बूटी पर चर्चा करें तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एलो वेरा के पौधे में वो सारे गुण समाहित है जिसे आप संजीवनी बूटी कह सकते है ! एफ.एल.पी के एलो वेरा जेल ने ऐसे कई तरह के चमत्कार कर चुके है जिससे की लोग इसे जड़ी बूटी के श्रृंखला में सर्वोच्च स्थान पर रखते है !
अक्सर लोग मेरे पास सारे इलाज से थके हुए रोगी ही मिलते है,वे अपना कीमती वक्त व धन गवाँ कर जीवन को जैसे तैसे जीने को मजबूर होते है | इतने हताश और परेशान होते है की जब हम किसी और आयुर्वेदिक दवाइयां या पौष्टिक पूरक की बात करते है तो वो सिरे से नकार देते है,यह कहकर की बहुत देख ली साहेब कोई फायदा नहीं होता है बस लोग बेबकूफ बनाते है और अपनी जेब भरते हमारी समस्या वहीं के वहीँ है | इसीलिए कृपया हमें हमारी हाल पर छोड़ दें |
इसमें इसकी क्या गलती ? यहाँ हर गली, चौराहे पर इस तरह के झोला छाप डॉक्टर अपना दुकान खोले बैठे नजर आते है | जहाँ हर तरह के बिमारी का शर्तिया इलाज होता है | बस स्टेंड हो या शौचालय, बड़े-बड़े बैनर -पोस्टर से पटे हुए होते है | कोई न कोई व्यक्ति अक्सर ऐसे निम्-हकीम, वैद्य, बाबाओं के चक्कर में फंसते रहते है | जिसके कारण रोगी के रोग में लाभ होने के वजाय वो और भी अस्वस्थ्य होते चले जाते है |ऐसे हकीमों को कोई फर्क नहीं पड़ता, दुकान यहाँ नहीं चली तो कहीं और खोल देंगे ?
वैसे तो हमारे से भी अक्सर लोग पूछते है सर क्या इस उत्पाद की कोई साय्ड इफेक्ट भी हो सकता है ? यह बात पहले बताइये , आपने तो सारी खूबियाँ गिनती करवा दी हमें इसके दूसरी पहलु के बारे में भी कृपया बताएं ? सवाल इस तरह का आना लाजिमी है क्युकी कई सालों से इलाज का तजुर्बा होता है, कई दवाइयां एक साथ लेना होता है फिर कुछ दिनों के बाद इसी के कारण कोई और परशानियाँ आ जाते है | मैंने कहा - साय्ड इफेक्ट ( दुष्परिणाम) तो बहुत है , सबसे बड़ा साय्ड इफेक्ट एलो वेरा उत्पाद से होता है की आप ठीक हो जायेंगे | और एक दिन आप बिलकुल स्वस्थ्य और खुशहाल जीवन जियेंगे, यही है इसका साय्ड इफेक्ट |
कब्ज़ से लेकर कैंसर तक के मरीजों को एलो वेरा के चमत्कारिक गुणों से फायदा होता रहा है और भविष्य में भी कोई भी असाध्य रोगी अगर इन उत्पादों का प्रयोग श्रधा और विश्वास के साथ सेवन करेगा तो निश्चित ही लाभ मिलेगा |
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आइये कल की चर्चा को एक बार फिर से आगे बढाते हुए, शुरुआत करते है मधुमेही का क्या आहार होना चाहिए और क्या नहीं ? चुकी एक ओर जहाँ दुनिया भर में इस रोग से करोड़ों लोग मुश्किल में फंसे हुए है तो दूसरी ओर इस रोग का स्थायी इलाज अभी तक नहीं मिल पाने के कारण दुनिया भर के चिकित्सा विशेषग्य हैरान परेशान है |
मधुमेह के नाम से मशहूर यह रोग वास्तव में 'मधुमेह' न होकर 'विपतियों का मेह' बना हुआ है | इस रोग से जुड़े हर पहलुओं पर चर्चा हमेशा किसी न किसी प्रकार से की जाती रही है | परन्तु आज उस पहलु पर चर्चा करने जा रहे है जिससे आम मधुमेही को विशेष जानकारी नहीं होती है यानि रोगीं को दैनिक उपयोग की वस्तुओं में किन-किन चीज का सेवन करना चाहिए तथा किसका नहीं !
तो आइये चर्चा करते है आहार सम्बंधित वस्तुए रोगी अपने दैनिक उपयोग में क्या अपनाए और क्या नहीं ?
1 . क्या मधुमेही चावल का सेवन कर सकता है ?
> चावल साधारण और जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है | अतः चावल-दाल के मिश्रण से बनी खिचड़ी खाई जा सकती है | मार्केट में अधिक रेशे वाले ब्राउन चावल भी मिलते है, इनका सेवन किया जा सकता है |
2 . क्या मधुमेही आलू का सेवन कर सकता है ?
>आलू भी चावल की तरह साधारण तथा जटिल कार्बोहाईड्रेट का मिश्रण है, फिर भी इसे सिमित मात्र में खाया जा सकता है | परन्तुं इसे अगर पत्तेदार और रेशेदार सब्जियों के साथ खाया जाये तो बेहतर होगा |
3 . क्या मधुमेही को पपीता खा सकता है ?
> अधपका पपीता खाना बेहतर है जो मीठा नहीं होता | पका पपीता से बचे क्यूंकि वह ज्यादा मीठा होता है |
4 . क्या मधुमेही जामुन खा सकता है ?
> हाईपोग्लाईसीमिक तत्व जामुन में पाया जाता है , जो अग्न्याशय और शर्करा स्तर को घटाता है, अतः जामुन का उपयोग मधुमेही के लिए बेहतर होगा | जामुन का गुठली का 3-3 ग्राम चूर्ण दिन में 3 बार लेने से रक्त शर्करा का स्तर घटता है |
5. क्या मधुमेही के लिए मेथी के बीज उपयोगी होते है ?
> मेथीबीज में हाईपोग्लाईसीमिक तत्व रक्त शर्करा को कम करते है, अतः इनका सेवन उपयोगी है | इसका सेवन सूप,चटनी या सब्जी के रूप में किया जा सकता है | यदि नित्य 12 घंटे पानी में भीगे मेथीबीज का पेस्ट बनाकर दबाई के तौर पर लिया जाए तो शर्करा का स्तर नियंत्रित रखा जा सकता है | दिन भर में 200 ग्राम तक लिए जा सकते है |
6 . करेला मधुमेही के लिए कितना उपयोगी है ?
> मधुमेही के आलावा और भी कई रोगों में करेला उपयोगी है | इसमें पाया जाने वाला इंसुलिन रक्त और मूत्र की शर्करा का कम करता है | यदि प्रतिदिन सुबह खली पेट 125 से 140 मि.ली. करेले का जूस लिया जाये तो परिणाम बेहतर मिल सकता है | यह लीवर और पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है तथा रक्त को शुद्ध व त्वचा रोग में भी लाभ होने लगता है |
7 . नीम की कोपलें मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> कोपलें ही नहीं बल्कि नीम की अन्तर्छाल भी रक्त शर्करा स्तर को कम करती है क्योंकि इसमें हाईपोग्लाईसीमिक तत्व होता है | नीम की पत्तियों और छाल का रस लेना बहुत ही फायदेमंद रहेगा | दोनों की बराबर मात्रा यानि 5 ग्राम को 300 ग्राम पानी में डालकर उबले | पानी जलकर एक चौथाई रह जाये तक छानकर पी लें | ध्यान रहें उपरोक्त रस का सेवन अधिक दिनों तक न करें क्योंकि नीम का ज्यादा सेवन से कामशक्ति प्रभावित हो सकती है |
8 . क्या अलसी का सेवन मधुमेही के लिए उपयोगी है ?
> जी हाँ, मधुमेही के लिए अलसी का सेवन उपयुक्त है | अलसी 25 ग्राम तक मिक्सी में पीसकर आटा में मिलकर इस आटे की रोटी खाई जा सकती है |अलसी का सेवन व्यंजन बनाकर भी किया जा सकता है |
9 . क्या दूध का सेवन मधुमेही को करना चाहिए ?
> यदि ह्रदय रोग की शिकायत न हो तब मधुमेही कम मात्रा में दूध का सेवन कर सकता है | स्किम्ड मिल्क की 500 मि.ली. मात्रा तथा टोंड मिल्क की 200 मि.ली. मात्रा का सेवन किया जा सकता है |
10 . मधुमेही को पनीर का सेवन करना चाहिए ?
> पनीर और छैना जो दूध के ही उत्पाद है, का सेवन मधुमेही कर सकते है, वशर्ते वह ह्रदय रोगी न हों |
11 . चाय-कॉफ़ी मधुमेही के लिए कितनी उपयुक्त है ?
> इन उत्तेजक पेयों में टैनिन और कैफीन नामक तत्व होता है, अतः इनका सेवन कम से कम करना चाहिए | दिन भर में 2 कप चाय या कॉफ़ी बिना चीनी यानि फीकी अथवा कृत्रिम मिठास डालकर ली जा सकती है |
13 . क्या नारियल का सेवन मधुमेही के लिए उपयुक्त है ?
> ह्रदय रोगी के लिए नारियल उपयुक्त नहीं है | यदि केवल मधुमेह है, तब इसका सेवन किया जा सकता है | नारियल का पानी भी दिनभर में दो कप तक पिया जा सकता है |
14 .क्या बादाम का सेवन कर सकते है ?
> केवल मधुमेह होने पर बादाम का सेवन किया जा सकता है | 100 ग्राम बादाम में 58.9 ग्राम वसा पायी जाती है जो 12 चम्मच तेल के बराबर है | अतः यदि ह्रदय रोग और उच्चरक्तचाप भी साथ में है, तब इसका सेवन न करें |
15 . मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
> मधुमेही को खजूर का सेवन नहीं करना चाहिए |
16 . क्या अखरोट का सेवन उपयुक्त हो सकता है ?
> मधुमेह में अखरोट का सेवन किया जा सकता है | इसकी 100 ग्राम मात्रा में 64.5 ग्राम वसा होती है जिनसे ट्राईग्लिसराइड की मात्रा बढती है अतः ह्रदय रोग अथवा उच्चरक्तचाप में इसका सेवन करना ठीक नहीं है |
17. डबल रोटी का सेवन कितना उपयुक्त हो सकता है ?
> डबल रोटी भी दो प्रकार की मिलती है, एक तो मैदे से बनी हुई सफ़ेद डबल रोटी, इसकी 100 ग्राम मात्रा में 0.2 ग्राम फाइबर होता है | दूसरी डबल रोटी भूरे रंग की होती है जो आटे की बनती है, इसकी 100 ग्राम मात्र में 1.2 ग्राम फाइबर होता है तथा 245 कैलोरी पायी जाती है | इसलिए सफ़ेद की बजाय भूरी डबल रोटी अधिक उपयुक्त है |
सबसे उपयुक्त होगा अगर आप अपने आहार में एलो वेरा जूस शामिल कर लें | एलो वेरा में मौजूद क्रोमियम,बिटासेल्स और विभिन्न प्रकार के विटामिन्स, मिनरल्स,खनिज जो शरीर के सेल स्तर पर काम करती है और आपके शरीर की जरूरतों को पूरा कर देती है जिससे आप रहते है हमेशा चुस्त और दुरुस्त |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
रोगों की उपस्थिति कोई नई बात नहीं है, प्राचीन से अर्वाचीन कल तक हर युग में रोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है | बल्कि यह कहना यथार्थ होगा की मनुष्य के उद्भव से पहले रोगों ने अपनी जड़े जमा चुके थे | खोजों से यह पता चला है की रोग फ़ैलाने वाले कुख्यात मच्छड विश्व रंगमंच पर मनुष्य के आगमन से पहले ही आ गए थे | जाहिर सी बात है जब इसका अस्तित्व प्राचीन काल से है तो हर युग -हर काल में मनुष्य इनसे पीड़ित रहा है |
लेकिन वर्तमान में रोगों की व्यापकता जनमानस को त्रस्त कर रखा है | अधिकांस व्यक्ति आज कल किसी न किसी रोग से घिरे नजर आते है | कई रोग तो प्रयाप्त चिकित्सा लेने से मिट जाते है जबकी अनेक रोग चिकत्सा से शांत यानि दबा तो रहते है पर विदा यानि जड़ से खत्म नहीं होते | मेहमानों की तरह उम्र भर खातिरदारी कराते रहते है | जरा सी भी मेहमानबाजी में कमी हुई उनके तेवर चढ़ जाते है और फिर बहुत नुकसान पंहुचा जाते है | ऐसे रोगों में वर्तमान के प्रमुख रोग है ,मधुमेह !
आजकल मधुमेह की महामारी से न केवल व्यक्ति विशेष परेशान है बल्कि चिकित्सा विशेषज्ञों से लेकर सरकारें भी इस रोग को जड़ से नष्ट करने के प्रयासों में लगी हुई है|
एलोपैथी में औषधियों तथा इंसुलिन के सेवन से इस पर काबू तो पाया जा सकता है मातब बस दबाया जा सकता है लेकिन मिटा पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है |
कई जड़ी-बूटियां मधुमेह में बढ़ी हुई रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में उपयोगी सिद्ध हुई है, ऐसी वनस्पतियों( Forever Aloe Vera Gel) जिसमे बीटा सेल्स में वृद्धि करने की सामर्थ्य हो जिसमे क्रोमियम भी पाया जाता हो तो मधुमेही का जीवन कुछ आसन हो जाता है क्योंकि बीटा सेल्स की सक्रियता में आ रही लगातार कमी रुक जाती है इससे अग्न्याशय ग्रन्थि ठीक तरह से कार्य कर पाती है |
मधुमेही के लिए तो उचित यह होगा की उसे चिकित्सक के परामर्श पर एलोपैथिक औषधियों का सेवन के साथ ही गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियों का साथ सेवन करते रहें ताकि इस रोग के प्रभाव को नियंत्रण में रखकर अपने आहार-विहार के सही पालन करता हुआ रोगों से मुक्ति पाकर दीर्घायु प्राप्त कर सकें |
फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के मधुमेह पर कारगर " एलो वेरा जेल", "फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन", "लाइसियम प्लस", "जिन-चिया" इत्यादि उत्पादों में मधुमेह में अत्यंत उपयोगी और शरीर तथा शरीर में ताकत और जोश को बनाए रखने के लिए लोग री- वाइटल का प्रयोग करते है बिलकुल वही गुण आपको हमारी "जिन-चिया" में मिलेगी और वो भी 100 फीसदी आयुर्वेदिक | अतः शरीर के किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिए आप इसका प्रयोग करें और अपनी खोयी हुई शारीरिक ताकत को पुनः प्राप्त करें |
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एलोवेरा के बारे में विशेष जानकारी के लिए आप यहाँ यहाँ क्लिक करें
"एलोवेरा " ब्लॉग ट्रैफिक के लिए भी है खुराक |
अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
माँ लक्ष्मी पूजन की तैयारी में आज कल लोग ज्यादा व्यस्त है | जहाँ तक निगाहें जाती है , घर में कुछ न कुछ काम, साफ़-सफाई, रंगाई, सजावट इत्यादि चलता देखा जा रहा है | भला हो भी क्यूँ न साल में एक बार तो ऐसे अवसर आते है जब घर के कोने-कोने तक चमकाए जाते है | दरअसल माता लक्ष्मी की स्वागत का मसला है भाई, और जहाँ सफाई है वहां माँ लक्ष्मी की निवास तो जरुर होगी |
अतः मैंने भी अपने घर के कोने कोने को नए रूप और रंग देने में लगा था | आखिर कुछ ही दिनों के बाद जो दीवाली आ रही है | साफ़-सफाई के वजह से घर के सामान अस्त व्यस्त था परन्तु आज कुछ सामान्य सा लग रहा है, तो सोचा क्यूँ नहीं आपलोगों का हाल चाल जान लूँ |
सप्ताह पहले ही हमारे पुरे परिवार के तरफ से आप सब पाठक और मेरे मित्र को दीवाली की हार्दिक बधाई और इश्वर से प्रार्थना है की
आपके घर खुशियाँ, सुख, समृधि व धन-धन्य से भरपूर रखे |आप निरोग, सेहत मंद रहें, चुस्त दुरुस्त रहें- यही हमारी शुभकामना है |
पिछले अंश को एक बार फिर से आगे बढ़ाते हुए, जैसा की हमने कहा था
एलोवेरा के बारे में लोगों की आम सवाल क्या होता है ? कुछ और अच्छी जानकारी है जो आपके साथ बांटना चाहता हूँ | आइये जानने की कोशिस करते है एलोवेरा कुछ विशिष्ट गुण और क्या है ?:-
आखिर एलो वेरा को क्या चीज इतना विशिष्ट व अद्भुत बनाती है ?
वैज्ञानिक शोध एलो के अनेक ऐसे स्वास्थ्यकारी गुणों की पुष्टि कर चूका है की उनके बारे में जानकर कोई भी कहेगा," यह सच नहीं हो सकता है |" एलो वेरा कई तरह से शरीर की सेहत और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ा देता है और वह भी प्राकृतिक रूप से, जिसके सिर्फ अच्छे प्रभाव पड़ते है |
एलो वेरा में सभी प्रकार के
पॉलीसेखेराइड्स ( कोशिकाओं को पोषण देने वाली शर्करा की जटिल श्रृंखला ) सहित 250 तत्व होते है | शरीर इसका निर्माण किशोरावस्था तक करता रहता है | इसके बाद हमें ये स्वास्थ्यकारी और बाढ़ जरी रखने वाले पॉलीसेखेराइड्स बाहरी स्त्रोतों से लेने पड़ते है | एलो वेरा यह पौधा है जिसमे
स्वास्थ्यवर्धक म्युकोपॉलीसेखेराइड्स का सबसे बड़ा जखीरा पाया जाता है |
केरिंगटन लेबोरटरीज , एक दावा कम्पनी ने एलो वेरा में शर्करा की लम्बी श्रृंखला के विभिन्न आकारों में आश्चर्यनक तत्व दर्ज किये है | डॉ इवान डेनहॉफ की रिपोर्ट के अनुसार छोटी कड़ियों में पॉलीसेखेराइड्स में वे तत्व है जो र
क्त शर्करा स्तर का संतुलन बनाए रखने में मदद करते है | शोध अभी भी जारी है परन्तु काफी साबुत मिल चूका है की इंसुलिन रिसेप्टर कोशिकाओं को सुधार देते है |
इसीलिए इसका महत्व टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह के लिए बढ़ जाता है | इसके अतिरिक्त ये मिठाई/शर्करा के तलब को भी संतुलित करते है | शोधों से यह भी पता चला है की इन अपेक्षाकृत छोटे पॉलीसेखेराइड्स में कुछ उद्दीपन-रोधी तत्व भी है जो स्टेराईड्स की तरह काम करते है |
माध्यम आकर के
पॉलीसेखेराइड्स में शक्तिशाली एंटी-ओक्सिडेंट पाए गए है | अपेक्षाकृत बड़ी श्रृंखलाओं ( स्टेप,स्ट्रेप, ई-कोली जैसी ) में
बैक्टीरिया रोधी तत्व है जो बैक्टीरिया पर सीधे वार करते है | इसी तरह से इनसे हर्पिस,इन्फ्लुएंजा जैसे वायरसों में प्रत्यक्ष लड़ने वाले तत्व भी है | इनसे शरीर के उतकों की
नवजीवन प्रक्रिया को प्रेरणा मिलती है |
एलो वेरा का उपयोग करना वह तरीका है जिसके जरिये शरीर की अपनी स्वास्थ्य लाभकारी प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जाता है | निरोधक कोशिकाओं की सेना को मेक्रोफेज कमांड करते है, वे ही इस सेना को आदेश देते है की वह कहाँ जाए, कब और कितना जबरदस्त हमला करें और कब युद्ध बंद कर दें |
एक बिल्ली जिसकी औसतन उम्र 6 से 8 साल की होती है | और जहाँ घर की बिल्ली हो जिसे खान-पान का ध्यान रखा जाता है मेरा मतलब है पालतू बिल्ली तो वह ज्यादा से ज्यादा 14 -15 साल तक जी सकती है |
परन्तु एक बिल्ली ऐसी भी थी जो अपने जीवन का 31 साल 2 महिना पूरा किया है | लन्दन के घर में एक बिल्ली ने अपने 31 वाँ वर्ष गाँठ मानाने के दो महीने बाद मर गई |बीबीसी समाचार में World's oldest cat and Forever Living Product Aloe Vera Gel
अब आप कहेंगे भाई ये क्या बिल्ली की कहानी लेकर बैठ गए | दरअसल ये खबर मैं नहीं यह बीबीसी की पहली खबर थी साल 11 जुलाई 2001 की, दुनिया का सबसे बूढी बिल्ली नाम स्पाइक और uk में थी | जब उनसे पूछा गया की लम्बे उम्र का राज क्या है ,तो उन्होंने बताया मैं पिछले दस साल फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट का एलो वेरा उनके आहार में शामिल करती रही है | और वो लगातार स्वस्थ्य रही है जीवन के अंतिम दिनों में भी वो स्वस्थ्य थी | अतः एलो वेरा के विशिष्ट गुणों के वजह से ही हमारे कोशिकाओं की नवजीवन प्रदान होता रहता है और हम हमेशा जवान और स्वस्थ्य नजर आते है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
एक बार फिर से एलोवेरा के सम्बन्ध में जानकारी लेकर उपस्थित हो रहा हूँ | दरअसल अपने देश के विभिन्न प्रान्तों से इस उत्पाद के बारे में फोन आता रहता है | कुछ लोग घर के गमले में लगे एलो वेरा ( ग्वारपाठा) के बारे में जानना चाहते है की वो उसका जूस किस तरह से निकले और पियें | कुछ लोग उसे खाने और सब्जी बनाने के विधि पूछते है वगैरह वगैरह | तो मैंने सोचा क्यूँ नहीं आज इस पोस्ट के माध्यम से लोगों के मन की भ्रांतियां को दूर किया जाय ? तो पेश कर रहा हूँ कुछ अति विशिष्ट जानकारी जो हम सबके लिए बहुपयोगी है |
क्या सामान्य और स्वस्थ्य लोगों को एलो जेल लेना चाहिए ?
जी हाँ , एलो वेरा जेल एक अच्छे और उत्तम किस्म का आहार माना जाता है | यह मानव शरीर के लिए पोषक का भंडार है, शरीर के निर्विषीकरण के लिए बहुत ही उपयोगी है और सभी को इसकी जरूरत है | आज के वातावरण में जहाँ प्रदूषित पदार्थ का जमावड़ा है जैसे आहार से लेकर वायु , पानी सबके सब प्रदूषित है जिसके कारण शरीर में टोक्सिन जमा हो जाता है और इसी को डीटोक्सीफाई करने के लिए एलो वेरा जेल समर्थ है |यह कोशिकाओं को नवजीवन प्रदान कर उन्हें स्वस्थ रखता है |
जैसे मोटरगाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियमित रूप से सर्विसिंग कराना जरुरी होता है, ठीक उसी प्रकार से एलो वेरा जेल मानव शरीर के लिए काम करता है | गाडी के कल-पुर्जों के मुकाबले हमारे शरीर के कल-पुर्जे कहीं ज्यादा विशिष्ट, अनोखे, अद्धभुत, अनमोल है और उनकी देख-भाल करना , संभालना निहायत जरुरी है |
कितने दिनों तक एलो वेरा जेल उपयोग करना चाहिए ?
एक स्वस्थ व्यक्ति को एलो वेरा जेल कम से कम छह से आठ बोतलें पिने की सिफारिश की जाती है | ऊर्जा स्तर, सामान्य स्वास्थ्य, मुड और चुस्ती-फुर्ती में सुधार नजर आने लगेगा | परन्तु बीमार व्यक्ति के लिए तो शरीर की निरोधक प्रणाली को उस पर काबू पाने के लिए अतिरिक्त पोषाहार की जरुरत पड़ेगी | एलो वेरा जेल के उपभोग की अवधि व्यक्ति की बीमारी, उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करेगी |
क्या लगातार एलो वेरा लेने से इसकी लत पड़ सकती है या इम्युनिटी पैदा हो सकती है ?
जी बिलकुल नहीं, एलो वेरा की आदत या लत नहीं पड़ती चुकी यह बुनियादी रूप से पौष्टिक आहार है, कोई सिंथेटिक दवा ( ड्रग्स) नहीं | इसलिए इसके पिने से किसी भी प्रकार का कोई दुष्परिणाम या इम्युनिटी प्रतिक्रिया होने का सवाल ही नहीं पैदा होता |
क्या किस दूसरी दवाओं के साथ हम एलो वेरा ले सकते है ?
एलो वेरा आँतों की सफाई करके ग्रहण करने की क्षमता और आत्मसात्करण को बढाता है | इससे अन्य दवाओं को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है जिसकी वजह से दवा की खुराक मानी जा सकती है | अगर ऐसे लक्षण दिखाई दे तो अपने डॉक्टर से सलाह करके खुराक की मात्रा घटाई भी जा सकती है | कई मामलों में जब शरीर की निरोधक प्रणाली का स्तर बढ़ने लगता है, तो दवाओं की मात्रा वैसे भी धीरे-धीरे घटाई जाती है | ऐसा वक्त आ सकता है जब दवाओं की शायद जरूरत ही नहीं रहे |
बाजार में एलो वेरा के कई ब्रांड मिलते है, जो हमें किस ब्रांड का इस्तेमाल करना चाहिए ?
भारत में एलो वेरा के कई निर्माता है | किसी भी उत्पादन की साख जमने में समय लगता है, खासकर जब मामला सेहत से सम्बंधित हो | जो उत्पाद लगातार अच्छा होता है,वह लगातार अच्छे परिणाम देता है |
भारत में निर्मित होने वाले अधिकांस एलो वेरा का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग करता है | पिने वाले एलो वेरा जेल की गुणवता ऐसी होनी चाहिए जो एलो के ताजे-ताजे काटे गए पते से निकलने वाले जेल का मुकाबला कर सकें | जाहिर सी बात है, इसके लिए विशेष प्रकार की प्रक्रिया की समझ व जानकारी होनी चाहिए | इसे सब लोग नहीं कर सकते | लिहाजा ऐसी जेल का चुनाव करें जिसमे ये सभी तत्व मौजूद हो |
अगर एलो जेल वास्तव में इतना कारगर है तो हर कोई इसकी चर्चा क्यूँ नहीं करता ?
बाजार में कई तरह के जेल उपलब्ध है और उनकी गुणवता में भी अंतर पाया जाता है |
हाँ ये थोडा महंगा उत्पाद है | इसके अलावा अच्छी गुणवता के बारे में जानकारी का आभाव या अच्छे माल की उपलब्धि न होने के कारण लोगों को जो मिल जाता है वही खरीद लेते है | जब मन मुताविक परिणाम नहीं मिलते, तो एलो वेरा की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है | हमारे देश के डॉक्टर को एलो वेरा और पोषक पूरकों सम्बंधित जानकारी बहुत थोड़ा है | इसलिए अक्सर वे लोगों मतलब मरीजों को ऐसे पूरकों और उत्पादों का उपयोग करने से मना करते है |
मरीज भी इस समस्या में इजाफा करते है | वे इस 'चमतकारी पौधे' से चमत्कार की उम्मीद करते हुए, आनन्-फानन नतीजे चाहते है | अक्सर जब दुसरे इलाज से परेशां हो जाते है , तो वे पोषक चिकित्सा को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाते है | मरीजों को पोषक चिकित्सा के काम करने के तरीके के बारे में बताया जाना चाहिए | यह बताया जाना चाहिए की पहले साकारत्मक परिवर्तन नजर आने में कितना वक्त लगेगा | शुरुआती चरणों में उनका तब तक उचित निर्देशन करना चाहिए, जब तक वे इलाज द्वारा हुए फर्क को खुद महसूस न करने लगे |
पोषक पूरकों द्वारा इलाज के नतीजे आनन-फानन में देखने को क्यूँ नहीं मिलता ? क्या खुराक बढ़ने से नतीजा जल्दी मिल सकते है ?
पोषक पूरक प्राकृतिक उत्पाद है और इनके द्वारा दी जाने वाला इलाज किसी एक बीमारी के लिए नहीं होता | प्रकृति किसी समस्या को ठीक करने में अपना वक्त लेती है और वह कई कारको पर निर्भर करती है |
जो लक्षण देखने में आते है वे हो सकते है किसी गहरा गई समस्या से सम्बन्ध रखते हो या फिर यह समस्या पोषकों के आभाव से सम्बंधित हो जिसे ठीक करने में समय लगता है | पोषकों के ग्रहण करने की प्रक्रिया का नियन्त्रण शरीर के हाथ में होता है | शरीर अतिरिक्त खुराक को बाहर निकाल देता है |
विकाश और मरम्मत के बारे में मानव शरीर के अपने नियम है | गर्भाधान से शिशु के जन्म और फिर किशोरावस्था तक पहुँचने में समय लगता है | इस तरह से हर एक चीज का समय निर्धारण किया गया है | मानव शरीर बढ़ने और विकसित होने में समय लगता है | यह समय प्रकृति के प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित है | अतः धैर्य व संयम रखें और प्रकृति को अपने समय लेने दे | और भी है जिसके बारे में चर्चा अगले भाग में करेंगे |
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कार्टिलेज के निर्माण की प्रक्रिया में ग्लुकोसामिन एक महत्वपूर्ण तत्व है | यह एक सामान्य सी अमीनो शर्करा ( Amino Sugar ) होती है जो प्रोटोग्लाइकन ( Protoeoglycans ) बनाती है | ये प्रोटोग्लाइकन हमारे कार्टिलेज में लचीलापन लाते है | दर्द निबारक दवाएं और एस्प्रिन सिर्फ दर्द निबारक का कार्य करती है पर इसके विपरीत ग्लुकोसामिन कार्टिलेज को बनाने का काम करती है |
दुनिया भर में रिसर्च के बाद पता चला की ग्लुकोसामिन लेने से न सिर्फ दर्द और सुजन से आराम होता है बल्कि कार्टिलेज को होने वाली नुकसान भी रुक जाती है | इससे भी उत्साहवर्धक बात यह सामने आई की जोड़ों में नई कार्टिलेज बनानी शुरू हो जाती है |
इस प्रकार इस विषय पर होने वाले सारे शोध अध्ययन में पाया गया की आर्थराइटिस के वे सभी रोगी, जो 1500 से 2000 मिली ग्राम ग्लुकोसमिन सल्फेट लेते है , तो इन्हें जबरदस्त फायदा होता है और खास बात यह है की किसी प्रकार का कोई दुष्परिणाम भी नहीं होता है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है की जब इन मरीजों ने ग्लुकोसमिन लेना बंद कर दिया, उसके बाद भी महीनो तक उनके जोड़ो में दर्द नहीं हुआ |
जहाँ तक बाजार की दबाएँ है, जो अक्सर Gastrointestinal bleeding और लीवर को नुकसान पहुंचाती है और बिमारी को बढ़ने से बिलकुल नहीं रोक पाती है | यहाँ तक की कई मामलो में तो और भी बढ़ा देती है, फिर भी पूरी दुनिया में क्यूँ इतनी मात्रा में खाई जाती है ? पर वर्तमान में ख़ुशी की बात है की काफी डाक्टर अपने रोगियों को ग्लुकोसामिन सल्फेट दे रहे है |
अब आपको जानकार और भी ख़ुशी होगी की हमारे पास ऐसा उत्पाद है जिसके अन्दर ग्लुकोसमिन सल्फेट के अलावा कोंड्रोयटिन सल्फेट , एम्.एस.एम् ( मेथेल-सल्फोनिल-मीथेन ), विटामिन-सी इत्यादि सब के सब एक ही बोतल में बंद है !
इस उत्पाद का नाम है
फॉर एवर फ्रीडम ! जी हाँ इसका साफ-साफ मतलब होता है जोड़ो के दर्द से सदा के लिए आजादी !
फॉर एवर फ्रीडम :-
दर्द से राहत देने, सुजन में कमी व सिनोवायल द्रव में सुधर करने, कार्टिलेज की हिफाजत करने और उसे नया जीवन प्रदान करने के अलावा जोड़ो के लचीलेपन और गतिशीलता को बढाता है ! 70 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को हर दिन 100 एम्.एल से 120 एम्.एल तक रोजाना सुबह के नाश्ते और रात के भोजन के पश्चात् लेना चाहिए !
भोजन के तुरंत बाद लेने से पेट में हो सकने वाली हलकी जलन की सम्भावना खत्म हो जाती है ! एक से दो महीने में दर्द से राहत नजर आने लगेगा, मगर यह इस पर निर्भर है की क्षति कितनी और किस तरह की है ! इसके अलावा फॉर एवर फ्रीडम में एलो वेरा जेल, संतरे का रस कंसन्ट्रेट, विटामिन-सी और विटामिन-ई का उच्च प्रतिशत होता है !
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सौन्दर्य
या सुन्दरता वह बला है जिसका उपासक हर जीव है ,हर प्राणी है, सौन्दर्य प्रकृति से जुड़ा हुआ प्राकृतिक भी हो सकता है, और भौतिकता से जुड़ा हुआ भौतिक भी हो सकता है | यह सृष्टि प्राकृतिक सौन्दर्य की अदभुत मिशाल है और इस सृष्टी में रचित हर वस्तु सुन्दरता से परिपूर्ण है |
व्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की और फिर इस सृष्टि के सृजन के लिए स्त्री-पुरुष दो प्राणियों ( नर-मादा) की रचना की, जिनका शारीरिक गठन,बोली अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है | जिस प्रकार ऋतुओं की सुन्दरता, हरियाली, वृक्षों में खिले हुए फूलों और फूलों से उठती मंद-मंद खुशबुओं, बादलों की काली घटाओं, हल्के-हल्के चलती पवन आदि से आभास होती है और हमें आकर्षित करती है, ठीक इसी प्रकार ही ब्रह्मा की खुबसूरत रचना स्त्री की सुन्दरता भी उसके मधुर, मीठी वाणी, नम्रता, स्नेह,कोमलता, व्यवहार कुशलता, लज्जा-शर्म-हया,सम्मान देने वाली आँखों व स्वाभाव से आभास होती है |
शारीरिक सौन्दर्य (आकर्षण) तो स्त्री में होती ही है किन्तु जब यह सौन्दर्य व्यवहार से भी छलकता है तो वह स्त्री एक सम्पूर्ण सौन्दर्य की प्रतिक मानी जाती है | आँखों को जो भाता है वह सुन्दर है परन्तु मन और आत्मा को भाता है व तृप्त करता है वह अति सौन्दर्य का प्रतिक है व सौन्दर्य की गरिमा अच्छे व्यवहार से ही स्थायी रहती है |
स्त्री का समस्त और पूर्णरूप से सुन्दर होना जिसमे आंतरिक व बाहरी, शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ व सुन्दर होना ही स्त्री सम्पूर्णता को दर्शाता है | मन मस्तिस्क से जब व्यक्ति पुर्णतः स्वस्थ होते है, तनाव रहित रहते है व अपने समस्त क्रियाकलापों को तन्मयता से पूर्ण करने में सक्षम होते है यही स्त्री की सर्वांग व सम्पूर्णता है |
आज के जीवन शैली में तनाव जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है | हर एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से तनावपूर्ण जिन्दगी जीने को मजबूर है | प्रमुख कारण आधुनिक जीवन का आहार - विहार है | परन्तु दिनचर्या व स्वस्थ आहार-विहार को अपने जीवन में अपना कर एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन जिया जा सकता है | एक और जरुरी बाते है , अगर हलकी-फुलकी व्यायाम नित्य करती रहे तो जीवन और भी स्वस्थ और सुन्दर रखने में मदद मिलेगी |
एक और उपाय है स्त्री अपने आप को स्वस्थ व सौन्दर्य को बनाए रखने के लिए घृतकुमारी के जूस
का नित्य सेवन करें | जिससे शरीर में दुर्बलता, अपचन, चक्कर आना, पेट के विकार, हाथ-पाँव में जलन या झुनझुनाहट होना मानसिक रूप से अस्वस्थ आदि कई लक्ष्ण का पूर्ण निदान हो सकता है |
अतः घृतकुमारी ( एलोवेरा ) का नियमित रूप से अपने जीवन में अपनाए और बिमारी को दूर भगाए |
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