संतरा मानव के लिए पौष्टिक फल है | संतरा जिसे नारंगी भी कहते है ,गुणों में एकदम संत सामान है | ये फल विटामिनो से भरपूर है , इसमें विटामिन 'सी', 'ए', 'बी' के अलावा फोस्फोरस, कैल्सियम, प्रोटीन और ग्लूकोज भी पाया जाता है | लोहा और पोटाशियम भी इसमें काफी मात्रा में होता है | इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमें विद्यमान फ्रुक्टोज, डेक्सट्रोज, खनिज एवं विटामिन शरीर में पहुँचते ही उर्जा देना प्रारंभ कर देते है | यदि पुरे मौसम में एक या दो संतेरे सुबह -सुबह खली पेट खाएं तो कई रोगों से बचा सा सकता है |
संतेरे में मौजूद विटामिन सी जहाँ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है , वहीँ कैल्सियम और खनिज लवण दांतों व हड्डियों को मजबूत बनाते है | यह अनेक रोगों के लिए रामबाण दवा है, संतरा केवल स्वास्थ्यवर्धक ही नहीं, खूबसूरती को संवारने वाला फल भी है |
संतरा ठंडा, तन और मन को चुस्ती-फुर्ती प्रदान करता है | जिनकी पाचन शक्ति ख़राब है उनको नारंगी का रस तिन गुने पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए | इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है , खाना जल्दी हजम होता है | कब्ज़ होने पर इसका रस पिने से कब्ज़ की समस्या से निजात मिलती है | पेट में दर्द होने से संतेरे के रस में थोड़ी सी भुनी हुई हींग मिलाकर देने से लाभ मिलता है , उलटी होने या जी मिचलाने पर संतेरे के रस में शहद मिलाकर सेवन करें | पेचिस की शिकायत होने पर संतेरे के रस में बकरी का दूध मिलाकर लेने से फायदा होता है | संतेरे का नियमित सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है |
बच्चों के लिए तो संतेरे अमृततुल्य है गर्भवती महिलाओं को इसका रस देने से बच्चा तंदुरुस्त होता है | बच्चों को स्वस्थ्य व हष्ट-पुष्ट बनाने के लिए दूध में चौथाई भाग मीठे संतेरे का रस मिलाकर पिलाने से यह टॉनिक का कम करता है | बच्चों को बुखार या खांसी होने पर एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच संतेरे के छिलकों का पाउडर और नमक या चीनी मिलाकर देने से बुखार में राहत मिलती है | यह किडनी ,दिल और त्वचा के लिए भी फायदेमंद है | दिल के मरीज को संतेरे का रस में शहद मिलाकर देने से आश्चर्यनक लाभ मिलता है | इसका एक गिलास रस तन-मन को शीतलता प्रदान कर थकान व तनाव दूर कर मस्तिष्क को नई शक्ति व ताजगी से भर देता है |
संतेरे के सूखे छिलकों का महीन चूर्ण गुलाब जल या कच्चे दूध में मिलाकर पीसकर लेप लगाने से कुछ ही दिनों में चेहरा साफ,सुनार और कांतिवान हो जाता है | किल-मुंहासे से छुटकारा मिलता है और झाइयाँ व संवालापन दूर होता है |
संतेरे का छिलका को मत फेंके ,इन छिलकों और रेशों में भी विटामिन और कैल्सियम होता है संतेरे की फांक धीरे-धीरे चूसिये और केवल बीज थूकते जाइए | इनका पतला आवरण और रेशे में जो पल्प है वह आँतों में चिपके मल की सफाई करता है |
इन्हें धुप में सुखाकर कूटकर उबटन बनाकर अपने त्वचा पर प्रयोग करें और तवचा को चिकनी और मुलायम बनाए |
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यदि आपने कभी डायटिंग की हो तो आप का पाला फैट ( चर्बी, चिकनाई ) शब्द से अवश्य पड़ा होगा, लेकिन हर फैट आपके लिए बुरा नहीं है | शरीर को पोषण देने वाला एक आवश्यक तत्व है , फैटी एसिड्स | यह लाभकारी फैट है जिसे हम एसेंशियल फैटी एसिड्स (EFA's ) भी कहते है | इसके आभाव में आप सोचना, देखना, सुनना, पुनरुत्पादन, दौड़ना इत्यादि नहीं कर पायेंगे |
फैटी एसिड्स फैट बनाने की प्रक्रिया का मूल आधार है | कुछ फैटी एसिड्स आवश्यक होते है क्यूंकि वो जीवन के लिए अनिवार्य है, लेकिन क्यूंकि हमारा शरीर उन्हें बनता नहीं, हमें भोजन के द्वारा उन्हें ग्रहण करना पड़ता है | फैटी एसिड्स के दो मुख्य रूप है , Omega-3 और Omega-6 | एक तीसरा फैटी एसिड्स है Omega-9, जो ओलिव आयल से प्राप्त किया जाता है |
यह जीवन के लिए अनिवार्य तत्व है | कोशाणुओं के रक्षात्मक परत को सुरक्षित रखता है जिस के कारण पोषक तत्वों का शरीर में सुचारू रूप से संचालन तथा कोलेस्ट्रोल नियंत्रण में सहयोग मिलाता है |
Omega-3 फैटी एसिड्स एसेंशियल फैटी एसिड्स है, जो स्वस्थ्य शरीर के लिए आवश्यक है | लेकिन चुकी उन्हें शरीर नहीं बना सकता, हमें भोजन द्वारा इसे ग्रहण करना जरुरी है | यह हमें सालमन, टूना इत्यादि समुद्री मछलियाँ से और बादाम के तेल से प्राप्त होते है | Polyundsaturated Fatty Acids ( PUFA ) के नाम से जाने जानेवाले ये Omega-3 फैटी एसिड्स दिमाग की सुचारू प्रक्रिया और शरीर के सामान्य संवृधि के लिए जरुरी है |
Omega-3 ट्रायग्लिसरायड नामक दुश्मन से लडनेवाला हथियार है - इस तर्क का शायद ही कोई विकल्प हो | इस तर्क के पुष्टिकरण के लिए अनेकों वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद है |
जहाँ तक बढ़ते बच्चों का सवाल है, ऐसा माना जाता है की ओमेगा-३ और उसके व्युत्पन्न बच्चों के दीमाग के विकास और आँखों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है | यह प्रमाणित है की ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, खासकर DHA ( Docosahexaenoic acid ) बच्चों के दिमागी विकास, संचालन कौशल, भाषा कौशल, चिंतन कौशल, तेज दृष्टि, गहरी निद्रा और इनेक ऐसे कार्यों में मदद पहुंचा सकती है |
Omega-9 एक अन्य प्रकार का फैटी एसिड्स है Oleic Acid, Omega-9 monounsaturated fatty Acids और यह प्राप्त होता है ओलिव आयल , मूंगफली और एवोकेडो से | यह एसेंशियल नहीं है क्योंकि Omega-3 और Omega-6 polyunsaturated EFA's की तुलना में शरीर छोटी मात्रा में इसका उत्पादन कर सकती है | शरीर इसका उपयोग सुजन से लड़ने, atherosclerosis ( fat deposits on the artery walls ) को नियंत्रित करने, Blood sugar को संतुलित करने तथा शरीर को नैसर्गिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए करता है |
आपने तय कर लिया की आपको बेहतरीन गुणवता वाला Omega-3 खाद्यपूरक चाहिए | तो आपके लिए यह गर्व की बात है की फोरेवर लिविंग प्रोडक्ट्स ने न्यूनतम अनुसंधानों पर आधारित यह बेहतरीन गुणवता वाला खाद्यपुरक तैयार किया है | ओमेगा-३ और ओमेगा-९ के अनोखे संयोजन से बना यह खाद्यपुरक Blood cholesterol तथा triglyceride के नियंत्रण में सहयोग देता है | श्रेष्ठतम तरीके से निर्मित और आर्कटिक सी के शुद्ध प्रान्त से व्युत्पन्न फोरेवर आर्कटिक सी Super Omega-3 vegetable और pharmaceutical grade fish oil के बेहतरीन संगम से प्रदान करता है एक संतुलित खाद्यपुरक |
तो अगली बार जब आप अच्छे फैट्स को चयन करने की दुविधा में हों तो ले फोरेवर आर्कटिक सी ; आज और हर रोज, बेधड़क |
निम्नलिखित प्रक्कर के रोगों में आप आर्कटिक सी का प्रयोग कर सकते है :-
यह ह्र्द्य रोग ,उच्च रक्त चाप , रक्त संचालन सिस्टम को स्वस्थ रखने मे मदद करता है ।
यह हार्ट अटैक एवं हार्ट स्ट्रोक की संभावना को कम करने मे मदद करता है । यह रक्त मे थक्का बनने की प्रक्रिया को कम करता है ।
यह ट्राईग्लाईसेराड्स के स्तर को कम करने मे मदद करता है । जो मोटापे एवं ह्र्दय रोग का एक महत्त्वपुर्ण कारण है । यह त्वचा के रोगों मे लाभदायक है । यह गठिया बाय मे काफ़ी लाभदायक है । यह रक्त मे कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने मे मदद करता है । यह रक्त मे अल्कोहल के असर को कम करने मे मदद करता है ।
यह ट्यूमर के बढने की गति को कम करने मे सहायक है ।
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हमारी त्वचा बेहतरीन सुरक्षा का अधिकारी है - आखिरकार क्या ये आप के शरीर का सबसे उजागर लेकिन सबसे कम सुरक्षित भाग नहीं है ? जरा कल्पना करें की कैसे दिनों, महीनो और सालों तक यह वक्त की सारी ताडनाएं सहता है , ज्यादातर चुपचाप और कभी-कभी फोड़ों, घावों या फिर सुस्त और निर्जीव त्वचा दर्शाते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त करता है | शरीर का यह सबसे बड़ा अवयव चुपचाप बदलते मौसम, धुल-मिट्टी, प्रदुषण, रासायनिक उत्सर्ग, कठोर पदार्थ, अस्वस्थ्य जीवन शैली, बढती उम्र इत्यादि के थपेड़े सहता है | क्या ये अच्छा नहीं होगा अगर हम अपने व्यस्त दिनचर्या में कभी-कभार थोडा सा वक्त अपने शरीर के इस महत्वपूर्ण एवं प्रत्यक्ष अंग को सँवारने और सुरक्षा में लगाएं |
एक उष्ण, फुर्ती-स्पद, आराम पहुँचानेवाले मालिश से अच्छा और क्या हो सकता है जो आप की त्वचा को न सिर्फ एक चमक प्रदान करे, बल्कि उसकी बदसूरत और उबड़-खाबड़ सतह जिससे अधिकतर लोग पीड़ित रहते है और इस से निदान का आसान व प्रभावशाली तरीका ढूंढते रहते है | तो है एक ऐसा प्रोडक्ट हमारे पास जो न सिर्फ प्रभावशाली है, बल्कि बेहद सुरक्षित एवं अंततः सस्ता भी है | जिसका नाम है फोरेवर एलो बॉडी टोनर |
एलो बॉडी टोनर शुद्ध, स्टेब्लाईज्द एलो वेरा और चुनिंदे यूरोपियन जड़ी-बूटियों का एक यथार्थ मिश्रण है जिसमे सिन्न्मन आयल और कैपसिकम - दो अनूठे हिटिंग एजेंट है |
कैपसिकम :- काफी अरसे से कैपसिकम का उपयोग न सिर्फ भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए बल्कि शरीर के सुचारू संचालन एवं शुद्धिकरण के लिए किया जाता रहा है | कैपसिकम पाचन रसों के उत्पादन में बढ़ोतरी करता है और हमारी नैसर्गिक सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में सहयोग देता है | रक्तचाप को सुव्यवस्थित करने में भी मदद कर सकता है | जहाँ आप अपने शरीर के आतंरिक हिंस्सों की संचालन प्रक्रिया को मजबूत कर असंख्य कोशाणुओं को ओक्सिजन और पोषण द्वारा सक्रीय बनाते है , वहीँ कैपसिकम की उष्ण शक्ति संचालन प्रक्रिया को दुरुस्त कर फंसे द्रव्य और चर्बीदार उतकों को तोड़ती है जिससे सेल्युलाईट बनता है |
सेल्युलाईट एक ऐसी स्थिति है जो पुरुष और स्त्रियों ( खासकर स्त्रियों ) में पैदा होती है जिससे जांघों, पेट और पेल्विक रीजियन की त्वचा उबड़-खाबड़ दिखती है | इसे ओरेंज पिल सिंड्रोम, काटेज चीज स्किन, मैट्रेस फिनौमिनन इत्यादि नामों से भी जाना जाता है |
सिन्न्मन आयल :- ऐसा मन जाता है कि सिन्न्मन शरीर को संचालन प्रक्रिया और शक्ति प्रवाह को सुदृढ़ बनाता है | चीन के चिकित्सीय शास्त्र के अनुसार दर्द, ऐठन और रक्त संचय ये सभी उर्जा अवरोधी अवयव है | सिन्न्मन उर्जा को पुरे शरीर में संचालित करती है और यह उष्णता पैदा करने वाला मन जाता है | यह तीव्र एसेंशियल आयल थकावट, डिप्रेसन और कमजोरी से लड़ने में मदद करता है |
एलो बॉडी टोनर के अनूठे परिणामों का रहस्य है एलो वेरा जो हाइपोडर्मिस लेबल तक जाकर नमीं तथा चिकनाई पहुंचती है और साथ ही उष्णता पहुँचाने वाले तत्वों के साथ मिलकर अनचाहे द्रव्य पदार्थों को साफ़ करती है जिस के कारण त्वचा रेशमी और चिकनी दिखाई देती है | यह एक गहराई तक उष्णता पहुँचाने वाली एमोलिएंट क्रीम है जिसमे इमलसिफाअर्स, मोइस्च्राइजर्स और हुमेक्तेन्त मौजूद है | यह प्रोडक्ट एलो बॉडी टोनर का अभिन्न अंग है और शरीर के बिभिन्न भागों पर सेलोफिन रैप के साथ प्रयोग करने पर बेहतरीन परिणाम मिलते है | बहरहाल , चेहरा, गला, फोरआर्म , सीना, घुटनों और पिंडलियों के बिच सेलोफिन का प्रयोग न करें | त्वचा के निचले हिंस्से में फंसे द्रव्य पदार्थों को पिघलने में मदद कर जब यह प्रोडक्ट वजन कम करने के अन्य अवयवों के साथ काम करता है तो इन्च रिडक्सन में मदद मिलती है |
यह एक हर्बल पैक है । इससे आप पेट ,जंघा व बाजू पर जमा अतिरिक्त चर्बी को कम कर सकते है । यदि आपके पेट पर चर्बी काफ़ी मात्रा मे है तो यह एक घंटे मे २ इंच भी कम कर सकता है ।
त्वचा पर पडी धारियों को भी खत्म कर सकता है ।यह एक एन्टी –बायटिक कोम्बिनेशन है जो हमारी त्वचा के संक्रमण को भी कम करने मे मदद करती है । इसका कोई साइड एफ़ेक्ट नही है । यह हमारी त्वचा को स्वस्थ रखता है ।
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तो देर किस बात कि है, तैयार हो जाइए एक नए, जवाँ, छरहरे शरीर के लिए, कुछ ही घंटो में --- अपने घर के आराम और एकांत में |
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आज हम एक ऐसे उत्पाद के बारे में चर्चा करेंगे ,जो इन दिनों की भयंकर तेज धुप से त्वचा को स्वास्थ्य रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है | वैसे सूर्य हमारे जीवनदायक है | यह एक निर्विवाद सत्य है की धुप की थोड़ी सी मात्रा न सिर्फ हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है साथ ही हमारी हड्डियों के लिए जरुरी विटामिन डी की भी आपूर्ति करती है | लेकिन विज्ञानं इस तथ्य को भी प्रमाणित करता है की धुप की ज्यादा मात्रा भी हमें न सिर्फ बाहरी तौर से वृद्ध बनाती है अपितु त्वचा सम्बन्धी कई अन्य समस्याएं भी उत्पन्न करती है | साधारण शब्दों में सूर्य से निकली पराबैंगनी किरणों को प्रकाश के तरंग आयाम ( Wave Length) के आधार पर वैज्ञानिक तीन भागों में विभक्त करते है :- UVA, UVB और UVC | इनमे से UVC के संपर्क में ज्यादा देर तक रहना त्वचा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है | सौभाग्य से वायुमंडल में उपस्थित कुछ गैसों के कारण UVC पृथ्वी पर पहुँचने से पहले ही सोख लेते है |
ऐसे में बाजार में उपलब्ध सनस्क्रीन के अवयव ज्यादातर UVB को सोख कर उन्हें ठीक उसी तरह से त्वचा में प्रवेश करने से रोक देते है जिस प्रकार से वायुमंडल में उपस्थित अवयव UVC को पृथ्वी पर पहुँचाने से पहले सोख लेते है |
लेकिन हमारी त्वचा को फोटो एजिंग और त्वचा कैंसर का विकास जैसी क्षति पहुँचाने में पराबैंगनी किरणों UVA की महत्वपूर्ण होती है | ज्यादातर सनस्क्रीन क्रीमों के द्वारा UVB को तो रोका जा सकता है पर UVA को रोकने वाली ऐसी क्रीम बहूत कम उपलब्ध है | आधुनिक अनुसंधानों से यह पता चल रहा है की किस तरह से सनस्क्रीन त्वचा की रक्षा करने में सहायक होते है | ऐसे सनस्क्रीन सूर्य की किरणों को तवचा से सोखकर, वापस फेंककर या फैलाकर कार्य करते है |
सनस्क्रीन को दो भागों में बांटा जा सकता है :- प्राकृतिक सनब्लाक्स तथा जिंक एवं टिटेनियम व केमिकल सनस्क्रीन एजेंट्स | जहाँ प्राकृतिक सनस्क्रीन पराबैंगनी किरणों की भौतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते है वहीँ केमिकल सनस्क्रीन पराबैंगनी किरणों को सोखकर उन्हें त्वचा के तंतुओं (Tissues) में निष्क्रिय करते है | प्राकृतिक सनब्लाक्स द्वारा विषैले रसायनों से मुक्त एस. पी. एफ. सुरक्षा मिलती है |
एस. पी. एफ. का मतलब है सन प्रोटेक्शन फैक्टर यानि धुप से बचाव के सहायक तत्व | ये आपकी त्वचा के जलन होने में लगने वाले समय एवं एस. पी. एफ. सुरक्षा संख्या की गुना के बराबर के समय को दर्शाता है | मान लीजिये की आपकी त्वचा बिना सनस्क्रीन के ५ मिनट में जल जाती है तो SPF 15 के साथ अब ऐसा होने में ७५ मिनट लगेंगे | लेकिन वास्तव में SPF 15 और SPF 30 की सूर्य की पराबैंगनी किरणों की शोधन करने की शक्ति में अंतर सूक्ष्म होता है | तात्पर्य यह है की यदि SPF 15 की शोधन शक्ति यदि ९६% है तो SPF 30 की तक़रीबन ९८% होगी | तो सामान्यतः एक SPF 30 वाली प्राकृतिक सनब्लाक सूर्य से बचाव के लिए पूर्ण रूप से प्रयाप्त है |
पर सनस्क्रीन फोरेवेर्लिविंग का ही क्यूँ प्रयोग करें ? बहूत ही अच्छा सवाल है | क्यूंकि कोई भी सनस्क्रीन एक ऐसा उत्पाद है जिसे आपको अपने दिन के ज्यादातर समय में महीने दर महीने ,साल दर साल प्रयोग करना है ,इसलिए ये महत्वपूर्ण है की ऐसा उत्पाद लिया जाय जो न सिर्फ हमारी त्वचा की सुरक्षा प्रदान करें बल्कि अन्दर तक ख्याल भी रखें और आराम भी पहुंचाये | फॉर एवर एलो सनस्क्रीन यह सब कुछ एक साथ देता है | आधुनिक विज्ञानं की सहायता से अधिकाधिक प्राकृतिक तत्वों को मिलकर यह एक ऐसा सनस्क्रीन है जो आपकी त्वचा को आराम पहुंचाता है, तरलता और नमी प्रदान करता है और साथ ही धुप और हवा के दुष्प्रभावों से आपकी रक्षा करता है | SPF 30 युक्त फार्मूला फॉर एवर एलो सनस्क्रीन प्रभावशाली ढंग से UVA और UVB किरणों को रोकता है और स्थिरीकरण एलो जैल की खूबियों के कारण इसका कोमल और चिकना त्वचा के प्राकृतिक संतुलन को बनाने में सहायक होता है | अच्छे परिणाम पाने के लिए, आप इसका प्रयोग धुप में निकलने के 15-20 मिनट पहले करें |
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वैसे तो सभी ऋतुएँ अपने नाम व गुण के अनुसार कुछ न कुछ तकलीफ देती ही है लेकिन गर्मी की ऋतू सबसे ज्यादा कष्टप्रद है | घर से बाहर निकलो तो चिलचिलाती धुप से शरीर भट्टी की तरह तपने लगता है | घर के अन्दर न तो कूलर से रहत मिलती न ही पंखे से , थोड़ी देर हवा चल जाए तो पसीना अवश्य सुख जाता है | इस असहनीय तापमान को झेलना हमारी-आपकी मज़बूरी है , क्यूंकि जब सभी जगह लू-लपेट का बोलबाला हो तो ऐसे में किया ही क्या जा सकता है ?
आजकल पृथ्वी का तापमान भी पहले की अपेक्षा निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है ,क्यूंकि पर्यावरण का समीकरण दिन-प्रतिदिन बिगड़ रहा है | बढ़ते जा रहे हवा के प्रदुषण से पृथिवी के चरों और उपस्थित 'ओजोन' परत में अब छेड़ हो गया है , जिससे सूर्य की किरने ज्यादा तेजी से पृथ्वी पर पड़ रही है , परिणामस्वरूप हम तरह-तरह के रोगों से घिरते जा रहे है |
वैसे हम सभी इस तरह के गर्मी के आदि बन चुके है | हर समय इस गर्मी को कोसने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है, ऐसे में अपने आहार-विहार पर ध्यान से ही इस असहनीय भयंकर गर्मी से कुछ रहत प् सकते है | लेकिन इसकी अवहेलना करने से गर्मी के भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते है | क्यूंकि गर्मी के कारण मनुष्य के शरीर का कफ दोष पिघलकर कम हो जाता है और वायु दोष में वृद्धि हो जाती है |
जैसे गर्मी के कारण इन दिनों जलाशय पेड़-पौधों का जलीयंग कम हो जाता है , वैसे ही मनुष्य के शरीर का गर्मी के कारण शरीर में जल की कमी हो जाने से जठराग्नि मंद हो जाती है |वैसे में भूख कम लगती है और खाया हुवा खाना ठीक से पचता नहीं है | प्यास लगने पर मुख-गला सूखने जैसे लक्षणों का आभास होने लगता है | इसी कारण इस मौसम में अजीर्ण, उलटी, दस्त,कमजोरी, बेचैनी अदि परेशानियाँ बढ़ जाती है |ऐसे में कम भोजन व ठंढा पानी ( मटके वाली) हितकर होता है |
गर्मी के दिनों में ज्यादातर आहार हल्का पेय पदार्थ हो और सुपाच्य भोजन में ही भलाई है | क्यूंकि भीषण गर्मी के कारण गरिष्ठ भोजन आसानी से हज्म नहीं होता जिससे तरह-तरह के उदार रोग घेर लेते है | लेकिन देखा गया है की अधिकतर लोग आहार के प्रति बहूत ही लापरवाह होते है, यह लापरवाही चाहे अनजाने में हो या जानबूझकर , रोगों के कारण तो बनते ही है |
गर्मी के दिनों में ऐसे खाद्य पदार्थों का अधिकाधिक सेवन करना चाहिए जो, जो शीतल गुण वाले हो, बाहरी और शरीर की भीतरी गर्मी में राहत पाने के लिए सुबह सवेरे खाली पेट 50 ML एलोवेरा का जूस पीना चाहिए और अन्य पेय पदार्थ में मटके का पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए | क्यूंकि गर्मी में शरीर से अधिक पसीना निकलने के कारण पानी की कमी हो जाती है , उसकी पूर्ति तरल पदार्थों से ही की जाती है | अतः पेय पदार्थ का सेवन इस ऋतू में विशेष लाभप्रद होता है |
इन दिनों में खाना भरपेट नहीं खाना चाहिए | अतः 'स्वल्पाहरी सजीवित' सिधांत के अनुसार भूख से थोडा कम खाना ही सेहत के लिए लाभप्रद है | गर्मी में मांस खाना और ठंढा भोजन करना वर्जित है , रात के भोजन में जौ या गेहूं की रोटी , हरी सब्जियां, प्याज , पुदीना या धनिया की चटनी का सेवन करना चाहिए | इस मौसम में कच्ची प्याज अवश्य खाना चाहिए |
सब्जियां में हरी सब्जी , बथुआ, टमाटर, करेला आदि के साथ नीबू का भी नियमित सेवन करना चाहिए | ऐसे मौसम में फलों की बहुलता रहती है जैसे खरबूजा, तरबूजा, आम, लीची फालसा आदि फल अधिक उपलब्ध होते है | इसका सेवन से अति लाभदायक होता है | और शरीर को निरोग रखने के लिए नित्य एलोवेरा जूस का सेवन करें |
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आज हमारे दिनचर्या में दही का विशेष महत्व है | प्रत्येक संस्कार यानि की गर्भ संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक में हमारे यहाँ इसका उपयोग हो रहा है | यही उनकी पवित्रता और शुद्धता की पहचान है | जब कोई व्यक्ति अच्छे काम व व्यवसाय के लिए घर से निकलते है तो वे दही का सेवन जरुर करते है जिससे वे अपने काम में सफल हो सकेंगे, ऐसी मान्यता है | पर शायद आपको यह जानकर अत्यंत ख़ुशी होगी की दही का दैनिक आहार में सेवन करके मनुष्य अपने जीवन को और भी हष्ट-पुष्ट बना सकता है |
आजकल आग उगलती तेज गर्मी जहाँ नित्य नए कीर्तिमान बना रहे है | आलम यह है की छाया भी खुद छाया की तलाश कर रहा लगता है | ऐसे में अपने आपको कैसे स्वास्थ्य रख सके ? बहूत बड़ी चुनौती है | पर हम थोड़ी सी सावधानी और संयम रखकर इस तरह के गर्मी से बचा सकते है | अपने दैनिक खानपान में ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जी, जिसमे पानी ज्यादा होता हो , तेल मशाले व गरिष्ठ भोजन से बचे और दही जरूर अपने दैनिक आहार में रखें | जो लोग नियमित दही का सेवन करते है उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है जो उन्हें रोगों से सुरक्षा देती है |
दही का नियमित सेवन करने वाले व्यक्तियों में गामा इंटरफरान नमक प्रोटीन की मात्र अधिक पायी जाती है जो उनकी इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है | कई शोधों से यह भी पता चला है की दही का अधिक सेवन से कई प्रकार के प्रकार के कैंसर से भी सुरक्षा देता है विशेषतः बड़ी आंत के कोलोन कैंसर से | दही की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमें लेक्टिक अम्ल की प्रचुर मात्रा होती है जिसके कारण बड़ी आंत में इस प्रकार का वातावरण बनता है, जो सड़ांध पैदा करने वाले जीवाणु यानि फुटरे फेकटिव वेक्टीरिया के विकास को रोकता है | इन जीवाणु को कोलोन बेसिल या बी कोली के नाम से भी जाना जाता है |
बुढ़ापे में तथा बढती उम्र के साथ-साथ शरीर विषैले पदार्थ बड़ी आंत के निचले भाग में सड़ांध जीवाणुओं की अत्यधिक सक्रियता के कारण पैदा होते है | स्वास्थ्य शरीर में सड़ांध जीवाणु, सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा नियंत्रित रहते है | जिनसे लेक्टिक अम्ल खमीर उत्पन्न करते है, जो बी कोली जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक है |
मतलब बड़ी आंत में जीवाणुओं का संतुलन बनाए रखने के लिए हमें दही का नित्य उपयोग करना चाहिए | इसमें हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि रोकने की क्षमता होती है , जिसके कारण आंत में दुर्गंध कम उत्पन्न होती है | दही में कैल्सियम और लेक्टिक अम्ल की प्रचुर मात्रा होती है | रोजान दही सेवन करने से त्वचा की कोमलता बनी रहती है | साथ ही यह चिलचिलाती तेज धुप से भी , त्वचा की रक्षा करता है |
वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है की भोजन में कैल्सियम की मात्रा और कोलेरेक्टल कैंसर के बीच सम्बन्ध है | जिन व्यक्तियों के भोजन में कैल्सियम और दुग्ध उत्पादों की अधिक मात्रा होती है उनमे बड़ी आंत का कैंसर होने की आशंका कम होती है | दही का नियमित सेवन पाचन प्रणाली को स्वस्थ्य रखता है | औषधि विज्ञानं के अनुसार दही आंत्रशोथ, अतिसार, जठरांत्रशोथ, कब्ज़ अफारा और बच्चों की बीमारियाँ जैसे भूख नहीं लगना , पेट में गरबड़ी और दुर्बलता में भी लाभ पहुंचाता है |
दही ज़माने के ढंग के आधार पर भी इससे लाभ पाया जाता है | दूध को खूब उबालकर जो दही जमाया जाता है , वह भूख को बढ़ता है , किन्तु पितकारक होता है | बंगाल में दूध को ज़माने से पहले ही चीनी मिला दी जाती है जिसे मीठी दही कहते है | यह बेहद स्वादिष्ट और रक्त विकार को नाश करता है व प्यास को बढाता है |
दूध से मलाई निकलकर जो दही जमाया जाता है, वह मल बांधने वाला होता है और संग्रहणी रोग में खूब फायदा करता है | दही का सेवन पेट सम्बन्धी रोगों के लिए बहूत ही लाभदायक होता है | बकरी और उटनी के दूध का दही अत्यंत स्वास्थवर्धक होता है |
दही का सेवन खांसी,बुखार में और रात को नहीं करनी चाहिए | ठंढा और बरसात में दही का सेवन लाभ कम हानी ज्यादा कर सकता है | एलर्जिक,नजला,रक्तपित व श्वास सम्बंधित रोगी को दही खाने से परहेज करना चाहिए |दही के साथ चीनी के सेवन से दही की उपयोगिता कम हो जाती है |
अंततः हम यही कहना चाहेंगे की बुढ़ापे और बढती उम्र में कम से कम १७० ग्राम दही का सेवन आप रोजाना करें,क्यूंकि नियमित सेवन से शरीर के लड़ाकू बल्ड सेल्स की प्रक्रिया में तेजी आता है और एंटीबाडीज में वृद्धि होती है | एक शोध में यह भी पता चला है की दही उतना ही प्रभावशाली है जितना की मल्टीविटामिन दवा |
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आयुर्वेद के समस्त औषधियों और जड़ी-बूटियों में तुलसी का अहम् भूमिका है |
तुलसी से कोई अपरिचित नहीं है ,बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी जानते है | इसकी दो प्रजातियाँ होती है - सफ़ेद और काली | तुलसी में बहूत से गुण है | "राजबल्ल्भ ग्रन्थ" में कहा गया है ---- तुलसी पित्तकारक तथा वाट कृमि और दुर्गन्ध को मिटाने वाली है, पसली के दर्द खांसी, श्वांस, हिचकी में लाभकारी है | इसे सभी लोग बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से पूजते है|
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भारतीय चिकित्सा विधान में सबसे प्राचीन और मान्य ग्रन्थ "चरक संहिता" में तुलसी के गुणों का वर्णन एकत्रित दोषों को दूर करके सर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूंघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है | भारतीय धर्म गर्न्थों में तुलसी के रोग निवारक क्षमता की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी है ---- तुलसी कानन चैव गृहे यास्यावतिष्ठ्ते |
तदगृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति ममकिंकरा ||
तुलसी विपिनस्यापी समन्तात पावनं स्थलम |
क्रोशमात्रं भवत्येव गांगेयेनेक चांभसा ||
तुलसी से मृत्युबाधा दूर होती है | उसकी गंध का प्रभाव एक कोस तक होता है | जब इससे रोगों की निवृत हो जाती है ,तब यम की बाधा तो हटती ही है, क्यूंकि रोग ही तो यम के दूत बन कर आते है | वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणित हो चूका है की तुलसी के संसर्ग से वायु सुवासित व शुद्ध रहती है |
पौराणिक कथाओं में तुलसी को प्रभु का भक्त बताया गया है | भगवन के आशीर्वाद से ही तुलसी ( पौधे के रूप में ) घर-घर में विराजमान रहने लगी |मंदिर में भगवान् का चरणामृत देते समय पुजारी तुलसी पात्र के साथ गंगाजल देते है और प्रसाद के सभी पदार्थों में तुलसी पत्र डाला जाता है |
क्युकी यह 'अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम' अर्थात यह अकाल मृत्यु से बचाती है और सभी रोगों को नष्ट करती है | मृत्यु के समय तुलसी मिश्रित गंगाजल पिलाया जाता है जिससे आत्मा पवित्र होकर सुख-शांति से परलोक को प्राप्त हो | इसीलिए लोग श्रधापुर्वक तुलसी की अर्चना करते है, सम्मान इसका ऐसा होता है की कार्तिक मास में तो तुलसी की आरती एवं परिकर्मा के साथ-साथ उसका विवाह किया जाता है |
अनुसंधान कर्ताओं ने पाया है की पेट-दर्द, और उदार रोग से पीड़ित होने पर तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रश संभाग मिलकर गर्म करके सेवन करने पर रोग का प्रभाव हट जाता है | तुलसी के साथ में शक्कर अथवा शहद मिलकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है | सिरदर्द में तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण कपडे में छानकर सूंघने से फायदा होता है |
वन तुलसी का फुल और काली मिर्च को जलते कोयले पर दल कर उसका धुना सूंघने से सिर का कठिन दर्द ठीक होते देखा गया है | केवल तुलसी पत्र को पिस कर लेप करने, छाया में सुखाई गयी पत्तियां के चूर्ण को शुन्घने से सिर दर्द में काफी आराम पहुँचता है |
छोटे बच्चे को अफरा अथवा पेट फूलने की शिकायत प्रायः देखि गयी है, जिसमे तुलसी और पान पत्र का रस बराबर मात्रा में मिलाकर इसकी दस-दस बूंद सुबह दोपहर शाम बराबर देते रहने से काफी आराम मिलता है | दांत निकलते समय बच्चों को जोर से दस्त लग जाते है इसमें भी तुलसी पत्ते का चूर्ण शहद में मिलाकर से लाभदायक होता है | बच्चों को सर्दी और खांसी की शिकायत होने पर तुलसी पत्र का रस उपयोगी सिद्ध होता है |
तुलसी के आसपास का वायुमंडल शुद्ध रहने के कारण प्रदुषण अन्य रोगों का पनपने का मौका नहीं मिलता है | पेय जल में यदि तुलसी के पत्तों को डालकर ही सेवन किया जाए तो कई तरह के रोगों से बचा जा सकता है |
तुलसी को संस्कृत भाषा में 'ग्राम्य व सुलभा इसलिए कहा गया है की यह सभी गांवों में सुगमता -पूर्वक उगाई जा sakti है और सर्वत्र सुलभ है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आरोग्य प्राप्त करने की दृष्टि से इसका आरोपण सभी घरो में होना चाहिए |
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घरेलु नुस्खों से निकलकर भू-मंडलीय पर अंकित आयुर्वेद आज विश्वसनीयता के मानचित्र पर सबसे ऊपर दिखाई देने लगा है | वर्षों का सफ़र इस बात का संकेत है की इस आयुर्वेद में निश्चित ही विशिष्ट गुण निहित है जिसके कारण आयुर्वेद प्राचीन काल से अबतक इस धरा पर अपनी पहचान बना कर रखा है | आयुर्वेद का अस्तित्व का होना इस बात को भी इंगित करता है की ऋषि-मुनियों द्वारा देवों की चिकित्सा आयुर्वेद के माध्यम से होती थी और इसी परिपाटी को जीवित करते हुए आयुर्वेद आज मानव सेवा कर रहा है | प्राचीन काल से हमारे घरेलु उपचार की विधियाँ यहाँ के परिवार में रची-बसी रही है |
आयुर्वेद में बढती हुई रूचि का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की आज की युवा वर्ग आयुर्वेद को बदलती शैली के साथ चाहने लगी है | एलोवेरा को आयुर्वेद की खास पहचान जानने लगी है | इतना ही नहीं, युवा पीढ़ी अब खुद को स्वास्थ्य रखने के लिए सामान्य आहार के अलावा अपने भोजन में आंवला, च्यवनप्राश, एलोवेरा का रस भी शामिल करने लगे है |
सर्दी-जुकाम जैसे छोटे समस्या के लिए वे आयुर्वेद के नुस्खे व दवाइयों पर ज्यादा भरोसा करने लगे है | भागमभाग और तेज रफ़्तार जिन्दगी के इस दौर में मनुष्य मशीन की तरह काम कर रहा है और मुफ्त में साथ में तनाव पाल रहा है | ऐसे में आयुर्वेदिक औषधियां थकान व तनाव मिटाने में अत्यंत लाभकारी साबित हो रही है |
हर्बल औषधियां ( एलोवेरा जेल) मुख्य रूप में सौन्दर्यशक्ति व तनावमुक्ति में लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है | प्रकृति का वास्तव में अनुपम व उत्कृष्ट उत्पाद है एलोवेरा | एलोवेरा की लोकप्रियता का आलम यह है की आज युवाओं में बतौर फैशन यही आयुर्वेद का विकल्प हो गया है |
महगाई की इस दौर में भी ४३ प्रतिशत लोग यह स्वीकार करते है की अपेक्षाकृत सस्ती व सुरक्षित है | मोटापा व बढ़ते वजन तथा असाध्य रोग भी आयुर्वेद ( एलोवेरा ) चिकित्सा से ठीक हो रहे है |७२ प्रतिशत लोगों की यह मानना है की पहले बुजुर्ग लोग ही आयुर्वेद पर भरोसा करते थे पर अब युवाओं में जागरूकता आई है , इससे लगता है की आने वाला कल में एलोवेरा और इससे सलग्न पौष्टिक पूरक की चाहत बढ़ेगी , क्युकी आयुर्वेद ( एलोवेरा ) चिकित्सा के अलावा भी शरीर के सर्वांगीन विकाश का काम करता है |
आयुर्वेद को लेकर लोगों में जागरूकता आई है ,लोग यह समझने लगे है की आयुर्वेद ही एक मात्र रास्ता है जहाँ मनुष्य की कायाकल्प संभव है | लोग यह भी जान गए है की एलोवेरा और उनके पौष्टिक पूरक के माध्यम से असाध्य रोगों पर विजयी प्राप्त कर सकते है | कुल मिलाकर जीवन के कसौटी पर आयुर्वेद अब खरा उतरने लगा है |
इसमें अच्छा व्यवसाय भी नजर आने लगा है | आज एलोवेरा ( आयुर्वेद ) की उत्पाद को लेकर हमारी कम्पनी भी करीब अपने देश में विगत १० साल से व्यवसाय कर रही है और करीब ८५ प्रोडक्ट इस समय सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए बाजार में उतरा हुआ है | शरीर से सम्बंधित करीब २२० प्रकार के रोग में आप हमारी कंपनी के उत्पाद की सहायता ले सकते है और अपना जीवन पुर्णतः खुशहाल बना सकते है |
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आज फिर से इच्छा जागृत हुई की क्यूँ नहीं सर्वप्रिय विषय एलोवेरा के सन्दर्भ में कुछ लिखा जाये | इसके विषय में जितनी बार चर्चा की जाए कम लगता है |
विगत कुछ साल से जिस तरह से एलोवेरा ने अपनी पहचान बनाई है वह कविले तारीफ है | हमें लोगों से एलोवेरा के बारे में ज्यादा बताने की जरुरत नहीं पड़ता |
चुकी लोग इसके गुण के बारे में पहले से परिचित होते है |
लोग इसे अलग-अलग शहर में इसे अलग-अलग नाम से जानते है | पर इतना जरुर जानते है की एलोवेरा इस धरती पर मनुष्य के लिए कुदरत का नायाब तोहफा है | कहीं इसे ग्वारपाठा ,घृतकुमारी,घी ग्वार, कुमारी तथा वनस्पति विज्ञानं में इसे Aloe Vera कहते है | यह गाँव में खेतों के आसपास नगरों में सड़कों के किनारे और पार्कों में बखूबी देखे जाते है लोग घर के गमले में भी लगाते है |

यह मनुष्य जाति के लिए सौभाग्य की बात है की प्रकृति ने उसे आज के प्रदूषित वातावरण में अमृत सामान अनमोल सौगात दी है | यदि मनुष्य इस अनमोल रत्न की कद्र करें,इनका सदुपयोग करें तो वह अपने जीवन को स्वस्थ्य ,सुखी और खुशहाल बना सकता है | लेकिन ऐसा तब संभव हो सकता है जब इस एलोवेरा जेल के गुण कर्म और प्रभाव के बारे में जानकारी रखता हों |
कुदरत ने एलोवेरा के अंदर गुणों का सम्पूर्ण भंडार छुपा रखा है | शरीर के लिए जितने भी जरुरी तत्व चाहिए जिससे की दिनचर्या का काम स्फूर्ति से कर सकें , सब के सब एलोवेरा में है | इसलिए इसे हम सम्पूर्ण आहार भी कहते है | पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण एलोवेरा शरीर को स्वस्थ्य एवं निरोग रखने में सक्षम है |
आयुर्वेद के आचार्यों ने मनुष्य के सौन्दर्य के लिए अनेकानेक बातें बताई है | इसमें स्वस्थ्य को सौन्दर्य का आधार बताया है | स्वास्थ्य के विषय में भी शरीर मानस स्वास्थ्य की बात कही है | यानि जब शरीर और मन का सौन्दर्य नहीं रखा जा सकेगा तो समग्र सौन्दर्य की परिकल्पना बैमानी साबित होगी | आयुर्वेद से ही प्राकृतिक तरीके से अपने सौन्दर्य को संरक्षित रख सकते है |
त्वचा और शरीर के अन्दुरुनी सौन्दर्य के लिए एलोवेरा आज का सबसे बेहतरीन और भरोसेमंद उत्पाद हो सकता है | अगर आप उच्च गुणवता वाली एलोवेरा का उत्पाद बाजार से खरीदते है तो आपको मनवांछित लाभ मिल सकेगा | मतलब उस कारण का निदान संभवतः हो जाएगा |
आज बाजार में संशलेषित और रासायनिक पदार्थों से बना कोस्मेटिक उत्पाद रोज के जीवन में हम अपनाते है | नहाने के साबुन से लेकर तेल,डियोड्रेंट ,क्रीम,हेयर डाई, सेंट्स तक हर जगह हम कोस्मेटिक का प्रयोग करते है | ये त्वच पर पर्याप्त दुष्प्रभाव डालते है इस कारण हर्बल कोस्मेटिक का बाजार अरबों रुपैये का हो गया है |
आखिर हो भी क्यूँ नहीं? आज सबको अच्छी तरह से समझ आ चूका है की संशलेषित सौन्दर्य प्रसाधनों से त्वचा के साथ पुरे शरीर का किस तरह से और कितना नुकसान होता है | रूप निखारने में प्रयुक्त पदार्थ कितने जानलेवा साबित होते है | अतः हमें विश्व स्तरीय एलो उत्पाद जो त्वचा के संरक्षण के साथ-साथ सम्पूर्ण स्वास्थ्य की भी रक्षा होती है | दूसरी बड़ी बात यह भी है की एलोवेरा युक्त क्रीम या जेल में संशलेषित कोस्मेटिक क्रीम के कारण उत्पन्न दुष्प्रभावों को भी दूर करने की विशेषता होती है |
यही कारण है की आज एलोवेरा युक्त सौन्दर्य प्रसाधनो की विश्व बाजार में भारी मांग है और ऐसे हर पदार्थ में आज एलोवेरा का नाम जुड़ता जा रहा है | अच्चे, विश्वसनीय और ब्रांडेड एलोवेरा उतपाद ही आपके तन व मन को सौन्दर्य प्रदान कर सकती है |
अन्यथा सुन्दर दीखने का यह उपक्रम कहीं जीवन का नाश करने का माध्यम नहीं बन जाये |
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