स्वाइन फ्लू यानि इन्फ़्लुएन्ज़ा ( एच1 एन 1 ) एक ऐसा वाइरस है जिन्होंने पूरी दुनिया में अपना दस्तक दे चुके है | शायद ही कोई ऐसा देश हो जो इनका शिकार नहीं हुआ हो | वैसे तो यह साधारण फ्लू जैसे ही होते है परन्तु अगर सही वक्त पर इसका इलाज नहीं किया गया तो यह जानलेवा भी सवित हो सकती है |
आमतौर पर यह सूअरों से होने वाली साँस संबधी बीमारी है | वैसे तो यह बीमारी सूअरों में ही होता है परन्तु कई बार सूअरों के सीधे सम्पर्क में आने से यह मनुष्यों में भी फ़ैल जाती है इसके अलावा संक्रामक बीमारी है | बलगम और छींके से भी यह बीमारी फलती है |
स्वाइन फ्लू के लक्ष्ण :-
इसमें 100 डिग्री से ज्यादा का बुखार आना लगभग आम है | खांसी,काफ आना, जुकाम या नाक बहना , बदन दर्द और सर दर्द , ठंढ लग्न, साँस लेने के तकलीफ , थकावट, उल्टियां और दस्त ,गले में खराश महशुस होना आदि इनके मुख्य लक्ष्ण है |
बेकाबू हो रही स्वाइन फ्लू के रोकथाम के लिए नित्य नए कदम उठाये जा रहे है ताकि इसपर नकेल लगाया जा सके |
खासकर गर्भवती महिलायें, छोटे बच्चे और बुजोर्गों को इससे ज्यादा सावधान रहने की जरुरत है | इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति मधुमेह, अस्थमा, फेफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी, अर्थात कमजोर प्रतिरक्षा तन्त्र वाले व्यक्ति को विशेष सावधान रहने की जरुरत है |
लेकिन आप घबराए नहीं , सरल उपाय से इस तरह के महामारी को बढ़ने से रोक सकते है |
> बहार से आने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धोएं |
> नाक, मुंह अथवा हाथ को छूने से पहले तथा बाद में हाथ को साफ़ जरुर करें |
> शारीरिक रूप से सक्रीय रहें और रोज व्यायाम करें तथा भरपूर नींद लें |
> भीडभाड वाले स्थान में अनावश्यक न जाए |
> हाथ मिलाना, लोगों से गले मिलना और चुम्बन अथवा छूकर लोगों का स्वागत करने के अन्य तरीके से बचे | चिकित्सक के परामर्श से ही दवाई ले | खुली जगह पर ना थूके |
जैसा की मैं अक्सर चर्चा करता रहता हूँ दुनिया के सर्वश्रेष्ट औषधि के बारे में, जी हाँ एक बार फिर से मैं दुहरा रहा हूँ अगर कोई व्यक्ति आज के धरती का अमृत एलोवेरा जेल का सेवन करें तो ये छोटी मोटी रोग उन्हें छू भी नहीं सकती | यहाँ तक की बड़े से बड़े असाध्य रोग भी अगर शरीर के अंदर बन रहा होगा तो वह भी स्वतः नष्ट हो जायेगा | यह वास्तव में मानव के लिए अमृत तुल्य है |
जेल में उपस्थित 200 से भी ज्यादा घटक होते है, 20 मिनरल्स,18 अमीनो एसिड्स और 12 विटामिन सहित 75 पोषक तत्व है | खासकर एलोवेरा में 8 आवश्यक अमीनो एसिड होते है जिनकी जरुरत इंसान को होती है परन्तु शरीर स्वतः निर्माण नहीं कर सकता |
अगर कोई व्यक्ति डायबिटीज,उच्च रक्तचाप, एसिडिटी, कब्ज़, गठिया, मानसिक रोग, ह्रदय रोग यानि की कब्ज़ से लेकर कैंसर तक पुराने रोग से पीड़ित हो | ऐसे में उन्हें रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कम हो जाती है |
इसिलए उन्हें विशेष प्रकार की जड़ी बूटी से निर्मित फॉर एवर लिविंग प्रोडक्ट्स के पोषक पूरक और एलो वेरा जेल से सम्पूर्ण फायदा मिल सकता है | अगर आप ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते है तो उन्हें इसके बारे में जरुर बताएं | शायद आपका सलाह किसी के जीवन में उम्मीद की नई किरण ला सके |
अतः मनुष्य को आज के वायरस वाले वातावरण में अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के पूरक का सेवन करना नितांत आवश्यक हो गया है |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
ल्यूकोरिया वर्तमान समय में स्त्रियों की एक आम समस्या है | इससे ज्यादातर स्त्रियाँ प्रभावित होती है | इसे आयुर्वेद में "श्वेत प्रदर" और आम भाषा में लोग " पानी जाना" कहते है | इस रोग से किसी भी उम्र की महिलायें प्रभावित हो सकती है यहाँ तक की अविवाहित लड़कियां भी इस रोग की शिकार हो जाती है | ज्यादातर महिलायें जिन्हें बिना परिश्रम के भोजन मिल जाता है, या जिनका चलना फिरना कम होता है अर्थात जो मौज मस्ती एशो आराम की जिन्दगी जीती है | वे स्त्रियाँ इस रोग से शीघ्र ग्रसित हो जाती है |
यह रोग गर्भाशय की स्लैष्मिक कला में सुजन उत्पन्न हो जाने के फलस्वरूप हो जाता है | इस रोग में गर्भाशय से सफ़ेद रंग का तरल पानी आने लगता है, जिस प्रकार पुरुषों में प्रमेह की आम शिकायत होती है, ठीक उसी प्रकार यह स्त्रियों का रोग है | स्त्री के इस धातुस्त्राव में दुर्गन्ध आती है और उसकी योनी से जब तब चौबीस घंटे पतला-सा स्त्राव होता रहता है |
ल्यूकोरिया के मुख्य कारण पोषण की कमी तथा योनी के अंदर रहने वाले जीवाणु है | इसके अतिरिक्त और भी कई कारण होता है जो श्वेद प्रदर होने की संभावना रहती है | जैसे :- गुप्तांगों की अस्वच्छता , खून की कमी तथा अति मैथुन.अधिक परिश्रम, अधिक उपवास आदि है |
इस रोग के दुसरे कारण जीवाणु का संक्रमण, गर्भाशय के मुख पर घाव होना , यौन रोग , मलेरिया आदि से श्वेत प्रदर गंभीर रूप धारण कर लेता है | इस तरह से यह रोग बहुत ही कष्टदायक हो जाता है अतः रोग कैसा भी क्यूँ न हो कभी भी शर्म से या लापरवाही से छिपाना नहीं चाहिए |
श्वेत प्रदर के प्रारम्भ में स्त्री को दुर्बलता का अनुभव होता है | खून की कमी के वजह से चक्कर आने लगते है , आँखों के आगे अँधेरा छा जाने जैसे लक्ष्ण उत्पन्न हो जाते है |
कुछ महिलाओं में स्त्राव के कारण जलन और खुजली भी होती है | रोगग्रस्त महिला क्षीण व उदास बनी रहती है उसके हाथ पैरों में जलन और कमर दर्द बना रहता है |
रोगी की भूख में कमी आने लगती हैं कब्ज़ बनी रहती हैं तथा पाचन शक्ति दुर्बल हो जाती है | इनके अतिरिक्त बार-बार मूत्रत्याग, पेट में भारीपन, जी मचलाना आदि लक्षण पाए जाते है | इस अवधि में रोगी का चेहरा पिला हो जाता है | मासिक धर्म में भी गरबड़ी आ जाती है फलस्वरूप स्त्री चिडचिडी हो जाती है |
ल्यूकोरिया सामान्य हो या असामान्य सर्वप्रथम इसके मूल कारणों का निवारण करना चाहिए | रोगिणी को खान-पान में सावधानी रखनी चाहिए | खट्ठी-मिट्ठी चीजें, तेल-मिर्च, अधिक गर्म पेय तथा मादक पेय का त्याग करना चाहिए | गुप्तांगो को नियमित साफ़ करना चाहिए | खून की कमी को पूरा करने के लिए आहार या आहारीय पूरक का प्रयोग करना चाहिए | बार-बार गर्भपात कराने से बचें | रोग को शर्म से छिपायें नहीं और न ही ज्यादा चिंता करें |
इसके लिए बाहरी उपचार जैसे योनी को किसी अच्छे साबुन से दिन में दो बार धोएं |
फिर आयुर्वेदिक औषधि से आप वो सब कारणों का इलाज़ कर सकते है जिससे वो समूल नष्ट हो जायेगा | जो की निचे लिखा जा रहा है और यह ल्यूकोरिया के लिए एक अचूक औषधि है :-
1 . एलो बेरी नेक्टर
2 . पोमेस्टिन पावर
3 . गार्लिक थाइम
4 . फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन
5 . बी प्रोपोलिस
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी!
क्या आप एसिडिटी और मोटापे की समस्या से परेशान है ? या किसी काम में अपने मन को एकाग्रचित नहीं कर पा रहे है ? यादास्त की भी समस्या हो रही है? अगर ऐसा आपके साथ हो रहा है, तो आपका जरुर सोने और जागने का समय ठीक नहीं हो सकता है |
वर्तमान की भागम-भाग जिन्दगी की सबसे बड़ी समस्या है दिनचर्या की उचित ढंग से पालन नहीं करना | इसका प्रतिकूल असर हमारे सेहत पर पड़ता है | सूर्योदय से पहले यानि ब्रह्म मुहूर्त में जागना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद सिद्ध होता है | सुबह की तरोताजा हवा, विशुद्ध वातावरण हमारे मन, शरीर व दिमाग को प्रफुलित कर देता है |
ऐसे में मन को एकाग्रचित करना बेहद सुखद अनुभूति होता है | ब्रह्म मुहूर्त में जागने से हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र में भी मजबूती आती है |
और भी कई फायेद है सुबह जल्दी जागने का :-
> पेट साफ़ रहता है कब्ज़ और अपच जैसे समस्या नहीं होती है |
> दिनभर अपने आपको हल्का और खुशहाल महशुस करेंगे |
> दिन भर के कार्यक्रम बनाने में भी आसान होता है |
> मानसिक तौर पर भी मजबूती मिलेगी, यादास्त बढ़ेगी |
> उगते हुए सूरज को देखना, बहुत अच्छा संकेत माना जाता है |
सुबह दिनचर्या के काम से पहले नाश्ता जरुर करें | सुबह का नास्ता को "व्रेन फ़ूड" कहा जाता है | चुकी दिन भर का महत्वपूर्ण आहार है सुबह का नास्ता | रात के खाने के बाद और सुबह के नाश्ते के बिच का लम्बा अंतराल हो जाता है और अगर सुबह का नास्ता नहीं किया जाय तो अंतराल और भी बढ़ जाता है |
हम बेशक सोते है परन्तु मस्तिस्क नींद में भी सक्रीय होता है | ऐसे में दिमाग को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है | अर्थात सुबह का नास्ता न करने से ग्लूकोज की कमी होने लगती है | ऐसे में शारीरिक व मानसिक क्षमता का हास होने लगती है, जो सेहत के लिए हानिकारक होता है |
विशेषज्ञों के अनुसार सुबह का नास्ता करने से दोपहर में भूख कम लगती है जिससे आप आवश्यकता से अधिक कलोरी नहीं लेते है और फैट नहीं बढ़ता है |
सुबह का नास्ता संतुलित होना चाहिए | इसमें काल्सियम,( दूध या दूध से बनी चीजें ), प्रोटीन, रेशेदार पदार्थ ( अंकुरित आनाज ),
और एंटीओक्सीडेंट( सेब,स्ट्राबेरी,केला,संतरा ) और विटामिन होना चाहिए | और नित्य एलो वेरा जूस का सेवन करें , एसिडिटी और पेट के किसी भी प्रकार के रोगों से मुक्ति पायें |
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आज जहाँ स्वास्थ्य रक्षा में आयुर्वेद का अपना विशेष महत्व है वहीँ बीमारियों की चिकित्सा पद्धति के रूप में भी अपना अस्त्तित्व को बुलंद किया हुआ है |
जहाँ कई तरह के चिकित्सा पद्धति बीमारियों पर असफल हो सकती है, उसे आयुर्वेद में माध्यम से ठीक किया जा सकता है | आयुर्वेद हमेश से लोगों की मान्यता पर खरा उतरता है | साथ ही यह लोगों में विश्वास पैदा करने में सफल हो चुकी है की, आयुर्वेद रोगों का समूल नाश करने वाली चिकित्सा है | इससे रोग को शरीर से स्थायी निराकरण संभव है |
वर्तमान में विकृत जीवनशैली व आहार विहार के कारण रोगों की लंबी श्रृंखला है किन्तु गुदा की बिमारियों में आयुर्वेद का अपना विशेष अधिकार रहा है | यह बात सर्वमान्य है की आज पाइल्स का इलाज में आयुर्वेद से अच्छी चिकित्सा पद्धति नहीं हो सकती है यह स्वयं का अनुभव भी है | अतः आज हम इस क्रम में पाइल्स की बिमारी पर चर्चा कर रहे है क्यूंकि इस बिमारी से ज्यादातर लोग पीड़ित होते है | सामान्य तौर पर अर्श का मतलब है पालीप्स तथा गुदा में होने वाले अर्श को पाइल्स के नाम से जाना जाता है | गुदा में स्थित शिराओं के फुल जाने का नाम ही अर्श है |
इनके प्रमुख कारण है आहार विहार की अनियमितता , अनेक प्रकार के संक्रमण भी एक कारण हो सकते है |
इन कारणों के आलावा आयुर्वेद में शोक , क्रोध,चिंता, मोह, आलस्य आदि के साथ-साथ मद्यसेवन अत्यधिक मैथुन, अत्यधिक व्यायाम आदि भी इनके लिए जिम्मेदार होते है | ह्रदय रोगियों में अर्श होना सामान्य बात होती है |
इस तरह से सामान्य कारणों से लेकर बीमारियों के उपद्रव भी पाइल्स हो सकते है | यह एक ऐसे दुश्मन है जो शरीर के विनाश में लम्बा समय लेते हुए कष्ट के साथ जीवन जीने को मजबूर करते है |
आजकल हर गली के चौक चौराहें व मुख्य मार्ग पर पाइल्स या और भी कई प्रकार के बीमारियों का शर्तिया इलाज करते हुए चिकित्सक अपना बोर्ड व पर्चा चिपकाए नजर आते है |
परन्तु कई बार देखा गया है की इन्ही निम् हकीम के वजह से लोग और भी मुसीबत में पर जाते है | अर्थात इस प्रकार से पर्चे वाले चिकित्सक से आपको सावधानी से काम करना चाहिए |
पाइल्स के इलाज़ के लिए आप हमारे एलोवेरा जूस के साथ भी शुरू कर सकते है | चुकी आयुर्वेद के अनुसार अगर आपका आंत और दांत स्वस्थ्य है तो आप को किसी भी प्रकार के कोई रोग हो ही नहीं सकता | अतः आप अपने आहार को ठीक रखें जिससे आपक पेट ठीक रहे |
नई या पुरानी, साधारण या भयंकर, कैसी भी समस्या हो, कहीं का भी बीमारी हो, एलोवेरा बिमारी के पैदा होने के मूल कारणों को ही शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है | एलोवेरा इस प्रकार से नई बिमारी को पैदा नहीं होने देता है | जिस प्रकार गाड़ी की सर्विस कराते है, एलोवेरा ठीक उसी प्रकार से शरीर को अन्दर से सर्विस करता है | नहाने से शरीर की बाहरी भाग की सफाई होती है | एलोवेरा से शरीर के अन्दुरुनी भाग की सफाई होती है | जाहिर सी बात है अगर आप अंदर से साफ़ है तो कोई बिमारी आपको छू भी नहीं सकता है |
पाइल्स के लिए हमारे पास निम्नलिखित उत्पाद है जो इस्तेमाल कर कर इससे मुक्ति पा सकते है :-
1 . एलो वेरा जेल
2 . फील्ड्स ऑफ़ ग्रीन
3 . फॉर एवर अल्ट्रा लाईट
4 . एलो लिप्स
5 . गार्लिक थाइमस
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जैसा की मैंने पहले अंश में दिल्ली के कुछ सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल के बारे में संक्षेप में लिखा हुआ है, उसी के विषय में यहाँ आज वृहत रूप से चर्चा करेंगे |
दिल्ली की दर्शनीय स्थल जो दिल्ली की शान है : -
कुतुबमीनार :- कुतुबमीनार के निर्माण को लेकर लोगो में मतभेद है | लेकिन इस सम्बन्ध में कोई शक नहीं की 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस का निर्माण कार्य शुरू करबाया और उस की मौत के बाद दुसरे शासकों ने इसे पूरा किया !
लालकिला :- लाल पत्थरों से बना लाल किला ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं, अपितु देश की शान भी है |
हर स्वतंत्रता दिवस पर इसी ऐतिहासिक किले की प्राचीर से तिरंगा फहरा कर प्रधानमंत्री जी देशवासियों को संबोधित करते है | 3 किलोमीटर में फैले इस कीले का निर्माण 1638 में मुग़ल बादशाह शारजहाँ ने करबाया , जिसे पूरा होने में पुरे 10 वर्ष लगे | बहादुर शाह जफ़र यहाँ राज करने वाले अंतिम मुग़ल शासक रहे |
जामा मस्जिद :- लाल किला के ठीक सामने सडक के दूसरी ओर स्थित जामा मस्जिद
देश की सब से बड़ी मस्जिद है | लगभग 25 हजार लोग इसके विशाल प्रांगन में एकसाथ नमाज अदा कर सकते है |
पुराना किला :- महाभारत काल में पांडवों ने इस का निर्माण कराया था , जिसे तब इन्द्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था | प्राचीन समय के कला का अनूठी मिसाल यह किला अब खंडहर में तब्दील हो चूका है | माना जाता है की कभी इस पुराना किला से शेरशाह सूरी का भी सम्बन्ध रहा था |
चिड़ियाँ घर :- पुराने किला से सटे हुए चिड़ियाँ घर में कई प्रकार के विलक्ष्ण पशु और पक्षियाँ यहाँ के लोगों के आकर्षण का केंद्र है | कई प्रकार के जीवजन्तु के अलावा सफ़ेद बाघ भी यहाँ मिल जाता है | रविबार का दिन यहाँ ज्यादा भीड़ नजर आती है | बच्चों में चिड़ियाँघर के प्रति ज्यादा जिज्ञासा देखनो को मिलाता है |
इंडिया गेट :- तक़रीबन 90 हजार सैनिक जो प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान शहीद हुए थे उनकी याद में 42 मीटर ऊँचे इस शहीद स्मारक का निर्माण 1931 में किया गया था | राजपथ के अंतिम छोर पर बने भव्य दरबाजे को इंडिया गेट कहते है | शहीदों की याद में यहाँ हमेशा अमर जवान ज्योति जलती रहती है |
जंतरमंतर :- कनाट प्लेस के नजदीक संसद मार्ग पर स्थित जंतरमंतर
का निर्माण 1725 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने कराया था | यहाँ की बनी धुप घड़ी, गृह नक्षत्रों की दशा और खगोलीय घटनाओं से सम्बंधित जानकारी देती है !
राष्ट्रपति भवन :- राजपथ के एक छोड़ पर स्थित 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में देश के राष्ट्रपति का निवास स्थान है | आजादी से पहले यह वायसराय का निवास स्थान हुआ करता था | सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यहाँ आम जनता को जाने की इजाजत नहीं है | राष्ट्रपति भवन के एक हिस्से में में स्थित मनमोहक फूलो की विभिन्न प्रजातियाँ एवं पेडपौधे से सुसज्जित मुग़ल गार्डेन है | आम जनता को देखने के लिए यह गार्डेन 15 फरबरी से एक महीने के लिए खोल दिया जाता है !
प्रगति मैदान :- यहाँ राष्ट्रिय और अंतरराष्ट्रिय स्तर की प्रदर्शनियों का आयोजन सालोभर होता रहता है | यहाँ 14 से 27 नवम्बर तक चलने वाला अंतरराष्ट्रिय व्यापर मेले के अलावा पुस्तक मेले के चलते इस को खासी शोहरत मिली है | यहाँ विभिन्न राज्यों के स्थायी गुम्बजदार इमारत बने हुए है, जहाँ जा कर सैलानी उन प्रदेशों की प्रगति और वहां की सांस्कृति की झलक देख सकते है |
हुमायूं का मकबरा :- 1565 -1566 के बिच हुमायूं ने अवध के नवाब सफदरजंग की याद में यह मकबरा बनबाया | सफदरजंग एअरपोर्ट के निकट स्थित इस मकबरे को हुमायूं के मकबरा निर्माण परम्परा का अंतिम मकबरा माना जाता है | हुमायूं के अन्य मकबरों की तुलना में यह काफी कम क्षेत्र में बना है |
राष्ट्रीय संग्रहालय :- इंडिया गेट के निकट जयपुर हॉउस में और राष्ट्रपति भवन व इंडिया गेट के बीचोबीच जनपथ रोड पर राष्ट्रीय संग्रहालय के दो अलग-अलग भवन है | दोनों भवनों में पुरातन वस्तुओं, कलात्मकता व पुरातत्वीय वस्तुएं संग्रहित है | संग्रहालय में स्थित वस्तुओं से जुडी बातें जानने के लिए यहाँ फिल्मे भी दिखाई जाती है |
डौल्स म्यूजियम :- आईटीओ के पास बहादुरशाह जफर मार्ग पर स्थित इस संग्रहालय में विश्व के लगभग 85 देशों की 600 गुडियाएँ राखी गई है | देश के विभिन्न राज्यों की पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित ये गुड़ियाएं बच्चों को बेहद पसंद आती है | सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक यह संग्रहालय सोमवार के अलावा सभी दिन खुला होता है |
समाधियाँ :- देश की महान विभूतियों की समाधियाँ जमुना नदी से सटे रिंग रोड के दूसरी ओर स्थित है | राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की राजघाट, लालबहादुर शास्त्री की विजय घाट, इंदिरा गाँधी की शक्ति स्थल,तथा राजिव गाँधी की समाधि वीरभूमि पर बनाई गई है | इन समाधियों के आसपास लगे हरी भरी घास पर बैठकर पर्यटक अपनी थकान मिटाते है |
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जय श्री कृष्णा !
सपनो की नगरी दिल्ली की अपनी अलग पहचान है | यहाँ भारत के भिन्न भिन्न प्रान्त से आये लोग अपने लिए जीविकोपार्जन करते है | राजनीती गहमागहमी की शहर दिल्ली, का बिता हुआ कल अपने में कई यादे समेटे हुए है | सदियों से यहाँ शासन करने वाले शासक में परिवर्तन होते रहे है और प्रत्येक नए शासक के दौर में दिल्ली एक नए रूप में उभरकर सामने आती रही है |अनंगपुर के आसपास और आरावली की पहाड़ियों की चट्टाने इस बात की पुष्टि करती है की यहाँ आदि मानवों का बसेरा भी रहा था |
ईसापूर्व कोई हजार वर्ष पहले के काली मिट्टी से बने बरतनों के अवशेषों से इस बात की पुष्टि हुई है की महाभारत काल में यह पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ रही होगी | ईसापूर्व तीसरी सदी के मध्य यहाँ मौर्य शासकों का तो 11वीं सताब्दी में तोमर वंश के शासक अनंगपाल का शाशन रहा | भारत की सबसे ऊँची पत्थर की इमारत कुतुबमीनार की नींव डालने वाला कुतुबद्दीन ऐबक 1206 में यहाँ का पहला मुग़ल बादशाह बना |
इसके बाद खिलजी, तुगलक और लोदी वंशों ने क्रमशः राज किया | 16वीं सताब्दी में हुमायूं ने यहाँ दीनपनाह की नींव रखी थी जो आज पुराना किला है | लेकिन बाद में शेरशाह सूरी ने इसे दुबारा पुराने किले के रूप में तैयार कराया |
यहाँ अकबर और जहाँगीर के शासन में भी निर्माण कार्य होते रहे थे लेकिन 1639 में शाहजहाँ की बनाई गई मुगलों की राजधानी शाहजहानाबाद 1857 तक बतौर मुगलों की राजधानी के रूप में मशहूर रहा |
1911 में अंग्रेज दिल्ली से शासन कार्य करने लगे | इस दौरान उन्होंने भी कई निर्माण कार्य कराये दिल्ली के बीचोबीच आज का कनाट प्लेस अंग्रेजों की ही देन है |
आज के आजाद भारत में भी निर्माण कार्य बहुत तेजी से चल रहा है |
फ़्लाइओवर और मेट्रो ने दिल्ली शहर को एक बार फिर नया रूप दे दिया है | वर्तमान में राष्ट्रमंडल खेल के कारण सडको, फ़्लाइओवर और मेट्रो के निर्माण कार्य में दिन और रात चल रहा है | यमुना किनारे बसी दिल्ली को दो भागों में बांटा गया है - पुराणी दिल व नै दिल्ली |
यहाँ दर्शनीय स्थल बहुत सारे है जैसे कुतुबमीनार,लालकिला,जामामश्जिद,पुराना किला, चिड़ियाँघर , इंडिया गेट, जन्तर मन्त्र, राष्ट्रपति भवन,प्रगति मैदान, आपुघर,हुमायूं का मकबरा, सफदरजंग का मकबरा, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्स म्यूजियम, देश में महान विभूतियों की समाधियाँ यमुना नदी से सटे है |
दिल्ली के आसपास आगरा, मथुरावृन्दावन, सूरजकुंड, बड़खल व सोहना
जैसे पर्यटन स्थलों पर सुविधानुसार जा कर घुमने का आनंद लिया जा सकता है | इन दिनों दिल्ली में मेट्रो द्वारा भूमिगत और सड़क से ऊपर की यात्रा का आनंद लिया जा सकता है | दिल्ली में चांदनी चौक, करोल बैग,कनात प्लेस, सरोजनी नगर मार्किट मुख्य है, जहाँ आप खरीददारी भी कर सकते है |
और भी बहुत कुछ है जिसके बारे में मैं अगले अंश में चर्चा करेंगे , खासकर पर्यटन स्थल की खासियत और उनसे जुडी कुछ यादें | अगले भाग के लिए इन्तेजार कीजिये और आज का पावन पर्व जन्माष्टमी की आप सब को बहुत बहुत बधाईयाँ |
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ताऊ और ताऊ की भैंस अक्सर ये बाते करते हैं....!
....कुत्ते- कैसे कैसे?
हमारे देश में जिस रफ़्तार से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, वह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है | फसल की उपज को कीड़ों की मार से बचाने के लिए खेतों में अँधा-धुंध जहर छिडकने का प्रचलन में किसान भाई एक दुसरे को पछाड़ने में लगे हुए है |
यह जानकार आप भी अचम्भित हो जायेंगे की अगर कोई व्यक्ति पाँच वर्ष लगातार बैगन अथवा भिन्डी का सेवन अपने आहार में कर ले तो वो निश्चित तौर पर दमा का मरीज बन सकता है | यहाँ तक की उसकी श्वास नलिका बंद हो सकती है |
दरअसल बैगन को तोड़ने के बाद उनकी चमक को कायम रखने के लिए उन्हें फोलिडन नामक कीटनाशक के घोल में डुबाया जाता है, चुकी बैगन में घोल को चूसने की क्षमता ज्यादा होती है, अतः फोलिडन घोल बैगन में चला जाता है | इसी प्रकार से भिन्डी में जब छेदक कीड़े लग जाते है, तो इसके ऊपर भी इसी घोल का छिडकाव बहुत अधिक मात्रा में की जाती है |
चमकते हुए फल या सब्जियां हमें अपनी ओर ज्यादा आकर्षित करती है परन्तु हमें सावधान रहना चाहिए जब बाजार में सब्जी या फल खरीदने जाए | ध्यान रखें चमकता हुआ हरेक चीज अच्छा नहीं हो सकता | तो हमें ज्यादा चमक और हरी दिखने वाली सब्जी से बचना चाहिए |
वैसे आज उगने वाले हर फसल पर कुछ न कुछ कीटनाशक दवाई का प्रयोग करते है | जैसे गेहूं को ही लेते है तो उसके ऊपर भी मैलाथिन नामक पाउडर का इस्तेमाल कीड़ों से बचने के लिए करते है और गेहूं खाने वालो को इस पाउडर के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है , चाहे उसकी मात्रा थोड़ी ही क्यूँ न हो, परन्तु लगातार उपयोग करने से आगे जाकर ना जाने क्या-क्या परेशानी हो सकती है |
विश्व बैंक द्वारा किये गए अध्यन के अनुसार दुनिया में 25 लाख लोग प्रतिवर्ष कीटनाशकों के दुष्प्रभावों के शिकार होते है, उसमे से 5 लाख लोग तक़रीबन काल के गाल में समा जाते है |
चिंता का विषय यह भी है ,जहाँ एक तरफ दुनिया के कई देशो ने जिस कीटनाशक दवाई को प्रतिबन्ध कर दिया है , अपने यहाँ धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है | यहाँ तक की अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे देश में कारखाने स्थापित कर बहार के देशों के प्रतिबंधित अनुपयोगी व बेकार रासायनों को यहाँ मंगा कर विषैले कीटनाशक उत्पादित कर रही है |
इनमे से कई कीटनाशकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बेहद जहरीला और नुकसानदेह बताया है जिनमे डेल्तिरन, ई. पी.एन., क्लोरेडेन, फास्वेल आदि प्रमुख है |
दिल्ली के कृषि विज्ञानं अनुसन्धान केंद्र के द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली के आसपास के ईलाकों में कीटनाशकों का असर 2 प्रतिशत अधिक है | लुधियाना और उसके आसपास से लाये गए दूध के सभी नमूनों
में डी.डी.टी. की उपस्थिति पाई गई है | यहाँ तक की गुजरात जो देश की दुग्ध राजधानी के नाम से जाने जाते है, वहां से शहर के बाजारों में उपलब्ध मक्खन, घी और दूध के स्थानीय बरंदों के अलावा लोकप्रिय ब्रांडों में भी कीटनाशक के अंश पाए गए है |
विश्व में हमारा देश डी.डी.टी. और बी.एच.सी. जैसे कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि डी.डी.टी. कीटनाशक रसायन अनेक देशों में प्रतिबंधित है | हमारे यहाँ जमकर इसका प्रयोग किया जाता है |
आज यह सवित हो चूका है की अगर हमारे खून में डी.डी.टी. की मात्रा अधिक होने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है | साथ ही हमारे गुर्दों, होठों,जीभ व यकृत को भी नुकसान पहुंचता है |
बी.एच.सी. रसायन डी.डी.टी. से ढाई गुना ज्यादा जहरीला होता है | परन्तु हमारे देश में गेहूं व अन्य फसलों पर अधिक उपयोग किया जाता है जो की कैंसर और नपुंसकता जैसी तकलीफ के लिए जिम्मेदार होता है |
आज जरुरत है कीटनाशकों के विकल्प साधनों की जो जैविक नियंत्रण विधि, सामाजिक व यांत्रिक तरीकों को अपनाएं | दुनिया के कई देशों में इनका व्यापक प्रयोग सफलता पूर्वक किया जा रहा है, जिससे कीटनाशकों की खपत एक तिहाई कम हो गई है और उत्पादन भी बढ़ गया है |
अतः आनेवाली पीढ़ी व हमारे स्वास्थ्य के लिए धीरे-धीरे कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना अति उतम होगा |
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अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
....कुत्ते- कैसे कैसे?
आज हर कोई सुख पाना चाहता है | सुख ऐसा लक्ष्य है जो जीवन के पलपल में समाहित है | दुसरे जीव इसे सरलता से प्राप्त कर लेते है परन्तु इंसान इस के लिए वैसे ही भटकता रहता है जैसे कस्तूरी के लिए मृग !प्रकृति प्रदत फूलों की सुगंध स्वाभाविक रूप से खिलने के बाद आता है |
मनुष्य जीवन में सुख भी अगर स्वाभाविक रूप से हो तो उसका आनंद आएगा लेकिन जैसे-जैसे जीवन की स्वाभाविकता खोते जाते है , जीवन को कृत्रिम और अप्राकृतिक बनाते जाते है, वैसे वैसे जीवन से सुख का एहसास लुप्त होते जाते है |अतः जीवन को स्वाभाविक रूप से फूलों की तरह खिलने दें तो सुखानंद की अनुभूति स्वतः फूटती रहेगी |
इंसान जबतक बच्चा होता है, पालने पर पड़े-पड़े जोर-जोर से जमकर हवा में हाथ पैर चलाता है और जम कर जीवन का आनंद उठता है | जैसे जैसे इंसान बड़ा होता है , उसपर सामाजिक बंधन, पारिवारिक अनुशासन लादा जाने लगता है और उस के आनंद में अवरोध शुरू हो जाती है | पढ़ाई के दौरान हम प्रतिस्पर्धा सीखते है और फिर ईष्र्याद्वेष भी पनपने लगता है |
यहाँ तक आते-आते मनुष्य जीवन का नैसर्गिक सुख को खोने लगता है | चिंता, तनाव उस के जीवन से सुख की सुगंध को लुप्त कर डालते है , फिर शुरू होती नकली आनंद प्राप्त करने के खेल जो की मनोरंजन के तौर पर खरीद लाते है | पर क्या खुशियाँ जुटाने के लिए जो सुविधा और मनोरंजन देने वाले यंत्र खरीदने से आन्तरिक खुशियाँ मिलती है ? सच तो यह है की इस प्रकार व्यक्ति एक आत्मछल का खेल खेलता है, सुख नहीं पा सकता |
वैसे प्रकृति ने हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी प्रतिभा का बीज
रखा होता है | मनुष्य को उस बीज को जानना है, उसे पहचानना है | उसे सींचना और पोषित करना अति आवश्यक है | अपनी प्रतिभा को उचित आयाम देने के लिए आपका लक्ष्य और कार्यक्रम स्पष्ट होना चाहिए , साथ ही आप में लगन,मेहनत, निष्ठा और इमानदारी की कमी भी नहीं होनी चाहिए |
आप अपने परिश्रम और योग्यता के अनुरूप की कुछ पा सकते है, इसलिए आप योग्यता, क्षमता और व्यक्तित्व को विकसित करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए | गीता का सार जीवन का भी सार है , " कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन " ! अतः रूचि पूर्वक अपना कार्य करने से जीवन में उत्सुकता और खुशियाँ बनी रहती है |
वास्तविकता तो यह है की आनंद , सुख का जो मूल स्वरूप है तो हम सब के भीतर ही , केवल हमें उसे अपने जीवन शैली,आचरण और व्यव्हार में सुधार कर के सुरक्षित रखना है और ऐसा करके, अपने आप को बचा सकते है अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से भी |
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