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Apr 27, 2010

दही का सेवन स्वास्थ्यवर्धक


आज हमारे दिनचर्या में दही का विशेष महत्व है | प्रत्येक संस्कार यानि की गर्भ संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक में हमारे यहाँ इसका उपयोग हो रहा है | यही उनकी पवित्रता और शुद्धता की पहचान है | जब कोई व्यक्ति अच्छे काम व व्यवसाय के लिए घर से निकलते है तो वे दही का सेवन जरुर करते है जिससे वे अपने काम में सफल हो सकेंगे, ऐसी मान्यता है | पर शायद आपको यह जानकर अत्यंत ख़ुशी होगी की दही का दैनिक आहार में सेवन करके मनुष्य अपने जीवन को और भी हष्ट-पुष्ट बना सकता है |

आजकल आग उगलती तेज गर्मी जहाँ नित्य नए कीर्तिमान बना रहे है | आलम यह है की छाया भी खुद छाया की तलाश कर रहा लगता है | ऐसे में अपने आपको कैसे स्वास्थ्य रख सके ? बहूत बड़ी चुनौती है | पर हम थोड़ी सी सावधानी और संयम रखकर इस तरह के गर्मी से बचा सकते है | अपने दैनिक खानपान में ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जी, जिसमे पानी ज्यादा होता हो , तेल मशाले व गरिष्ठ भोजन से बचे और दही जरूर अपने दैनिक आहार में रखें | जो लोग नियमित दही का सेवन करते है उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है जो उन्हें रोगों से सुरक्षा देती है |

दही का नियमित सेवन करने वाले व्यक्तियों में गामा इंटरफरान नमक प्रोटीन की मात्र अधिक पायी जाती है जो उनकी इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है | कई शोधों से यह भी पता चला है की दही का अधिक सेवन से कई प्रकार के प्रकार के कैंसर से भी सुरक्षा देता है विशेषतः बड़ी आंत के कोलोन कैंसर से | दही की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमें लेक्टिक अम्ल की प्रचुर मात्रा होती है जिसके कारण बड़ी आंत में इस प्रकार का वातावरण बनता है, जो सड़ांध पैदा करने वाले जीवाणु यानि फुटरे फेकटिव वेक्टीरिया के विकास को रोकता है | इन जीवाणु को कोलोन बेसिल या बी कोली के नाम से भी जाना जाता है |

बुढ़ापे में तथा बढती उम्र के साथ-साथ शरीर विषैले पदार्थ बड़ी आंत के निचले भाग में सड़ांध जीवाणुओं की अत्यधिक सक्रियता के कारण पैदा होते है | स्वास्थ्य शरीर में सड़ांध जीवाणु, सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा नियंत्रित रहते है | जिनसे लेक्टिक अम्ल खमीर उत्पन्न करते है, जो बी कोली जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक है |

मतलब बड़ी आंत में जीवाणुओं का संतुलन बनाए रखने के लिए हमें दही का नित्य उपयोग करना चाहिए
| इसमें हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि रोकने की क्षमता होती है , जिसके कारण आंत में दुर्गंध कम उत्पन्न होती है | दही में कैल्सियम और लेक्टिक अम्ल की प्रचुर मात्रा होती है | रोजान दही सेवन करने से त्वचा की कोमलता बनी रहती है | साथ ही यह चिलचिलाती तेज धुप से भी , त्वचा की रक्षा करता है |

वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है की भोजन में कैल्सियम की मात्रा और कोलेरेक्टल कैंसर के बीच सम्बन्ध है | जिन व्यक्तियों के भोजन में कैल्सियम और दुग्ध उत्पादों की अधिक मात्रा होती है उनमे बड़ी आंत का कैंसर होने की आशंका कम होती है | दही का नियमित सेवन पाचन प्रणाली को स्वस्थ्य रखता है | औषधि विज्ञानं के अनुसार दही आंत्रशोथ, अतिसार, जठरांत्रशोथ, कब्ज़ अफारा और बच्चों की बीमारियाँ जैसे भूख नहीं लगना , पेट में गरबड़ी और दुर्बलता में भी लाभ पहुंचाता है |

दही ज़माने के ढंग के आधार पर भी इससे लाभ पाया जाता है | दूध को खूब उबालकर जो दही जमाया जाता है , वह भूख को बढ़ता है , किन्तु पितकारक होता है | बंगाल में दूध को ज़माने से पहले ही चीनी मिला दी जाती है जिसे मीठी दही कहते है | यह बेहद स्वादिष्ट और रक्त विकार को नाश करता है व प्यास को बढाता है |

दूध से मलाई निकलकर जो दही जमाया जाता है, वह मल बांधने वाला होता है और संग्रहणी रोग में खूब फायदा करता है | दही का सेवन पेट सम्बन्धी रोगों के लिए बहूत ही लाभदायक होता है | बकरी और उटनी के दूध का दही अत्यंत स्वास्थवर्धक होता है |

दही का सेवन खांसी,बुखार में और रात को नहीं करनी चाहिए | ठंढा और बरसात में दही का सेवन लाभ कम हानी ज्यादा कर सकता है | एलर्जिक,नजला,रक्तपित व श्वास सम्बंधित रोगी को दही खाने से परहेज करना चाहिए |दही के साथ चीनी के सेवन से दही की उपयोगिता कम हो जाती है |

अंततः हम यही कहना चाहेंगे की बुढ़ापे और बढती उम्र में कम से कम १७० ग्राम दही का सेवन आप रोजाना करें,क्यूंकि नियमित सेवन से शरीर के लड़ाकू बल्ड सेल्स की प्रक्रिया में तेजी आता है और एंटीबाडीज में वृद्धि होती है | एक शोध में यह भी पता चला है की दही उतना ही प्रभावशाली है जितना की मल्टीविटामिन दवा |


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1 comments

Gyan Darpan April 27, 2010 at 8:09 PM

बढ़िया काम की जानकारी

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