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Aug 19, 2010

दिव्य स्वास्थ्य रक्षक वनौषधि अर्जुन-1


चलिए फिर से आपको मैं अर्जुन वृक्ष की छाल के औषधि गुण के बारे में चर्चा करते है - किस प्रकार से मानव जाती के लिए बहुपयोगी औषधि है |

अर्जुन वृक्ष की छाल ह्रदय के लिए है ही बेहतर , इसके सेवन से ह्रदय के मांसपेशियों को मजबूती मिलता है और इसके आलावा यह शक्तिवर्धक, रक्त स्तम्भक एवं प्रमेह नाशक भी है | यह नाडी की क्षीणता में वृद्धि, पुराणी खांसी, श्वास आदि विकारों में भी हितकर है | इसे मोटापे को रोकने वाला तथा हड्डियों के टूटने पर उस अंग की हड्डी को स्थिर करके रक्त संचार को सामान्य रूप से चालू करके हड्डियों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पाया गया है |

रासायनिक तत्व :-
अर्जुन वृक्ष की छाल में पाए जाने वाले सक्रिय रासायनिक तत्व है, विटा साइटो सटेराल, अर्जुनिक एसिड और फ्रीडलीन | अर्जुन अम्ल ग्लूकोज के साथ संयुक्त होकर एक ग्लुकोसाइड बनाता है जिसे ' अर्जुनेटिक ' कहा जाता है | यह छाल का सबसे महत्वपूर्ण रसायन है |

इनके अलावा अर्जुन छाल में पाए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण घटक है:-
1. खनिज लवण :-
अर्जुन छाल में 34% के लगभग तो अकेला कैल्सियम कार्बोनेट ही पाया जाता है | इसके अतिरिक्त इसमें सोडियम, पोटेशियम, मैग्नेशियम और एल्युमिनियम आदि अन्य क्षार भी पाए जाते है | इन्हीं खनिज लवण की प्रयाप्त उपलब्धता के कारण ही अर्जुन छाल ह्रदय की मांसपेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य करके अपना औषधीय प्रभाव प्रकट करती है |

2. अर्जुन छाल में 20 से 25 प्रतिशत भाग टैनिन्स से बनता है | अर्जुन के छाल में पाए जाने वाले दो प्रमुख टैनिन है :- पायरोगेलाल और केटेकाल |

3. इसके अतिरिक्त अर्जुन छाल में अन्य कई पदार्थ भी पाए जाते है , जैसे :- कार्बोहाईड्रेट, रंजक पदार्थ, विभिन्न अज्ञात कार्बनिक एसिड और उनके ईस्टर्स|

ह्रदय रोगों में :- ह्रदय में शिथिलता या विकार आ जाने पर अथवा ह्रदय का आकर बढ़ जाने पर अर्जुन छाल का अत्यंत बारीक चूर्ण दुध में गुड़ के साथ उबाल कर क्वाथ बना कर पिलाया जाता है |

पुरानी खांसी में :- अगर पुरानी खांसी उपचार के बाद भी नियंत्रण में न हो तो अर्जुन की छल बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है | खांसी के लिए अर्जुन का छाल का उपयोग निम्न प्रकार से करना चाहिए |

अर्जुन की छाल को सर्वप्रथम बारीक़ पिस ले और उसे कीसी कांच या मिटटी के वर्तन में भरकर 24 घंटे के लिए रख दें और फिर उसे खरल में डालकर 2 -3 घंटे तक अच्छी तरह घोंट कर धुप में सुखा ले | इसे पुनः पिस व छान कर किसी स्वच्छ पात्र में भर कर रख लें |

इस चूर्ण को आधी से एक चम्मच की मात्र में थोड़े से पानी में उबल कर 1 से 2 चम्मच शहद मिलकर दिन में तिन बार पिने से लगभग सभी प्रकार की खंसियों में आराम आ जाता है , जहाँ तक की क्षय रोग की उस खांसी में भी, जिसमे बलगम के साथ रक्त मिश्रित होकर आता है |

खुनी पेचिश :- इसमें अर्जुन की छाल को बकरी के दूध में पीसकर दूध और शहद मिलकर पिलाने से शीघ्र आराम आ जाता है |

हड्डी की टूटन या घाव में :- शरीर के किसी अंग विशेष की हड्डी टूट जाने पर भी अर्जुन की छाल शीघ्र लाभ करती है |

बवासीर में :- बवासीर में अर्जुन छाल को हारसिंगार के फुल तथा बकायन के फलों के साथ अत्यंत बारीक चूर्ण बनाकर 4 -4 ग्राम की मात्रा में दिन दो से तिन बार नियमित रूप से सेवन करते रहने से बवासीर के साथ आनेवाला रक्त गिरना बंद हो जाता है तथा बवासीर के मस्से सिकुड़ने लग जाते है |

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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !

1 comments

Gyan Darpan August 20, 2010 at 6:23 AM

शानदार व सच्ची उपयोगी जानकारी

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