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Mar 24, 2010

स्वस्थ्य रखे तन और मन योग /ब्यायाम के संग

स्वस्थ्य exciseतन और yogप्र सन्न मन सौन्दर्य के लिए सोने पे सुहागा को प्रतीत करता है | टेलीविजन आज के युग का ऐसा सशक्त माध्यम बन चुका है ,जिससे हर परिवार कमोवेश प्रभावित होता  है

सही मायने में इसने हमारे शोचने ,समझने का नजरिया ही बदल दिया है | कई बुरी बातों का समाज में इससे प्रसार हुआ तो कई अच्छी -अच्छी जानकारियों भी इसने हम तक पहुचाई | कई लोग जिन्हें कसबे के लोग भी विशेष जानते नहीं थे ,इसके माध्यम से विख्यात हो गये | इसके माध्यम से भारत के संस्कृति पर भी चोट पहुंची और कई मायनों में प्रसार भी हुआ  | आज के टेलीविजन युग में अगर हम बात करें योग की तो देश में योग के प्रति जो आकर्षण दिखाई देता है ,उसके पीछे  इसी बुध्धू  बॉक्स यानि टेलीविजन की महत्वपूर्ण भूमिका रही |

शारीरिक और मानसिक संतापों से त्रस्त मनुष्य अब योग को समझना और अपनाना चाहते है | लेकिन देखने में आता है कि सही तरह से योग सिखाने ,समझाने वाले हर जगह उपलब्ध नहीं है | टेलीविजन से योग सीखना उचित माध्यम नहीं कहा जा सकता है |

शारीरिक और मानसीक स्वास्थ्य का एक सर्वोत्तम साधन होने के बावजूद योग की अपनी कुछ सीमाएं भी है | अतः यदि कोई इसे हर रोग का इलाज मानकर इसके पीछे दौड़ेगा तो उसे अपनी गलती सुधर लेनी चाहिए | दरअसल योग से स्वस्थ्य को बनाये रखना तो आसान है लेकिन बिगड़े स्वास्थ्य को ठीक करना अपेक्षाकृत कठिन | इसलिए बहुत से  लोग आजकल रोग होने पर और दवाइयों से ठीक न होने पर ही योग सिखने का रास्ता चुनते है | ऐसे लोगों को योग - ब्यायाम सिखने में और उनके अभ्यास में अधिक सावधानी और सतर्कता रखनी चाहिए | कमजोर और लम्बी बिमारी से  अभी-अभी ठीक हुए लोगों को और अधिक सावधानी बरतनी होगी |

अमेरिका में डा . केनेथ कपूर  की पुस्तक 'द एंटी ओक्सिडेंट रिवोल्यूशन ' ने  खासी  लोकप्रियता हासिल  की | चुकी  डा. केनेथ एक एरोविक एक्सरसाइज़  के विशेषग्य थे, अतः पुस्तक में ब्यायाम के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है | उन्होंने लिखा है ब्यायाम हर ब्यक्ति को karna चाहिए लेकिन ब्यायाम साधारण और नियमित ही हो, तभी फायदा होता है | जोश-जोश में अधिक ब्यायाम तो अंततः नुकसान ही पहुंचता है | वे लिखते है जब हम सामान्य से अधिक हम ब्यायाम करते है तो शरीर में रोग के कारक 'स्वतंत्र तत्त्व '(Free Redical)' की संख्या कुछ कम संख्या में बढती है  लेकिन अत्यधिक ब्यायाम से इसके उत्पादन का ग्राफ घत्कीय रूप से बढ़ने लगता है | और जब अत्यधिक ब्यायाम लम्बे समय तक चलता रहता है तब ब्यक्ति कई गंभीर रोगों से घिर सकता है |  

उनके शोधों से यह भी मालूम हुआ की ब्यायाम हमेशा लाभकारी नहीं होते ,विशेषकर तब जब उन्हें सामर्थ्य और शक्ति से ज्यादा किया जाये | यह जानकार आश्चर्य लगा की क्या ब्यायाम भी नुकशान पहुंचा  सकता है | डा. कपूर स्वयं इस तथ्य को सामने आने पर ताज्जुब करने लगे थे

भले ही आधुनिक काल में केनेथ कपूर के इस रहस्योद्घाटन को आश्चर्य के साथ समजा जाये लकिन इस तथ्य को हमारे ऋषि मुनि हजारों साल पहले ही स्पष्ट कर चुके है | चरक संहिता में वर्णित इन श्लोकों से याह बात बड़ी आसानी से समझी जा सकती है कि आयुर्वेद कितना विज्ञानं सम्मत  और गहराई तक कि खोजों से ओतप्रोत ज्ञान है |
बहरहाल यह एक ऐसा तथ्य था जिसे पाठको 'द एंटी ओक्सिडेंट रिवोल्यूशन' के पाठकों  को चौंका दिया , पर आयुर्वेद में रूचि रखने वालों के लिए यह कोई नै बात नहीं थी,वे इस बात को बखूबी समझते है कि अति किसी भी चीज कि ठीक नहीं होती है | इसिलए आप किसी भी प्रकार के ब्यायाम अनुभवी देख-रेख में ही करें |

                                सुख देने वाली चीजें पहले भी थीं और अब भी है |
                            फर्क यह है कि जो ब्यक्ति सुखों का मूल्य पहले चुकाते है
                     और उनके मजे बाद में लेते है ,उन्हें स्वाद अधिक मिलता है | 
             जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता  है, उनके लिए आराम ही मौत है | 
                                                                                           रामधारी सिंह 'दिनकर '           

1 comments

Gyan Darpan March 25, 2010 at 8:20 AM

बढ़िया स्वास्थ्यवर्धक जानकारी

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