" "यहाँ दिए गए उत्पादन किसी भी विशिष्ट बीमारी के निदान, उपचार, रोकथाम या इलाज के लिए नहीं है , यह उत्पाद सिर्फ और सिर्फ एक पौष्टिक पूरक के रूप में काम करती है !" These products are not intended to diagnose,treat,cure or prevent any diseases.

Aug 29, 2010

सुख की तालाश

आज हर कोई सुख पाना चाहता है | सुख ऐसा लक्ष्य है जो जीवन के पलपल में समाहित है | दुसरे जीव इसे सरलता से प्राप्त कर लेते है परन्तु इंसान इस के लिए वैसे ही भटकता रहता है जैसे कस्तूरी के लिए मृग !प्रकृति प्रदत फूलों की सुगंध स्वाभाविक रूप से खिलने के बाद आता है |

मनुष्य जीवन में सुख भी अगर स्वाभाविक रूप से हो तो उसका आनंद आएगा लेकिन जैसे-जैसे जीवन की स्वाभाविकता खोते जाते है , जीवन को कृत्रिम और अप्राकृतिक बनाते जाते है, वैसे वैसे जीवन से सुख का एहसास लुप्त होते जाते है |अतः जीवन को स्वाभाविक रूप से फूलों की तरह खिलने दें तो सुखानंद की अनुभूति स्वतः फूटती रहेगी |

इंसान जबतक बच्चा होता है, पालने पर पड़े-पड़े जोर-जोर से जमकर हवा में हाथ पैर चलाता है और जम कर जीवन का आनंद उठता है | जैसे जैसे इंसान बड़ा होता है , उसपर सामाजिक बंधन, पारिवारिक अनुशासन लादा जाने लगता है और उस के आनंद में अवरोध शुरू हो जाती है | पढ़ाई के दौरान हम प्रतिस्पर्धा सीखते है और फिर ईष्र्याद्वेष भी पनपने लगता है |


यहाँ तक आते-आते मनुष्य जीवन का नैसर्गिक सुख को खोने लगता है | चिंता, तनाव उस के जीवन से सुख की सुगंध को लुप्त कर डालते है , फिर शुरू होती नकली आनंद प्राप्त करने के खेल जो की मनोरंजन के तौर पर खरीद लाते है | पर क्या खुशियाँ जुटाने के लिए जो सुविधा और मनोरंजन देने वाले यंत्र खरीदने से आन्तरिक खुशियाँ मिलती है ? सच तो यह है की इस प्रकार व्यक्ति एक आत्मछल का खेल खेलता है, सुख नहीं पा सकता |

वैसे प्रकृति ने हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी प्रतिभा का बीज रखा होता है | मनुष्य को उस बीज को जानना है, उसे पहचानना है | उसे सींचना और पोषित करना अति आवश्यक है | अपनी प्रतिभा को उचित आयाम देने के लिए आपका लक्ष्य और कार्यक्रम स्पष्ट होना चाहिए , साथ ही आप में लगन,मेहनत, निष्ठा और इमानदारी की कमी भी नहीं होनी चाहिए |

आप अपने परिश्रम और योग्यता के अनुरूप की कुछ पा सकते है, इसलिए आप योग्यता, क्षमता और व्यक्तित्व को विकसित करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए | गीता का सार जीवन का भी सार है , " कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन " ! अतः रूचि पूर्वक अपना कार्य करने से जीवन में उत्सुकता और खुशियाँ बनी रहती है |


वास्तविकता तो यह है की आनंद , सुख का जो मूल स्वरूप है तो हम सब के भीतर ही , केवल हमें उसे अपने जीवन शैली,आचरण और व्यव्हार में सुधार कर के सुरक्षित रखना है और ऐसा करके, अपने आप को बचा सकते है अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से भी |

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1 comments

Daisy May 31, 2021 at 5:16 PM

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