" "यहाँ दिए गए उत्पादन किसी भी विशिष्ट बीमारी के निदान, उपचार, रोकथाम या इलाज के लिए नहीं है , यह उत्पाद सिर्फ और सिर्फ एक पौष्टिक पूरक के रूप में काम करती है !" These products are not intended to diagnose,treat,cure or prevent any diseases.
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Oct 28, 2012

चाइनीज खाना स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक !!!

अजीनोमोटो (धीमा जहर) ::

सफेद रंग का चमकीला सा दिखने वाला मोनोसोडि़यम ग्लूटामेट यानी अजीनोमोटो, एक सोडियम साल्ट है। अगर आप चाइनीज़ डिश के दीवाने हैं तो यह आपको उसमें जरूर मिल जाएगा क्योंकि यह एक मसाले के रूप में उनमें इस्तमाल किया जाता है। शायद ही आपको पता हो कि यह खाने का स्वाद बढ़ाने वाला मसाला वास्तव में यह धीमा जहर खाने का स्वाद नहीं बढ़ाता बल्कि हमारी स्वाद ग्रन्थियों के कार्य को दबा देता है जिससे हमें खाने के बुरे स्वाद का पता नहीं लगता। मूलतः इस का प्रयोग खाद्य की घटिया गुणवत्ता को छिपाने के लिए किया जाता है। यह सेहत के लिए भी बहुत खतरनाक होता है। जान लें कि कैसे-

* सिर दर्द, पसीना आना और चक्कर आने जैसी खतरनाक बीमारी आपको अजीनोमोटो से हो सकती है। अगर आप इसके आदि हो चुके हैं और खाने में इसको बहुत प्रयोग करते हैं तो यह आपके दिमाग को भी नुकसान कर सकता है।

* इसको खाने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है। चेहरे की सूजन और त्वचा में खिंचावमहसूस होना इसके कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं।

* इसका ज्यादा प्रयोग से धीरे धीरे सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत और आलस भी पैदा कर सकता है। इससे सर्दी-जुखाम और थकान भी महसूस होती है। इसमें पाये जाने वाले एसिड सामग्रियों की वजह से यह पेट और गले में जलन भी पैदा कर सकता है।

* पेट के निचले भाग में दर्द, उल्टी आना और डायरिया इसके आम दुष्प्रभावों में से एक हैं।

* अजीनोमोटो आपके पैरों की मासपेशियों और घुटनों में दर्द पैदा कर सकता है। यह हड्डियों को कमज़ोर और शरीर द्वारा जितना भी कैल्शिम लिया गया हो, उसे कम कर देता है।

* उच्च रक्तचाप की समस्या से घिरे लोगों को यह बिल्कुल नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ और घट जाता है।

* व्यक्तियों को इससे माइग्रेन होने की समस्या भी हो सकती है। आपके सिर में दर्द पैदा हो रहा है तो उसे तुरंत ही खाना बंद कर दें।

* अजीनोमोटो की उत्पादन प्रक्रिया भी विवादास्पद है : कहा जाता है कि इसका उत्पादन जानवरों के शरीर से प्राप्त सामग्री से भी किया जा सकता है।

*अजीनोमोटो बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है। इसके कारण स्कूल जाने वाले ज्यादातर बच्चे सिरदर्द के शिकार हो रहे हैं। भोजन में एमएसजी का इस्तेमाल या प्रतिदिन एमएसजी युक्त जंकफूड और प्रोसेस्ड फूड का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। कई शोधों में यह बात साबित हो चुकी है कि एमएसजी युक्त डाइट बच्चों में मोटापे की समस्या का एक कारण है।

इसके अलावा यह बच्चों को भोजन के प्रति अंतिसंवेदनशील बना सकता है। मसलन, एमएसजी युक्त भोजन अधिक खाने के बाद हो सकता है कि बच्चे को किसी दूसरी डाइट से एलर्जी हो जाए। इसके अलावा, यह बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का भी एक कारण है। छिपा हो सकता है अजीनोमोटो अब पूरी दुनिया में मैगी नूडल बच्चे बड़े सभी चाव से खाते हैं, इस मैगी में जो राज की बात है वो है Hydrolyzed groundnut protein और स्वाद वर्धक 635 Disodium ribonucleotides यह कम्पनी यह दावा करती है कि इसमें अजीनोमोटो यानि MSG नहीं डाला गया है। जबकि Hydrolyzed groundnut protein पकने के बाद अजीनोमोटो यानि MSG में बदल जाता है और Disodium ribonucleotides इसमें मदद करता है।

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Feb 14, 2011

स्वस्थ्य जीवन के लिए जीवन शैली में परिवर्तन करें |

आज भी बिमारी मनुष्य के सामने ठीक उसी प्रकार के है जैसे की प्राचीन काल में थे, पर बिमारियों का स्वरूप बदल गया है |बाहरी तौर पर हम अच्छे खासे हष्ट-पुष्ट नजर आते है , तब मालूम पड़ता है बहुत खुशहाल है |परन्तु अन्दुरुनी हालात बहुत कुछ ठीक नहीं होता है | भिन्न-भिन्न प्रकार के बिमारियों से ग्रसित होते है | आज कल का जीवन शैली लोगो को घुट-घट कर मरने के सिवा और कुछ नहीं दे सकता है |

आदते इतनी वाहियात हो गई है कि उसने अपने कुल्हारी से अपनी ही टांगे काट डाला है | उसने अपनी सेहत को इतनी बुरी तरह से तबाह कर डाला है, जैसे की दुनिया में आज से पहले इतनी बुरी सेहत हुई नहीं थी | बीमारियाँ इस कदर दुनिया में फैली हुई है , उतनी बीमारियाँ तो दुनिया के मानचित्र पर , जबसे मनुष्य इस धरती पर पैदा हुआ है, तब से लेकर आजतक नहीं थी | आदमी वर्तमान में इतना कमजोर,बीमार,दुर्बल, रोगी और खोखला हो गया है की इतिहास में ऐसा कभी नहीं था | क्या यह सब मानव सभ्यता के विकाश के कारण है या उनकी बेअक्क्ली ? जरा सोंचे !

मानव शारीर प्रकृति कि एक अनमोल संरचना है | शरीर का विज्ञानं इतना जटिल है, जिस पर सदियों से सम्पूर्ण दुनिया के चिकित्सक शोध कर रहे है | इन्सान चाँद पर तो पैर रख दिए है लेकिन शरीर के विज्ञानं के विषय में केवल कुछ अंश भी समझ पाया है | शरीर की तंदुरुस्ती व आयु से जुड़े विज्ञानं को हम आयुर्विज्ञान अर्थात आयुर्वेद कहते है तथा इससे बने इलाज को आज दुनिया के तमाम बड़े-बड़े देश अपना रहे है |


इन्सान की जिन बिमारियों का इलाज आज की आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा में नहीं हो पता, उन्ही लाइलाज बिमारियों का पक्का इलाज आयुर्वेदिक नुस्खों वाली दवाइयों से हो जाता है , जिसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव यानि की side effect भीं नहीं होता, जबकि आज की आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा से मनुष्य के रोग थोड़े समय के लिए दब जरुर जाते है लेकिन उसके साथ कई और समस्याएं पैदा हो जाती है | आयुर्वेदिक इलाज में ऐसा नहीं होता क्यूंकि यह इलाज रोग व कमजोरियों को हमेशा के लिए जड़ से खत्म कर देता है |

डायबिटीज को ही अगर लेते है तो वो डॉक्टर जो मरीजों को डायबिटीज के बारे में सलाह देते है , कई खुद रोगी होते है | ऐसा एक डॉक्टर से मैं मिल भी चूका हूँ | करीब पाँच साल से वो टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित है | ऐसा नहीं है की उन्होंने अपना इलाज नहीं कर रहा है परन्तु डायबिटीज की गोलिया बढ़ रही है और ज्यादा कुछ फायदा नहीं हो रहा है |


इस तरह के बिमारियों से बचने के लिए सिर्फ जीवन शैली में परिवर्तन की जरुरत है | अपने शिक्षक स्वयं बने | बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी अर्जित करें जो हमेशा ही फायदेमंद साबित होगा | एक जागरूक मरीज ही अपना इलाज पूरी तरह से करबायेगा या हिम्मत अंत तक बनाए रखे |

इस तरह से लाइलाज समझे जाने वाली बीमारियाँ के लिए कारगर औषधियों पर कई शोध हो चुके है | कुछ आयुर्वेदिक वनौषधियों का नाम प्रयोग करके यह देखा गया है की लाइलाज बिमारियों पर इस प्रयोग करने से बहुत ही फायदेमंद हुआ है | ऐसे ही वनौषधियों में से एक है ' एलोवेरा " | यह शरीर के लिए अमृत तुल्य है | हरेक तरह के बीमारियों में इसका प्रयोग फायदेमंद होता है |


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Nov 27, 2010

असाध्य रोग- घरेलु सरल उपचार !

आजकल यह कहना अतिशयोक्ति होगी की आयु पर हम विजय पा सकते है | प्राणी की कब मृत्यु हो जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता है | हर क्षण मृत्यु के करीब जा रहे प्राणी की आयु शरद ऋतु के बादल के सामान स्वल्प है, यह तो बुझते हुए लौ की दीपक के समान चंचल है, जो गई हुई देखी जाती है |

सबाल यह नहीं है की आपकी कितनी आयु है पर जितनी भी आयु आप जिए वह सुखकर हो, दिन-हिन् और रोगी बनकर जीना बहुत ही कष्ट देता है | मृत्यु के श्रीजन्हार असंख्य रोगों को शरीर में समा देते है और उसे कष्ट दे-देकर मारने की जुगत में लगे रहते है |


ज्यादातर रोग हमारी खुद की गलतियों के परिणाम होते है | स्वास्थ्य का महत्व भी उस समय ज्ञात होता है जब व्यक्ति बीमार होता है | रोग कोई भी हो - कब्ज़ या कैंसर, सभी रोग ख़राब और आयु का क्षीण करने वाले होते है | जो दूरदर्शी लोग होते है वह हर समय सेहत की अहमियत को ध्यान में रखते है और ऐसे कार्य से बचते है जो अंततः रोगकारक बनें |

रोग अपनी शुरुआती दौर में प्रायः घातक नही होते लेकिन बाद में वे जटिल बनते चले जाते है | कब्ज़ जैसा मामूली सा रोग भी हमारी लापरवाही का परिणाम होता है | वैसे कब्ज़ अपनी प्रारम्भिक अवस्था में बिना नुक्सान पहुंचाए सामान्य उपचारों से मिट जाता है लेकिन यदि लापरवाही बरती जाए तब धीरे-धीरे यह अन्य रोगों का कारण भी बन जाता है |

वर्तमान में कैंसर का भी प्रसार बहुत है | सामान्य विकार बिगरते-बिगरते कैंसर में परिवर्तित हो जाते है | इसे मौत का दूसरा नाम भी कह दिया जाता है | कैंसर के मरीज को देखकर एक स्वस्थ्य व्यक्ति के अंदर से यही शब्द निकलते है " हे भगवान मुझे इस बीमारी से बचाए रखना" |



वैसे इश्वर ने हमें वे सुविधाए दे रखी है जिनसे हम रोगों से बचे भी रह सकते है, रोग निवारण भी कर सकते है और दीर्घायु को प्राप्त कर सकते है , लेकिन जानकारी के अभाव में अथवा लापरवाही वश हम इन सुविधाओं का लाभ न उठाकर विज्ञापनबाजी से प्रचारित उन चीजो का ज्यादा इस्तेमाल करते है जो अंततः स्वास्थ्य के लिए घातक ही सिद्ध होती है | कोल्ड्रिंक्स,वर्गर,पिज्जा इत्यादि अनेक उदाहरण आपके सामने है |

बहरहाल यहाँ उस 'कमाल के नुस्खे' को निचे दिया जा रहा है जो बहुत ही साधारण और घरेलु है | तो आपके लिए लीजिये प्रस्तुत है घरेलु परन्तु असरदार नुस्खा :-
तुलसी और पुदीना की सामान मात्रा को मिलकर बनाये गए चूर्ण का नित्य नियमपूर्वक 5 ग्राम मात्रा दिन में एक बार सेवन किया जाए तो कैंसर जैसे भयंकर बीमारी से सदैव बचा जा सकता है | यह नामुराद बिमारी आपसे दूर ही रहेगी |
अगले क्रम में आपसे इस बनौषधि दोनों के मिश्रण के बारे में विस्तृत जानकारी और शोध के विषय के साथ उपस्थित होंगे !

एलोवेरा जेल रोज पिए और स्वस्थ्य तन-मन के साथ सदैव जियें !

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Oct 3, 2010

गर्दन-कंधे का दर्द( सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस) और एलोवेरा जेल !

मानव शरीर इश्वर की आश्चर्यजनक -रहस्यमय रचना है | लेकिन यह मानव शरीर विभिन्न प्रकार के दुखों से भरा पड़ा है | उनमे से एक है गर्दन या कंधे में दर्द या कड़ापन | गर्दन का दर्द कोई जानलेवा बिमारी नहीं है परन्तु अत्यंत तकलीफ देह जरुर है | गर्दन की तीव्र वेदना और जकड़न के कारण रोगी अपना सर हिलाने-डुलाने में भी असमर्थ हो जाता है |

आमतौर पर यह रोग 30 वर्ष की उम्र से शुरू होता है और 40 वर्ष की उम्र के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर देता है | 65 वर्ष के आसपास या उसके उपर तो दो तिहाई लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है |

मेरुदंड यानि ( स्पाइनल कॉर्ड ) रीढ़ की हड्डी में उत्पन्न विकार ही गर्दन, कन्धा, पीठ तथा कमर दर्द का प्रमुख कारण है | मेरुदंड की सबसे उपरी हिस्से यानि की गर्दन के क्षेत्र की मनकों में जब कोई विकृति आ जाती है तो गले या कन्धों में दर्द होता है इसी को सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस यानि की गर्दन की ओस्टीरियोआर्थीराइटिस ( गर्दन की गठिया) कहा जाता है |


इसके कई कारण होते है :-
> यदि गलत ढंग से बैठते है , लम्बे समय तक सर झुका कर काम करते है, सोते समय सिर के निचे मोटा तकिया लगाते है तो इस रोग की शिकायत हो सकती है |
> यदि आप ऐसा कम करते जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाब पड़ता है तो रीढ़ की लचक समाप्त होने से यह विकृति उत्पन्न हो सकती है |
> जन्मजात स्पाइनल केनाल यानि मेरुनाली का संकरा होना भी इस रोग की वजह बन सकता है |
> इनके अतिरिक्त मोटापा, वृद्धावस्था, संक्रमण, रयूमेटाइड रोग, तनाव आदि कारणों से भी सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस रोग की उत्पति हो सकती है |

बचाव के उपाय :-
जो लोग इस रोग से पीड़ित है और जो पीड़ित नहीं भी है उन्हें भी, निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए :-
> सोते समय बहुत पतला तकिया लगाए ! जो गर्दन के दर्द से पीड़ित हो वो तकिया ना लगाए ! सदा सख्त तख़्त पर सोयें , गद्दा मोटा नहीं होना चाहिए |
> लेटकर किताब न पढ़े, काम करते समय या लिखते समय गर्दन को अधिक न झुकाय, न अधिक समय तक गर्दन झुकाकर बैठे !
> ऐसा वाहन से सफ़र न करें जिससे शरीर को तेजी के साथ झटका लगे, चिंता और तनाव से बचकर रहे !
आप गर्दन के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज़ भी करा सकते है :-

1 . Aloe Vera Gel :- पाचन मार्ग को साफ़ करता है , उद्दीपन प्रतिरोधी
2. Forever Freedom :- दर्द से राहत , कार्टिलेज का पुनर्निर्माण,साइनोवायल द्रव का पुनरुत्पादन, उद्दीपन विरोधी |
3. Pomesteen Power :- गठिया प्रतिरोधी, उद्दीपन प्रतिरोधी |
4. Garlic Thyme :- मांसपेशियों को आराम करता है |
उपरोक्त लिखित उत्पाद का सेवन 4 से 6 महीने तक करें और गर्दन के अति कष्टदायक रोग से मुक्ति पाए |

एलोपैथिक चिकित्सा में इस रोग का उपचार प्रारंभिक अवस्था में गर्दन व कंधे की सिंकाई और मालिश के साथ फिजियोथेरैपी यानि गर्दन के व्यायाम के जरिये रोग पर काबू पाया जाता है , इसके अतिरिक्त रोगी के गले में एक कालर लगाईं जाती है जिसे सर्वाइकल कालर कहा जाता है | इस उपाय से गर्दन की हलचल यानि गति कम हो जाती है | गर्दन का हिलना- डुलना कम होने से इस रोग के कारण गर्दन में होने वाले और हाथ तक फैलने वाले दर्द से छुटकारा मिल जाता है |

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Sep 30, 2010

कायाकल्प का विकल्प प्राकृतिक चिकित्सा !

रूप और सौन्दर्य दोनों ही मानव के अभीष्ट है | जिनकी ओर मनुष्य स्वाभावतः आकर्षित होता है, मुग्ध होता है | किन्तु उन सब साधनों व बातों से अनभिग्य रहता है की जो उसके रूप सौन्दर्य को स्थायित्व देते है, उसकी काया सदा जवान बनाए रखते है, सही मायने में वे साधन जो उनका कायाकल्प करते है | बढती हुई उम्र को वृद्धावस्था को पुनः यौवन की ओर ले जाते है |

यदि वर्तमान युग की बात करे, तो युवक-युवतियां दोनों ही अपने सौन्दर्य व अपनी काया को सुन्दर कोमल-सुदृढ़ बनाए रखने में प्रयासरत तो है लेकिन मात्र कोस्मेटिक के सहारे जिसका कुछ ही समय बाद दुष्प्रभाव उजागर होने लगता है |कोस्मेटिक से सौन्दर्य प्राप्त करना कोई स्थायी विकल्प नहीं है हाँ, यह हमारे रूप लावण्य, त्वचा, बालों, आँखों इत्यादि को कुरूप बनाने का तो जरुर स्थायी विकल्प हो सकता है |


कायकल्प का मतलब सिर्फ बाहरी तौर पर नवीन बनाना नहीं है बल्कि इसका आशय है तन और मन को बहार से और अन्दर से पुर्णतः स्वस्थ्य-सुदृढ़ और सुन्दर बनाना | अपने अन्दर बढती उम्र के अनुसार उत्पन्न होती कमजोरी को, थकावट, आलस्य, रोग-विकार, आदि कई रोगों को नष्ट कर अपनी बढती उम्र को वहीँ विराम देकर पुनः नवीनता की ओर अग्रसर करना |

अतः अपने सौन्दर्य व कायाकल्प की देखरेख में आपके संतुलित सात्विक आहार-विहार से लेकर शारीरिक व्यायाम आवश्यक है और इन सबके लिए अत्यधिक आवाश्यक है आपका प्रकृति से जुड़ना |


क्यूंकि हमारा शरीर प्रकृति से मिलकर बना है, अग्नि, वायु,मिटटी,आकाश,पानी अतः हमारी देखभाल भी इन्ही पंचतत्वों के उत्पन्न पदार्थों से ही संभव है, न ही कोस्मेटिक व कैमिकल्स डालकर बनाए गए क्रीम,लोशन और जेल इत्यादि से |

शारीरिक सौन्दर्य व आंतरिक सौन्दर्य यानि ( उदर,यकृत,किडनी,आँतों, ह्रदय की स्वस्थ्यता ) को लम्बे समय तक कायम व सुचारू रखने के लिए आवश्यक है- संतुलित एवं पौष्टिक आहार | कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनो से प्राप्त सौन्दर्य कृत्रिम ही रहता है स्थायी नहीं |


कायकल्प में आहार की भूमिका :- भोजन में कार्बोहाईड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, शर्करा और खनिज लवण आदि पोषक तत्वों का समावेश शारीरिक सौन्दर्य के लिए आवश्यक है | शारीरिक -मानसिक स्वास्थ्य सौन्दर्य को द्रिघकाल तक स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए संतुलित आहार का सेवन बहुत आवश्यक है | संतुलित एवं सात्विक और संयमित भोजन का नियमित सेवन और सकारात्म्ल सोच, शारीरिक स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य के लिए प्रार्थमिक आवश्यकता है |

शरीर में आवश्यक जल, रक्त तथा अन्य पोषक तत्वों की मात्र बनाए रखने के लिए भोजन में फल-सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए |


प्राकृतिक चिकित्सा में दूषित तत्वों को शरीर से निष्कासित किया जाता है,प्राकृतिक चिकित्सा में किसी औषधि का सेवन नहीं कराया जाता, फल, जूस व सब्जियां के माध्यम से पाचन क्रिया को तीव्र की जा सकती है, जिससे मॉल विसर्जन नियमित रूप से होता रहता है | इस प्रकार शरीर विभिन्न रोगों से मुक्त रहता है |

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Apr 23, 2010

तुलसी मानवजाति के लिए बहुपयोगी औषधि |

आयुर्वेद के समस्त औषधियों और जड़ी-बूटियों में तुलसी का अहम् भूमिका है | तुलसी से कोई अपरिचित नहीं है ,बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी जानते है | इसकी दो प्रजातियाँ होती है - सफ़ेद और काली | तुलसी में बहूत से गुण है | "राजबल्ल्भ ग्रन्थ" में कहा गया है ---- तुलसी पित्तकारक तथा वाट कृमि और दुर्गन्ध को मिटाने वाली है, पसली के दर्द खांसी, श्वांस, हिचकी में लाभकारी है | इसे सभी लोग बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से पूजते है|

भारतीय चिकित्सा विधान में सबसे प्राचीन और मान्य ग्रन्थ "चरक संहिता" में तुलसी के गुणों का वर्णन एकत्रित दोषों को दूर करके सर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूंघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है | भारतीय धर्म गर्न्थों में तुलसी के रोग निवारक क्षमता की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी है ----
तुलसी कानन चैव गृहे यास्यावतिष्ठ्ते |
तदगृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति ममकिंकरा ||
तुलसी विपिनस्यापी समन्तात पावनं स्थलम |
क्रोशमात्रं भवत्येव गांगेयेनेक चांभसा ||

तुलसी से मृत्युबाधा दूर होती है | उसकी गंध का प्रभाव एक कोस तक होता है | जब इससे रोगों की निवृत हो जाती है ,तब यम की बाधा तो हटती ही है, क्यूंकि रोग ही तो यम के दूत बन कर आते है | वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणित हो चूका है की तुलसी के संसर्ग से वायु सुवासित व शुद्ध रहती है |


पौराणिक कथाओं में तुलसी को प्रभु का भक्त बताया गया है | भगवन के आशीर्वाद से ही तुलसी ( पौधे के रूप में ) घर-घर में विराजमान रहने लगी |मंदिर में भगवान् का चरणामृत देते समय पुजारी तुलसी पात्र के साथ गंगाजल देते है और प्रसाद के सभी पदार्थों में तुलसी पत्र डाला जाता है |

क्युकी यह 'अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम' अर्थात यह अकाल मृत्यु से बचाती है और सभी रोगों को नष्ट करती है | मृत्यु के समय तुलसी मिश्रित गंगाजल पिलाया जाता है जिससे आत्मा पवित्र होकर सुख-शांति से परलोक को प्राप्त हो | इसीलिए लोग श्रधापुर्वक तुलसी की अर्चना करते है, सम्मान इसका ऐसा होता है की कार्तिक मास में तो तुलसी की आरती एवं परिकर्मा के साथ-साथ उसका विवाह किया जाता है |

अनुसंधान कर्ताओं ने पाया है की पेट-दर्द, और उदार रोग से पीड़ित होने पर तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रश संभाग मिलकर गर्म करके सेवन करने पर रोग का प्रभाव हट जाता है | तुलसी के साथ में शक्कर अथवा शहद मिलकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है | सिरदर्द में तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण कपडे में छानकर सूंघने से फायदा होता है |

वन तुलसी का फुल और काली मिर्च को जलते कोयले पर दल कर उसका धुना सूंघने से सिर का कठिन दर्द ठीक होते देखा गया है | केवल तुलसी पत्र को पिस कर लेप करने, छाया में सुखाई गयी पत्तियां के चूर्ण को शुन्घने से सिर दर्द में काफी आराम पहुँचता है |
छोटे बच्चे को अफरा अथवा पेट फूलने की शिकायत प्रायः देखि गयी है, जिसमे तुलसी और पान पत्र का रस बराबर मात्रा में मिलाकर इसकी दस-दस बूंद सुबह दोपहर शाम बराबर देते रहने से काफी आराम मिलता है | दांत निकलते समय बच्चों को जोर से दस्त लग जाते है इसमें भी तुलसी पत्ते का चूर्ण शहद में मिलाकर से लाभदायक होता है | बच्चों को सर्दी और खांसी की शिकायत होने पर तुलसी पत्र का रस उपयोगी सिद्ध होता है |

तुलसी के आसपास का वायुमंडल शुद्ध रहने के कारण प्रदुषण अन्य रोगों का पनपने का मौका नहीं मिलता है | पेय जल में यदि तुलसी के पत्तों को डालकर ही सेवन किया जाए तो कई तरह के रोगों से बचा जा सकता है |
तुलसी को संस्कृत भाषा में 'ग्राम्य व सुलभा इसलिए कहा गया है की यह सभी गांवों में सुगमता -पूर्वक उगाई जा sakti है और सर्वत्र सुलभ है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आरोग्य प्राप्त करने की दृष्टि से इसका आरोपण सभी घरो में होना चाहिए |
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Apr 13, 2010

कैल्सियम और आयरन का भंडार है बथुआ |

आज चर्चा करने जा रहा हूँ जो ( गाँव की शान है ,सेहत की जान है,) आम लोगों को आसानी से आहार में मिलता रहा है | इसकी गणना हरी पतेदार सब्जी में की जाती है | जो लौह तत्व और कल्स्शियम से भरपूर है | हमारे पूर्वजों की सबसे पसंदीदा शाक ( साग ) है जिसका नाम है बथुआ | बथुआ में प्रायः शरीर के सभी पोषक तत्व पाए जाते है | मौसम के अनुसार उपलब्ध इसका सेवन करके छोटे-छोटे रोगों से अपना बचाव स्वयं किया जा सकता है | वैज्ञानिक शोधों से पता चल चूका है कि जिन सब्जियों को शीधे सूर्य से प्रकाश प्राप्त होता है,वे पेट में जाकर विषाणु-कीटाणुओं का नाश करती है | बथुआ भी उन्ही सब्जी में से एक है जिन्हें सूर्य का प्रकाश सीधे मिलता है |

विभिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्वों से सुसज्जित बथुआ एक सस्ता साग है | विशेषकर यह ग्रामीण क्षेत्र में सहजता से प्राप्त होने वाला प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है | ग्रामीण इलाकों में बथुआ कि कोई उपियोगित नहीं है,जबकि प्रक्रति ने इसमें सभी प्रकार के अच्छाइयाँ समाहित कर रखी है | भोजन में इसकी मौजदगी से कई प्रकार के रोगों से बच सकते है | यह बाजारों में दिसंबर से मार्च तक आसानी से मिल जाता है |

बथुआ अपने आप गेहूं व जौ के खेतों में उग जाता है | इसके पते त्रिकोनाकर व नुकीले होते है , इसके पौधे पर सफ़ेद,हरे व कुछ लालिमा लिए छोटे-छोटे फुल होते है | बीज काले रंगे के सरसों से भी महीन होते है | पकने पर बीज खेत में गिर जाता है और साल भर तक जमीन के अन्दर पड़े होने के बाद अनुकूल जलवायु व परिस्थितियां मिलने पर स्वतः उग आते है |

बथुआ के बारे में प्राचीन आयुर्वेद ग्रन्थ में भी उल्लेख मिलता है | आयुर्वेद में इसकी दो प्रजातियाँ है ,एक गौड़ बथुआ जिसके पते कुछ बड़े आकर तथा लालिमा लिए होते है ,जो अक्सर सरसों ,गेहूं आदि के खेत में प्राप्त होता है | दूसरा है,यवशाक जिसके पतों पर लालिमा नहीं होती, पते भी पहले जाती के अपेक्षा कुछ छोटे होते है,जो अक्सर जौ के खेतों में अधिकतर मिलता है इसीलिए इसे यवशाक कहते है |

बथुआ को संस्कृत में वस्तुक,क्षारपत्र ( पतों में खरापर के वजह से ) शाकराट ( सागों का राजा ) ,हिंदी में बथुआ ,पंजाबी में बाथू, बंगाली में बेतुवा, गुजराती में वाथुओ,
महारास्त्र में चाकवत, और अंग्रेजी में ह्वाईट गुज फुट ( White goose foot ) कहते है ,इसका लैटिन नाम चिनोपोडियम अल्बम ( Chenopodium album ) है |


बथुआ में 70% जल होता है , इसके अन्दर पारा, लौह, क्षार, कैरोटिन व विटामिन C आदि खनिज तत्व पाए जाते है | भाव प्रकाश में इसके गुणों का उल्लेख में लिखा है कि बथुआ क्षारयुक्त, स्वादिष्ट, अग्नि को तेज करने वाला तथा पाचनशक्ति को बढ़ानेवाला है |

दीपनं पाचनं रुच्यं लघु शुक्रबलप्रदनम |
सरं प्लीहास्त्रपितार्शः कृमिदोषत्रयापहम ||

बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है | विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है |

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ताऊ .इन

Apr 9, 2010

जड़ी-बूटी ( अलसी/तीसी दिव्य शक्ति से भरपूर )


मेरी जिज्ञासा तीसी के बारे में इसलिए बढ़ा जब सुना की इसके अंदर अपार शक्ति है जैसे की प्रोटीन्स,विटामिन,ओमेगा-३ ओमेगा-६,लिग्नेन ,फैबर इत्यादि -------
आजकल अलसी ( तीसी ) के बारे में समाचारपत्र,टीवी ,इंटरनेट के माध्यम से बहूत कुछ सुनने को मिल रहा है | यह शीत ऋतू में पैदा होने वाली एक वर्षीय तिलहन फसल है | अपने देश में इसका पैदावार काफी मात्रा में होती है | अलसी यानि तीसी के फुल नीले रंग का होता है | इसके पाँच हिस्से होते है ,इनमे चपटे व भूरे रंग के बीज होते है | इन्ही बीजों को निकालकर खाद्य पदार्थ बनाने व तेल निकालने के लिए किया जाता है | विश्व स्वास्थ्य संगठन ( W.H.O.) ने अलसी को सुपर स्टार फ़ूड का दर्जा दिया है |

तीसी की ढेरो प्रजातियाँ पायी जाती है | कुछ प्रजातियाँ गर्म मौसम में भी उगाए जाते है |बीज से तेल व खली प्राप्त की जाती है | इसके तेल से बिभिन्न प्रकार के खाद्य सामग्री तैयार की जाती है जो अत्यंत स्वादिष्ट व कोलेस्ट्रोल रहित होते है |

अलसी का बोटानिकल नाम है लिनम युजिटेटीसिमम ( Linum Usitatissimum ) यानि अति उपयोगी बीज है | इसे अंग्रेजी में लिनसीड ( Linseed ) या फ्लेक्स्सीड (Flexseed), गुजराती में जवास,कन्नड़ में अगसी,बिहार में तीसी,बंगाल में तिशी ,तेलगु में अविसी जिन्जालू,मलयालम में चेरुचना विदु,तमिल में अली विराई और उड़िया में पेसी कहते है |

तीसी में प्रचुर मात्रा में रोगनिवारक व पोषक तत्व पाए जाते है
जिनमे कर्बोहाईड्रेट , शुगर ,रेशा, वसा,प्रोटीन, विटामिन्स , कैल्शियम, पोटाशियम,मैग्नेशियम,फोस्फोरस, लोहा, जस्ता, आदि प्रमुख है | इसके अलावा प्रत्येक १०० ग्राम तीसी में ऊर्जा ५३० कैलोरी पायी जाती है |

पहले इसका प्रयोग भोजन, कपडा, व रंगरोगन बनाने के लिए होता आया है | अलसी में अपार पोष्टिक तत्व है | यह बचपन से बुढ़ापे तक के लोगों को फायदेमंद है | महात्मा गाँधी ने स्वास्थ्य पर भी शोध किया व बहूत से पुस्तक भी लिखी | उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसने चमतकारी गुणों को पहचाना और एक पुस्तक में लिखा था ------" जहाँ अलसी का सेवन किया जायेगा ,वह समाज, स्वास्थ्य व समृधि रहेगा |

तीसी में लिग्निन और ओमेगा-३ वसा अम्ल पाया जाता है ,यह कई तरह के ट्यूमर को बढ़ने से रोक देता है | एक शोध से यह पता चला है की इसमें कैंसर रोधी तत्व भी पाए जाते है |स्तन कैंसर व प्रोस्टेट कैंसर में भी उपयोगी है | यह डायबीटिज में रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर रखता है | इससे रक्त संचार में वृद्धि होती है और खून ज्यादा गाढ़ा नहीं होने देता जिससे उसमे थक्के नहीं जमते | यह ह्रदय रोगी के लिए उपयुक्त पथ्य है,सर्दी-जुकाम में भी उपयोगी है | तीसी खाने वाले व्यक्ति को ह्रदय घाट की सम्भावना बहूत कम रहती है |


यह थोड़ी मिठास के साथ हल्का सुगन्धित होता है,यह तैलीय,उष्ण,शक्तिवर्धक,भरी तथा कामशक्ति को बढ़ाने वाला है | थोड़ी मात्रा में ली गई तीसी वात,कफ, पित, और नेत्र रोगों में लाभकारी है |

हमारे शारीर के स्वास्थ्य संचालन के लिए ओमेगा-३ व ओमेगा-६ दोनों ही आवश्यक होते है | अब यूँ मान लीजिये ओमेगा-३ नायक,और ओमेगा-६ खलनायक है | ठीक उसी प्रकार जैसे एक अच्छी फिल्म के लिए नायक और खलनायक दोनों ही आवश्यक है | पिछले कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-६ की मात्रा बढती जा रही है | और ओमेगा-३ की कमी होती जा रही है |

मल्टीनेसनल कंपनियों द्वारा परोसे जा रहे डिब्बा बंद फ़ूड व जंक फ़ूड ओमेगा-६ फैटी एसिड से भरपूर होते है | शोध से पता चला है की हमारे विकृत हुई आहार शैली से हमारे भोजन में ओमेगा-३ की कमी और ओमेगा-६ बढ़ोतरी के वजह से हम हाई ब्लडप्रेशर, हार्ट अटैक,स्ट्रोक,डायबिटिज, मोटापा, गठिया, डिप्रेसन, दमा, कैंसर आदि रोगों के शिकार हो रहे है | ओमेगा-३ की यही कमी रोज 30-60 ग्राम अलसी ( तीसी) खाकर आसानी से पूरी कर सकते है |
इसी कारण अलसी को सुपर स्टार फ़ूड का दर्जा दिलाते है |

अलसी हमारे दिमाग को शांत,चित्प्रसन्न रखता है | तनाव दूर होता है,बुद्धिमता व स्मरण शक्ति बढती है तथा क्रोध नहीं आता | इससे एक दैविक शक्ति और एनर्जी का प्रवाह होता है | अलसी बढ़ी हुई प्रोस्टेट ग्रंथि, सेक्स उतेजना में कमी ,शीघ्रपतन आदि में भी बहुत ही लाभदायक है | यदि माँ के स्तन में दूध नहीं आ रहा है तो उसे अलसी खिलाने के 24 घंटे के भीतर ही स्तन में दूध आने लगता है | यदि माँ अलसी सेवन करती है तो उसके दूध में ओमेगा-३ प्रयाप्त मात्रा में रहेगा जिससे बच्चा अधिक बुद्धिमान व स्वस्थ्य पैदा होता है | एक शोध से यह भी पता चला है की जल्दी ही लिग्नेन एड्स का सस्ता,सरल और कारगर इलाज साबित होने वाला है |

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