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May 24, 2010

एलर्जी से कैसे बचें ?


सफल सुखद जीवन के लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तथा सामजिक, आर्थिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना आवश्यक है | आमतौर पर रोग बाहर से नहीं आते है, हमारे भीतर से ही उत्पन्न होते है | रोग होने की स्थिति में इसके उपचार के लिए हम अनेक प्रकार की उपचार विधियों को अपनाने को बाध्य हो जाते है | रोग होने का सबसे बड़ा कारण हमारा स्वयं का अस्त-व्यस्त जीवन ही होता है | हम अपनी आदते बिगारते है , हम अपनी मानसिकता बिगारते है और परिणामस्वरूप अनेक रोगों को अपने शरीर में स्थान दे देते है | ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति न तो जीवन का भोग कर सकता है और न ही सुखों की अनुभूति कर पाता है |

वर्तमान में एक ऐसा ही रोग है जिससे ज्यादातर व्यक्ति पीड़ित है
, जिसका नाम आजकल अधिकतर लोगों की जुबान पर होती है जिसका नाम है " एलर्जी" |

एलर्जी जिसे आप भाषा में पिती या छ्पाकी कहते है , इसको आयुर्वेद में शीत-पित रोग के नाम से जानते है | यह रोग प्रायः सर्द-गर्म से होता है, जैसे गर्म कपड़ों या बिस्तर में से निकालकर तुरंत ठंढ में चले जाना या रसोई में खाना बनाकर एकदम स्नान कर लेना आदि |

पेट में कीड़े होने पर भी यह रोग हो जाता है | कुछ लोग को सिंथेटिक कपड़ों के पहनने से, तीव्र रासायनिक सौदर्य प्रसाधन सामग्रियों के प्रयोग करने से तथा आहार द्रव्य या विशेष औषध द्रव्यों के प्रयोग करने से भी यह रोग हो जाता है |

आधुनिक विज्ञानं में इसे एलर्जी के नाम से जानते है | जब कोई शरीर की प्रकृति के प्रतिकूल विजातीय पदार्थ शरीर से स्पर्श करता है या प्रवेश करता है तो शरीर में उसके विरुद्ध एक तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है अर्थात फोरेन प्रोटीन के विरुद्ध शरीर की प्रतिक्रिया या एंटीजन एंटीबाडी प्रतिक्रिया होता है | इस क्रिया के फलस्वरूप हिस्टेमिन नामक रसायन का निर्माण होता है, जो उस प्रदेश की रक्तवाहिनियों को फैला देते है जिसके फलस्वरूप वहां लाल-लाल चकते उत्पन्न हो जाते है

परिणामस्वरूप रक्ताधिक्य के कारण खुजली और लालिमा हो जाती है | त्वचा में चुभन, खुजली एवं दाने पड़ जाते है खुजली बहुत अधिक होती है | परिणामस्वरूप घबराहट एवं बेचैनी भी हो जाती है |


विस्तृत विश्लेषण के बाद यह पता चला है की सभी रोग मन्दाग्नि से होते है | इस रोग में भी मन्दाग्नि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्यूंकि आम विष ही दोष या विकार पैदा करके कफ एवं वायु के द्वारा अनुबंधित होकर शीत-पित पैदा करता है | जिनकी जठराग्नि ठीक होती है, उन्हें इस प्रकार के रोग नहीं होते | इस एलर्जी के और भी अनेक कारण हो सकते है | गंभीर होने पर एलर्जी त्वचा में एग्जिमा जैसे गंभीर रोगों को भी जन्म देती है |

इसके अतिरिक्त कभी-कभी एलर्जी अपना कार्यक्षेत्र भी बदल लेती है, जैसे त्वचा की एलर्जी श्वसन-तंत्र में भी प्रवेश कर जाती है, परिणामस्वरूप दमा जैसे रोग हो जाते है |
श्वसन तंत्र की एलर्जी में अधिक छिक आना, नाक में खुजली, नाक से अधिक स्त्राव निकलना, खाँसी एवं श्वास लेने में कष्ट जैसे लक्ष्ण मिलते है |


ये लक्ष्ण यदि अधिक दी तक रहे तथा बार-बार एलर्जी के अटैक होते रहे तथा एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारण दूर न हों, उनका बार-बार शरीर संपर्क होता रहे तो उसे एलर्जिक ब्रोंकाइटिस कहते है और तब यह कष्टदायक रोग श्वासरोग में बदल जाता है |

अतः एलर्जी की घातकता को कम नहीं आंकना चाहिए | इस रोग से बचने के लिए आहार एवं विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्यूंकि प्रत्येक ऋतू में आयुर्वेद के बाताये उपायों के अनुसार रहन-सहन करने पर व्यक्ति रोगों से बच सकता है |

उपायों पर जरुर ध्यान दे :

>गर्मियों में धुप से आकर पसीने से भीगे हुए एकदम स्नान या ठंढी जगह ए.सी. आदि में न जाए |
>ठंढे वातावरण से एकदम धुप में न जाए |
>विरुद्ध आहार, जैसे-मछली-दूध कभी भी सेवन न करें |
>रासायनिक द्रव्यों का, रासायनिक सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियों का सेवन सावधानीपूर्वक करें |
इन सबके अलावा हमारे पास कुछ पौष्टिक पूरक है साथ में एलोवेरा जेल का सेवन करें जो निचा दिया जा रहा है :
१.एलोएवर जेल
२.गार्लिक थाइम
३.बी पोलेन

उपरोक्त बातों पर सावधानी पूर्वक अमल करें और, अपनी दिनचर्या को, आदत को सुधारे | रोग स्वतः दूर हो जायेगा और आप पुर्णतः स्वास्थ्य हो जायेंगे |

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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !

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