इक्कीसवीं सदी के साइलेंट किलर का ख़िताब जिस बिमारी को जाता है वो है
उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर | ब्लड प्रेशर व्यक्ति के जीवन के लिए वैसे ही जरुरी है जैसे किसी शहर को चलाने के लिए पानी का पाइप लाइन में प्रेशर | आपने सुना होगा कि अमुक व्यक्ति बहुत ज्यादा गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है और उसका ब्लड प्रेशर बहुत कम हो गया है इसलिए बचने की उम्मीद कम है | यानि ब्लड प्रेशर कम हो जाना बेहद खतरनाक है | लेकिन हम बात कर रहे है हाई बीपी की | तो सबसे पहले जानते है की ब्लड प्रेशर है क्या ?
रक्त जब धमनियों में प्रवाहित होता है तो धमनियों की दीवारों पर उसके घर्षण से जो दबाव उत्पन्न होता है उसे ब्लड प्रेशर कहते है | यानि बीपी नामक कोई बीमारी नहीं होती है बल्कि आम बोलचाल की भाषा में लोग हाई बीपी को 'बीपी' हो गया कहने लगते है |
सामान्य बीपी :- व्यस्को में सिस्टोलिक बीपी 120 या उससे कम और डायस्टोलिक बीपी 80 या उससे कम सामान्य बीपी होता है | आजकल कई बार लोगों से सुनने को मिलता है कि ज्यादा उम्र में बीपी अपने आप ही बढ़ा हुआ रहने लगता है , परन्तु यह एक प्रकार कि भ्रान्ति है | यदि बीपी सिस्टोलिक 130 -140 या डायस्टोलिक 80 -90 की रेंज में आ जाए तो उसे प्रीहाइपरटेंसन कहते है | यानि बीपी सिस्टोलिक 140 से ज्यादा हो या डायस्टोलिक 90 से ज्यादा हो दोनो ही अवस्था में हाई कहलाएगा |
खतरा .......यदि बीपी ज्यादा समय तक बढ़ा रहे और अनियंत्रित रहे तो धीरे-धीरे शरीर के अंगो को क्षति पहुँचने लगती है | इसका सबसे अधिक घातक असर होता है ह्रदय पर | ह्रदय की धमनियों को यदि लम्बे समय तक हाई-बीपी झेलना पड़े तो हृदयघात यानि हार्ट अटैक की आशंका कई गुना बढ़ जाती | इसी तरह लकवा होने की आशंका भी बहुत बढ़ जाती है | समय के साथ गुर्दों का फेल होने का डर भी रहता है जो की एक जानलेवा होती है | आँखों के पर्दे पर रक्त स्त्राव या सुजन हो सकती है | यानि शरीर के चार विशिष्ट अंगो को खतरा पैदा हो जाता है |
कारण ........... कुछ ऐसी बीमारियाँ है जिससे बीपी बढ़ने का कारण आसानी से मालुम पड़ जाता है जैसे की गुर्दों में पथरी होना , गुर्दों फेल हो जाना या पेशाब की नली में रूकावट होना | थायराइड की बीमारी से भी बीपी बढ़ सकता है | लेकिन इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण है भोजन में नामक की अधिकता व तेल घी का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल और मोटापा, ये सभी बीपी को बढ़ जाने में छुपे हुए कारण है |
लक्ष्ण.......... जैसा की शुरू में बताया गया है की यह एक साइलेंट किलर है , यानि हाई बीपी का अपना कोई विशेष लक्ष्ण नहीं होता है | कुछ मरीज सर-दर्द, थकन, सांस फूलने की शिकायत करता है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं की जब सर-दर्द हो तो मान ले की बीपी बढ़ गया होगा और बस तभी दबा खा ले | कई मरीज तो 240 -120 होने पर भी आराम से घूमते रहते है | लेकिन यह बेहद खतरनाक होती है |
क्या कोई स्थाई इलाज़ है ........अधिकतर मरीजों में ऐसी कोई एक बिमारी या कारण पकड़ में नहीं आता जिसका इलाज होने से उच्च रक्त चाप की समस्या स्थाई रूप से ठीक हो जाय | एलोपेथ में उच्च रक्त चाप का कोई स्थाई इलाज नहीं होता है | अगर कोई इलाज है तो वो है वैकल्पिक चिकत्सा जिसमे पक्का इलाज संभव है | आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों जैसे फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट्स का विश्वशनीय उत्पाद का इस्तेमाल अगर कोई व्यक्ति चार से छे महीने तक करता है तो उन्हें है बीपी जैसे जानलेवा रोग से मुक्ति मिल सकती है | इसके लिए जरुरी है विश्वास व लगातार उत्पाद को लेने की ,फोरेवर लिविंग प्रोडक्ट्स के उत्पाद से न सिर्फ हाई- बीपी उसके साथ-साथ सम्बंधित सम्पूर्ण रोग से मुक्ति मिल सकेगी|
निम्नलिखित उत्पाद इस रोग के लिए आप ले सकते है : -
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अतः उच्च रक्त चाप एक आम और खतरनाक बीमारी है | कारण अपने लक्ष्ण लम्बे समय तक पता नहीं लग पाता है और दिमाग के साथ-साथ शरीर के कई अंगो को खोखला करती रहती है | जीवन शैली व आहार , रहन -सहन ऐसे रखे की तकलीफ आये ही नहीं बीपी बढ़ने की दशा में चिकित्सक का सलाह जरुर ले और आयुर्वेदिक उपचार जो की प्रार्थमिक उपचार के रूप में अपने और बिना किसी दुष्प्रभाव के निरोगी जीवन जिए !!!
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आज आपके साथ चर्चा करते है एलो वेरा जूस में समाहित विशिष्ट तत्व जिसके सेवन से मनुष्य के शरीर निरोग रहता है | सुन्दर,चुस्त व दुरुस्त सेहत के लिए मनुष्य अपने दैनिक आहार में इस जूस को शामिल करें | आखिर क्या गुण है एलो वेरा जूस में जो मानव जाती के लिए आज के युग का अमृत तुल्य माना गया है ?
लिग्निन :- एक गुदे जैसा पदार्थ जो एलो वेरा की पत्तियों की जेली में शामिल सेलुलोज के साथ पाया जाता है | इसकी उपस्थिति इस बात का सूचक है की यह मनुष्य की त्वचा में गहराई तक जाने की अत्यधिक क्षमता रखता है |
सैपोनिंस :- इसकी खोज 1951 में एक घटक के रूप में की गई जिसमे एलोवेरा लीफ जूस की मात्रा 2 .91 प्रतिशत शामिल थी | सैपोनिंस ग्लाइकोसाइड्स है जिनमे न केवल आँतों की सफाई करने की क्षमता है बल्कि शैम्पू जैसे कास्मेटिक्स में प्राकृतिक झाग पैदा करने वाले उच्चकोटि के प्राकृतिक साबुन एजेंट भी है |
एन्थ्राक्विनोंस :- अलोइन-कैथोटिक और एमिटिक , बारबैलोइन -एंटीबायोटिक और कैथोरटिक , आइसोबारबैलोइन-एनालजेसीक और एंटीबायोटिक , अन्थ्रानाल , अन्थ्रासिं, अलोईटिक एसिड - एंटीबायोटिक, अलो अमोडीन-बैकटीरिसाइड और लक्झेटिव, सिनैमिक एसिड- जर्मीसाइड और फंगीसाइड, इस्टर ऑफ़ सिनैमिक एसिड- एनालजेसीक और अन अस्थेटिक, इस्टीरियोल आयल - ट्रेकुलाईजिंग , क्रिसोफेनिक एसिड - स्किन फंगस , अलो अल्सिन-गैस्ट्रिक सीक्रेशन रोकता है , रेजिस्टनाल |
मोनो और पॉली सैकेराईड्स :- एल्ड़ोनेन्टोज, सेलुलोज, ग्लूकोज, एल रैमनोज, मैनोज !
अमीनो एसिड :-
आवश्यक अमीनो एसिड - आइसोल्युसिन, ल्युसिन, लाइसिन, मैथीओनिन, फेनिल लोनीन,थियोंइम, वैलिन
सेकेंडरी :- एलोनिं, आज़िरनीन,एस्पार्टिक एसिड, ग्लुटामिक एसिड , ग्लिसरीन, हिस्टीडाइन, हाइड्रोक्सीप्रोलाइन्स, प्रोलाइन , प्रोलाइन, सेरिन, टाइरोसीन !
इनआर्गनिक / इन्ग्रेडिएन्ट्स/मिनरल्स :- कैल्सियम, फास्फोरस,पोटैशियम,आयरन,सोडियम,क्लोरिन,मैंगनीज, मैंग्नेशियम,कापर, क्रोमियम, जिंक !
विटामिन्स :- विटा ए-कैरोटिन , विटा बी-उत्तकों में वृद्धि, रक्त और उर्जा उत्पन्न करता है ! विटा सी- कीटाणुओं को रोकने, घाव भरने और स्वस्थ्य त्वचा के निर्माण में सहायक होता है ! विटा एम्- रक्त निर्माण में सहायक , नियान्सिमेंनाइड- मेटाबोलिज्म का नियंत्रक ! कोलाइन - मेटाबोलिज्म में सहायक !
एन्जाइम :- फास्फेट - एमाइलेज, ब्रैडीकाइनेज- इम्यून बिल्डिंग , कैटालेज - तंत्र में पानी संग्रह की सुरक्षा , सेलुलोज - सेलुलोज डाइजेशन, क्रिएटिव फास्फो काइनेज - मस्कुलर एन्जाइम , लाइपेज- पाचन, न्युक्लियोटाईडेज, अल्केलाइन फोस्फेट, प्रोटिएज- प्रोटीन को उनके संघटक तत्वों में हाइड्रोलाइज करता है !
अतः इन्हीं सब उपरोक्त विशिस्ट गुणों के कारण एलो वेरा जूस वर्तमान में तहलका मचा दिया है | वह चाहे किसी भी प्रकार के रोग हो उसमे अचूक साबित हो रही है | यहाँ तक की प्राकृतिक चिकित्सा में एलो वेरा जूस कब्ज़ से लेकर कैंसर तक के मरीजों के लिए एक अत्यंत लाभकारी औषधि है | नित्य नियमित एलो वेरा जूस का सेवन मनुष्य जीवन के लिए काया कल्प कर देती है |
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आज भी बिमारी मनुष्य के सामने ठीक उसी प्रकार के है जैसे की प्राचीन काल में थे, पर बिमारियों का स्वरूप बदल गया है |बाहरी तौर पर हम अच्छे खासे हष्ट-पुष्ट नजर आते है , तब मालूम पड़ता है बहुत खुशहाल है |परन्तु अन्दुरुनी हालात बहुत कुछ ठीक नहीं होता है | भिन्न-भिन्न प्रकार के बिमारियों से ग्रसित होते है | आज कल का जीवन शैली लोगो को घुट-घट कर मरने के सिवा और कुछ नहीं दे सकता है |
आदते इतनी वाहियात हो गई है कि उसने अपने कुल्हारी से अपनी ही टांगे काट डाला है | उसने अपनी सेहत को इतनी बुरी तरह से तबाह कर डाला है, जैसे की दुनिया में आज से पहले इतनी बुरी सेहत हुई नहीं थी | बीमारियाँ इस कदर दुनिया में फैली हुई है , उतनी बीमारियाँ तो दुनिया के मानचित्र पर , जबसे मनुष्य इस धरती पर पैदा हुआ है, तब से लेकर आजतक नहीं थी | आदमी वर्तमान में इतना कमजोर,बीमार,दुर्बल, रोगी और खोखला हो गया है की इतिहास में ऐसा कभी नहीं था | क्या यह सब मानव सभ्यता के विकाश के कारण है या उनकी बेअक्क्ली ? जरा सोंचे !
मानव शारीर प्रकृति कि एक अनमोल संरचना है | शरीर का विज्ञानं इतना जटिल है, जिस पर सदियों से सम्पूर्ण दुनिया के चिकित्सक शोध कर रहे है | इन्सान चाँद पर तो पैर रख दिए है लेकिन शरीर के विज्ञानं के विषय में केवल कुछ अंश भी समझ पाया है | शरीर की तंदुरुस्ती व आयु से जुड़े विज्ञानं को हम आयुर्विज्ञान अर्थात आयुर्वेद कहते है तथा इससे बने इलाज को आज दुनिया के तमाम बड़े-बड़े देश अपना रहे है |
इन्सान की जिन बिमारियों का इलाज आज की आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा में नहीं हो पता, उन्ही लाइलाज बिमारियों का पक्का इलाज आयुर्वेदिक नुस्खों वाली दवाइयों से हो जाता है , जिसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव यानि की side effect भीं नहीं होता, जबकि आज की आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा से मनुष्य के रोग थोड़े समय के लिए दब जरुर जाते है लेकिन उसके साथ कई और समस्याएं पैदा हो जाती है | आयुर्वेदिक इलाज में ऐसा नहीं होता क्यूंकि यह इलाज रोग व कमजोरियों को हमेशा के लिए जड़ से खत्म कर देता है |
डायबिटीज को ही अगर लेते है तो वो डॉक्टर जो मरीजों को डायबिटीज के बारे में सलाह देते है , कई खुद रोगी होते है | ऐसा एक डॉक्टर से मैं मिल भी चूका हूँ | करीब पाँच साल से वो टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित है | ऐसा नहीं है की उन्होंने अपना इलाज नहीं कर रहा है परन्तु डायबिटीज की गोलिया बढ़ रही है और ज्यादा कुछ फायदा नहीं हो रहा है |
इस तरह के बिमारियों से बचने के लिए सिर्फ जीवन शैली में परिवर्तन की जरुरत है | अपने शिक्षक स्वयं बने | बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी अर्जित करें जो हमेशा ही फायदेमंद साबित होगा | एक जागरूक मरीज ही अपना इलाज पूरी तरह से करबायेगा या हिम्मत अंत तक बनाए रखे |
इस तरह से लाइलाज समझे जाने वाली बीमारियाँ के लिए कारगर औषधियों पर कई शोध हो चुके है | कुछ आयुर्वेदिक वनौषधियों का नाम प्रयोग करके यह देखा गया है की लाइलाज बिमारियों पर इस प्रयोग करने से बहुत ही फायदेमंद हुआ है | ऐसे ही वनौषधियों में से एक है ' एलोवेरा " | यह शरीर के लिए अमृत तुल्य है | हरेक तरह के बीमारियों में इसका प्रयोग फायदेमंद होता है |
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आज एक बार फिर से आइये चर्चा करते है ह्रदय सम्बंधित समस्याएं और निदान ? दुनिया भर ह्रदय रोगियों की संख्या गुणात्मक रूप से वृद्धि हो रही है | चिंता की बात यह है की ह्रदय घात यानि दिल का दौरा का औसतन आयु सिमट कर 40 और 30 के बिच हो गई है | जिस रफ़्तार से यह घटती जा रही है न जाने आगे क्या होगा ? कहना बहुत ही मुश्किल है परन्तु यह बहुत ही भयावह तस्वीर बनती जा रही है |
भारतीय युवाओं में खासकर यह बिमारी दुनिया के देशों से दोगुनी है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में वर्तमान में ह्रदय रोगीओं की संख्या लगभग पाँच करोड़ है और यह आंकड़ा दोगुना हो जायगा जब दुनिया के साठ प्रतिशत ह्रदय रोगी भारतीय होंगे |
युवाओं में यह बीमारियाँ बढ़ने के प्रमुख कारण आज का जीवनशैली को जाता है | भागमभाग व तनाव ग्रस्त जीवन जीने को मजबूर है | प्रतिस्पर्धा के दौर में युवाओं का ध्यान अपनी सेहत पर कम और कमाने पर ज्यदा होता है |
ख़राब दिनचर्या, खानपान में समुचित मात्रा में पोषक तत्व की कमी भी प्रमुख कारन है | रही सही कसर पश्चात् शैली के खान-पान जैसे पिज्जा,बर्गर,नुडल, पेस्ट्री,डिब्बा बंद खाना, कोल्ड ड्रिंक, ज्यूस इत्यादि पूरा कर देती है | सोने व जागने का समय बिलकुल ठीक नहीं है लोग सोने के समय पर जागते है और जागने के समय पर सोते है जिससे शरीर में कई प्रकार की समस्याएं आ जाती है |
लेकिन ह्रदय रोग लाइलाज समस्या बिलकुल भी नहीं है | परन्तु अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की तरह यदि रोगी को यह प्रारम्भिक अवस्था में पता चल जाय तो इससे मुक्ति पाने में आसानी हो जाता है | अतः ह्रदय सम्बंधित रोग के बारे में जांच कर उचित इलाज जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए |
आप सब जानते है की ह्रदय रोग का प्रमुख कारण है "कोलेस्ट्रोल" | परन्तु सच तो यह है की कोलेस्ट्रोल नहीं है ,बल्कि मुख्य कारण है रक्त नलिकाओं की सूजन ( inlflammation of blood vessels ) है | अतः हमें कोलेस्ट्रोल के वजाय धमनियों की सूजन के कारण को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरुरत है |
सभी कोलेस्ट्रोल ख़राब नहीं होते है | HDL ( high density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल फायदेमंद होता है और इसकी अधिक मात्रा हमारे लिए फायदेमंद होता है, लेकिन LDL ( low density lipoproteins ) कोलेस्ट्रोल हमारे लिए हानिकारक होता है | LDL कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवार की भीतरी सतह पर जमा होकर प्लाक ( plaque ) बनाता है और उन्हें संकरा कर देता है | इसके साथ आने वाला HDL कोलेस्ट्रोल तो वास्तव में धमनियों में सफाई का काम करता है |
रक्त नलिकाओं के सूजन के लिए सिर्फ LDL कोलेस्ट्रोल ही जिम्मेदार नहीं होता है | इसके लिए होमोसिस्टीन तथा धुम्रपान, उच्च रक्त चाप , वसायुक्त भोजन और डायबिटिज से उत्पन्न होने वाले स्वतंत्र तत्व ( free radicals ) भी जिम्मेदार होते है |
अतः स्वतंत्र तत्व को प्रभाव को समाप्त करने के लिए आपको ज्यादा से ज्यादा एंटी ओक्सिडेंट का सेवन करें | जिससे की शारीर में अनचाहे मेहमान जो की free radicals के रूप में है वह सब समाप्त हो जायेगा | और आपका धमनी बिलकुल दुरुस्त हो जायेगा |
जीवन शैली में परिवर्तन लाकर इन जोखिम को कम किया जा सकता है | हरी सब्जियां व फल का ज्यादा से ज्यादा अपने आहार में शामिल करें जिसमे विटामिन बी-6 ,सी, मग्नेशियम व भरपूर मात्रा में एंटी ओक्सिडेंट फ्लेवोनायडस और कैरोटेनायड्स हो |
ह्रदय रोगी को अक्सर कम वसा, कम कार्बोहायड्रेट और कम प्रोटीन का आहार लेना फायदेमंद होगा | सेब,अनार का जूस, आंवले का मुरब्बा ह्रदय को ताकत देता है और ये ह्रदय को सुचारू रूप से काम करने में मदद करते है |
प्याज और लहसुन से कोलेस्ट्रोल का स्तर घटते है और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करते है |
कैरोटेनायड्स एंटी ओक्सिडेंट के लिए टमाटर का सेवन करें जिसमे लायकोपिन का भंडार होता है | जो की दिल को सही से चलाने में सहायता करता है |
करौंदा में पॉलीफेनोलिक एंटी ओक्सिडेंट होते है जो रक्त संचार को सुचारू करते है | अनाज, अखरोट, अलसी के बिज, बादाम, सोयाबीन ये सब कोलेस्ट्रोल के अलावा ट्रीग्लिसेरायड्स स्तर को भी घटते है | इसमें रक्त के थक्के जमने की आशंका काफी कम हो जाती है |
इन प्रकृति उपचार के अलावा सेहतमंद जीवन जीने के लिए नियमित परहेज से रहना, नियमित शारीरिक व्यायाम करना और डॉक्टरों से नियमित पूर्वक जांच भी कराते रहना चाहिए |
वैसे फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट के पास इसमें अचूक उत्पाद है जिसके माध्यम से ह्रदय सम्बंधित किसी भी परेशानी से मुक्त हो सकते है जो की निचे दी जा रही है
Aloe Vera Gel , Garlic Thyme , Artic Sea Omega - 3 , Pomesteen Power इत्यादि इसका सेवन चार से छह महीने करने के बाद किसी भी प्रकार के धमनियों का सूजन पर नियंत्रिती की जा सकती है | अतः ह्रदय रोग से मुक्त पाने के लिए उपरोक्त एलोवेरा के उत्पाद अपने जीवन में शामिल अवश्य करें और जीवन को खुशहाल बनाए |
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आजकल यह कहना अतिशयोक्ति होगी की आयु पर हम विजय पा सकते है | प्राणी की कब मृत्यु हो जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता है | हर क्षण मृत्यु के करीब जा रहे प्राणी की आयु शरद ऋतु के बादल के सामान स्वल्प है, यह तो बुझते हुए लौ की दीपक के समान चंचल है, जो गई हुई देखी जाती है |
सबाल यह नहीं है की आपकी कितनी आयु है पर जितनी भी आयु आप जिए वह सुखकर हो, दिन-हिन् और रोगी बनकर जीना बहुत ही कष्ट देता है | मृत्यु के श्रीजन्हार असंख्य रोगों को शरीर में समा देते है और उसे कष्ट दे-देकर मारने की जुगत में लगे रहते है |
ज्यादातर रोग हमारी खुद की गलतियों के परिणाम होते है | स्वास्थ्य का महत्व भी उस समय ज्ञात होता है जब व्यक्ति बीमार होता है | रोग कोई भी हो - कब्ज़ या कैंसर, सभी रोग ख़राब और आयु का क्षीण करने वाले होते है | जो दूरदर्शी लोग होते है वह हर समय सेहत की अहमियत को ध्यान में रखते है और ऐसे कार्य से बचते है जो अंततः रोगकारक बनें |
रोग अपनी शुरुआती दौर में प्रायः घातक नही होते लेकिन बाद में वे जटिल बनते चले जाते है | कब्ज़ जैसा मामूली सा रोग भी हमारी लापरवाही का परिणाम होता है | वैसे कब्ज़ अपनी प्रारम्भिक अवस्था में बिना नुक्सान पहुंचाए सामान्य उपचारों से मिट जाता है लेकिन यदि लापरवाही बरती जाए तब धीरे-धीरे यह अन्य रोगों का कारण भी बन जाता है |
वर्तमान में कैंसर का भी प्रसार बहुत है | सामान्य विकार बिगरते-बिगरते कैंसर में परिवर्तित हो जाते है | इसे मौत का दूसरा नाम भी कह दिया जाता है | कैंसर के मरीज को देखकर एक स्वस्थ्य व्यक्ति के अंदर से यही शब्द निकलते है " हे भगवान मुझे इस बीमारी से बचाए रखना" |
वैसे इश्वर ने हमें वे सुविधाए दे रखी है जिनसे हम रोगों से बचे भी रह सकते है, रोग निवारण भी कर सकते है और दीर्घायु को प्राप्त कर सकते है , लेकिन जानकारी के अभाव में अथवा लापरवाही वश हम इन सुविधाओं का लाभ न उठाकर विज्ञापनबाजी से प्रचारित उन चीजो का ज्यादा इस्तेमाल करते है जो अंततः स्वास्थ्य के लिए घातक ही सिद्ध होती है | कोल्ड्रिंक्स,वर्गर,पिज्जा इत्यादि अनेक उदाहरण आपके सामने है |
बहरहाल यहाँ उस 'कमाल के नुस्खे' को निचे दिया जा रहा है जो बहुत ही साधारण और घरेलु है | तो आपके लिए लीजिये प्रस्तुत है घरेलु परन्तु असरदार नुस्खा :-
तुलसी और पुदीना की सामान मात्रा को मिलकर बनाये गए चूर्ण का नित्य नियमपूर्वक 5 ग्राम मात्रा दिन में एक बार सेवन किया जाए तो कैंसर जैसे भयंकर बीमारी से सदैव बचा जा सकता है | यह नामुराद बिमारी आपसे दूर ही रहेगी |
अगले क्रम में आपसे इस बनौषधि दोनों के मिश्रण के बारे में विस्तृत जानकारी और शोध के विषय के साथ उपस्थित होंगे !
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पेट में दर्द होना एक आम समस्या है ,जिससे लगभग सभी व्यक्तियों को जीवन में अनेक बार सामना करना पड़ता है | इनके कारण अनेक तथा अलग हो सकते है , किन्तु फिर भी पेट के किसी भी भाग में व स्थान में दर्द को सामान्यतः हम "पेट दर्द" के नाम से ही संबोधित करते है | तत्पश्चात यदि चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता पड़ जाय तो तो वो निदान कर के बताते है कि पेट दर्द किस कारण से हो रहा है और उसे फिर रोग विशेष का नाम देकर उपचार प्रारंभ करते है |
जैसे की गेस्ट्राईटिस, हायपर एसिडिटी, अपेंडीसाईटिस, कोलाइटिस, या अल्सरेटिव कोलाइटिस इत्यादि | कई बार ऐसा देखा गया है कि अचानक पेट में असहनीय दर्द के मरे व्यक्ति तड़पने व छटपटाने लगता है | अनेक बार वायु का गोला सा उठता है और कई बार ऐठन , मरोड़, सुई या शूल चुभने जैसा, आरी से काटने जैसी स्थिति हो जाती है | कभी कभी पेट में अफारा आकर पेट को ढोल की तरह फुल जाता है और ऐसा लगता है मनो पेट फटने वाला है , ऐसी हालात में पेट में तेज दर्द होने लगता है|
अब हम इनके प्रमुख कारणों पर गौर करेंगे : - पेट दर्द के अनेकों कारण हो सकते है | पेट अवस्थित अंगों में अन्न नलिका, आमाशय, ग्रहणी, छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, मलाशय, लीवर, तिल्ली, दोनों गुर्दे, मूत्र नलिका ( Ureter ) पेनक्रियाज, पिताश्य ( Gall bladder ),तथा स्त्रियों में गर्भाशय एवं अंडाशय ( दोनों ओवरीज ) प्रमुख है
इन अंगों में से किसी भी अंग में विकार होने से पेट में दर्द हो सकता है | किन्तु दर्द का स्थान और दर्द की प्रकृति भीं-भिन्न प्रकार से महसूस की जाती है | कब्ज़-गैस बनाना, अपच या अजीर्ण तथा कीड़े पेट दर्द के प्रमुख कारण माने जाते है |
आमतौर पर पेट दर्द का कारण हमारे खाने-पिने की विकृत होने से सम्बंधित ही होता है | व्यस्त जीवन शैली, जंक फ़ूड आजकल का सबसे प्रमुख आहार हो गया है | गरिष्ठ भोजन जो की वायु बनता है, उसका सेवन अधिक मात्रा में करना, ठंढा-बासी खाना, तेल-,मिर्च मसालेदार पदार्थों का अत्यधिक सेवन, पेट में गैस बनाना , कब्ज़ रहना,आमाशय -गृहणी अथवा आँतों में अल्सर, हायपर एसिडिटी, आँतों में सुजन भोजन के तत्काल बाद सो जाना, भोजन के तत्काल ही भागना, कूदना, फंदना , कोई विषाक्त पदार्थ खा लेना इत्यादि अनेक कारण से पेट में तेज दर्द हो सकता है |
घरेलु उपचार :- अब जैसे ही पेट दर्द की शिकायत कोई व्यक्ति अपने घर में करता है तो उसे तत्काल घरेलु उपचार कर उसे ठीक करने की कोशिस की जाती है | उस वक्त सिवाय इसके की क्या खाया-पिया था, पेट दर्द की वास्तविक जानकारी के बगैर अपनी समझ से घर पर मौजूद सुबिधाओं जैसे सोंठ, मेथीदान, काला नमक, अजवायन इत्यादि का प्रयोग आमतौर पर किया जाता है | प्रार्थमिक उपचार के तौर पर यह एक विशिष्ट औषधि माना जाता है | फिर भी अगर दर्द में लाभ नहीं मिल रहा हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाना ही बुद्धिमानी है |
पर अगर आपके घर में एलो वेरा जेल है तो आपके घर का समझिये वो खुद ही वैद्य है | एलो वेरा भारत में सदियों से लोकप्रिय है और इसे कई नाम से जाना जाता है जैसे कोरफड, कुमारी, घी कंवार, ग्वार पाठा, घृत कुमार, केतकी इत्यादि | एलो वेरा का सबसे अधिक चिक्तिसीय व औषधीय गुणों के भण्डार वाले पौधा बार्बाड़ेंसिस मिलर का ही प्रयोग करते है |
एलो वेरा में मौजूद लिग्निन और सेपोनिन प्राकृतिक तरीके से आपके पेट के अन्दर की आंत को अच्छी तरह से सफाई कर देते है |
जब आपके पाचन प्रणाली का टाक्सिन निकल जाता है तो आप अन्दर और बाहर दोनों रूप से स्वस्थ्य हो जाते है | अतः एलो वेरा आपके घर का वैद्य है जब तक आपके पास है आपको प्रार्थमिक चिकित्सा की शायद आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
क्या आप एसिडिटी और मोटापे की समस्या से परेशान है ? या किसी काम में अपने मन को एकाग्रचित नहीं कर पा रहे है ? यादास्त की भी समस्या हो रही है? अगर ऐसा आपके साथ हो रहा है, तो आपका जरुर सोने और जागने का समय ठीक नहीं हो सकता है |
वर्तमान की भागम-भाग जिन्दगी की सबसे बड़ी समस्या है दिनचर्या की उचित ढंग से पालन नहीं करना | इसका प्रतिकूल असर हमारे सेहत पर पड़ता है | सूर्योदय से पहले यानि ब्रह्म मुहूर्त में जागना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद सिद्ध होता है | सुबह की तरोताजा हवा, विशुद्ध वातावरण हमारे मन, शरीर व दिमाग को प्रफुलित कर देता है |
ऐसे में मन को एकाग्रचित करना बेहद सुखद अनुभूति होता है | ब्रह्म मुहूर्त में जागने से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र में भी मजबूती आती है |
और भी कई फायेद है सुबह जल्दी जागने का :-
> पेट साफ़ रहता है कब्ज़ और अपच जैसे समस्या नहीं होती है |
> दिनभर अपने आपको हल्का और खुशहाल महशुस करेंगे |
> दिन भर के कार्यक्रम बनाने में भी आसान होता है |
> मानसिक तौर पर भी मजबूती मिलेगी, यादास्त बढ़ेगी |
> उगते हुए सूरज को देखना, बहुत अच्छा संकेत माना जाता है |
सुबह दिनचर्या के काम से पहले नाश्ता जरुर करें | सुबह का नास्ता को "व्रेन फ़ूड" कहा जाता है | चुकी दिन भर का महत्वपूर्ण आहार है सुबह का नास्ता | रात के खाने के बाद और सुबह के नाश्ते के बिच का लम्बा अंतराल हो जाता है और अगर सुबह का नास्ता नहीं किया जाय तो अंतराल और भी बढ़ जाता है |
हम बेशक सोते है परन्तु मस्तिस्क नींद में भी सक्रीय होता है | ऐसे में दिमाग को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है | अर्थात सुबह का नास्ता न करने से ग्लूकोज की कमी होने लगती है | ऐसे में शारीरिक व मानसिक क्षमता का हास होने लगती है, जो सेहत के लिए हानिकारक होता है |
विशेषज्ञों के अनुसार सुबह का नास्ता करने से दोपहर में भूख कम लगती है जिससे आप आवश्यकता से अधिक कलोरी नहीं लेते है और फैट नहीं बढ़ता है |
सुबह का नास्ता संतुलित होना चाहिए | इसमें काल्सियम,( दूध या दूध से बनी चीजें ), प्रोटीन, रेशेदार पदार्थ ( अंकुरित आनाज ),
और एंटीओक्सीडेंट( सेब,स्ट्राबेरी,केला,संतरा ) और विटामिन होना चाहिए | और नित्य एलो वेरा जूस का सेवन करें , एसिडिटी और पेट के किसी भी प्रकार के रोगों से मुक्ति पायें |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
पालक का पौधा अपने देश के प्रायः सभी प्रान्तों में सुलभता व सस्ते में मिल जाता है | इनमे जो गुण है वैसा और किसी शाक में नहीं होता है | ज्यादातर यह शीत ऋतू में पाया जाता है परन्तु कहीं कहीं किसी और ऋतू में भी इनकी खेती की जाती है
स्वाभाव से यह पाचक, तर और ठंढी होती है | पालक में दालचीनी डालने से इसकी ठंढी प्रकृति बदल जाती है | पालक को पकाने से इसके गुण नष्ट नहीं होते है |
इनके गुण और लाभ है :- पालक में विटामिन ए,बी,सी, लोहा, कैल्सियम, अमीनो अम्ल तथा फोलिक अम्ल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | कच्चा पालक खाने में कडवा और खारा लगता है, परन्तु बहुत ही गुणकारी होता है | दही के साथ कच्चे पालक का रायता बहुत ही स्वादिष्ट और गुणकारी होता है | इसलिए गुणों में पालक अन्य सभी शाकों में सर्वोपरि है | इसका रस यदि पिने में अच्छा न लगे तो इसके रस में आंटा गुंथकर रोटी बनाकर खाने चाहिए | पालक रक्त में लाल कण बढाता है | कब्ज़ दूर करता है | पालक, दाल व अन्य सब्जियों के साथ खायें |
पालक का रस सम्पूर्ण पाचन -तंत्र की प्रणाली ( पेट,छोटी-बड़ी आंतें ) के लिए सफाई-कारक एवं पोषण-कर्ता है | कच्चे पालक के रस में प्रकृति ने हर प्रकार के शुद्धिकारक तत्व रखे है | पालक संक्रामक रोग तथा विषाक्त कीटाणुओं से उत्पन्न रोगों से रक्षा करता है | इसमें विटामिन 'ए' पाया जाता है जो म्यूक्स मेम्ब्रेन्स की सुरक्षा के लिए उपयोगी है |
रोगों में हितकर पालक :-
बाल गिरना :- इसमें पाया जाने वाला विटामिन 'ए' विशेष मात्र में होता है जो बालों के लिए अत्यंत जरुरी होता है | जिसके बाल झाड़ता हो ,वो कच्चे पालक का सेवन करें |
दम, खांसी, गले की जलन,फेफड़ों की सुजन और यक्ष्मा हो तो
पालक के रस के कुल्ले करने से लाभ होता है | इसके साथ ही दो चम्मच मेथी कुथ्कर दो कप पानी में तेज उबालते हुए एक कप पानी रहने पर छानकर इसमें एक कप पालक का रस और स्वादानुसार शहद मिलाकर नित्य दो बार पिने से इन सभी रोगों में लाभ होता है | फेफड़ों को शक्ति मिलती है | बलगम पतला होकर बाहर निकल जाता है |
रक्तविकार और शरीर की खुश्की व रक्तक्षीणता :- आधे गिलास पालक के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर 50 दिन पियें | शरीर में इससे रक्त की वृद्धि होगी | गर्भिणी स्त्रियों में इससे लोहे ( आयरन ) की पूर्ति होती है |
यदि प्रतिदिन पालक का रस नित्य 3 बार 125 ग्राम की मात्रा में लिया जाय तो समस्त विकार दूर होकर चेहरे पर लालिमा, शरीर में स्फूर्ति, उत्साह एवं शक्ति का संचार, रक्तभ्रमण तेजी से होता है | निरंतर सेवन से चेहरे के रंग में निखार आ जाता है | रक्त बढ़ता है | इसका रस, कच्चे पते या छिलके सहित मुंग की दाल में पालक की पतियाँ डालकर सब्जी खानी चाहिए | यह रक्त साफ़ और बलयुक्त करता है |
पायोरिया :- पालक का रस दांतों और मसुधों को मजबूत बानाता है | रोगी को कच्चा पालक दांतों से चबाकर खाना चाहिए | प्रातः भूखे पेट पालक का रस पिने से पायोरिया ठीक हो जाता है | इसमें गाजर का रस मिलाने से मसुधों से रक्तस्त्राव होना बंद हो जाता है |
नेत्रज्योति पालक का रस पिने से बढती है |
पथरी :- कई लोग यह मानते है की पालक खाने से पथरी होती है, लेकिन यह निश्चित समझ ले की कच्चे पालक के रस के सेवन करने सा कदापि पथरी नहीं होती |
पालक में ऑक्जेलिक अम्ल पाया जाता है जो पानी में घुल जाता है | पालक में कैल्सियम और फोस्फोरस होता है जो मिलकर कैल्सियम फोस्फेट बनाता है जो पानी में घुलता नहीं है जिससे पथरी बन जाती है | इसलिए पथरी के रोगीओं के केवल पालक की सब्जी नहीं खाना चाहिए | पालक और हरी पते वाली मेथी मिलाकर साग बनाकर खाने से पथरी नहीं बनती है |
अतः पालक खाए शरीर में खून बढ़ाये |
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