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Feb 6, 2011

नजरिया को बदले - नज़ारे बदल जायेंगे ! जुड़ें एफएलपी के साथ


फरबरी महीने की पहले दिन हिमगिरी एक्स्रेस हादसा बहुत ही दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण था | किस तरह ट्रेन के ऊपर बैठे लोगों के जिस्म मुली, गाजर के तरह चीथड़े-चीथड़े हो गए | चश्मदीद के अनुसार करीब 35 से 40 लोग काल के ग्रास में समा गए | आखिर क्या है उनके अकाल मृत्यु के कारण ? कौन जिम्मेदार है ? विचार करने योग्य प्रश्न है |

सरकारी तंत्र की लापवाही का आलम तो देखिये सैकड़ों लोग ट्रेन के छत पर बैठ गए | रेलवे पुलिश क्या वहां ट्रेन के छत पर बैठे लोगों के तमाशा देख रहे थे | क्या रेलवे पुलिश ट्रेन में बैठे लोगों को परेशान करने के लिए भर्ती हुई है ? जहाँ सरीफ लोग मिले नहीं की टिकट के नाम पर वसूली चालू करते नजर आते है | खचाखच भड़ी बोगी व छत पर बैठे लोगों को नियंत्रण किया जा सकता था लेकिन उनके बाप का क्या गया ? न जाने कितने घरो के चिराग बुझ गए परन्तु हमारे नेता लोग इस हादसे पर भी अपनी राजनीती स्वार्थ सिद्धि के अलावा कुछ नहीं किया ?

इस घटना से एक और बात उजागर हुआ है बेरोजगारी | बेरोजगारी का आलम यह है की आईटीबीपी में ट्रेडमैन की भर्ती के लिए जहाँ लाखों लोगों ने आवेदन किये थे,जबकि सिर्फ सैकड़ों लोगों को भर्ती करना था | यह बहुत ही विकट समस्या है |

सरकारी नौकरियां के ग्राफ दिन व दिन घटता ही जा रहा है | यही वजह है लोग आजकल किसी राज्य सरकार में चपरासी और माली की पद पर भर्ती के लिए भी लम्बी कतार लग जाती है | सवाल यह नहीं की सरकारी नौकरियों के लिए लम्बी कतार लगाकर लोग खरे हो जाते है इसमें अहम् बात यह है की इस तरह के पद के लिए भी उम्मीदवारों में ढेर सारे एमबीए और एमसीए होते है |


यक़ीनन बढती हुई आवादी इसके प्रमुख कारण में से एक है, परन्तु हालत इतनी ख़राब नहीं हुई है की माली व चपरासी के लिए इंजीनियर्स या मेनेजर्स आवेदन करें |वैसे भी हमारे मन में हमेशा से सरकारी नौकरियों के प्रति अलग भाव रहा है | सरकारी नौकरी के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रयास हमारी मानसिकता है | यहाँ तक की लोग यह भी भूल जाते है की शिक्षा के अनुसार जिसके लिए वो पढ़ाई की है उस तरह के पद के लिए ही आवेदन करें |

इसके अलावा उनके गार्जियन इस तरह के उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए मोटी मोटी फ़ीस भरी थी | प्रतियोगिता से भरे आज के दौर में आने वाली कठिनाइयों को सब बखूबी जानते है | एक ओर जहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के वाबजूद उनके पसंद के मुताबिक नौकरी नहीं मिल पाती है ,दूसरी ओर एमबीए पास आउट विद्यार्थी प्राईवेट बैंक में क्रेडिट कार्ड बनाते नजर आते है | बेरोजगारी की बेबसी को तो हमसब जानते है , लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता की हमसब सरकारी नौकरी का कोई विकल्प को तलाशे ?

सरकारी नौकरी को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी न समझे न ही इसे लौटरी के रूप में देखें | क्यों नहीं हम सेल्फ इम्प्लोय्मेंट की बात सोचते है ? शायद हम खुद के काम को किसी हारे हुए खिलाडी की मज़बूरी की तरह देखते है | ऐसा बिलकुल भी नहीं है , खुद का काम किसी भी तरह से कमतर नहीं है | यह आपकी आत्म संतुष्टि की पहचान है |


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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !