
एलो की अणुका ( मोलेक्युलर ) संरचना इतनी छोटी है की वह त्वचा की उपरी परतों के माध्यम से अंतिम परत तक पहुँच सकता है | सबसे उपरी परत एपिडर्मिस है उसके निचे डर्मिस और सबसे निचली परत हायपोडर्मिस है |
एलो में "लिग्निन" नामक तत्व है जो इसे कोशिकीय स्तर तक पहुँचने में मदद करता है | इसमें " सैपोनिन" नामक एक अन्य तत्व भी है जो प्राकृतिक रूप से सफाई करने का काम करता है | ये दोनों तत्व एक साथ मिलकर त्वचा के कोशिकीय स्तर तक पहुचते है और त्वचा की परतों से जहरीले पदार्थ को सतह पर लाते है और धीरे-धीरे प्रणाली में से निकाल देते है |
इसके अलावा, यह त्वचा को पोषण भी देता है और पोषको की पुनः पूर्ति भी करता है | चित्र में त्वचा की तिन विभिन्न परते और एलो बाहरी तौर पर काम करने का तरीका दिखाया गया है |
एलो के बारे में कहा जाता है की वह " अन्दर से बहार की ओर " काम करता है - यानि की यह अन्दर तक पहुँचता है और सारे विषों को हटाता या साफ़ करता है और प्रणाली में से निकाल बहार करता है |
अब अनुसन्धानकरता मानते है की सभी रोगों में से ९०% की शुरुआत पाचन तंत्र से होती है | इसलिए, सही और अच्छी सेहत के लिए पोषण का सही पाचन, शोषण और परिपाचन जरुरी है |
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विषैले पदार्थ भीतरी परत में बाधा उत्पन्न करते है, पोषकों और विटामिनो के शोषण की प्रभावशीलता घटाते है, इसलिए वे शोषित हुए बिना आपकी प्रणाली में से सीधे बहार निकल जाते है | विषैले पदार्थ- वे है जो शरीर में जमा होते जाते है और शरीर को नुकसान पहुंचाते है |
जब आपके शरीर को आपके आहार से पोषण नहीं मिलता, तब आपके शरीर में कमियां हो जाती है और इस तरह से रोग हो जाते है |
जब एलो वेरा लिया जाता है, तब वह पाचन तंत्र में से इन विषैले पदार्थों को हटाता है क्यूंकि इसमें विषैले पदार्थों को तोड़ने और कोमलता से निकालने की योग्यता है, इस तरह से यह भीतरी परत को साफ़ करता है और शरीर को हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन के पोषक तत्वों का पूरा फायदा उठाने के योग्य बनाता है |

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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
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